Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
वहाँ आना वास्तव में वहाँ की उच्च शिक्षा, एकता, समा- नहीं कर सकते । वहाँ का व्यवहार एवं नैतिक प्रशिक्षण नता एवं अनुशासन से अच्छे सुसंस्कारों से कायापलट होने ऐसा है कि एक डॉट सुराणाजी की लग जाती है का प्रमाण है, ऐसे छान यहाँ आकर विनय, विवेक एवं तो फिर दुबारा सिर ऊँचा उठाने की ताकत किसी की वात्सल्य भाव का प्रसार करने वाले हो जाते हैं। नहीं रहती। सुराणाजी अपने श्रम एवं जिम्मेदारी के साथ सुराणाजी जितने कठोर स्वभाव के हैं उतने ही कोमल शिक्षा के माध्यम से बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को देखना हैं, वह किसी की भी तनिक सी भी गलती को बर्दाश्त चाहते हैं।
कलात्मक जीवन के उदघोषक
श्री महालचन्द खटेड जीवन क्या है ? मृत्यु से अमरत्व की ओर, अन्धकार से है। चरित्र-निर्माण, विद्यादान और तात्त्विक ज्ञान का जो प्रकाश की ओर, असद् से सद् की ओर, अधोगति से प्रगति बीजारोपण किया है, वह आज लहलहाते वृक्ष के रूप में की ओर प्रयाण करने का ही नाम जीवन है । केवल जीना पुष्पित हो रहा है । चतुमुखी प्रगति कर रहा है। संस्था ही जीवन नहीं, कलापूर्वक जीना ही जीवन है केसरीमलजी और समाज को आप जैसे रत्न पर बड़ा गर्व है। का जीवन एक कलात्मक जीवन है। उनका जीवन अनेक सामाजिक कार्यों के साथ-साथ आप अपनी आत्मकलाओं की सुन्दर प्रयोगशाला है। वे जीने की विद्या साधना में अनवरत संलग्न हैं और सदा जागरूक एवं को जानते हैं। उनके कलात्मक जीवन ने अनेक ऊबड़- अप्रमत्त हैं । आपकी निष्काम सेवा, सद्भावना, प्रसन्नमना खाबड़ मार्गों को समतल व प्रशस्त किया है।
और साधना की विमलज्योति समाज के वृद्ध, तरुण और वरिष्ठ श्रावक केसरीमलजी ने राणावास की संस्था को बालवर्ग में चिर युग तक स्मृतियों में तैरती रहेगी। अपनी अनमोल सेवाएँ देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया
00 संघर्ष में सुमेरु-सम अटल
" श्री मांगीलाल सुराणा श्री केसरीमलजी सुराणा लोहपुरुष और निर्भीक हैं, बड़े अपना आत्मकल्याण करते हुए समाज-सेवा में ये जुटे हुए तेजस्वी एवं फुर्तीले हैं। राणावास के शिक्षा संस्थानों की हैं। समाज-सेवी और भी हैं किन्तु कोई कुछ घण्टे, कुछ उन्नति में आपका खून-पसीना बहा है । अनेकों संघर्ष आपके दिन, कुछ महीने या कुछ वर्ष समाज-सेवा में देते हैं किन्तु जीवन में आये लेकिन किसी भी संघर्ष में जरा भी नहीं पूरा जीवन व तन-मन-धन समाज-सेवा में लगाने वाले घबराये । संघर्ष में सदा सुमेरुसम अटल रहे । सफलता विरले ही मिलते हैं। समाज के ऋणी तो सभी व्यक्ति इनके चरण चूमती रही । यदि कोई विरोधी बनकर इनके होते हैं किन्तु आप ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका समाज सामने आया भी तो वह इनकी निःस्वार्थ सेवा के आगे ऋणी है। जो भी काम आप हाथ में लेते हैं, उसे पूरा अपने विरोध को भूल गया। सुख में, दुःख में, प्रशंसा में करके ही छोड़ते हैं और जो-जो संस्थान आपने चालू किये व विरोध में ये सदा दृढ़ रहे और समाज-सेवा के कार्य उनकी नींव भी आपने पक्की कर दी। ये संस्थान युगको, सिवाय धावक पडिमा के समय के, कभी नहीं छोड़ा। युगों तक चलते रहेंगे, ऐसा सबको दृढ़ विश्वास है।
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