Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
हैं फिर गृहमाता की देख-रेख में छात्राएँ भोजन-स्थान पर शान्तिपूर्वक बैठ जाती हैं। भोजन परोसने का कार्य स्वयं छात्राएँ करती हैं जिनको क्रमश: बारी दे दी जाती है। भोजनशाला में किसी भी छात्रा को बोलने नहीं दिया जाता। सभी छात्राओं के बैठ जाने पर भोजन परोसा जाता है। सभी को भोजन सामग्री मिलने पर भोजन के समय बोली जाने वाली प्रार्थना बोली जाती है। उसके बाद आधे मिनट का मौन रखकर भोजन प्रारम्भ किया जाता है। भोजन करते समय सम्पूर्ण समय तक मौन रखा जाता है। संकेत पर परोसकारी की जाती है। इस तरह भोजनशाला में शान्त वातावरण बना रहता है। आधे से अधिक छात्राएँ जब भोजन कर लेती हैं तब बारी समाप्त करने का आदेश मिलता है। भोजन परोसने वाली बहनें ‘महावीर स्वामी की जय' बोलती हैं इसका अर्थ है जो छात्राएँ जी मने बाकी हैं वे अब आखरी बार में जितना भोजन चाहें उतना प्राप्त कर लें ताकि कार्य समय पर निपट सके। छात्रावास में जठन डालने का प्रचलन विस्कुल नहीं है। भोजन जीमने के बाद सभी छात्राएँ अपने-अपने बर्तन निश्चित स्थान पर स्वयं साफ करती हैं । भोजनशाला में बनने वाली हरी सब्जियाँ छात्रावास के बगीचे से आती हैं जो कि एकदम ताजी होती हैं । शुद्ध घी काम में लिया जाता है।
समय सारिणी के अनुसार चार घंटे छात्राओं को अध्ययन के लिये मिलते हैं । प्रतिदिन सायं विशेषकर अंग्रेजी, गणित व विज्ञान के लिए कोचिंग कक्षाओं की व्यवस्था की जाती है। गृहमाता इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि छात्राओं को अध्ययन करते समय किसी प्रकार का विघ्न न पड़े । गृहमाता नियमित रूप से छात्राओं के गृहकार्य की देख-रेख करती है ताकि वे नियमित रूप से गृहकार्य करें। कोचिंग कक्षाओं से खासकर कमजोर छात्राओं को बड़ी मदद मिलती है । अध्ययन की इतनी सुन्दर व्यवस्था होने की वजह से यहाँ का प्रतिवर्ष परीक्षा-फल उत्तम रहता है।
छात्रावास में छात्राओं को शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती है। तेरापंथ के नवमाचार्य अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की राणावास के निवासियों व छात्रावासों पर सदैव कृपा रही है। गुरुदेव हर वर्ष साधु-साध्वियों का चातुर्मास फरमाते हैं । ये साधु या साध्वियाँ प्रतिदिन छात्रावास में पधारते हैं व धार्मिक शिक्षण देते हैं।
छात्राएँ प्रतिदिन प्रातःकाल एक सामयिक करती हैं। उसी समय चारित्र-आत्माएँ उन्हें धामिक ज्ञान देती हैं खासतौर पर यह शिक्षा दी जाती है कि आगे जाकर उन्हें अपना जीवन किस प्रकार जीना चाहिए। ताकि छात्राएँ आगे जाकर कुशल गृहिणी बन सकें। उनमें नम्रता, सहनशीलता, सहृदयता व समभाव आ सके । समय-समय पर यहाँ समाज के अन्य विशिष्ट व्यक्तियों का आगमन होता है, जिनके प्रवचन छात्राओं को सुनने को मिलते हैं।
छात्रावास में बीमार छात्राओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाता है। गृहमाता स्वयं उनकी देखभाल करती है। स्वयं उनको औषधि देती है व उनके खाने का प्रबन्ध करती है। प्रात:काल व सायंकाल डाक्टर साहब छात्रावास में आते हैं। छात्राओं को उन्हें दिखाया जाता है। किसी समय किसी छात्रा की अधिक तबियत खराब होने पर उसी समय फोन करके डाक्टर को बुलाया जाता है। बीमार के बीमारी अवस्था में डाक्टर के कहे अनुसार ही उसके पथ्य की व्यवस्था की जाती है ।
छात्रावास में प्राय: समाज की गरीब छात्राओं को छात्रवृत्तियाँ दी जाती हैं । अर्थात् उनकी पूर्ण भोजन फीस या अर्ध भोजन फीस माफ की जाती है । ये छात्रवृत्तियाँ अखिल भारतीय महिला शिक्षण संघ की ओर से दी जाती हैं । गैरसमाज की छात्राओं को भी छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। छात्रवृत्तियाँ प्रायः गरीब छात्राओं को दी जाती हैं।
छात्रावास होने के नाते यहाँ प्रतिदिन ६-७ अभिभावक आते रहते हैं । अभिभावकों के ठहरने के लिए अलग से अतिथिगृह बना हुआ है। यह एक बड़ा हॉल है। यहाँ पर अतिथियों के लिए बिस्तर लगे हुए हैं। अभिभावकों के खान-पान की व्यवस्था बालिकाओं के भोजनालय में ही होती है।
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