Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
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(अ) असहाय, असमर्थ व जरूरतमन्दों को छात्रवृत्ति, अनुदान एवं परिवरिश आदि देना । (आ) अनपेक्षित प्रकृति प्रकोप से पीड़ित जनता को आर्थिक एवं अन्य प्रकार से सहयोग देना। (इ) राष्ट्रीय संकट के अवसर पर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को अनुदान देना। (ई) योग्य विद्वानों को शोध कार्य हेतु ऋण देना। (उ) असमर्थों के लिये कुटीर उद्योग व छोटे कारखाने खोलना । (ऊ) संघ के लिये गोशाला व खेती के कार्य खोलना । (ए) जनता के लिये औषधालय एवं प्रसूतिगृह शुश्रूषा खोलना।
संघ का अब तक 'श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षण संघ, राणावास, नाम चल रहा था, किन्तु इसी बैठक में यह भी अनुभव किया गया कि इस नाम के बजाय कोई ऐसा नामकरण किया जाय जो व्यापक दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता हो । इस दृष्टि से इसका नाम बदलकर 'श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास' किया गया।
श्री सुमति शिक्षा सदन की क्रमोन्नति
__ आवश्यक भवन एवं फर्नीचर, उपयोगी पाठन सामग्री, अनुभवी एवं चरित्रवान अध्यापकगण और संघ के आर्थिक सहयोग से विद्यालय सतत प्रगतिशील रहा । समय की मांग के अनुसार शिक्षण में उन्नति और विस्तार लाने के लिए संघ ने सन् १९५५ ई० में इसे उच्च विद्यालय (हाई स्कूल) का रूप प्रदान किया। सब ही अनिवार्य विषयों के साथ-साथ ऐच्छिक विषय-जिसमें पहला कला वर्ग में इतिहास, नागरिकशास्त्र और अर्थशास्त्र विषय तथा दूसरा वाणिज्य वर्ग में बहीखाता, व्यापार पद्धति, हिन्दी व अंग्रेजी टंकण कला, मुद्रा अधिकोषण (बँकिंग) विषय प्रारम्भ किये । तृतीय भाषा के रूप में संस्कृत और उद्योग के रूप में कताई-बुनाई विषय खोले गये।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर की वार्षिक परीक्षा सन् १९५७ ई० में प्रथम बार १६ विद्यार्थी सम्मिलित हुए और उत्तीर्ण परिणाम ८४ प्रतिशत रहा, जिसमें द्वितीय श्रेणी में १२ और तृतीय श्रेणी में ३ तथा पूरक परीक्षा में १ विद्यार्थी थे। इस अच्छे परीक्षा परिणाम के फलस्वरूप मेवाड़, मारवाड़ तथा थली और अन्य प्रान्तों के छात्र प्रतिवर्ष अधिक संख्या में प्रवेश लेते रहे और परीक्षा परिणाम निम्नतम ६० प्रतिशत व उच्चतम १८ प्रतिशत तक बढ़ते रहे।
सन् १९६६ में विज्ञान वर्ग में भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और ऐच्छिक गणित विषय भी प्रारम्भ कर दिये गये । इस बीच राजस्थान सरकार से माध्यमिक स्तर तक राजकीय अनुदान प्राप्त होता रहा जो ५० प्रतिशत से बढ़कर ८० प्रतिशत हो गया। इस कारण विद्यालय के लिए शिक्षण संघ के अन्तर्गत पृथक् रूप से श्री सुमति शिक्षण संस्था का गठन कर और संविधान का निर्माण कर रजिस्ट्रेशन कराया गया जो ८६।१९६८ दिनांक १४.८-१९६८ है।
तत्पश्चात् १ जुलाई १९७० ई० से कक्षा ग्यारह (११) को भी प्रारम्भ कर उसे उच्च माध्यमिक विद्यालय (हायर सैकण्डरी) का रूप दे दिया और पिछले सभी वैकल्पिक विषय चालू रखे गये। संघ के आर्थिक सौजन्य, राजकीय अनुदान एवं शिक्षाधिकारियों के परामर्श और मार्गदर्शन से विद्यालय सदैव विकासोन्मुख रहा है । इस अवधि में निम्न प्रधानाध्यापकों का सहयोग रहा है जो प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय है
१. श्री दयालसिंह गहलौत, १३ वर्ष, सन् १९४७ से १९६० तक २. श्री चन्द्रदीपसिंह चौहान, २ वर्ष, सन् १९६० से १९६२ तक ३. श्री गजमल सिंघवी, ११ वर्ष, १९६२ से १९७३ तक ४. श्री भंवरलाल आच्छा , ८ वर्ष, १९७३ से चालू ।
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