Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
शालीमार बाग-जहाँगीर ने बनाया। प्रतिदिन शाम को मुगल रोमांस की फिल्में दिखाई जाती हैं । ऐशोआराम से पूर्ण भवन निर्मित है।
हरबंश बाग-इसके पीछे एक छोटा बाँध है।
शंकराचार्य पहाड़ी-इसकी चोटी बहुत ऊँची है। विशाल शिवलिंग है। सीढ़ियों से भी बहुत चढ़ना पड़ता है। सैकड़ों यात्री चढ़ते हुए, हाँफते पाये गये। चोटी से देखने पर श्रीनगर के चारों ओर का दृश्य अति सुन्दर लगता है। भारत के लिए काश्मीर एक प्राकृतिक समृद्ध धरोहर है।
खीर भवानी देवी-कुछ दूरी पर है। रास्ता सेवों के बगीचों से गुजरता है। जहाँ सेवों की पेटियां बड़ी संख्या में देश में भेजने के लिए भरी जाती हैं । बच्चे लोग सेव के टोकरे लिए सड़कों के किनारे खड़े रहते हैं। सेव का भाव १ रु० से २ रु० प्रति किलो तक पाया गया। यह देवी भगवान राम की इष्ट देवी मानी जाती है। हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेने आये तो यहाँ पर उन्होंने पैर रखा था। यह मूर्ति बड़ी चमत्कारिक मानी जाती है। इस स्थान पर फलों की खूब बिक्री होती है। औरतें भी बेचने का काम धड़ल्ले से करती हैं। श्रीनगर में जगह-जगह धार्मिक स्थान एक ट्रस्ट द्वारा संचालित होते हैं, उसके अध्यक्ष भू० पू० महाराजा डा० करणसिंह हैं।
कमी इस बात की रही कि समयाभाव के कारण पहलगाँव, गुलमर्ग, सनमर्ग आदि दूर के स्थानों को नहीं देख पाये, वंचित रहे । संघ बहुत बड़ा भी था । श्रीनगर के निवासियों का व्यवसाय पर्यटकों पर अधिक निर्भर करता है। आवास व्यवस्था अत्यधिक महँगी व भोजन भी कम महँगा नहीं है। यात्री लोग हाउस बोट में भी ठहरते हैं, जो झेलम नदी के पानी पर है। उसमें ठहरने का किराया ३० रु० प्रति दिन है । होटल तो बहुत ही महंगे हैं। यदि साधु लोग और गरीब परिवार श्रीनगर पहुंच गये तो उनको शरण सनातनधर्म धर्मशाला देती है। हाउसबोटों में से मैला नदी में गिरने से नदी का पानी गन्दा पाया गया । झेलम नदी साँप की तरह मुड़ी हुई बहती है। वैसे शहर भी उतना सुन्दर नहीं लगा, जितना उसका नाम है।
श्रीनगर में फल-सेव, अखरोट, बदाम आदि बड़ी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। भावों में उतार-चढ़ाव अधिक बताते हैं । वस्तुओं के गुण कीमतों से कम मेल खाते हैं । ऊनी शाल, वहाँ की बड़ी मशहूर है। अन्य ऊनी कपड़े भी काफी मात्रा में दुकानों में होते हैं। कीमतों की घटा-बढ़ी श्रीनगर में वैसी ही देखी जैसा मैंने जापान यात्रा के समय हांगकांग में अनुभव किया। कीमतों में लोच बहुत होने से सहज विश्वास नहीं किया जा सकता है। ठंड अक्टूबर में सिर्फ साधारण थी, जो सुबह के समय मालूम होती थी। शक्ति व सुरक्षा की दृष्टि से मिलिटरी व पुलिस के दबदबे का आभास प्रतीत होता है।
संघ के काफी लोगों ने सूखे फल, कुछ कपड़े खरीदे, किन्तु बहुतों ने सेवों की पेटियां खरीदीं। एक रुपये में चार सेव अनुमानित पड़ी। मन की ममता, परिवार वालों के प्रति स्नेह, काश्मीर की याददाश्ती, रुपये का सस्ता सदुपयोग, मुफ्त की ढुलाई तथा देखी ने काका साहेब के आदेशों को उपेक्षित किया, होता है ऐसा । बसों में लौटते वक्त सेवों का वजन अधिक बढ़ गया, अपेक्षाकृत भोजन का कच्चा सामान कम घटा । रास्ते में ड्राइवर लोग भी सेव की पेटियाँ खरीदने की ममता से नहीं बचे। दिनांक २२ अक्टूबर-श्रीनगर से लौटना
आज प्रात: ४ बजे सनातनधर्म धर्मशाला, लाल चौक से काश्मीर भ्रमण की अभिलाषा को पूरा कर बसों में संघ रवाना हुआ। कार ६ बजे प्रात: रवाना हुई। ७० कि० मी० तक समतल सड़क पर चलकर घाटी में फिर से प्रवेश किया। १० बजे बनिहाल (जवाहर) की लम्बी सुरंग को पार किया। उसके बाद घाटी का सुरम्य दृश्य प्रस्तुत हुआ, जिसकी प्राकृतिक छटा विस्मृत नहीं की जा सकती। वहाँ के पनीर के पकोड़े सबने खाये । लगातार यात्रा चलती रही। कार सबसे आगे थी, क्योंकि उसको दिन में ही चलना था और शाम तक जम्मू पहुँच जाना था । बसें आगे-पीछे चलती रहीं।
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