Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
शिक्षा एवं बेरोजगारी
४६
नियोजन स्थिति (संख्या लाखों में)
रोजगार के लिए
वर्ष
पंजीकृत बेरोजगारों
की संख्या
रोजगार उपलब्ध करवाया गया
प्रत्याशी
४५.२
४०.७
१६७० १६७३
८२.२
१६७४
m
१९७५ १९७६
५४.४ ५६.२
६७८
यद्यपि ये आंकड़े कुछ वर्षों पहले के हैं किन्तु इनसे स्पष्ट है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में केवल ४.५ लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाने की क्षमता ही रही है। यदि इसकी तुलना जनसंख्या की वृद्धि दर से की जाये तो यह कोई महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नहीं है। जनगणना के महापंजीकार ने १९७२ में जो विशेषज्ञ समिति स्थापित की, उसने १९७१ की जनगणना के आधार पर १९८१ तक की जनसंख्या के बारे में संकेत दिये हैं। इसके अनुसार जनसंख्या की वृद्धि की दर जो आंकी गई है वह है १६.७६ प्रति हजार व्यक्ति किन्तु भारतीय रिजर्व बैंक बुलेटिनअनुपूरक-अक्टूबर, १६७७ के अनुसार यह वृद्धि-दर २२ प्रति हजार व्यक्ति आंकी गई है, लगभग एक करोड़ से भी ज्यादा। कहाँ तो एक वर्ष में एक करोड़ की जनसंख्या में वृद्धि और कहाँ ४.५ लाख की रोजगार देने की क्षमता के
आंकड़े। इस तथ्य के सन्दर्भ में रोजगार उपलब्ध करवाये गये व्यक्तियों की संख्या को यदि देखा जाये तो स्थिति विपरीत प्रतीत होती है। भविष्य का परिणाम स्पष्ट है।
इस शोचनीय स्थिति को अनुभव कर भूतपूर्व जनता सरकार ने आने वाले दस वर्षों में सभी को रोजगार पर लगा देने का आश्वासन दिया था किन्तु वह स्वयं देखते-देखते सत्ता से च्युत हो गई। वर्तमान इन्दिरा सरकार ने भी बेरोजगारी की समस्या से निजात पाने के लिए अनेक कार्यक्रम हाथ में लिये हैं, किन्तु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित आँकड़ों पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होगा कि पिछले कुछ समय से रोजगार उपलब्ध करवाये गये व्यक्तियों की संख्या में गिरावट आ रही है। यह एक शोचनीय स्थिति है ।
समस्या का समाधानरोजगार दो प्रकार का हो सकता है-वेतनभोगी रोजगार तथा स्वरोजगार। केवल वेतन-भोगी रोजगार अकेले ही इस स्थिति का मुकाबला पूरी तरह से नहीं कर सकता है क्योंकि इनके सृजन के लिए बहुत बड़े पैमाने पर निवेश के कार्यक्रम अपनाने पड़ते हैं जिनके लिए बहुत पूंजी की आवश्यकता रहती है । इसलिए जितना सम्भव हो सके उतने अधिक स्वरोजगार के अवसरों के सृजन के प्रयत्न करना आवश्यक है। विशेष रूप से कृषि, लघु उद्योग, व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्रों में स्व-रोजगार की अभी बहुत क्षमता है।
शिक्षा तथा रोजगार के बीच निकटतम सम्बन्ध स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि विद्यार्थियों की अभिरुचियों, कुशलताओं तथा व्यक्तित्व की उच्च विशेषताओं को सुनिश्चित किया जाय । आवश्यकता इस बात की भी है कि उचित पाठ्यक्रम और उपयुक्त शिक्षण पद्धतियों को अपनाकर विद्यार्थियों में ऐसे गुणों को भर दिया जाये जो सभी प्रकार के व्यवसायों से सम्बन्ध रखते हैं और अन्ततः उन्हें अधिक रोजगार प्राप्त करने और पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाने और उन्हें रोजगार में लग जाने में अधिक समर्थ बनायें। साथ ही यह भी आवश्यक है कि विद्यार्थियों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ उनके जीवनोपयोगी गुणों का विकास किया जाये। इसके लिए ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता रहेगी जो चरित्र-निर्माण, त्याग, अनुशासन और नैतिकता की शिक्षा दे सके। आजकल विद्यार्थी वर्ग क्यों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org