Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रद्धा-सुमन
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समपित व्यक्तित्व
। श्री चांदमल दुग्गड़, (आसिन्द) श्रद्धय केसरीमलजी सुराणा का समूचा जीवन धर्म ज्ञान फिर क्रिया । इसी लक्ष्य को लेकर श्रद्धय सुराणाजी संघ एवं समाज के लिए समर्पित है।
ने राणावास को शिक्षाभूमि का रूप प्रदान किया है । आप में अनेकों ऐसे गुण हैं, जो हर व्यक्ति में पाना सैकड़ों-हजारों बालक-बालिकाओं में शिक्षा के साथ-साथ कठिन है । जिस कार्य को आप अपने हाथ में लेते हैं, उसे संस्कार निर्माण का कार्य आज राणावास में हो रहा है। वहाँ उसी धुन के साथ पूरा करते हैं। आप में दृढ़-निश्चय, रहने वाले छात्र-छात्राओं को सुराणाजी का जो वात्सल्यमिलनसारिता एवं कर्तव्यपरायणता निराली है। प्रिय अनुशासन, कुशल नेतृत्व प्रदान होता है, वह प्रशंसनीय
मानव-जीवन को सर्वांगीण बनाने में शिक्षा का मुख्य है। राणावास की यह शिक्षा संस्था एवं छात्रावास बेजोड़ योगदान रहता है । "तमसो मा ज्योतिर्गमय" का उद्घोष हैं। सारे देश की आँखें आज राणावास की ओर लगी हुई यही व्यक्त करता है कि अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़े हैं। इसके पीछे सुराणाजी ने अपना तन-मन-धन और सब प्रकाश की ओर ले जाना ज्ञान का कार्य है। तभी तो कुछ अर्पण कर रक्खा है । निःसन्देह सुराणाजी का जीवन भगवान महावीर ने कहा-“पढमं नाणं तओ दया"--पहले स्वर्ण-अक्षरों में लिखा जाएगा।
समाज के गौरव
0 श्री सागरमल कावड़िया राजस्थान के मरुप्रदेश में कांठा प्रान्त में एक विराट समाज गौरवान्वित है। जन-जन के मन-मस्तिष्क में व्यक्तित्व अवतरित हुआ, जिसके रोम-रोम में त्याग एवं सत्य अपके तपोमय-जीवन की छाप अंकित है। का आलोक आज भी प्रस्फुटित हो रहा है जिसकी गति में आपकी परिकल्पना है कि आप राणावास को सारे तेज एवं वाणी में ओज है एवं जिसकी प्रत्येक क्रिया देश में शिक्षा के क्षेत्र में शीर्षस्थ स्थान पर पहुंचा दें वैराग्य-रस से सिक्त है। ऐसे व्यक्तित्व को जिसे स्वयं तथा छात्रवर्ग की रग-रग में भगवान् महावीर के आदर्शों युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने 'साधु पुरुष' की संज्ञा एवं आचार्य भिक्ष की मर्यादाओं का संचार करें। ऐसे दी है वह है कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा। विराट् व्यक्तित्व ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज को ___खरे, दबंग, निष्कपट एवं निर्लोभी श्री सुराणाजी न्यौछावर कर दिया है । आप विचक्षणता, दूर-दशिता, अदम्य प्रारम्भ से ही सूर्य की तरह अखण्ड कर्मयोगी रहे हैं। साहस, निर्भीकता तथा गहरी साधना के धनी और त्यागआप जैसे मनीषी, प्रबुद्ध चिन्तक एवं कर्मयोगी को पाकर मूर्ति है । यह हम सबके लिए गौरव का विषय है ।
प्रेम के पुजारी
। श्रीमती भंवरीदेवी सुराणा श्री केसरीमलजी सुराणा को त्याग, तपस्या, निःस्वार्थ मुझे तो उससे पहले यह संभावना भी नहीं थी कि इनके सेवा करते-करते वर्षों गुजर गये, आज स्वयं ही सारा हृदय में भावभीने स्नेह का जो स्रोत उमड़ता है वह समाज उन्हें हार्दिक सम्मान देता है। मैं सोचती हूँ क्या हमें भी द्रवित कर देगा। कभी अध्यात्म की गहराई नापने वाला सब के प्रति वहाँ जाने वाले सभी ने कुछ न कुछ आनन्द माना अनुरक्त रह सकता है ? उसे सबसे क्या प्रयोजन ? और होगा, मगर मेरे मन में तो हर प्रोग्राम, हर व्यस्तता
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