Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
बनाने, सूत कातने, ताना बनाने, सूत रंगने, कपड़ा व निवार बुनने, चाक बनाने व जिल्दसाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कार्य के लिए १६ निवार लूम, ४ हैण्डलूम व एक ताना बनाने की मशीन उपलब्ध हैं।
शिक्षा विभाग द्वारा सन् १९७२ में जिला स्तर पर हस्तकला एवं उद्योग प्रदर्शनी में विद्यालय में उत्पादित किये गये सामान निवार, टाट-पट्टी आदि के लिए प्रशंसा-पत्र भी दिया गया है। विद्यालय में निर्मित टाट-पट्टियाँ व चाके बाजार में बिकने वाली टाट-पट्टियों व चाकों के मुकाबले सस्ती, अच्छी व मजबूत होती हैं। छात्रों को उद्योग प्रशिक्षण के द्वारा चित्रकला का भी अभ्यास मिलता है, जिसमें छात्र रुचिपूर्वक भाग लेते हैं। बाहर से पधारने वाले महानुभावों ने यहाँ छात्रों द्वारा निर्मित टाट-पट्टियों, निवार व चाकों की सराहना की है। वर्तमान में इसके प्रभारी श्री विजयसिंह राजपुरोहित हैं जिन्हें इस कार्य का लगभग २८ वर्षों का अनुभव है। निर्मित सामग्री विधि के अनुसार बेच दी जाती है। टाइप कक्ष
विद्यालय में ऐच्छिक विषय के रूप में वाणिज्य विषय सन् १९५५ से है। प्राय: छात्र यहाँ पर ऐच्छिक विषय वाणिज्य वर्ग के अन्तर्गत टंकण विषय लेना पसन्द करते हैं। इस विषय को लेने का उद्देश्य यही रहता है कि वे अच्छे व्यापारी के साथ-साथ अच्छे टाइपिस्ट बनें । वे इसके द्वारा अपनी आजीविका को भी सुचारु रूप से चला सकते हैं। वर्तमान में विद्यालय के पास १७ अंग्रेजी टाइप मशीन व १६ हिन्दी टाइप मशीनें हैं। वर्तमान में १६ हिन्दी मशीनों में ७ मशीनें पुराने की-बोर्ड की हैं वह मशीनें नये की-बोर्ड की हैं। अंग्रेजी मशीनों में ६ मशीनें रेमिंगटन की हैं व ८ मशीनें हाल्डा की हैं। आठ हिन्दी मशीनें रेमिंगटन की हैं व ८ मशीनें हाल्डा की हैं । वाणिज्य ऐच्छिक विषय के अन्तर्गत जब टंकण का पीरियड आता है, तब छात्र अपने ग्रुप के अनुसार टाईप कार्य सीखते हैं।
विज्ञान प्रयोगशाला-समय की माँग को देखते हुए प्रबन्धक समिति ने शाला में वैकल्पिक विषय के अन्तर्गत विज्ञान विषय भी सत्र १९६६-६७ से प्रारम्भ किया । भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान के प्रायोगिक कार्य हेतु प्रत्येक विषय के लिए अलग-अलग प्रयोगशाला बनाई गई है। इन प्रयोगशालाओं का शिलान्यास संघ के कर्मठ कार्यकर्ता शिक्षाप्रेमी श्री अमरचन्द जी गदैया के कर-कमलों द्वारा सन् १९६६ में सम्पन्न हुआ। छात्रों के प्रायोगिक कार्य हेतु तथा अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिए उपकरणों की दृष्टि से ये प्रयोगशालाएँ पूर्णतया सक्षम हैं। प्रायोगिक कार्य का जब पीरियड आता है तब छात्र सम्बन्धित अध्यापक की देख-रेख व निर्देश के अनुसार प्रयोग कार्य सीखते हैं। संचयिका
इस विद्यालय में वाणिज्य परिषद के अन्तर्गत संचयिका, जिसको बच्चों का बैंक कहते हैं, चलती है। इसकी स्थापना सत्र १९७२ में १५० सदस्यों से की गई थी। १५० सदस्यों ने ८००-०० रु० की राशि सत्र १६७२ के प्रारम्भ में जमा करवाई और सत्र के अन्त में ६००-०० रु० राशि पुन: सदस्यों ने ले ली । संचयिका में छात्र पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ बैंक में किस प्रकार धन जमा करवाया जाता है, कैसे निकाला जाता है, बैंक के साथ किस प्रकार व्यवहार होते हैं; आदि का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करता है। विद्यालय में संचयिका खुलने का समय मध्यान्तर (रेसेस) व स्कूल समय के पश्चात् ४-३० से ५-०० बजे तक का है। वाणिज्य परिषद के प्रत्येक सदस्य को संचयिका में खाता खोलना आवश्यक है। संचयिका में पदाधिकारियों की नियुक्तियाँ परामर्शदाता द्वारा की जाती हैं। परामर्शदाता वाणिज्य विषय का अध्यापक होता है। समय-समय पर परामर्शदाता पदाधिकारियों का मार्ग दर्शन करता है। संचयिका के सफल संचालन की दृष्टि से सत्र १९७३-७४ में इस विद्यालय ने १५०-०० रुपये का नकद पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र भी प्राप्त किया है जो प्रधानाध्यापक कक्ष में लगा हुआ है। सत्र १९७६-८० में संचयिका में १०० सदस्य थे, जिन्होंने सत्र के अन्त में अपने जमा धन ७०० रुपये में से ६५८ रुपये की राशि पुनः प्राप्त की। इस समय संचयिका में ४२ रुपये की राशि है जो डाकघर में जमा है।
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