Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
जैनशासन के ज्योति
श्री मनोहरमल लोढा (जोधपुर) आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ हैं, वैसे ही चरित्रवान भी आपका चरित्र अनेक गुणों का संगम है । 'सादा जीवन, उच्च विचार' को अपनाकर समाज के सामने आपने एक आदर्श प्रस्तुत किया। सेवा, त्याग एवं संयम आपके चरित्र की गुणात्मक विशेषताएं हैं आपने कम से कम नियमित संग्रह से अपना जीवन व्यतीत कर एक और आदर्श प्रस्तुत किया ।
जहाँ भावना एवं परिश्रम का समन्वय हो वहाँ सफलता निश्चित होती है । अपने आपको सफल होते एवं अपनी मनोकामना फलीभूत होते देख जहाँ प्रसन्नता है, वहीं श्री केसरीमलजी साहब जैसे कर्मठ कार्यकर्ता को पाकर सारा समाज भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है । जनशासन के अटूट प्रेमी एवं जैन समाज के इस ज्योतिषु ज का नाम जैन इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य है । 00
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विवादों से मुक्त
श्री मनोहर इन्द्रावत ( राणावास)
व्यक्ति की आकृति को कागज पर उतारने में जितनी कठिनाइयाँ होती हैं, उससे कहीं अधिक उसके व्यक्तित्व को कागज पर उतारने में होती है। आकृति सरूप होती है, उसे किसी एक ही क्षेत्र और काल के आधार पर चित्रांकित करना पर्याप्त हो सकता है परन्तु व्यक्तित्व । अरूप होता है, साथ ही व्यक्ति के सम्पूर्ण क्षेत्र और काल में व्याप्त रहता है। इसलिये उसे शब्दांकित करने में अपेक्षाकृत दुरूहता है । वह व्यक्तित्व यदि किसी महापुरुष का हो तो दुरूहता और भी अधिक बढ़ जाती है। मैं ठीक ऐसा ही अनुभव कर रहा हूँ, श्री सुराणाजी के प्रति ।
प्रिय वस्तु मिलने पर मनुष्य प्रसन्न बने यह उसका स्वभाव है । अप्रिय का योग मिलने पर वह अप्रसन्न बन जाये, यह भी मनुष्य का स्वभाव है, पर जीवन की कला नहीं । जीवन की कला क्या है ? यह प्रश्न चिरन्तन काल से चर्चा जाता रहा है। इसका समाधान न तर्क
विद्याभूमि राणावास में आज जो कुछ दिखाई दे रहा है वह श्री केसरीमलजी सुराणा के सदकमों का प्रतीक है। आपने राणावास को ऐसा शिक्षा केन्द्र बनाया है, जहाँ अमीर से अमीर और गरीब से गरीब छात्र भी अध्ययन कर सकता है । गरीब और प्रतिभाशाली छात्रों को प्रोत्सा
के बाण दे सके, न बुद्धिवाद की नुकीली धार दे सकी, न शास्त्र दे सके और न शास्त्रों का मन्थन करने वाले पण्डित दे सके । इसका समाधान उन व्यक्तियों के जीवन में से मिला, जिनके तर्कबाण ने अपने आपको बींधा, बुद्धिवाद की नुकीली धार से अपनी शल्य चिकित्सा की अपनी । आत्मा को शास्त्र बनाया और अपनी आत्मा के आलोक में शास्त्रों को पढ़ा। आदरणीय केसरीमलजी साहब उन्हीं व्यक्तियों में से एक हैं। उनका जीवन आलोक है । जो आलोक होता है, वही दूसरे को आलोकित कर सकता है ।
प्रसन्नमन, सहज ऋजुता, सबके प्रति समभाव, आत्मीयता की तीव्र अनुभूति, विशाल चिन्तन, विरोधी के प्रति अनुद्विग्न, जातीय प्रान्तीय साम्प्रदायिक और भाषायी विवादों से मुक्त, यह है भी सुराणा साहब का महान् व्यक्तित्व जो अदृश्य होकर भी समय-समय पर दृश्य बन जाता है।
निर्धन के धन
श्री प्रतापसिंह बंद (कलकत्ता)
हन प्रदान करने के लिये आपने अनेक योजनाएँ आरम्भ कर रखी हैं। आपका हरदम यही प्रयास रहता है कि कोई भी निर्धन छात्र राणावास में आकर निराश होकर पुन: लौटे नहीं, इसके लिये वे प्राणप्रण से जुटे रहते हैं। सचमुच में सुराणाजी निर्धनों के धन है।
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