Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजो सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
श्रावक श्रेष्ठ!
जैनधर्म, तेरापंथ शासन, आचार्य प्रवर श्री तुलसी के प्रति आपका निष्ठापूर्वक समर्पित साधु-जीवन श्रावक समाज के लिए प्रकाश-स्तम्भ है । साधु-साध्वी श्रीवर्ग के प्रति आपकी भक्ति अनुपम है। प्रति चातुर्मास-अवधि में अपने सद्प्रयत्नों से विद्वान् संत श्री एवं विदुषी साध्वी श्री के सुसान्निध्य का सौभाग्य राणावासवासियों एवं अन्य को उपलब्ध करवाना आपके श्रावक-धर्म के अनुपम आदर्श को प्रस्तुत करता है। वस्तुतः आपके जीवन में साधुत्व और श्रावकत्व का जो अद्भुत समन्वय है वह अन्यत्र उपलब्ध होना कठिन है। तेरापंथ के गांधी !
तेरापंथ शासन की मान और मर्यादा के आप महात्मा गांधी की भाँति सजग प्रहरी हैं। 'अणुव्रत आन्दोलन' के प्रचार-प्रसार द्वारा आपने समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाकर उन्हें 'चरित्र-धन' प्रदान किया है। आचार्य तुलसी के उद्घोष 'अपने से अपना अनुशासन' को आपने अपने जीवन में साकार किया है। सरस्वती के पुजारी !
__एक व्यक्ति को शिक्षित करना, एक तीर्थयात्रा के समान है । महामना आपने राणावास को एक शैक्षणिक तीर्थ बनाने का गुरुतर कार्य किया है । अनेक बाधाओं का अविचलित सामना करते हुए आपने महाविद्यालय-स्तर की उच्च शिक्षा का शंख-नाद कर माँ भारती को पुलकित किया है । नारी-शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु आप द्वारा संस्थापित 'अखिल भारतीय जैन महिला शिक्षण संघ' महिला-समाज के उत्थान हेतु मील का एक पत्थर बन चुका है। निर्धन छात्र-छात्राओं को शुरुक मुक्ति एवं आर्थिक सहायता प्रदानकर आप उनके प्रगति मार्ग को प्रशस्त बनाते रहते हैं। पुस्तकीय ज्ञान के साथ चरित्र-निर्माण का मणि-कांचन संयोग आपके ही सद्प्रयासों से प्रस्तुत हुआ है । आपने विद्यार्थी वर्ग को मात्र साक्षर ही नहीं, वरन् 'शिक्षित' बनने की दिशा में अग्रसर किया है । शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु आपने अपना सब कुछ समाज को समर्पित कर दिया और झोली लेकर घर-घर, गांव-गांव, शहर-शहर घूमकर संस्था के लिए अस्सी लाख से अधिक की धनराशि एकत्र की है । निश्चय ही आप राजस्थान के मदन मोहन मालवीय हैं । राणावास की भूमि को विद्याभूमि के अलंकार से अलंकृत करने का श्रेय आप ही को है। समाजसेवी और सुधारक !
समाजसेवा का सर्वोच्च धरातल आपने सच्ची शिक्षा के प्रचार-प्रसार में पाया । समाज-सेवा के इस पुनीत यज्ञ में आप स्वयं आहुति बन गये । आपकी यह धारणा रही है कि सही शिक्षा के माध्यम से ही समाज उन्नति कर सकता है । सं. २००१ में आपके नेतृत्व में जिस बीज को बोया गया, आज वह प्रस्फुटित होकर विशाल वट-वृक्ष के रूप में खड़ा है। समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन हेतु आप प्रारम्भ से ही प्रयत्नशील रहे हैं । जन्म, विवाह, मृत्यु से संबद्ध निःसत्त्व कुरीतियों से प्रदूषित सामाजिक परिवेश के शुद्धिकरण हेतु आपने समय-समय पर क्रांतिकारी कदम उठाए। छूआछूत, दहेज व पर्दाप्रथा की लज्जास्पद विसंगतियों से भी समाज को मुक्त कराने के लिए आपने अविस्मरणीय प्रयास किये हैं, क्योंकि आपकी मान्यता रही है कि कुरीतियों और रूढ़ियों से मुक्त समाज ही प्रगति कर सकता है । भगवान महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी की प्रांतीय समिति ने आपको 'समाज-सेवक' की उपाधि से विभूषित किया है। भवन निर्माता!
राणावास में शिक्षा के अनुरूप साज-सज्जा से युक्त परिसर निर्मित करने में आपका कठोर परिश्रम अमूल्य है। विद्यालय एवं महाविद्यालय के भव्य परिसर दर्शनीय स्थल का रूप धारण कर चुके हैं । आपके संचालन में निर्मित महाविद्यालय, ११० कक्षों वाले छात्रावास, बृहद सभा स्थल, अतिथिगृह, औषधालय आदि के विशाल एवं भव्य भवनों से घिरे महाविद्यालय-परिसर को देखकर यहाँ आने वाले ख्यातिप्राप्त शिक्षा-शास्त्री, समाज-सेवी, गणमान्य नागरिक आदि सभी ने इसे 'शांति निकेतन' और 'वनस्थली' के समकक्ष मानकर इसकी सराहना करते हैं।
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