Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
पुण्य-पुरुष नर-रत्न 9 (स्व०) श्री उदय जैन (कानोड़)
श्री केसरीमलजी सुराणा को मैंने शिक्षा एवं चरित्र एवं विचारानुग, समयज्ञ एवं सुज्ञ श्रावक हैं । ये स्वयं के के क्षेत्र में जीवन व धन समर्पण करने वाले समाज के एक परिग्रह एवं समय का विसर्जन कर एक शिक्षा केन्द्र के पुण्य-पुरुष के रूप में पाया। जैसा मैंने पाया वस्तुत: वे केन्द्र-बिन्दु और समाज के श्रद्धय श्रावक बन गये हैं। उससे भी कहीं बढ़कर हैं।
राणावास का छोटा-सा गांव इस समय विद्या-तीर्थ बन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी समाज के ये मानव-रत्न गया है और अब होड़ा-होड़ में शिक्षा-धाम बन गया है। हैं और अहर्निश आत्म-प्रगति तथा शिक्षा-प्रसार कर रहे ये एक ऐसे पुण्य-पुरुष हैं जो स्वयं बढ़ रहे हैं और हैं । समाज ने इनको मान दिया । जहाँ भी ये गये समाज इनको देख दूसरे भी प्रगति कर रहे हैं । इस मानव-केसरी ने लाखों का द्रव्य समर्पण कर इनके प्रति भक्ति का ने छात्र एवं छात्राओं के जीवन-निर्माण में अपने आपको प्रदर्शन किया। ऐसे नररत्न को धन्य है ।
भी न्यौछावर कर दिया है। इन्हें धन्य है। आप युगप्रधान आचार्य श्री तुलसीगणी के परम भक्त
00 सर्वस्व त्यागी महापुरुष
श्री रणजीतसिंह बैद (जयपुर)
राणावास का व श्री केसरीमलजी सुराणा का नाम बहुत खर्च चलाना, अठारह घण्टे स्वाध्याय करना, डेढ़ घण्टे सुना था और हमारे थली में तो यह प्रसिद्ध है कि टाबर विश्राम करना, संस्था के प्रति इतना मोह कि उसके लिए बोछरड़ा हो तो राणावास भेज दो। वहाँ शैतान से शैतान अपना सब कुछ त्याग कर देना वास्तव में यह किसी महाबच्चा भी सुधर जाता है । आश्चर्य होता था कि आज के पुरुष के लिए ही संभव है। किसी साधारण मनुष्य के लिये इस आधुनिक युग में जहाँ विद्यार्थी अपने शिक्षक का पूरा तो यह कल्पना से भी परे है। आदर भी नहीं करता है वहाँ राणावास में बच्चे इतने कुछ लोग कहते हैं कि सुराणाजी में चन्दा लेने की अनुशासित कैसे हो जाते हैं।
बहुत बड़ी कला है। मैं कहता हूँ कि चन्दा तो वहाँ व्यक्ति एक बार मुझे श्री मन्नालालजी सुराणा के साथ अपने आप ही आकर देते हैं। जब वे उनकी संस्था के प्रति राणावास जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहाँ मैंने श्री लगन, उत्साह और त्याग देखते हैं तो आदमी अपने आप ही केसरीमलजी सुराणा के दर्शन किये, उनका आचार-विचार, चन्दा देने को प्रेरित हो जाता है। यही कारण है कि उस उनका सब के प्रति एक-सा स्नेह और आत्मीयता को देख- बंजर भूमि में भी आज एक संस्था खड़ी है जो समाज में कर उनके प्रति मेरा मन श्रद्धा से भर गया । इस मॅहगाई एक अनुकरणीय उदाहरण है और जिसका कोई मुकाबला से युग में सौ रुपये महीने में अपना व पत्नी का सारा घर- नहीं है।
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