Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्री जैन तेरापथी महाविद्यालय, राणावास
२१३
.
हैं तथा वर्ष के कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत कर उनके सुझाव तथा विचारों को आमन्त्रित करते हैं। इसी प्रकार छात्र प्रतिनिधियों की सभा सत्र के अन्त में बुलायी जाती है जिसमें प्राचार्य महोदय, व्याख्याता वर्ग एवं छात्र प्रतिनिधि भाग लेकर सम्पूर्ण सत्र के कार्यक्रमों में क्रियान्वयन एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन करते हैं ताकि कमियाँ भविष्य में मार्गदर्शक का कार्य करें। अन्य प्रवृत्तिगत बिन्दु
___ महाविद्यालय की सम्पूर्ण प्रवृत्तियों का दो भागों में विभाजन-शैक्षिक गतिविधियाँ एवं छात्र-कल्याण सम्बन्धी गतिविधियाँ, एक वैज्ञानिक विभाजन है। इसी का प्रभाव है कि महाविद्यालय इतनी अल अवधि और वांछित साधनों के अभाव के बावजूद भी विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ प्रगति करने में सक्षम सिद्ध हो सका है। कार्य प्रणाली की इस तर्कसम्मत एवं वैज्ञानिक विधि के क्रियान्वयन का श्रेय प्राचार्य जी प्रो० एस० सी० तेला साहब को है। वस्तुत प्रो० तेला साहब के कार्य भार ग्रहण करने के पश्चात् ही महाविद्यालय अपना श्री स्वरूप गठित करने में सफल हो पाया है।
___ महाविद्यालय द्वारा संचालित शैक्षिक एवं छात्र कल्याण सम्बन्धी गतिविधियों के अतिरिक्त कुछ अन्य गतिविधियाँ निम्न प्रकार हैं :
(१) छात्र उपस्थिति-छात्र उपस्थिति में विश्वविद्यालय के नियमों का पालन किया जाता है। विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित न्यूतनम उपस्थिति के निर्वाह का पालन प्रत्येक विद्यार्थी को करना होता है। जिन विद्यार्थियों की उपस्थिति प्रत्येक सत्रावधि के अन्त में न्यूनतम उपस्थिति से कम पाई जाती है, इसकी सूचना उसके अभिभावकों को दी जाती है तथा सतर्कता बरतने हेतु विशेष निर्देश दिया जाता है। सामान्य रूप से प्रत्येक सत्रावधि के अन्त में सभी विद्यार्थियों के अभिभावकों को उनकी उपस्थिति की स्थिति से अवगत कराया जाता है। यदि कोई विद्यार्थी निरन्तर सात दिन तक किसी भी विषय में अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सूचना प्राचार्य जी अथवा शैक्षिक अधिष्ठाता को दी जाती है और ऐसे विद्यार्थी के अभिभावक को पत्र लिखा जाता है । यह प्रसन्नता का विषय है कि उपस्थिति की न्यूनता के संदर्भ में किसी प्रकार की कोई गम्भीर स्थिति कभी उत्पन्न नहीं हुई।
(२) अनुशासन-महाविद्यालय में अनुशासन की स्थापना विशेष महत्त्व रखती है। प्राचार्य जी समय-समय पर अनुशासन का महत्त्व बताते हैं। जो भी विद्यार्थी अनुशासन भंग करता है, उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाती है । अनुशासनहीनता के मामलों के निर्णय हेतु एक अनुशासन समिति (Proctorial Board) कार्यरत है, जिसमें समिति के अध्यक्ष के अतिरिक्त शैक्षिक अधिष्ठाता, छात्रकल्याण अधिष्ठाता एवं एक वरिष्ठ प्राध्यापक सदस्य के रूप में होते हैं । यह हर्ष का विषय है कि महाविद्यालय में अनुशासनहीनता की कोई अप्रिय एवं गम्भीर घटना घटित नहीं हुई है। हड़ताल, घेराव, तोड़फोड़ आदि यहाँ के लिए विदेशी शब्द हैं। इस दृष्टि से यह महाविद्यालय अन्य महाविद्यालयों से एक अलग कोटि का सिद्ध होता है। इस प्रकार से इस महाविद्यालय में अनुशासनहीनता का वातावरण किसी भी कोण से नहीं है, जिसका एकमात्र कारण महाविद्यालय प्रशासन एवं विद्यार्थी वर्ग का एक-दूसरे के प्रति विश्वास एवं श्रद्धा है।
स्टाफ कौंसिल-महाविद्यालय की प्रगति श्रृंखला में अध्यापकों के अटूट एवं गहन सम्बन्ध को अनवरत बनाये रखने के लिए महाविद्यालय में अध्यापकों की एक वैधानिक परिषद का गठन किया गया है। यह परिषद महाविद्यालय के प्रशासन का महत्त्वपूर्ण अंग है जिसके अन्तर्गत न केवल आन्तरिक नीतियों का निर्धारण किया जाता है वरन नीतियों के क्रियान्वयन की रूपरेखा भी निर्धारित की जाती है। प्रतिवर्ष औसतन इसकी सात-आठ बैठकें होती हैं। प्रथम बैठक में परिषद के अध्यक्ष प्राचार्य महोदय सत्र के भावी कार्यक्रम की रूपरेखा बताकर सम्पूर्ण गतिविधियों का विभाजन करते हैं एवं उत्तरदायित्वों का निर्धारण करते हैं ताकि वर्ष भर का कार्यक्रम समय-बद्ध निरन्तर सफलतापूर्वक संचालित किया जा सके। वे बिन्दु जिन पर वर्ष के दौरान विचार-विमर्श होता है उनमें से प्रमुख बिन्दु निम्न हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org