Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सराणा अभिनन्दन प्रन्थ : द्वितीय खण्ड
लिये भवन, फर्नीचर, स्थायी कोष, वार्षिक व्यय और छात्रालय-संचालन हेतु धनराशि संग्रह करने के लिये अपनी यात्राएं सन् १९७२ ई० से प्रारम्भ कर दी।
___ संघ ने अपनी १६ बीघा कृषि भूमि और ४०००) रुपये श्री धीसाजी तेजाजी चौधरी को देकर उसके बदले में आदर्श निकेतन भवन के पीछे उसकी १६ बीधा कृषि भूमि प्राप्त कर ली जिस पर महाविद्यालय के भवनों का निर्माण कराया गया।
श्री सुराणाजी ने अपनी प्रथम यात्रा सन् १९७२ ई० में गुजरात और महाराष्ट्र प्रदेश की सम्पन्न की जिसमें १५ दिवस में करीब ६ लाख रुपये और द्वितीय यात्रा सन् १९७३-७४ ई० में मैसूर, मद्रास और खानदेश की की जिसमें ७६ दिवस में (नव) लाख रुपये की धनराशि संग्रह की । इससे भवन निर्माण कार्य द्रुतगति से प्रारम्भ हुआ।
____ संघ ने सन् १९७४ ई० की जुलाई में श्री सी. आर. जे. बाबूलाल निर्मलकुमार भंसाली वाणिज्य महाविद्यालय का श्रीगणेश कर दिया जिसमें श्री गोविन्दलालजी माथुर एम० ए०, एल-एल० बी० की प्राचार्य पद पर नियुक्ति की गई । इस वर्ष ५ विद्यार्थियों ने प्रवेश प्राप्त कर प्रथम वर्ष वाणिज्य का अध्ययन प्रारम्भ किया।
सन् १९७५ ई० में इस महाविद्यालय के साथ-साथ श्री चांदमल जुगराज सेठिया कला महाविद्यालय को भी प्रारम्भ कर दिया जिसमें श्री आर० पी० शर्मा, एम० ए०, बी० टी० की प्राचार्य पद पर नियुक्ति की गई। दोनों महाविद्यालयों की प्रथम वर्ष की दोनों कक्षाओं में कुल ३३ छात्र परीक्षा में सम्मिलित हुए और परिणाम वाणिज्य वर्ग में १४ प्रतिशत व कला वर्ग में ६३ प्रतिशत रहे। इसी वर्ष राजस्थान विश्वविद्यालय से अस्थायी मान्यता भी प्राप्त हो गई।
संघ ने दोनों महाविद्यालयों को पृथक-पृथक संचालन करने और व्यय की अधिकता को वहन करने की कठिनाइयों को अनुभव किया । फलस्वरूप १९७६ ई० में दोनों महाविद्यालयों को सम्मिलित कर एक महाविद्यालय श्री जैन तेरापंथ महाविद्यालय में परिवर्तन कर दिया और दोनों महाविद्यालयों को क्रमशः वाणिज्य संकाय और कला संकाय के रूप में स्थापित कर दिया। प्राचार्य के पद पर अनुभवी एवं राजकीय सेवा निवृत्त श्री सुगनचन्दजी तेला एम० ए०, एल-एल० बी० की नियुक्ति की गई। इसमें प्रथम व द्वितीय वर्ष की दोनों कक्षाएँ प्रारम्भ कर दीं। सर्वप्रथम कुल ६५ विद्यार्थी परीक्षा में सम्मिलित हुए और उत्तीर्ण परिणाम १०० प्रतिशत रहा।
सन् १९७७ ई० में श्री तेला साहब के नेतृत्व में तृतीय वर्ष की कक्षाएं भी शुरू कर दी। विद्यार्थियों और प्रवक्ताओं के अध्ययन-अध्यापन से १०६ परीक्षार्थी सम्मिलित हुए और उत्तीर्ण परिणाम १०० प्रतिशत रहा । इसके बाद तो छात्रों में व लोगों में इस महाविद्यालय के प्रति लगाव काफी बढ़ा और वर्तमान में यह राजस्थान में परीक्षा परिणाम, अनुशासन व व्यवस्था की दृष्टि से सर्वोत्तम महाविद्यालय है ।
आचार्य श्री तुलसी का आध्यात्मिक योगदान
छात्रों को प्रारम्भ से ही नैतिक, आध्यात्मिक और चारित्रिक ज्ञान प्रदान करने के लिये महामहिम युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी का परम आशीर्वाद प्राप्त है । वे प्रतिवर्ष अपने विद्वान, तत्त्वज्ञ एवं आत्मार्थी साधु-साध्वियों को यहाँ चातुर्मास के लिये भेजते हैं। प्रतिदिन धार्मिक शिक्षण, व्याख्यान, गोष्ठी एवं सेवा का अमूल्य लाभ छात्रों को प्रदान करते हैं और उनमें जैनधर्म के सिद्धान्तों तथा तेरापंथ की मान्यताओं का बीजारोपण करते हैं जिससे वे आत्मकल्याण का सही मार्ग अपना सकें। वे तेरापंथी महासभा, कलकत्ता; अखिल भारतीय अणुव्रत समिति, नई दिल्ली जैन विश्व भारती, लाडनू द्वारा आयोजित परीक्षाओं के पाठ्यक्रम की भी शिक्षा देते हैं । अब तक राणावास में निम्न साधु-साध्वियों के चातुर्मास सम्पन्न हो चुके हैं
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