Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अनौपचारिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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विषय वस्तु अनौपचारिक कार्यक्रमों को अपने निर्दिष्ट समूहों के लिए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के विचार से विषयवस्तु का चयन एवं निश्चय करना पड़ता है। कुछ विषय-वस्तु विभिन्न समूहों के लिए समान रूप से भी आयोजित की जा सकती है, यथा--अक्षरज्ञान या साक्षरता, संख्याज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, प्रसूति चर्या और शिशु पोषण तथा परिवार नियोजन आदि । किन्तु इस प्रकार के समूहों के लिए जो विषय-वस्तु चुनी जायगी उसमें उनके व्यावसायिक कार्य और आर्थिक पक्ष की जरूरतों के लायक सामग्री पर अवश्य बल दिया जायेगा। इस दृष्टि से एक वर्ग के लिए समुन्नत बीज कार्यक्रम, दूसरे वर्ग के लिए सघन कृषि तकनीकी, तीसरे, चौथे, पांचवें तथा छठे वर्गों के लिए क्रमश: दुग्ध उत्पादन, भेड़पालन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन आदि सहायक व्यवसायों की जानकारी भी दी जा सकती है। इनके साथ ही कतिपय विशेष कार्यक्रमों की भी आवश्यकता रहेगी जिनके द्वारा वे प्रभुतासम्पन्न जातियों की उग्रता का सामना करने का साहस उत्पन्न कर सकें और अपने विकास में आने वाली कठिनाइयों को दूर कर सकें। तात्पर्य यह है कि जिन लोगों पर अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम की विषयवस्तु चुनने का उत्तरदायित्व होगा उन्हें स्वयं को शिक्षार्थी समुदाय में व्याप्त समस्याओं की समाजशास्त्रीय एवं वैचारिक अन्तर्दशाओं के अवबोध में पारंगत होना होगा और विभिन्न विकास अभिकरणों से समन्वय तथा सहयोग भी करना होगा।
केन्द्र-व्यवस्था एवं समय ___ इस शिक्षा कार्यक्रम के आयोजक किसी स्थान विशेष के प्रति दुराग्रह से पीड़ित नहीं होते हैं । वे चाहें तो विद्यालय भवन का उपयोग अपने कार्यक्रम के आयोजन के लिए कर सकते हैं किन्तु यह किसी भी दशा में अनिवार्य नहीं है। अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन अधिकतर तो कार्य-स्थानों पर ही होगा और कार्यगत कुशलताओं के निर्देशन के विचार से वैसा होना भी चाहिए। किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में शिक्षार्थी का घर भी सीखने का स्थान हो सकता है या कोई ऐसी जगह भी हो सकती है, जिसे शिक्षाथियों का समुदाय निश्चित करे, जैसेमन्दिर, मस्जिद, पंचायतघर, गांव का चोरा(चौपाल), खेत या किसी वृक्ष विशेष की छाया। अपने खुलेपन की विशिष्टता के कारण अनौपचारिक शिक्षा की परिस्थितियाँ भी उतनी ही मुक्त और निर्बन्ध होंगी जैसा कि उसका कार्यक्रम होगा।
___साथ ही इसमें शिक्षार्थी की सुविधा के अनुसार विभिन्न प्रकार के शिक्षा कार्यक्रम अंशकालिक या पढ़ने वाले की सुविधानुसार चलते हैं । इस अंशकालिक या अपनी सुविधा के दायरे में भी अनेक भिन्नताएं हो सकती हैं, जैसे कुछ कार्यक्रम दिन में थोड़े समय के लिए चल सकते हैं किन्तु शिक्षार्थी कोई चाहे तो आधे घण्टे के लिए और कोई घण्टे-दो घण्टे के लिए आ सकता है । अन्य स्थितियों में शिक्षण अवकाश में कृषकों के लिए उनकी फुरसत के समय पूर्णकालिक पाठ्यक्रम भी चलाया जा सकता है।
अनौपचारिक शिक्षा में पद्धति, साधन और माध्यम विद्यार्थी समुह की शैक्षणिक आवश्यकताओं और उनकी तत्सम्बन्धी पृष्ठभूमि के आधार पर नियोजित होंगे । उनमें कक्षा शिक्षण हो सकता है तो खेत या कार्यस्थल पर प्रत्यक्ष निदर्शन भी हो सकता है । पत्राचार के माध्यम से कार्य हो सकता है तो निर्देशित स्वाध्याय की स्थिति भी बन सकती है । साक्षरता कार्यक्रम के लिए आयोजकों को भाषा के माध्यम सम्बन्धी निर्णय भी करना होगा। साधन-सामग्री की आवश्यकता को भी झुठलाया नहीं जा सकता। साधन-सामग्री के उत्पादन में जो कठिनाइयाँ उपस्थित हैं उनका अधिक समाधान तो रेडियो, चलचित्र जैसे जन संचार के साधनों से ही हो सकता है किन्तु अन्ततोगत्वा अनौपचारिक शिक्षा में उसकी अपनी साधन-सामग्री की नितान्त महत्ता को अत्युक्ति कहकर नहीं टाला जा सकता।
अनुदेशक इसके पाठ्यक्रम और पद्धति की अपेक्षाओं से यह ध्वनित होता है कि व्यावसायिक अध्यापक सामान्यतः शिक्षार्थियों की विभिन्न और विविधतापूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकेंगे। इन कार्यक्रमों को वास्तविक अर्थों में व्यावहारिक बनाने के लिए विभिन्न विकास अभिकरणों के कार्यकर्ताओं का सहयोग भी प्राप्त करना होगा और यह
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