Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
॥ अर्हम ।।
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त्यागमूर्ति, कर्मयोगी, शिक्षा-प्रेमी, समाजसेवी श्रीमान काका साहब श्रीयुत केसरीमलजी सुराणा
को सादर समर्पित अभिनन्दन-पत्र
श्रद्धय ।
औषधालय भवन के उद्घाटन के इस शुभ अवसर पर आपका सादर अभिनन्दन करते हुए हमें परम हर्ष का अनुभव हो रहा है। हम गौरवान्वित हैं कि आपके कर-कमलों द्वारा इस औषधालय भवन का उद्घाटन हो रहा
समाजसेवी!
आपने अपना सारा जीवन समाजसेवा में अर्पित किया है । भारत के इतिहास में आप जैसे व्यक्ति बिरले ही मिलेंगे जिन्होंने अपना तन, मन व धन सभी कुछ समाजसेवा में समर्पित कर दिया हो। सामाजिक कुरीतियों के निवारण हेतु आप सदैव आगे रहे हैं। राजस्थान प्रान्तीय भगवान महावीर पच्चीस सौवीं निर्वाण महोत्सव समिति द्वारा आपको 'समाज सेवक' की उपाधि से अलंकृत किया गया है, जिसके आप सच्चे अधिकारी हैं। शिक्षा-प्रेमी!
आप शिक्षा जगत के एक उज्ज्वल नक्षत्र हैं, एक प्राथमिक विद्यालय से आपने महाविद्यालय स्तर तक निजी क्षेत्र में विस्तार कर राणावास का नाम शिक्षा जगत में सारे भारत में रोशन किया है तथा इसको विद्याभूमि के नाम से अलंकृत कराने का श्रेय आपको ही है । आपने महिला शिक्षण के लिये अखिल भारतीय जैन महिला शिक्षण संघ जैसी संस्था प्रारम्भ की जो महिला समाज के लिए मील का पत्थर बन चुका है । आप सरस्वती के पुजारी हैं और विद्याभूमि राणाबास से निकले हुए एक नहीं अनेकों विद्यार्थी देश में सितारों की तरह चमक रहे हैं जिन पर सारे समाज को गर्व है । स्कूल व कालेज के छात्रावास में विद्यार्थियों को जो संस्कार मिल रहे हैं उसकी कोई मिशाल नहीं है। डा० डी० एस० कोठारी जैसे शिक्षाविद ने भी इस संस्था के संस्कार-निर्माण की भूरि-भूरि प्रशंसा की है और साथ में यह छोटा सा गाँव भी आपके स्नेह तथा मार्गदर्शन से वंचित नहीं रहा। श्री पी० एच० रूपचन्द डोसी जैन माध्यमिक विद्यालय इसका उदाहरण है, जिसको आपने पौधे के रूप में यहाँ लगाया है। यह पौधा आपकी स्मृतियाँ हमें सदैव याद कराता रहेगा। त्यागी एवं तपस्वी!
जहाँ मनुष्य धन को केन्द्रित रख उसके चारों ओर घूमता है वहीं आप स्वयं केन्द्रित रहे और कर्म को प्रेरणा देते रहे । कर्म और तपस्या, त्याग और गरिमा, स्नेह और समता की आप प्रतिमूर्ति हैं । यही नहीं आपने अपना सारा व्यवसाय एवं सम्पत्ति को तृणवत् त्याग कर आपने जीवन की आवश्यकताओं को न्यूनतम कर लिया, यह एक
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