Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रद्धा-सुमन
८७.
नये मानव के निर्माता
V D श्री फूलचन्द बाफणा (विद्यावाड़ी, रानी) बीज यदि चाहता है कि अनेकों बीजों को अस्तित्व पड़ता है। कुम्भकार व कलाकार की तरह सतत सावधान में लावे तो उसे अपने आप की गला देना होगा। संस्था रहना पड़ता है। बीज को गलना ही पड़ता है। यह की स्थापना व निर्माण करना सहज है किन्तु नये मानव सब क्या श्री केसरीमलजी साहब सुराणा के लागू नहीं का निर्माण करके उसे प्रतिदिन उत्कर्ष की ओर अग्रसर होता? वास्तव में श्री केसरीमलजी सुराणा ने शिक्षा के करना दुष्कर है। इसके लिए जीवन खपाना पड़ता है- लिए अपने आपको समर्पित किया है और आज राणावास अपने आप को समर्पित करना होता है। ओत-प्रोत होना एक शिक्षा नगर बन गया है ।
00 एक प्रखर व्यक्तित्व
प्रो० एम० एल० आच्छा (राणावास) आज सारा संसार स्वार्थ-लिप्सा में ओत-प्रोत है, किताबी ज्ञान की शिक्षा दिलाना नहीं चाहते, बल्कि आप जिधर देखें, उधर ही भ्रष्टाचार, बेईमानी, स्वार्थलिप्सा एवं यह भी चाहते हैं कि बालक देश का ईमानदार नागरिक घूसखोरी देखने को मिलती है। भला ऐसी परिस्थितियों बने । में फोन व्यक्ति अपने काम को इन कृत्यों से बचा सकता श्री सुराणाजी का एक ही लक्ष्य रहता है कि जो काम है ? हर व्यक्ति यही चाहता है कि वह सुख से जिये, मौज वे हाथ में ले लेते हैं, जब तक उसे पूरा नहीं कर लेते हैं, जब से जिए, सारे सुख-वैभव की वस्तुएँ उसे उपलब्ध हों, और तक उन्हें चैन नहीं पड़ता। वे उस कार्य को पूरा करने के अपने जीवन में समस्त इच्छाएं पूर्ण कर ले, लेकिन कुछ लिये अपना सर्वस्व न्योछावर करने को सदैव उद्यत रहते व्यक्ति ऐसे भी संसार में हैं, जो अपना सारा जीवन जनहित हैं। सुराणाजी का ही एक ऐसा अनोखा व्यक्तित्व है जिसके में, समाज-कल्याण में, राष्ट्रोत्थान में, धर्म निरपेक्षता में कारण उन्हें हमेशा आशाओं की किरण ही हाथ लगती लगाते हैं, जिन्हें न अपने घर की चिन्ता है, न अपने शरीर है। आपका दृष्टिकोण हमेशा आशावादी रहा है, आपके की और न सुख-वैभव की--उन व्यक्तियों में जिनको मैंने दिल में इतनी तड़फ है कि संस्था का एक नया पैसा भी अपनी नजरों से, दिल की गहराइयों में झाँक कर देखा व्यर्थ व्यय न हो, समस्त पैसा समाज के इस वट-वृक्ष है-उनमें एक श्री केसरमलजी सुराणा भी हैं।
को सींचने में ही लगे। यही कारण है कि आपके इस श्री सुराणाजी के विचार धर्म के प्रति अट श्रद्धा से निःस्वार्थ सेवाभाव, उज्ज्वल चरित्र से प्रभावित होकर भरे हुए हैं । चूंकि क्षमा, विनय, विवेक द्वारा ही मनुष्यता दानदाता लाखों की थैलियाँ आपकी श्वेत झोली में डाल का सृजन होता है, अतः शिक्षा के साथ-साथ आपने धर्म देते हैं । को भी प्रमुख पहलू रखा। आप बालकों को केवल मात्र
00 अविस्मरणीय कर्मयोगी
7 श्री मांगीलाल छाजेर (बंगलौर) धरती के इस विशाल प्रांगण में अनेकानेक प्राणी उनको समाज या दुनिया से विशेष सरोकार नहीं तो दुनिया अपना जन्म ग्रहण करते हैं और फिर से इसी धरा-धूलि में को भी उनसे विशेष दिलचस्पी नहीं। उनकी दुनिया छोटी निस्तब्ध होकर सो जाते हैं । उनका जीवन, उनका उठना- और सीमित होती है। वक्त के साथ वे विस्मृत भी कर बैठना, उनकी भाग-दौड़ अपने निजी स्वार्थों के लिये होती दिये जाते हैं। किन्तु जिन्होंने अपना जीवन स्वदेश, जाति, है । ऐसे लोग जीते हैं तो अपने लिये, अपने ही दायरे में। धर्म, समाज, शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया है, उन्हें
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