Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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मिक्षु जन्मस्थली - कंटालिया
कार्यालयों में पोस्ट आफिस, पुलिस चौकी, टेलिफोन केन्द्र, वन विभाग, पटवारी, ग्रामसेवक, मलेरिया आदि के कार्या लय व उपकार्यालय हैं। चिकित्सा के रूप में श्री कंकूबाई जंवतराज राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय है । उद्योग-धन्धों की दृष्टि से पारम्परिक क्षेत्र है। मेघवाल रेजा बुनते हैं और जटिया लोग चमड़ा रंगते हैं। मुख्य व्यवसाय कृषि है । यातायात नगण्य है । सोजत से मारवाड़ जंक्शन बाई पास कंटालिया होकर दिन में दो बार बसें मिलती हैं । यहाँ एक नवयुवक मण्डल भी है जो विकास कार्यों के लिए बड़ा जागरूक है ।
कंटालिया एवं तेरापंथ सम्प्रदाय
कंटालिया की ऐतिहासिकता व आध्यात्मिकता की प्रसिद्धि एवं तेरापंथ के पीछे एक ऐसी महान आत्मा के अथक प्रयास एवं सुयोग का ही परिणाम है परिधि में ही समाहित है। कंटालिया गाँव के इतिहास में वि० सं० क्षरों से उल्लिखित वर्ष माना जायेगा । इसी वर्ष वि० सं० १७५३ तेरापंथ सम्प्रदाय के आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु ने जन्म लिया । ही इनको आचार्य भिक्षु के नाम से प्रसिद्धि मिली। आप ओसवाल जाति के सकलेचा गोत्र में उत्पन्न हुए। आपके पिताजी का नाम शाह बलूजी एवं माताजी का नाम दीपाबाई था। दोनों पति-पत्नी भद्र, शान्त एवं सात्त्विक स्वभाव तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ऐसे माता-पिता की सन्तान इतनी महान्, धर्माधिकारी, धर्मनिष्ठ, सत्यशोधक एवं सम्प्रदायविशेष का आद्यप्रवर्तक हो, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।
सम्प्रदाय की स्थापना एवं विकास जो इस भिक्षु-नगर नामकरण की १७८३ का वर्ष बड़ा ही सौभाग्यशाली एवं स्वर्णाकी आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को श्री जैन श्वेताम्बर आपका जन्म नाम भीखणजी था। भीखणजी से
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आप बचपन से ही बड़े निपुण और कुशाग्रबुद्धि थे । बाल्यावस्था में जहाँ उन्हें अन्य अनेक गुणों की अतिशयता प्राप्त थी, वहाँ स्वाभिमान भी उसी अनुपात में विद्यमान था । आपका विवाह छोटी अवस्था में ही हो जाने के उपरान्त भी आपका जीवन वैराग्य-भावना से ओत-प्रोत रहा । आपकी पत्नी भी धर्म-परायणा थी । आपके एक पुत्री भी हुई। भीखणजी के दो भाई थे । एक बार आपका सम्पर्क स्थानकवासी सम्प्रदाय शाखा के आचार्य श्री रुघनाथजी हुआ और वे उनके अनुयायी बने । रघुनाथजी से प्रभावित होकर अनेकों बाधाओं एवं विरोध के बावजूद कंटालिया से चलकर बगड़ी शहर में आये एवं वहाँ संवत् १८०० मृगशिर कृष्णा द्वादशी के दिन आचार्यश्री रघुनाथजी के हाथ से दीक्षा ग्रहण की। उस वक्त आप २५ वर्ष के थे। राजनगर मेवाड़ में चातुर्मास करने के बाद मान्यताओं को लेकर आचार्य रघुनाथजी से आपका मतभेद हो गया, उस सन्दर्भ में तेरापंथ की स्थापना आपकी ही अमूल्य देन है । तेरापंथ का नामकरण एक कवि हृदय व्यक्ति के सकारण निकले हुए उद्गारों के आधार पर जोधपुर में हुआ ।
भक्ष कल्याण केन्द्र
कंटालिया गाँव के ठीक मध्य में तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु का अपना निजी मकान है। जिसका जीर्णोद्वार कर वहां के धनकुबेरों एवं धर्म-प्रेमियों द्वारा एक नया रूप प्रदान कर आचार्य भिक्षु के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के भित्तिचित्र एवं शिलालेख लगाकर दर्शनार्थ बनाया जा रहा है। ठीक भिक्षु जन्म-स्थली के सामने २५००वीं निर्वाण सदी में कार्तिक शुक्ला दशमी गुरुवार ता० १३ नव० १६७५ को तत्कालीन वित्तमन्त्री माननीय श्री चन्दनमलजी वेद के करकमलों से भिक्षु कल्याण केन्द्र की नींव रखी गई, जो अब बनकर तैयार हो चुका है । उस भिक्षु, कल्याण केन्द्र का निर्माण वहाँ के दानदाता सेठों द्वारा करीब तीन लाख रुपयों की लागत से करवाया गया है जो हमेशा के लिए दिग्दिगन्त में तेरापंथ एवं आचार्य श्री भिक्षु की स्मृति अनन्तकाल तक ताजा किये रहेगा । इतना ही नहीं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के लिए कंटालिया का महत्त्व सर्वोपरि है। यहाँ आचार्यश्री भिक्षु ने जन्म लिया । अतएव जैन श्वेताम्बर तेरापंथ एवं इसके आद्यप्रवर्तक जन्मदाता दोनों की ही जन्मस्थली है । अतः कंटालिया ( भिक्षुनगर) सम्पूर्ण समाज के लिए तेरापंथ तीर्थ शिरोमणि के समतुल्य रहेगा ।
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