Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
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के राणाओं के राज्य की अन्तिम सीमा थी, लेकिन इस तथ्य के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता, केवल जनश्रुति के आधार पर ही विश्वास करना पड़ता है।
द्वितीय मत के अनुसार बताया जाता है कि इस गाँव को बसाने का श्रेय राणामाली को है। इस सम्बन्ध में एक दन्तकथा भी प्रचलित है कि बहुत वर्षों पहले कछवाहा गोत्र का राणामाली जोधपुर में कोई अपराध करके इस क्षेत्र में आकर अज्ञातवास करने लगा। वर्तमान में जहाँ राणावास गांव बसा हुआ है, वहाँ उस समय झाड़-झंखाड़ बहुत थे। इन झाड़-झंखाड़ों के मध्य नाथपंथी साधुओं का जोगेश्वर मठ बना हुआ था। राणामाली ने इस मठ के नाथपंथी साधु के पास आकर शरण ली । साधु ने उसे अभयदान दिया। एक दिन रात्रि को मठ में कहीं से दो बकरे आ गये । कुछ समय बाद एक शेर भी आ गया, लेकिन शेर ने उन बकरों को नहीं मारा। इस पर नाथपंथी साधु ने अनुमान लगाकर राणामाली से कहा कि यह शरण का उपयुक्त व सुरक्षित स्थल है। तुम यहीं पर बस जाओ, धीरे-धीरे आबादी बढ़ जायेगी और गाँव बस जायेगा । अपने आश्रयदाता की बात मानकर राणामाली ने वहीं पर विधि-विधान से छड़ी रोपी और धीरे-धीरे यह स्थान आबाद होने लगा व वर्तमान स्थिति में एक बड़े कस्बे के रूप में बदल गया । राणामाली ने सर्वप्रथम इसे अपना निवास-स्थान बनाया, अतः राणामाली के वास के कारण यह राणावास कहलाने लगा। इस कथा का आधार राणामालियों के भाट मांगीलाल के पास सुरक्षित बही से ज्ञात होता है। मांगीलाल भाट वर्तमान में सोजत में रहता है । राणामाली के वंशज अब भी राणावास, सोजत, पाली तथा भदावतों का गुड़ा में रहते हैं। राणावास में रहने वाले ओसवालों में कटारिया व मूथा चण्डावल से, कुछ कटारिया सिरियारी से, सुराणा आऊआ से, गुगलिया मलसा बावड़ी से, सिंघवी लाम्बिया से तथा गाँधी विटोड़ा से आकर बसे हैं।
राणावास गाँव चण्डावल ठिकाने की जागीर का गाँव है। चण्डावल की जागीर जोधपुर के महाराजा सूरसिंह ने वि० सं० १६५२ में कूपावत राठौड़ चाँदसिंह को इनायत की थी। गाँव में चण्डावल ठाकुर वर्ष में एक दो बार आकर रहते थे तथा लगान, कर आदि वसूल करते थे। इनका एक मकान गाँव के बीचोंबीच अब भी विद्यमान है। प्राकृतिक एवं भौगोलिक स्वरूप
इसके पूर्व में मलसा बावड़ी, पश्चिम में राणावास ग्राम, उत्तर में ठाकुरवास, और दक्षिण में गुड़ा रघुनाथसिंह नामक गाँव स्थित हैं । इसकी समुद्र तल से ऊँचाई १०१६ फीट है। यह ७४° पूर्वी देशान्तर तथा २६° उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। यहाँ की औसत वार्षिक वर्षा २५ से ३० से० मी० है । वार्षिक तापान्तर अधिक रहता है । मरुस्थल होने से गर्मी और सर्दी दोनों का आधिक्य रहता है। वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है। यहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है । यहाँ का जल शीतल, रुचिकर. मिष्ट एवं पाचक है । कुओं की गहराई २०-२५ फीट है । यहाँ पानी की कमी नहीं है । यहाँ मिट्टी अरावली पर्वत की देन होने से उर्वरी एवं मटमैली है। इसकी तह काफी गहरी होने से मिट्टी सोना उगलती है। आर्थिक स्थिति
यहाँ रेलवे स्टेशन की स्थापना १९३५ में हुई । इसके बाद राणावास की बहुमुखी प्रगति की रूपरेखा तैयार होने लगी । पुराने समय से ही राणावास धनी-मानी व्यक्तियों का निवास रहा है। व्यापार का कार्य प्रमुखतः महाजन जाति का धनिक वर्ग करता है । राणावास में इन धनिकों ने बहुत आलीशान मकान बना रखे हैं, इनसे राणावास की शोभा को चार चांद लग गये हैं । इन्हीं लक्ष्मी-पुत्रों के सहयोग और उदारभावना तथा संकल्प से राणावास स्टेशन का रूप परिवर्तित होता जा रहा है। यहाँ की सीधी और चौड़ी सड़कें मन को लुभावनी लगती हैं और गुलाबी नगर जयपुर की याद को तरोताजा बना देती हैं । आस-पास के क्षेत्रों में कपास एवं अनाज पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होते हैं । कृषि जीविका का प्रमुख साधन है। कृषि का आधार मानसून होते हुए भी यहाँ पर्याप्त मात्रा में कुएं हैं । इन कुओं से पशु-शक्ति एवं विद्युत से पानी निकाला जाता है । फुलाद, डींगोर तथा सारण के बांधों से कुछ
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