Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड
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आधुनिक समाज में निरन्तर होने वाले क्रान्तिकारी परिवर्तनों के कारण सामाजिक मूल्यों एवं धारणाओं में भी भारी परिवर्तन हो रहे हैं । व्यक्ति इन परिवर्तनों के कारण यथास्थिति में नहीं रह सकता। शिक्षण संस्थाओं के प्रचार तथा प्रसार ने इस दिशा में काफी कार्य किया है । लेकिन सभी स्थानों एवं समाजों में शिक्षण संस्थाएँ एक तरह का प्रभाव नहीं डालतीं । देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुकूल समाज में अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव में सारे समाज के लिये कोई एकरूपता नहीं है। संस्कृति का पोषण
समाज के सन्दर्भ में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य संस्कृति का पोषण है। प्रत्येक समाज की रचना, संगठन एवं विकास की अपनी विशेष संस्कृति और सभ्यता है। प्रत्येक व्यक्ति, जो उस समाज का मुख्य बिन्दु है, उस संस्कृति से पोषित एवं क्रमिक रूप से विकसित होता है। लेकिन उस व्यक्ति के जीवन में आधुनिक क्रान्तिकारी परिवर्तन के सन्दर्भ में जो भी विकास का क्रम बनता है, उसमें शिक्षण संस्थाओं का बहुत बड़ा योग रहता है। व्यक्ति को सीखने की क्षमता, शिक्षण की व्यवस्था, दूसरों तक ज्ञान पहुँचाने का क्रम तथा अजित ज्ञान का स्वयं के जीवन में उपयोग एवं उसके अनुकूल आचरण आदि सांस्कृतिक आधार हैं जो प्रत्येक समाज में अपनी विशेषताओं के साथ अवस्थित हैं। हर क्षेत्र के लिए संचित समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक ज्ञान पहुँचाने का कार्य शिक्षा द्वारा ही किया जा सकता है।
संस्कृति प्रत्येक क्षेत्र का संचित ज्ञान ही नहीं वरन् वह सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और मान्यताओं का भी आधार है जो सदियों से उसे विरासत में मिला है। इन विशेषताओं को लेकर व्यक्ति का शिक्षा कार्य शिक्षण संस्थाओं द्वारा होता है। स्कूल का विस्तृत कार्यक्षेत्र
___अत: आधुनिक युग में शिक्षण संस्थाओं का कार्य बहुत ही विस्तृत हो गया है। वे केवल ज्ञान के नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक सांस्कृतिक केन्द्र बन गयी हैं। उनका कार्यक्षेत्र केवल पाठ देने तक सीमित न रहकर समुदाय के माध्यम से सारा समाज है। व्यक्ति एवं स्कूल
व्यक्ति का सम्बन्ध चूंकि मुख्यतया परिवार से है अत: परिवार आज भी उसके समाजीकरण की मुख्य धुरी है। परन्तु स्कूल उसे नये समाज के लिये तैयार करने में प्रभावशाली भूमिका निभाता है। वह उसे कार्य-क्षेत्र के लिये तैयार करता है। उसे नये सामाजिक मूल्य, तकनीकी ज्ञान आदि देता है । अत: उसका मुख्य सम्बन्ध सेवा का है।
__ साथ ही परिवार के बहुत से कर्तव्यों को स्कूलों द्वारा ले लिया गया है। बच्चा अब घर में कम और स्कूल में ज्यादा समय देता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में उसका महत्त्व बढ़ गया है। इसके कारण परिवार के सदस्यों को अन्य सामाजिक कार्यों में सम्मिलित होने का अवसर मिल जाता है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि परिवार के समर्थन से ही स्कूल की उपयोगिता रहती है। अतः उसकी सफलता परिवार पर अवलम्बित है। राजनीति एवं स्कूल
भारतीय समाज की जटिलता, सांस्कृतिक विभिन्नता, सामाजिक मान्यताओं, प्रजातन्त्रीय शासन व्यवस्था, समाजवादी समाज की रचना, धर्म निरपेक्षता के सन्दर्भ में स्कूल एवं राजनीति का सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण बन गया है।
उपर्युक्त सांस्कृतिक विभिन्नताओं के कारण समाज के परिवर्तन तथा देश के विकास के लिये प्रत्येक क्षेत्र में बुनियादी बातों पर कुछ आधारभूत एकता एवं कार्यक्रम होना आवश्यक है। इसके लिए राजनैतिक परिपक्वता अपेक्षित है। स्कूल इसके लिये अच्छा साधन है । स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बुनियादी बातों में एकरूपता लाने के लिये शिक्षा का बहुत महत्त्व है । भारत जैसे निरक्षरता-प्रधान देश में राजनैतिक परिपक्वता शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है। अन्धविश्वास, सामाजिक बुराइयाँ, जातिवाद, छुआछूत आदि को दूर करने में भी शिक्षा महत्त्वपूर्ण योग देती है। ये प्रजातन्त्र के बड़े शत्रु हैं । नागरिक प्रशिक्षण आज के सन्दर्भ में अति आवश्यक है।
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