Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अभिभावकों का दायित्व
७५.
करते हैं। मूर्ख कहीं का ! लड़के ने कहा-मां, मुझे क्या पता, आप हमेशा ही जब पिंकी रोता है तो नीचे का भय दिखाती हो, तब चुप हो जाता है, मगर आज जब रोता-रोता चुप नहीं हुआ तब मैंने उसे नीचे गिरा दिया। मुझे क्या पता नीचे गिरते ही मर जायेगा । अब माता-पिता पाश्चात्ताप करते रह गये। माता सोच रही है-हाय ! अगर मैंने यह भय नहीं दिखाया होता तो आज मेरा नयनों का तारा बेमौत क्यों मरता? कवि ने ठीक ही कहा है
काम करे सुविचार कर, बोले वचन विचार ।
और रहे संतुष्ट नित, ये तीन शांति के द्वार ।। वस्तुतः अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के संस्कार बच्चे ग्रहण करते हैं, ये दोनों उदाहरण इस बात के प्रतीक हैं कि बच्चों में समझदारी कम होती है। इसलिए अनुकरणप्रिय ज्यादा होते हैं। अच्छे संस्कार अच्छे बनाते हैं एवं बुरे संस्कार बुरे । पर संस्कारों का प्रभाव अवश्यम्भावी बच्चों पर पड़ता है, इसमें कोई दो मत नहीं। देखिये-इतिहास बताता है कि मदालसा नामक सन्नारी के जब भी पुत्र होता, तब वह स्तनपान कराते एवं सुलाते समय लोरी देती हुई बड़ी सुन्दर शिक्षा देती और कहती कि बेटा तू-''शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसारमाया परिवजितोऽसि" यह विराट् एवं महान् बनने की लौरी हर बालक को कान में सुनाया करती और साथ ही साथ ज्यों-ज्यों बच्चा बड़ा होता त्यों-त्यों प्रतिदिन जीवन-निर्माण की आध्यात्मिक शिक्षा दिया करती थी।
परिणामस्वरूप उसके सभी बालक बड़े होने पर होनहार, योग्य एवं महान् बने। ये थे जन्म-घूटी के साथ दिये गये सुन्दर संस्कार । इसका तात्पर्य है कि बच्चे को जैसा बनाना है वे संस्कार माता की ओर से सर्वप्रथम खुराक की तरह मिलते हैं । बच्चा अपने आप में कुछ नहीं होता । अमर माधुरी में कहा है
जो विचारें सो बनालें, देव हूँ, शैतान हूँ मैं ।
अंत में माता-पिता के खेल का सामान हूँ मैं ॥ मतलब, बालक कह रहा है कि मुझमें देवता बनने की क्षमता भी है और शैतान यानी राक्षस बनने की भी क्षमता है। दोनों प्रकार की शक्तियाँ मौजूद हैं, अब आवश्यकता है माँ-बाप जैसा बनायेगे वैसा ही बालक बन जायेगा यदि माँ-बाप शान्त प्रकृति के हैं तो बच्चे भी वैसे ही बनेंगे। यदि वे बात-बात में झगड़ालू, क्रोधी एवं व्यसनी हैं तो उनकी सन्ताने भी वैसी ही वनेंगी, क्योंकि वातावरण यदि दूषित होगा तो बच्चों का जीवन भी वैसा ही दूषित एवं अपराधी होगा । अत: आस-पास का वातावरण बिल्कुल विशुद्ध रखें, इस ओर यदि अभिभावकगण ध्यान देगे तो अवश्य ही उनकी भावी पीढ़ी सुसंस्कारी होगी। इसमें प्रथम प्रयास अभिभावकों का, दूसरा शिक्षकों का और तीसरा धर्मगुरुओं का है। सबके सुन्दर प्रयास से बच्चे होनहार, सुशिक्षित एवं चरित्रसम्पन्न होकर परिवार, समाज, देश एवं राष्ट्र के उत्थान में सहयोगी बन सकते हैं। नींव सुदृढ़ होती है तो झंझावात आने पर भी खतरा नहीं होगा। आवश्यकता है नींव को मजबूत बनाने की। कोरी कल्पना से नहीं, बल्कि स्वयं के बलिदान से। एक मुक्तक में ठीक कहा है
आम धारणा है कि हमारी भावी पीढ़ी सुसंस्कारवान् बने । सम्पूर्ण दुनिया में नाम रोशन करें, वैसी बलवान बने ।। लेकिन कल्पना की लंबी-चौड़ी उड़ान भरने वाले बन्धुओ ! स्वयं को टटोलो कि उनके लिये तुम कितने परित्राण बने ।
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