Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आशीर्वचन
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साधना के सजग प्रहरी
0 साध्वी श्री गुणवती भगवान् महावीर ने दो प्रकार का धर्म बताया है- को खपाने वाले, दृढ़ श्रद्धालु आदि-आदि । उसी कोटि में १. आगारधर्म और २. अणगारधर्म । गृहस्थधर्म और साधु आते हैं आचार्य श्री तुलसी के श्रावक केसरीमलजी सुराणा। धर्म या अणुव्रत और महाव्रत । साधु पूर्णरूप से त्यागी उनकी जीवनचर्या देखने से लगता है कि वे अपने होते हैं । महाव्रतों का पालन करते हुए प्रतिदिन त्याग जीवन का बहुत भाग साधना व धर्म जागृति में बिताते
और संयम से ही जीवनयापन करना उनका जीवन व्रत है। शास्त्रों में तो हम थावकों की विशेषताएं पढ़ते हैं, है । मगर गृहस्थ यथाशक्य अणुव्रतों का पालन करता लेकिन उनका जीवन खुली किताब है। धर्म कार्य में है । गृह-कार्य में लगा हुआ भी अनावश्यक हिंसा से बचता आलस्य नाम का तत्त्व उनके पास नहीं फटकता। वे है। भगवान् महावीर के अनेकों श्रावक हुए-जीवाजीव- साधना के सजग प्रहरी हैं। वादी, तत्त्वों के जानकार, पडिमाधारी, साधना में जीवन
गाँधी और कस्तूरबा
साध्वी श्री पानकुमारी (लाडनू) साधु जैसा वेश, सादा खाना, अल्पव्यय, रात-दिन अटल अनुशासन की तह में भरपूर एकता और प्रेम का सामायिक, शुभ चिन्तन, संत-सेवा तथा अध्यात्म-रस में शिलान्यास रहा है। उनकी कर्तव्यपरायणता बेजोड़ है। तल्लीन रहना, साधुत्व साधना का द्योतक है फिर भी जिस उन्हें और उनकी पत्नी को इस महान अभियान में देखकर लक्ष्य को वे साध रहे हैं मेरी दृष्टि से दो प्रकार लाभ मुझे गांधीजी और कस्तूरबा के जीवन की याद आने लग उठा रहे हैं-त्यागी जीवन का और समाज के निर्योगात्मक जाती है। उन्होंने सत्य के लिए संघर्ष सहे, विरोध सहे, उपकार का। तेरापंथ समाज ही नहीं बल्कि सुराणाजी से मगर वज्र से कलेजे के बल से एक समर्पित सेवा का सारा जैन एवं जैनेतर समाज भी काफी उपकृत है । उनके आदर्श दुनिया के सामने रख दिया।7 00 त्रिरत्न: ओजस्वी वक्ता
साध्वी श्री धनकुमारी एक वकील के यहाँ कुछ मेहमान आए। ठीक उसी वह आग अच्छी है जो मुहुर्त भर ही जले। धुएँ से वक्त पड़ोसी सेठ के यहाँ से आवाज आयी, बचाओ! परिपूर्ण धीरे-धीरे बहुत देर तक सुलगने वाली अग्नि बचाओ ! बचाओ !! आगन्तुक अतिथियों में परस्पर चर्चा निरर्थक है । वह जीवन सर्वश्रेष्ठ होता है, जो निरन्तर हुई-कोई व्यक्ति संकट में हैं, चलो उसे बचायें। वकील ने ज्योतिर्मय रहे। श्री सुराणाजी के जीवन में सजगता का इस बात को स्पष्ट करते हुए कहा-'इस बचाओ' में एक दीप जलता रहता है । ज्ञान तथा विवेक का भास्कर उदित राज छिपा हुआ है, प्रथम 'बचाओ' का तात्पर्य है आलस्य है। संयम की अमिट लो प्रज्वलित है। से समय को बचाओ ! दूसरे 'बचाओ' का भावार्थ है असंयम यद्यपि आपसे मेरा परिचय अधिक नहीं है किन्तु से शक्ति को बचाओ और तीसरे का भावार्थ है अपव्यय से सुमनों की सौरभ फैलाने की आवश्यकता नहीं होती। धन को बचाओ। ये तीन बहुमूल्य रत्न हैं-ये तीनों रत्न अनुकूल पवन के संयोग से स्वतः ही उसकी महक सर्वत्र श्री सुराणाजी के जीवन में देखने को मिलते हैं। अतः फैल जाती है। देवगढ़ चातुर्मास से कुछ पहले साध्वी श्री उनका जीवन पवित्र एवं आदर्शमय है।
यशोधराजी के साथ आप वहाँ आये। मैंने आपका भाषण जीते सब हैं । परन्तु जीने की भी एक ली होती है। सुना। वाणी में साधना मुखरित हो रही थी, वचन का जिसे सम्यक् प्रकार से जीने का ढंग आ गया उसे सब कुछ प्रयोग, जबान पर पाबन्द, कहाँ, कैसे, कब और कितना हासिल हो गया । महाभारत में कहा है
बोलना चाहिए। यही आपकी विवेकपूर्ण ओजस्वी वाणी मुहूर्त ज्वलितं श्रेयो न तु धूमायितं चिरम् । बतला रही थी।
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