Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
.
१२०
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
..........................................................................
॥धी। सदशिक्षा के उपासक, दुष्कर ब्रह्मचर्यव्रत के साधक, सुश्रावक, संतोषव्रत के प्रतिपालक,
सद्गुणनिधान, राणावास के नररत्न श्री केसरीमलजी सुराणा के कर-कमलों में
सादर समर्पित
अभिनन्दन-पत्र सशिक्षा के उपासक !
अर्वाचीन शिक्षा पद्धति में धार्मिक संस्कारों के अभाव से उत्पन्न अनेक दुष्परिणामों से आपके अन्तर् में व्याप्त आन्दोलन के परिणामस्वरूप आध्यात्मिक सशिक्षा का जो बीजारोपण राणावास मे हुआ वह आपकी कर्तव्यनिष्ठा, अनुपम लगन एवं अदम्य उत्साह से आज "आदर्श शिक्षा सदन" बनकर राष्ट्र के सुयोग्य व सुसंस्कृत नागरिकों की उपलब्धि में अपूर्व योग दे रहा है । आप नारी समाज का सर्वांगीण विकास करने के निमित जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। "कांठा महिला शिक्षण संघ" के संस्थापक के रूप में आप नारी समाज को जो अभ्युदय की ओर अग्रसर कर रहे हैं, वह प्रशंसनीय है। दुष्कर ब्रह्मचर्यवत के साधक !
भौतिकता की चकाचौंध में गुमराह बना हुआ आज का मानव जहाँ विलासमय कर्दम में फंसा हुआ है, वहाँ आप पंकज के समान उस हेय कर्दम से अलिप्त रहकर अपने जीवन को ब्रह्मचर्य की अलौकिक अलख से देदीप्यमान कर समाजोत्थान के इतिहास में अपनी सेवाओं का एक नूतन अध्याय जोड़ रहे हैं। सुश्रावक !
. संसार की नश्वरता से परिचित आपका मानस सदा आध्यात्मिक प्रवृत्तियों में निमग्न रहता है। भगवान महावीर का वह अमूल्य उपदेश “समय मात्र प्रमाद मत करो" आपके जीवन का प्रमुख अंग बन गया है । आपने श्रावक की ग्यारह पडिमाओं को सोत्साह व सहिष्णुता से सम्पन्न कर अपनी आध्यात्मिक अभिरुचि का परिचय दिया है। सामाजिक प्रवृत्तियों में व्यस्तता के बावजूद आप प्रतिदिन पन्द्रह सामायिक करके एवं खुले मुह किसी से सम्भाषण न करके जो आदर्शमय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं वह श्लाघनीय व अनुकरणीय है । संतोषव्रत के प्रतिपालक !
आज जहाँ अर्थोपार्जन की होड़ में विश्व का वातावरण अशान्त एवं भयावह बना हुआ है, वहाँ आपने स्वेच्छा से आज से बीस वर्ष पहले अपने "बुलारम" के समुन्नत व्यवसाय का परित्याग करके परिग्रह के प्रति अनासक्ति का परिचय दिया है इतना ही नहीं, अपनी लाखों रुपयों की चल-सम्पत्ति में करीबन सात हजार के अलावा शेष सम्पत्ति का समाज कल्याणार्थ दान कर देना आपकी महान संतोष साधना का ज्वलन्त उदाहरण है। सद्गुण निधान !
आपका जीवन विशिष्ट अणुव्रतों के नियमों से विभूषित सादा तथा विचार उच्च व निर्मल है। आपको वाणी में निष्ठता व सरलता टपकती रहती है। आपका निष्कपटपूर्ण सरल एवं मिष्ट व्यवहार जन-जन के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । स्वदेश में निर्मित खादी के वस्त्रों का उपयोग आपकी देश-भक्ति का परिचायक है। आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रतिपादित "नया मोड़” के सिद्धान्तों को अपने जीवन में विशेष स्थान देते हुए जन-जन में इसको लोकप्रिय बनाने में योगदान प्रदान कर रहे हैं। हे राणावास के नर-रत्न !
हम आपका अभिनन्दन करते हैं तथा आपके साधनामय जीवन की अखण्डता की शुभकामनाएँ करते हैं। तेरापंथी सभा भवन, मद्रास-१
हम हैं आपके शुभाकांक्षी ६-१२-६३
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (मद्रास)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org