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धन्य-चरित्र/31
उपकार मानेंगे।"
स्थूल लक्ष्य के शिरोमणि धन्य ने अपना मनोरथ पूर्ण हो जाने पर भी उन चापलूसी आदि से भरे वाक्य आदि को सुनकर हर्षपूर्वक कहा - " आप माल ग्रहण कीजिए। इस माल में लाभ तो बहुत ज्यादा है, पर आप तो लक्षमात्र ही दे देवें। आप जैसे बड़े लोगों के वचन कैसे विफल कर सकता हूँ? कहा भी गया है—
कुलजानां तु वृद्धानां विनय एवोचितः ।
कुलीनों के लिए बड़ों का विनय ही उचित है।"
इस प्रकार साम वचनों द्वारा सभी को प्रसन्न करके उन्हें क्रयाणक पत्र देकर तथा लक्ष - धन लेकर अपने घर आ गया। पिता को प्रणाम करके वह द्रव्य उनके आगे रखकर सम्पूर्ण घटना बतायी ।
हजार द्रव्य के व्यय से भोज्य पदार्थ मँगवाकर रसोइयों द्वारा विविध प्रकार के संयोग से विविध द्रव्यों के संस्कार - पूर्वक रसोई बनवायी । फिर ज्ञातिजन, स्वजन तथा मित्रों आदि को निमत्रण दिया। वे भी आये ।
सभी भोजन करने के लिए यथास्थान बैठे। सबसे पहले कुल की कन्याओं ने स्वादिष्ट फल, नारंगी, खजूर, द्राक्षा आदि परोसे। उन फलों का आस्वाद लेते हुए, धन्य के गुणों का वर्णन करते हुए सभी ने विविध रसों की तृप्ति का अनुभव किया ।
उसके बाद सुस्वादिष्ट, चित्त को मोद प्रदान करनेवाले, विविध राज - द्रव्यों युक्त मोदक परोसे गये। फिर घी से सरोबार, अपने गर्व से स्वर्ग से च्युत हुए की तरह, चन्द्र- मण्डल के सदृश, शुभ्र आमोद के पूरक घेवर परोसे गये । फिर माधुर्य - रस की आतुरता को मिटानेवाले नट - नागर के गोटकों की तरह गल- रन्ध्र में प्रवेश करके 'गटक' इस प्रकार बोलनेवाले अति उज्ज्वल पेठे को परोसा गया।
उसके बाद आहार- शरीर की ऊष्मा से उद्भूत तृष्णा के आतप को खण्डित करनेवाला श्री खण्ड तथा पानी से निकले हुए, किनारे से बहती हुई हवा द्वारा शीतल सिकता - कणों से भी ठण्डी, खाण्ड से मण्डित पतली पूड़ी परोसी गयी
उसके बाद माधुर्य रस से आप्लावित अन्तःकरणवालों के आहार - शक्ति की मंदता को चूर करनेवाली, नमक हल्दी - मिर्च आदि बहुत सारे द्रव्यों से युक्त अति उष्ण पूड़ी तथा समस्त समिश्रित खर्जुर आदि परोसे गये। फिर सुरभि, शुभ्र, कोमल, चिकने, सुक्षेत्र में उत्पन्न आदि गुणों से युक्त खण्ड, कलम, शालि जाति