Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास का इतिहास
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सं० वि० संवत नाम सिघाडा
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ऋ० वर्ष नाम सिंघाड़ा
वर्ष ठाणा . ऋ०
ठाणा सं० वि० संवत् १. १६९२ मुनिश्री सागरमलजी, भिवानी ३ २१. २०१६ साध्वीश्री विजयश्रीजी, रतनगढ़ २. २००१ मुनिश्री जीवनमलजी, जसोल
२२. २०२० मुनिश्री शुभकरणजी, सरदारशहर ३. २००२ मुनिश्री जसकरणजी, सुजानगढ़
२३. २०२१ साध्वीश्री दीपांजी, सिरसा ४. २००३ मुनिश्री उदयचन्दजी, सरदारशहर
२४. २०२२ साध्वीश्री कानकंवरजी, सरदारशहर ५. २००४ मुनिश्री पूनमचन्दजी, गंगाशहर
२५. २०२३ साध्वीश्री मोहनाजी, तारानगर ६. २००५ मुनिश्री सोहनलालजी, सुजानगढ़
२६. २०२४ मुनिश्री सोहनलालजी, चूरू ७. २००६ साध्वीश्री कमलूजी, राजलदेसर
२७. २०२५८. २००७ मुनिश्री रावतमलजी, सुजानगढ़
२८. २०२६ मुनिश्री पूनमचन्दजी, गंगाशहर ६. २००८ मुनिश्री भोमराजजी, गंगाशहर
२६. २०२७ साध्वीश्री कमलूजी, उज्जैन १०. २००६ मुनिश्री रंगलालजी, राजाजी का करेड़ा ४ ३०. २०२८ साध्वीश्री विनयश्रीजी, डूंगरगढ़ ११. २०१० मुनिश्री नथमलजी, बागोरवाला
३१. २०२६ साध्वीश्री कमलश्रीजी, टमकोर १२. २०११ मुनिश्री नोरतनमलजी, भोमासर ३ ३२. २०३० साध्वीश्री भीकांजी, लाडनू' १३. २०११ साध्वीश्री पानकंवरजी, सरदारशहर
३३. २०३१ साध्वीश्री राजीमतीजी, रतनगढ़ १४. २०१२ साध्वीश्री आशाजी, राजलदेसर
३४. २०३२ साध्वीश्री संघमित्राजी, डूंगरगढ़ १५. २०१३ मुनिश्री मांगीलालजी, गंगाशहर
३५. २०३३ मुनिश्री गणेशमलजी, गंगाशहर १६. २०१४ मुनिश्री गणेशमलजी, गंगाशहर
३६. २०३४ साध्वीश्री यशोधराजी, लाडनू १७. २०१५ मुनिश्री जंबरीमलजी, बीदासर
३७. २०३५ साध्वीश्री गुलाबांजी, भादरा १८. २०१६ साध्वीश्री मालूजी, डूंगरगढ़
३८. २०३६ साध्वीश्री सिरेकंवरजी, सरदारशहर ५ १६. २०१७ साध्वीश्री केसरजी
३६. २०३७ मुनिश्री मोहनलालजी, आमेट । २ २०. २०१८ मुनिश्री धनराजजी, लाडनू
४०. २०३७ मुनिश्री रोशनलालजी, सरदारशहर । २
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युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने भी वि० सं० २०१० तदनुसार सन् १९५४ का मर्यादा महोत्सव व समारोह यहाँ पर सम्पन्न कराया है। उन्होंने शेषकाल में भी सन् १९६०, १९६१ तथा १९६२ में यहाँ पधार कर राणावास की विद्याभूमि को पवित्र किया है एवं पावन सदुपदेशों का पान कराकर सबको लाभान्वित किया है। इसके अलावा यहाँ अध्ययनरत छात्रों के साथ संघ के पदाधिकारी आदि भी माननीय कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा के नेतृत्व में परम श्रद्धेय गुरुदेव के दर्शनार्थ विभिन्न स्थानों पर संघ रूप में गये हैं, उसका विवरण इस प्रकार है
(१) १६४७ ई०, चुरू, (२) १६४६ ई०, जयपुर (३) १९५१ ई०, सरदारशहर (४) १६५३ ई०, जोधपुर (५) १९५७ ई०, सुजानगढ़
(६) १९६० ई०, राजसमन्द
द्विशताब्दी समारोह पर (७) १९६१ ई०, गंगापुर (८) १९६१ ई०, गंगाशहर
धवल समारोह पर,
(९) १९६४ ई०, बीकानेर, (१०) १९६६, ७१ ई०, बीदासर,
मर्यादा महोत्सव पर (११) १९७१ ई०, लाडनू, (१२) १९७५ ई०, जयपुर, (१३) १९७७ ई०, गंगाशहर, (१४) १९७६ ई०, लुधियाना।
इन यात्राओं से शासन के प्रति निष्ठा और गुरुदेव के प्रति भक्ति की अभिवृद्धि तथा छात्रों में अध्यात्म के प्रति रुझान व संस्कार पैदा करने में बहुत सहायता मिली है।
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