Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
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सूफी निर्भय हो किसी भी काम को पूरा करने का बीड़ा १. गुस्से के वक्त सब से काम लेना-काकासा के उठा सकता है । वैसे ही काकासा आचार्य प्रवर तुलसी के जीवन में गुस्से का तो स्थान है, लेकिन गुस्से से प्रीति चरणों में सर्वस्व सौंप अपने को फूल-सा हल्का महसूस नहीं है। गुस्सा सिर्फ कार्य को संवारने व हिदायती तौर करते हैं । सांसारिक कार्यों में व्यस्त सूफी सन्तों की तरह पर ही करते रहे हैं । एक गृहस्थ सन्त हैं । जैन तेरापंथ की मर्यादाएं काकासा २. तंगी में बख्शीस देना-काकासा ने अपना सर्वस्व के जीवन की प्रथम आवश्यकताएँ है। हर समय इष्ट का देकर तंगी को बुलावा दिया है और अब तंगी की अवस्था चिन्तन जैन तेरापंथ का सजीव संवाद है । सफियों के यहाँ में भी बख्शीस देते रहते हैं। इसे होश-हरदम के नाम से पुकारा जाता है।
३. काबू पाने पर माफ करना-काकासा ने सूफी काकासा का जीवन त्यागमय तो है ही, लेकिन इस संतों की तरह लोगों की गलतियों पर भी उन्हें माफ किया त्याग के बदले जन्मे अहं को नष्ट करने की शक्ति इष्ट- है। संस्था के कुछ अधिकारियों द्वारा यह कहे जाने पर भी चिन्तन प्रदान करता है। ऊँचे मरहलों पर चढ़ने वाले कि अपराधी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं, काकासा ने श्रावकों में मल-विक्षेप व अहंकार के गरूर हो आना क्षमादान दिया। जैन सम्प्रदाय के क्षमायाचना दिवस स्वाभाविक है। सूफियों के यहाँ इन कटीली घाटियों पर (संवत्सरी) की महत्ता सूफियों की तरह ही जैन श्रावकों चढ़ते समय साकी के द्वारा साधक की आँखों पर पट्टी बाँध को ऊँचा उठा देती है। दी जाती है जिससे उसमें त्याग का अहंकार जन्म न ले सके। काकासा का आहार सदैव ही सीमित रहता है। जैन सम्प्रदाय में इन अहंकारों को इष्टदेव के चरणों में जैनधर्म में उपवासों को विशेष ही महत्व दिया गया घुला देना होता है।
है । सूफियों का कहना है कि जिनका आहार सादा व ___सूफियों के यहाँ अपने साकी के हाथ बिक जाना होता पाक होता है, वही खुदा की रहमत के अधिकारी है। अपने मन को गुरु के मन में लय कर देना होता है। होते हैं। तेरापंथ सम्प्रदाय में भी ऐसा ही कुछ है । एक सच्चे सूफी काकासा का व्यक्तित्व जैन श्रावक के रूप में सभी के दिल से निकलता उद्गार कहता है-"जब मैं था तब ने देखा है। हमने काकासा को एक सूफी सन्त के रूप गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाहिं । प्रेम गली अति में जाना है । आचार्य तुलसी का सब धर्मों के प्रति आदर, सांकड़ी जा में दो न समाहिं ।" काकासा भी अपने को अपने इष्ट के चरणों में लुट जाना, आचार्य तुलसी का गुरु-चरणों में लय कर देने में ही लगाये रहते हैं। एक सूफी सन्त होने का प्रमाण है और आचार्य तुलसी
सूफी सन्त हजरत इदरीस ने फरमाया कि नेकी के से ही सम्बन्धित काका साहब हैं अतः इनका भी सूफी सन्त सिर तीन बातें हैं
होना स्पष्ट है।
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स्वभावसिद्ध गुणों के आकर
डा० वी० एन० वशिष्ठ (राणावास) हृदयं मानवसमतां धत्ते सामान्यदेहमर्यादम् । स्पष्टतः अनुभव हम सब को समय-समय पर होता आर्ते यत्तद् द्रवितं मेघाज्जलघेरिव गम्भीरम ॥ रहा है । जो भी उनके निकट सम्पर्क में आये हैं, वह उनके
अर्थात् "उन महापुरुषों का हृदय सामान्य देह में रखा कोमल हृदय और दृढ़ चरित्र से प्रभावित हुए बिना हुआ, ऊपर से सामान्य मनुष्यों के समान दृष्टिगत होता नहीं रह सके हैं। है परन्तु जब दुःखी, करुणायोग्य व्यक्ति पर कृपा और आज से लगभग ३७ वर्ष पूर्व मैंने अपने औषधालय प्रेमवश होकर द्रवित होने लगता है, तो अपार सुख-सम्पदा की स्थापना की थी, उसके पीछे उनके प्रोत्साहन का ही के रूप में मेघ से भी बढ़ जाता है और गम्भीरता में हाथ था। दवाखाना के लिए उनके उत्साह का गर्भस्थ समुद्र को भी मात कर देता है।" यह बात आदरणीय भाव मानव-कल्याण की भावना थी क्योंकि उस सुराणाजी के लिए निःसंकोच कही जा सकती है। इसका समय राणावास में चिकित्सा एवं शिक्षा की व्यवस्था
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