Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ तृतीय खण्ड
दिया कि मेरा पापा और मेरी मम्मी जब लड़ते हैं तो ऐसे बोलते हैं और मेरे साथी मित्र भी तो बोलते हैं, मैं भी सीख गया । देखिए - ऐसे एक क्या अनेकों नासमझ बच्चे मिलेंगे जो नादानी के कारण ऐसी-वैसी गन्दी बातें सीख जाते हैं, इसलिये बच्चों के समक्ष अभिभावकगण अपनी समझदारी से काम करें एवं ऐसे-वैसे गन्दे बच्चों के साथ न बठने दें तो बहुत बड़ा हित हो सकता है ।
संस्कारों का प्रभाव बहुत गहरा होता है फिर चाहें वे अच्छे हों या बुरे मैं यहाँ कुछ सजीव घटनाओं से बतलाऊँगी कि संस्कारों का प्रभाव कितना गहरा होता है
एक परिवार था, उसमें कई बच्चे थे। घर में कहीं से मिठाई आई थी, सभी बच्चे मिठाई खाने के लिये लालायित हो उठे । यह स्वाभाविक था, पर उस समय माता को कहीं बाहर जाना जरूरी था अतः मिठाई ऊँची आलमारी में रखकर बच्चों को कहा कि बेटा ! मैं जरूरी कार्य जल्दी से करके अभी आ ही रही हूँ । देखो ! आलमारी में हाऊ बैठा है । कोई हाथ मत लगाना, अच्छा ! मैं जाती हूँ ।
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देखिये माँ ने हाऊ का भय डाल दिया पर शरारती बच्चे कब डरने वाले ! पीछे से सबसे बड़े लड़के ने दोनों भाई एवं बहिन को एक उपाय सुझाया कि तुम सब घोड़ी बनो मैं तुम्हारे ऊपर खड़ा होकर तुम सबको मिठाई खिला दूंगा । क्यों सब तैयार हो न ? सबने एक साथ हाँ कही और फौरन घोड़ी बन गये । बड़े लड़के सुरेश ने ऊपर चढ़कर मिठाई का वर्तन नीचे उतार लिया, सबने मिलकर ऊँचा रखकर आलमारी ज्यों की त्यों बन्द कर खेलने लगे के लिए पूछे तो एक ही जवाब देना है कि हम क्या जानें। माता अपने कार्य से निवृत्त होकर पर आई, सारे बच्चे खुशी-खुशी खेल रहे थे। माँ ने जब मिठाई का बर्तन देखा तो खाली मिला । सब बच्चों से पूछा तो एक साथ उत्तर दिया हम क्या जानें, आलमारी का हाऊ खा गया होगा । हम तो वहाँ तक पहुँच भी नहीं सकते । माता बच्चों की तरफ एकाएक देखती रह गई। अगर माता ने हाऊ का भय नहीं दिखाया होता तो शायद बच्चे मिठाई नहीं भी खाते और झूठ भी नहीं बोलते, मगर उनको एक मार्ग मिल गया बहाने का, हाऊ वाला । अस्तु, इस प्रकार की एक घटना और है-
माता के आने से पहले-पहले मिठाई खाकर वर्तन वापिस सुरेश ने सब बच्चों को कह दिया कि जब माताजी मिठाई आलमारी में आप हाऊ बता रही थीं वो खा गया होगा ।
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एक परिवार में कुल पाँच सदस्य थे। दो पति-पत्नी और तीन बच्चे दोनों पति-पत्नी नौकरी करते थे । भय का भूत प्रत्येक माता अपने बच्चे को रुदन के समय दिखाती है। जब बच्चा रोता- रोता बन्द नहीं होता तब उसे नाना प्रकार के भय से भयभीत कर देती है। उन्हें यह ज्ञान तक नहीं कि भय से बच्चे के दिमाग पर कितना बुरा असर होता है ।
बड़ी मुश्किल से आगे जाकर वे संस्कार
भयभीत बच्चे बचपन में पाये गये संस्कारों से इतने प्रभावित होते हैं कि जब-जब वे प्रसंग उपस्थित होते हैं, बच्चे कंपकंपाने लग जाते हैं और भय के मारे बुखार भी हो जाता है। निकलते हैं । एक दिन आवश्यक कार्य के लिए माता कहीं बाहर जा रही थी, नौकरानी आई नहीं थी अतः बड़े लड़के से, जोकि ६-१० वर्ष का था, कह के गई कि मुन्ना सोया हुआ है, जब जाग जाये तो रोने मत देना, शीशी में दूध डालकर पिला देना । माता चली गई। थोड़ी देर के बाद मुन्ना जाग गया, उठते ही मम्मी नहीं दिखने से रोने लगा । खिलौने देने पर भी राजी नहीं हुआ, शीशी पिलाने लगा तो हाथ से शीशी गुस्से में फेंक दी काँच की शीशी थी, फूट गई; पर रोना बन्द नहीं हुआ । आखिर हारकर भाई ने उसको तीन मंजिल से नीचे गिराने का भय दिखाया, जो कि माता उसे हमेशा दिखाती थी। पर इस बार भय दिखाने पर भी रोना बन्द नहीं हुआ तब बड़े भाई ने तंग आकर नीचे फेंक दिया। परिणामस्वरूप उस दुधमुंहे बच्चे की माँ की भयंकर भूल ने उसके प्राण ले लिये। वे दोनों बहिन-भाई खेलने लगे । जब माँ कार्य से निवृत्त होकर घर आई, मुन्ने के लिए पूछा तब लड़के ने सारी घटना कह दो सुनते ही मां के तो होश हवास गुम हो गये नीचे जाकर जब देखा तो बच्चा नाली में गिरा हुआ है। माता के दुःख का कोई पार नहीं रहा, आखिर कहे तो किसको कहे, ऊपर आकर बच्चे को कहा - अरे, कभी इस तरह से फेंका
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