Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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इम्तिहान पर क्षण भर
D डॉ० विश्वम्भर व्यास !
(हिन्दी विभाग, भूपाल नोबल्स महाविद्यालय, उदयपुर)
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अभी कल की ही बात है एक विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ व्याख्याता को कतिपय छात्रों की हिंसक वृत्ति का कोपभाजन होना पड़ा। इम्तिहान में उन्होंने ईमानदारी को अपनाया था, बस यही उनका अपराध था। कहा जा सकता है यह कोई नयी और चौंकाने वाली बात नहीं है, आये दिन ही ऐसा देखने-सुनने को मिलता है। भले यह न हो नयी और चौंकाने वाली बात.... लेकिन क्या यह सोचने और विचारने की बात नहीं है कि ऐसा क्यों होता है...क्या इम्तिहान बहुत जरूरी है और इनकी परम्परित 'गडार' को मिटाने और नये रास्ते की तलाश की कुछ आवश्यकता है ?
विश्वविद्यालयों में छात्र असन्तोष के यी अनेक कारण हो सकते हैं। कभी-कभी तो अकारण सो दीखने
वाली बातें भी कारण बन जाती हैं अथवा बना दी जाती हैं। असन्तोष की परिणति होती है तोड़-फोड़, हिंसा, आगजनी आदि-आदि में। पिछले एक-दो दशक की इस प्रकार की घटनाओं पर ध्यान दें तो हमें पता लगता है कि इनकी जड़ में दो बातें प्रमुख रही हैं— छात्र परिषदों के चुनाव और परीक्षाएँ । पिछले दो-तीन वर्षों में तो छात्र असन्तोष से सम्बद्ध विविध वारदातें अपने चरम पर पहुँच गई-सी लगती हैं । विश्वविद्यालय परिसरों में राजनैतिक दलों का अवैध प्रवेश भी कम चिन्तनीय नहीं है बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि के सन्दर्भ में तो यह बात और भी जोर देकर कही जा सकती है। सच तो यह है कि सारी की सारी यह हिन्दी पट्टी छात्र असन्तोष के लिये बेहद बदनाम रही है। कभीकभी तो छोटी बातों को लेकर असन्तोष उमड़ पड़ा है। आरक्षण आदि कारणों को लेकर हुई व्यापक तोड-फोड़ की कोई भी विचारवान् शिक्षाशास्त्री, प्रशासक अवहेलना नहीं कर सकता ।
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है न मजेदार बात यह कि एक साल में इम्तिहान आयोजित हो और दूसरे में परिणाम प्रकाशित । रहा सवाल पढ़ाई का पर इसकी परवाह कौन करता है ? इसे तो अधिकाधिक हतोत्साहित करने में ही सबका कल्याण है । बिहार के विश्वविद्यालयों के सम्बन्ध में तो यह बात और भी अधिक सहज भाव से कही जा सकती है। साल भर में मुश्किल से ४०-८० दिनों के बीच ही पढ़ाई हो सकी हो । छात्र लोग कुलपतियों, प्राचार्यों का घेराव करने, उनके घरों को क्षतिग्रस्त करने, वयों को जलाने तथा इधर-उधर की सरकारी सम्पति को तोड़ने-फोड़ने, नष्ट करने में लगे रहे। और इम्तिहान ? कौन देना चाहता है इम्तिहान ? सच बात तो यह है कि इम्तिहान अपनी सार्थकता बिल्कुल गँवा चुके हैं । लेकिन करें भी क्या ? गले की ऐसी हड्डी बन गये हैं ये, कि न अन्दर जाती है न बाहर निकलती है । असल में अनिवार्य बुराई हैं ये कहें कि जिनसे पिण्ड छुड़ाना आसान नहीं है।
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यों तो सभी विश्वविद्यालयों में थोड़ी-बहुत नकलें होती हैं, लेकिन पिछले दिनों मेरठ विश्वविद्यालय ने तो इस क्षेत्र में अपने विशिष्ट प्रतिमान स्थापित करने में सफलता हासिल करली हो जैसे । तत्सम्बन्धी वहाँ की रपटों को पढ़-सुनकर किसे वितृष्णा नहीं हो जायेगी मेरठ से लगाकर बुलन्दशहर तक के ५३
परीक्षा केन्द्रों में सामूहिक नकल
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