Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास का इतिहास १७५.
फलस्वरूप संघ ने विद्यालय भवन को छात्रालय से पृथक् रखने की उपयोगिता का अनुभव किया। ऐसे समय में श्री तिलोकचन्दजी सुराणा एवं श्री हणूतमलजी सुराणा, निवासी चूरू संवत् २०१० में वहाँ पधारे। संघ ने उन्हें अपनी उपरोक्त आवश्यकता की पूर्ति के लिये निवेदन किया। उन्होंने सहर्ष यह स्वीकृति प्रदान की कि अगर १३०००) रुपयों में विद्यालय का भवन बन जावे तो मैं देने को तैयार हूँ। उनकी स्वीकृति से छात्रावास के सामने के मैदान में ही कच्ची ईटों की दीवारों का १३ कमरों वाला व आगे बरामदों वाला तथा ऊपर टीन की चद्दरों से ढका एक भवन करीब ३ माह में तैयार करा लिया गया, जिसका उद्घाटन श्री तिलोकचन्दजी सुराणा के करकमलों द्वारा मिति माघ शुक्ला संवत् २०१० को सम्पन्न हुआ। संघ ने उन्हें हार्दिक धन्यवाद देकर अपना आभार प्रकट किया । भवन पर श्री तिलोकचन्द हणूतमल सुराणा के नाम का शिलालेख अंकित कर दिया गया। शीघ्र ही विद्यालय को उसमें स्थानान्तरित कर दिया; जिससे पाठन कार्य में सुविधा प्राप्त हा गयो ।
८
आचार्य श्री तुलसी का मर्यादा महोत्सव
आचार्य श्री तुलसी का संवत् २०१० वि० सं० का चातुर्मास जोधपुर में था । तब संघ के सदस्य, श्रद्धावान श्रावक एवं विद्यार्थी गुरुदेव के दर्शन करने वहाँ गये और नम्र शब्दों में आगामी मर्यादा महोत्सव राणावास में कराने की प्रार्थना की। उन्होंने यह स्थान मेवाड़ और मारवाड़ के मध्य में होने तथा रेल द्वारा यातायात की सुविधा होने का लाभ भी बताया। फलस्वरूप आचार्यश्री ने स्थिति की अनुकूलता को देखकर महती कृपा के साथ राणावास में महोत्सव करने की घोषणा प्रदान कर दी ।
इस शुभ अवसर पर श्री पारसभाई जैन, निवासी बुलारम की अध्यक्षता और श्री मिश्रीमलजी सुराणा के मन्त्रित्व में एक स्वागत समिति का गठन किया गया जिसने यात्रियों के लिए बिजली, पानी, बर्तन, खाद्य सामग्री तथा अन्य कार्यक्रमों की व्यवस्था की । निवास के लिये रेलवे स्टेशन के समीप समतल मैदान में घास-फूस एवं टीन की चद्दरों से निर्मित २०० कमरों (झोंपड़ियों) के एक 'भिक्षुनगर' का निर्माण कराया । आचार्य श्री तुलसी आदर्श निकेतन में विराजे तथा सामने हो मैदान में प्रवचन के लिए पाण्डाल की व्यवस्था थी । मेवाड़, मारवाड़ और थली आदि स्थानों से मर्यादा महोत्सव (माघ शुक्ला सप्तमी संवत् २०१०) पर करीब २० हजार यात्री और ५०५ साधुसाध्वी (७५ + ४३०) सम्मिलित हुए। २२ दिन तक कोठावासी तथा अन्य यात्रियों ने सेवा का पूरा-पूरा लाभ उठाया देश के सूत्र लेखक, पत्रकार, विद्वान् तथा समाज के धनी-मानी प्रतिष्ठित सज्जनों ने उपस्थित होकर समारोह को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग प्रदान किया। तेरापंथ के इतिहास में गांव में होने वाला यह मर्यादा महोत्सव अभूतपूर्व था ।
इस मर्यादा महोत्सव के खर्च का भार राणावास स्टेशन और राणावास गाँव के श्रावकों ने वहन किया। जिसमें श्री हजारीमलजी प्रतापमलजी सुराणा, श्री राजमलजी सुमेरमलजी सुराणा, श्री केसरीमलजी भंवरलालजी सुराणा, श्री गुलाबचन्दजी चौथमलजी कटारिया ने यह आश्वासन दिया कि जितना भी खर्च होगा हम चार व्यक्ति बहन करेंगे, आप अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक सहयोग देवें । इसमें करीब एक लाख रुपयों का सामान भिक्षुनगर के निर्माण तथा अन्य कार्यों में लगा। पूँजी का सहयोग श्री प्रतापमलजी एवं केसरीमलजी ने दिया । मर्यादा महोत्सव के बाद सामग्री को वापस बेच देने से ८६०००) हजार रुपयों की प्राप्ति हुई। अतः कुल खर्चा १४०००) का हुआ। जिसके लिये राजावास वालों का सहयोग प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय रहा है।
नाम परिवर्तन
१८ मार्च, १९७० को संघ की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक की अध्यक्षता, उपाध्यक्ष श्री अमरचन्दजी गादिया ने की। बैठक में यह अनुभव किया गया कि अनेक प्रशासनिक, आर्थिक व बदली हुई परिस्थितियों के कारण संघ के उद्देश्यों की पुनव्यख्या की जाय। इस पुनर्व्याख्या की स्वीकृति के बाद संघ के संविधान में वर्णित उद्देश्यों में परिवर्तन कर नये उद्देश्य इस प्रकार निर्धारित किये गये।
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.