Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : प्रथम खण्ड
व्यवस्थाओं का निर्वहन कर सकता है । कितना आश्चर्य भावना से प्रोत्साहित कर रहा है ? है, किसी दिन कार्य भी अधिक करना पड़े, आधा घण्टा सब कुछ थोड़े शब्दों से कहा नहीं जाता । विशेष नींद की अपेक्षा धूप-सर्दी आदि सहना पड़े तो शरीर बात और वह है 'चन्दा लाना' । यह कला उनमें बेजोड़ है अपनी शिकायत कर देता है, लेकिन सुराणाजी में यह और कला से भी अधिक त्याग और सार्वजनिक मानव बात लेशमात्र भी नहीं थी। बालक-बालिकाओं में संस्कार हितकारिणी भावना है। कुल मिलाकर मैं तो उनके अहंसर्जन कला का विकास, उत्साह, अनुशासन देखते ही विजेता व लोहपुरुष व्यक्तित्व एवं सौहार्द भाव को अन्तिम सुराणाजी का जीवन सामने आ जाता है। एक पुरानी क्षणों तक भी नहीं भूल सकता। परम्परा का व्यक्ति नये युग के अनुरूप सबको किस विशाल
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एक अद्भुत शक्तिपज
- प्रो० के० के० महर्षि, उदयपुर श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ का मानव हितकारी संघ राणावास को समर्पित कर कार्यसाक्षात् अनुभव तब हुआ, जब मैं सन् १९७५ में राजस्थान क्षेत्र में कूद पड़े। कठिनतम समस्याओं को झेलते हए एक सरकार की ओर से महाविद्यालय की अस्थायी मान्यता की संघर्षशील व्यक्तित्व का परिचय दिया, जिसका प्रत्यक्ष दृष्टि से वहाँ निरीक्षण करने गया। उस विशाल प्रांगण में फल वर्तमान का विकसित शिक्षा केन्द्र है। जाकर मैंने पाया कि सम्पूर्ण संस्था के वातावरण में इस संस्थान व संघ की विशेषता शिक्षा-दान के साथ विनम्रता तथा अनुशासन व्याप्त था । शिक्षक-वृन्द एवं साथ संस्कार निर्माण पर भी उतना ही बल दिया जाना है. छात्रगण में पारस्परिक सौहार्दता एवं कर्तव्य-परायणता अनुशासनबद्ध छात्र-जीवन एक अनुपम उदाहरण उपस्थित विद्यमान थी। संस्था के सभी वर्ग संस्था के हित में करना है । ऐसा लगता है मानो प्राचीन गुरुकुल आश्रम समर्पित थे।
समान दृश्य है । पाँच सौ छात्र छात्रावास में निवास करते विशाल परिसर में भव्य भवन खड़े थे। वाणिज्य हैं। आतिथ्य का द्वार सदा खुला रहता है जिसमें बड़ी एवं कला संकायों के नवनिर्मित भवनों के साथ छात्रा- आत्मीयता है। आगन्तुक शिक्षाविद् प्रभावित हुए बिना वास ब्लाक तथा सभा भवन की अन्य इमारतें खड़ी देखीं। नहीं रहते । वर्षों के सफल संचालन ने इस संस्थान की बड़ा सुन्दर सा दृश्य था जो स्वाभाविक रूप से मन को प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि की है । अत: आज इसका स्थान आकर्षित करता था। उच्च माध्यमिक शिक्षण संस्था तथा राज्य के शिक्षा जगत में गरिमामय है। आदर्श निकेतन छात्रावास की पूर्व की इमारतें अपना श्री सुराणाजी के व्यक्तित्व में अद्भुत वर्चस्व है, विशिष्ट स्थान लिये हुए थी। खेल के मैदान, भोजनालय जिनका दृढ़ संकल्प व निर्देशन शत प्रतिशत मान्य होता है। एवं बगीचा चार-दीवारी में स्थित थे।
सब इनके चरणों में स्वत: नतमस्तक हो जाते हैं। इसमें इन सबके पीछे ऐसे कौन से व्यक्ति की शक्ति छिपी हुई अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि यह कहें कि परिसर मिनीथी जिसने इस विशाल परिसर को खड़ा किया और उसकी विश्वविद्यालय के समदृश सा है। ऐसे महान तथा कर्मठ साधना और सेवा ने अनेकों दानवीरों को आकर्षित किया। व्यक्तित्व का अभिनन्दन मानवीय गुणों के आदर्श को वह है त्याग मूर्ति श्री केसरीमलजी सुराणा साधुवेष में, जो उजागर करना है । आज देश में सहस्रों लोग व छात्र इस शिक्षा अभियान में जुटे हुए हैं। जिन्होंने कांठा प्रान्त इनके कार्य से प्रभावित हैं, जो स्तुत्य है । इनके दीर्घ के एक निर्जन स्थान, अपनी जन्मभूमि में ३५ वर्ष पूर्व जीवन की शुभकामना के साथ..... संकल्प लिया था। तब से ही अपनी समस्त सम्पत्ति को
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