Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नारी रत्न श्रीमती सुन्दरदेवी सुराणा ( माताजी)
श्री भूपेन्द्रकुमार मूया (उपमंत्री श्री जैन श्वेताम्बर मानव हितकारी संघ)
• पति के लिये वरित्र, संतान के लिये ममता, समाज के लिये शील, विश्व के लिये दया तथा जीवमात्र के लिये करुणा संजोने वाली महाप्रकृति का नाम ही नारी है। ईश्वर के पश्चात् हम सर्वाधिक ऋणी इस नारी के ही हैं, प्रथम तो इसलिये कि वह जीवनदाती है, पुनश्च उस जीवन को जीने योग्य बनाने के लिये । महान पाश्चात्य विचारक लामार टाइन ने इसी कारण कहा है कि सम्पूर्ण महान वस्तुओं के मूल में नारी को ही प्रेरणा होती है इसी बात को एक अन्य विचारक विक्टर मोने इस प्रकार अभिव्यक्त किया है कि पुरुषों में दृष्टि होती है और नारियों में जन् दृष्टि । श्रीमती सुन्दरदेवी सुराणा ऐसी ही एक नारी रत्न हैं जिस पर सम्पूर्ण जैन समाज या कांठा क्षेत्र को ही नहीं
अपितु पूरी मानव-जाति को गर्व और गौरव है । उनका सम्पूर्ण जीवन सेवा, स्पष्ट सौकार्य है। वे सर्व "माताजी" के सम्बोधन से ख्यात एवं प्रख्यात है माताजी हैं। माँ की ममता से मण्डित महिमामय उनका जीवन महिला जगत का आदर्श है ।
समर्पण, सौहार्द और शुचिता का स्वयं सम्बोधन के अनुरूप वस्तुतः आप जगत्
ऐसी माताजी का जन्म वि० सं० १९६६ की वैशाख शुक्ला नवमी, मंगलवार को आन्ध्र प्रदेश के जयाराम नामक कस्बे में हुआ। आपके पूज्य पिताजी समरथमलजी सिसोदिया मूलतः कांठा क्षेत्र के ही नीमली गाँव के रहने वाले थे किन्तु व्यापार वाणिज्य की दृष्टि से जयाराम में आकर बस गये थे । माताजी का जन्म होते ही जैसे घर में लक्ष्मी का आगमन हो गया। यों आपका पितृ-परिवार पहले ही काफी सम्पन्न था किन्तु आपके जन्म के बाद लक्ष्मी की ऐसी कृपा हुई कि श्रीसम्पन्नता सुन्दर स्वरूप में श्रीवृद्धि प्राप्त करने लगी। बचपन बड़े लाड़-दुलार से व्यतीत हुआ। परिवार के समस्त सदस्य आपकी बालसुलभ चंचलता को निहारकर भावविभोर हो जाते यद्यपि आप परिवार में आठ भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी थी किन्तु 'पूत के पाँव पालने में ही नजर आ जाते हैं' वाली उक्ति के साथ आपके भावी जीवन की स्वर्ण रेखाएँ बचपन में ही स्वयं उद्भूत थीं। यह सब होते हुए भी आपको भाईबहनों का सुख नहीं मिला। आपके कहने को तो आठ भाई थे लेकिन वे एक-एक कर बचपन में ही स्वर्ग सिधार गये । आपकी एक बड़ी बहन का शुभ विवाह रतनगढ़ निवासी श्री रूपचन्दजी बोथरा के यहाँ पर हुआ किन्तु उन्होंने मृत्यु को वरण कर लिया। आपकी अन्य बड़ी बहन भी बचपन में ही इस असार संसार से उठ गई । इस प्रकार लम्बे व भरे-पूरे परिवार में जन्म धारण करके भी भाई-बहनों के स्नेह से आपको वंचित रहना पड़ा।
भी
Jain Education International
आपकी शिक्षा-दीक्षा जयाराम में ही सामान्य रूप से हुई। उस काल में महिलाओं में पढ़ाई-लिखाई का उतना प्रचलन नहीं था फिर भी आपको सामान्य शिक्षा अवश्य दी गई, लेकिन डिग्रीधारी शिक्षा आप ग्रहण नहीं कर सकीं क्योंकि १४ वर्ष की अल्प आयु में ही आपका विवाह राणावास निवासी श्रीमान् शेषमलजी सुराणा के ज्येष्ठ पुत्र और ग्रन्थनायक कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा के साथ वि० सं० १९८० आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को सम्पन्न हो गया । ससुराल में आने के बाद नववधू के रूप में पारस्परिक स्नेह व सौहार्द के साथ समय व्यतीत होने लगा किन्तु अल्प समय में ही आप पर उच्च प्रहार हुआ। आपके श्वसुर श्री शेषमलजी सुराणा का वि० सं० १९८२ में देहावसान हो गया । आपकी सासुजी श्रीमती छगनीदेवी का स्वर्गवास आपके विवाह के पूर्व वि०सं० १९७४ में ही हो चुका था ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.