Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ प्रथम खण्ड
सूझ-बूझ की त्रिवेणी
श्री कनकमल जैन, बीकानेर
शिक्षा की दृष्टि से इस संस्था ने द्रुत गति से विकास किया है। पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक शिक्षा से लेकर यहाँ आज स्नातक स्तर की शिक्षा की व्यवस्था उच्च कोटि की है। अधिकतर छात्र बाहर से आते हैं। उनके लिए आवास निवास व भोजन की व्यवस्था बड़ी सुन्दर एवं सात्त्विक है । एक प्रकार से सभी विद्यालय आवासीय ही हैं। यहाँ आवास हेतु कई विशाल छात्रावास भवन हैं । यहाँ सदा छात्रों के विकास पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाता है। इस हेतु योग्य गृहपति रखे जाते हैं ।
सेवा इस संस्था का प्रमुख लक्ष्य रहा है । समाज में सैकड़ों प्रतिभावान छात्र हैं जो आर्थिक कमजोरी के कारण उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते। ऐसे प्रतिभावान एवं योग्य छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने हेतु उन्हें निःशुल्क शिक्षा दी जाती है एवं उनके आवास व भोजन की भी निःशुल्क व्यवस्था कर उनके जीवन को उन्नत एवं समाजोपयोगी बना इस संस्था ने सदा सेवा का कीर्तिमान स्थापित किया है ।
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आप एक चितक हैं, साथ ही अध्यवसायी भी । यह कहने में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आप एक उच्चकोटि के शिक्षा शास्त्री भी हैं। विद्यार्थी वर्ग के प्रति काकासा का अपना दृष्टिकोण है । विद्यार्थियों की सहायता करने के लिये अपने व्यक्तिगत प्रभाव का उपयोग करना भी आपको अखरता नहीं है। किसी भी विद्यार्थी का किसी भी रूप में भला करना आप अपना कर्तव्य समझते हैं । विशेषता यह है कि किसी का कुछ कल्याण करके वे उसे जताने की कभी चेष्टा नहीं करते । यहाँ तक कि
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उच्चकोटि के शिक्षाशास्त्री
[] श्री महेन्द्रवीर सिंह गहलोत, राणावास
शोध की दृष्टि से यह संस्था स्वयं एक प्रयोगशाला ही बन गयी है जीवन का बहुमुखी विकास सर्वागीण विकास यहाँ का उद्देश्य है । प्रत्येक बालक की मनःस्थिति, उसकी व्यक्तिगत समस्याओं का अध्ययन कर उस बालक के विकास हेतु प्रयास किया जाना यहाँ का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यहाँ देश के कौने-कौने से बालक आते हैं । उनमें कई बालक समस्यामूलक या पिछड़े हुए भी होते हैं । अतः यहाँ एक वैज्ञानिक की भाँति उनका अध्ययन कर उपचार किया जाकर उनका विकास किया जाता है । उन्हें योग्य सामाजिक प्राणी बना सुनागरिक बनाया जाना इस संस्था की प्रमुख विशेषता है ।
वास्तव में यह संस्था ज्ञान, दर्शन, चारित्र की त्रिवेणी है जहाँ बालक अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर मानव जीवन में सफलता प्राप्त करता है। इसका समस्त श्रेय काकासा श्री केसरीमलजी की है। उनकी सूझबूझ की इस त्रिवेणी के कारण ही यह संस्था उत्तरोत्तर प्रगति कर रही है।
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अपने द्वारा की गई सेवा का विद्यार्थी को वे आभास भी नहीं होने देते ।
अपने छात्र को उसके जीवन में खूब प्रगति करते हुए, फलते-फूलते और सफल होते देखकर काकासा का मन प्रसन्न हो उठता है । एक शिक्षण संस्थान के कुलपति के लिए इससे बड़ा सौभाग्य और कोनसा हो सकता है ? अपने छात्र की सफलता और उन्नति को ही काकासा सच्ची गुरु-दक्षिणा मानते हैं। यही तो है वह सनातनी भाव जिसके लिये हम आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।
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