Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
सम्पन्न । साहित्य कक्ष, कला कक्ष, संगीत कक्ष, विज्ञान की निर्बाध गति चाहते हो, तुम्हारी आशावादिता धन्य कक्ष, यन्त्र ज्ञान कक्ष, भूगोल कक्ष आदि देखकर ऋषि है। इससे अधिक मैं क्या कहूँ ?' गद्-गद् हो उठे।
आज यही नियति हमारे देश की है । वास्तव में राष्ट्र देखो, राजा ने गवं मिश्रित वाणी में कहा। .. के अधिकांश शिक्षा-स्थल उपयुक्त अभावों से असफल रहे
परन्तु दो बातें स्पष्ट नहीं हुईं, ऋषि बोले । पहली हैं, पर राणावास का शिक्षा केन्द्र हमारे समाज में सर्वाधिक बात तो यह है कि विद्यालय के द्वार से जो निर्धन-सा सफल है, उसका प्रमुख श्रेय श्री केसरीमलजी सुराणा को व्यक्ति हमारे साथ था, वह कौन है ? और विद्यालय में है। उन्होंने अपने चिन्तन से शिक्षा में अध्यात्म पक्ष को धर्माचरण की शिक्षा का कक्ष कहाँ है ?
समन्वित किया । जिससे शिक्षा के साथ-साथ समाज की राजा ने बताया, जो सज्जन हमारे साथ थे, वे भावी पीढ़ी में आध्यात्मिक संस्कारों का बीजारोपण हुआ । विद्यालय के आचार्य हैं, और धर्माचरण की शिक्षा का राणावास शिक्षा केन्द्र प्रगति के क्षेत्र में आगे बढ़ा। दायित्व हमारा न होने से उसकी कोई व्यवस्था हमने अदम्य उत्साह व अटूट निष्ठा उनके जीवन सूत्र रहे नहीं की है।
हैं। समाज उनके द्वारा प्रदत्त इस देन के लिए युग-युग ___'राजन्' ऋषि बोले, 'तुम्हारे विद्यालय में प्राणों की आभारी रहेगा। वे एक निष्काम समाजसेवी के रूप में प्रतिष्ठा नहीं है। इतने पर भी तुम विद्यारूपी रथ विख्यात हैं।
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अनुशासनप्रिय
0 मुनि श्री प्रसन्नकुमार अनुशासनमय दृष्टि सुराणाजी को विरासत में मिली बड़े शिक्षण संस्थान का समुचित रूप से संचालन हो रहा है। तेरापंथ धर्मसंघ की अनुशासनप्रियता सुराणाजी के है। इसका कारण सुराणाजी की अनुशासनप्रियता ही है। जीवन में गहरी समा गयी है। आप बचपन से ही धर्म- उन्होंने शिक्षण संस्थान में अनुशासनहीनता को कभी नहीं निष्ठ और अपने धर्मसंघ के प्रति समर्पित रहे हैं । इस पनपने दिया । चाहे कोई अध्यापक हो या कोई विद्यार्थी कारण तेरापंथ-धर्मसंघ को अनुशासनबद्धता आपके जीवन हो। जहाँ कहीं भी अनुशासनहीनता लक्षित हुई, उसका का अंग बन गयी । आप अपने कार्यक्षेत्र में भी स्वयं तत्काल प्रतिकार किया। उसी का सुपरिणाम है कि शिक्षण अनुशासित हैं और दूसरों को अनुशासित रखते हैं। इतने संस्थान का सारा कार्य व्यवस्थित चल रहा है।
व्यक्ति नहीं संस्था 0 साध्वी श्री कंचनमाला
अपना
चरित्रनिष्ठ, कर्तव्यपरायण एवं यश की भावना से सुराणाजी का व्यावहारिक जीवन भी बहुत सरस निलिप्त समाज-सेवा के लिए अर्पित सुराणाजी का जीवन एवं मधुर है। इनका आत्मीय स्नेह हर आगन्तुक को समाज के लिए एक अनुकरणीय आदर्श है।
अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। लगता है सुराणाजी कोई एक व्यक्ति नहीं संस्था श्री केसरीमलजी का बहरंगी व्यक्तित्व तेरापंथी हैं। इनमें कार्य करने की अद्भुत क्षमता है, अदम्य समाज का एक गौरव है। उत्साह है और साथ ही श्रम के प्रति अटूट आस्था है।
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