Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
दीपक एक ओर स्नेह ग्रहण करता है तो दूसरी ओर प्रकाश व कज्जल के रूप में विसर्जन करता है । इस आदान और प्रदान की प्रक्रिया से ही लौ सदा प्रज्वलित रहती है। फूल अपनी सौरभ लुटाकर ही खिलता है, मेहदी पिसकर ही रंग लाती है। मनुष्य जीवन भी अर्जनविसर्जन से अभिपूरित है। विसर्जन में आनन्द की अनुभूति होती है, आत्मसन्तोष मिलता है । अर्जन में दुःख हैं, सरदर्द है, पीड़ा है।
श्रावक केसरीमलजी ने विसर्जन की परिभाषा को केवल समझा ही नहीं बल्कि विसर्जन सूत्र को प्राणवान भी किया है । आपने अपने अमूल्य समय का विसर्जन कर समाज की भावी सन्तति को प्रबुद्ध एवं जैन संस्कारों से
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सरोवर के शान्त जल में सोया हुआ कमल सूर्योदय के अरुण प्रकाश में स्वतः जागृत होकर अपनी पंखुड़ियों के दरवाजे खोल लेता है। लगता है श्री केसरीमलजी सुराणा ने भी अपने पुरुषार्थ के बल पर मारवाड़ की शुष्क धरा को सरसब्ज बना दिया है। आज उसकी गूँज चारों ओर सुनाई दे रही है। उनके जीवन का घोष है 'सादा जीवन, उच्च विचार; मानव जीवन का शृंगार ।'
एक बार स्वामी विवेकानन्द जब विदेश गये हुए थे,
संस्कारित करने का एक अच्छा उपक्रम किया है। ज्ञानदान वितरण कर कर्म निर्जरा करते हैं। हजारों विद्यार्थी आपकी सन्निधि में तत्त्वबोध पाकर अपने आपको धन्यधन्य मानते हैं। आपने सत्य का विसर्जन किया है, नींव का विसर्जन कर प्रतिक्षण धर्माराधना करते हैं, इसके साथ-साथ आसन - विजयी बने हैं। एक आसन पर छः घण्टे एक साथ बैठकर शारीरिक प्रवृत्तियों का निरोध कर निवृत्ति की ओर बढ़े हैं। कषायों का विसर्जन कर शारी रिक तथा मानसिक तनाव से मुक्त हैं । इन्द्रियाँ और मन नियन्त्रित हैं। अर्जित सम्पत्ति को विसर्जित कर अनासक्त पुरुष बने हैं । वस्तुतः श्री सुराणाजी विसर्जन के पुनीत प्रतीक हैं ।
विवेकानन्द की याद
D साध्वी श्री सुबोधकुमारी
संस्था को फलवान, दृढ़, मजबूत और शक्तिशाली बनाने का सारा श्रेय सुराणाजी को है । प्रारम्भ से लेकर आज तक उन्होंने इस संस्था का उत्तरदायित्व जिस संस नता व दक्षता से सँभाला है, वह बेजोड़ है। अनेक वर्षों तक अवैतनिक मन्त्री पद पर रहकर निःस्वार्थ भाव से कार्य करते रहे हैं। परित्रनिष्ठ कार्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, शासन
उनका रहन-सहन देखकर किसी ने पूछा "आप कौन है ?" उन्होंने उत्तर दिया, "मैं विवेकानन्द हूँ ।" सुनने वाला आश्चर्यचकित हो गया । उसकी भाव-भंगिमा को देखकर स्वामीजी बोले – “तुम्हारी शोभा वस्त्रों में है, मेरी शोभा मेरा चरित्र है ।"
आज के युग में सुराणाजी भी विवेकानन्द की याद दिला रहे हैं।
बेजोड़ संचालक
O मुनि श्री कन्हैयालाल
निष्ठ आदि विभिन्न विशेषताओं से उनका जीवन ओतप्रोत है । संस्था के कार्यक्रमों के साथ-साथ वे घण्टों स्वाध्याय व ध्यान के महासरोवर में स्नान करते रहते हैं । सामायिक आदि नित्य नियम किये बिना पानी भी नहीं पीते हैं । समाजसेवी हैं । स्पष्टवादी - स्पष्टभाषी हैं । कर्मवीर है।
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