Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
अभिनन्वनों का आलोक
१२६
.....................................................................
मरुधर भूमि के नर-रत्न, आदर्श शिक्षाप्रेमी श्रीमान केसरीमलजी सुराणा की सेवा में
सादर अभिनंदन
समादरणीय काका साहब !
राजस्थान की पुण्यभूमि एवं तेरापंथ के बोधिस्थल राजसमन्द में आज आपका स्वागत तथा अभिनन्दन करते हुए हमें अत्यन्त आनन्द एवं हर्ष का अनुभव हो रहा है, आपका अध्यात्म से परिपूर्ण जीवन न सिर्फ समाज वरन् राष्ट्र के लिए एक ऐसी प्रज्वलित मशाल है जिसका भारतीय लोक-जीवन में दूसरा उदाहरण मिलना कठिनतम है। निस्सन्देह निःस्वार्थ, परमार्थ भावना से प्रेरित धर्म एवं कर्म शक्ति का एक समन्वित और साकार रूप आपने अपने उज्ज्वल चरित्र से प्रस्फुटित किया है, यह गौरवपूर्ण है। आदर्श शिक्षा-प्रेमी!
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं गणतन्त्र के अभ्युदय के साथ भारत में अनेक शिक्षण संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ लेकिन आपके कर-कमलों से मेवाड़ एवं मारवाड़ के प्राकृतिक सुरम्य तट पर संस्थापित 'सुमति शिक्षा सदन' आपके महानतम जीवन की एक ऐसी उपलब्धि है, जिसमें कर्मबोध के साथ धर्म की मुख्य पृष्ठभूमि है। देश और काल के साथ जहाँ ज्ञान की त्रिवेणी प्रवाहित होती है, वहाँ अध्यात्म एवं दर्शन की सरिता भी बहती है। शिक्षा-जगत के लिए यह न सिर्फ आश्चर्य है वरन् दार्शनिकों के लिए भी आत्म-तुष्टि एवं प्रेरणा का केन्द्रबिन्दु है, जिस ओर समस्त समाज की दृष्टि है। मरुधर के नर-रत्न !
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में आपके जीवन-रक्त से सिंचित राणावास का यह विद्यालय भारतीय एवं जैन संस्कृति के आदर्शों से प्लवित एक ऐसा गुरुकुल है, जहाँ न सिर्फ ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित होती है वरन् वहाँ के लोक-वातावरण में आत्म-दर्शन की झांकी भी मिलती है। यह एक आत्म-साधना है और यह साधना आपके जीवन की है, जिससे कि राणावास का यह विद्यालय आज प्राथमिक शिक्षा से उत्तरोत्तर विकास करता हुआ महाविद्यालय के स्तर तक पहुंच गया है। यहाँ नहीं, वरन् वहाँ के आसपास की भूमिका भी एक के साथ अनेक शिक्षादीपों से प्रज्वलित होकर आज राणावास की यह छोटी सी नगरी विद्या नगरी के रूप में परिणत हो गई है। यह आपके आत्मस्थ जीवन की न सिर्फ गौरवपूर्ण वरन् महानतम् देन है, जिससे मरुधर एवं मेवाड़ की यह भूमि आप जैसे व्यक्तित्व से शिक्षा के इस पिछड़े क्षेत्र में प्रकाशमान एवं धन्य हो उठी है । उदारमना समाजसेवी !
शिक्षा और आदर्श शिक्षा प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर महामना स्व० मदनमोहन मालवीय की भांति तेरापंथ समाज के लिए आपने एक ऐसा शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसकी ज्योति से तेरापंथ एवं जैन समाज सदैव प्रकाशमान रहेगा और इतिहास आपकी इस महानतम शिक्षा-सेवा के लिए सदैव ऋणी रहेगा। ऋषि शब्दों में कहा है-सभी दानों में विद्यादान एक श्रेष्ठ दान है और फिर श्रेष्ठता के रूप में आपका आत्मरूप शैक्षणिक संस्थान है, जिसको पाकर हम सब गौरवान्वित है।
अन्त में हम सब आपके दीर्घ जीवन की शुभ-कामना करते हुए यह आशा करते हैं कि आपके द्वारा प्रज्वलित ज्ञान की यह ज्योति सदा-सदा जलती रहे और वह कोटि-कोटि भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक थाती का उद्बोध कराती रहे।
तमसो मा ज्योतिर्गमय भिक्षु बोधिस्थल
हम हैं आपके, राजसमन्द १५-१-७६
भिक्षु बोधिस्थल के सदस्य एवं सहयात्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org