Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 24
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] ५ रुहाः-शाल्यादयः। दशवै० १३९। स्वपरर्यायोपेतान्निखिलान् जीवादि-पदार्थान् जानाति साधारणबादरवनस्पति-कायविशेषः। प्रज्ञा० ३४१ तदा बुध्यत इति व्यपदिश्यते। भग० ३४। बीयवावए-| निशी० ३३५ आ। बुज्झति- बुद्ध्यते-श्रद्धत्ते। स्था० ३०६। केवलज्ञानभावात् बीयवासा- बीजवर्षः-बीजवर्षणम्। भग० १९९। समस्तवस्तूनि घातिचतुष्टयघातेन बुद्ध्यते। स्था० बीयवृट्ठी- बीजसूक्ष्म-शाल्यादिबीजस्य मुखमूले कणिकाः १८१ लोके या तुषमुखमित्युच्यते। स्था०४३०| बुज्झिय- बुद्धा-अनुभूय, प्राप्य च। उत्त. १८८1 बीया- बीजानि-अभिनवाङ्कुरितानि। आचा० ३७६। औष- बुज्झेज्जा- बुद्धयेतानुभवेत्। भग० ४३२। बुध्येत-लोकाधिविशेषः। प्रज्ञा० ३३ लोकस्वरूपमशेषमवगच्छेत्। प्रज्ञा० ४००। बुध्येतबीयाहारा- बीजाहाराः निर०२५१ जानी-यात्। प्रज्ञा० ३९९। बुध्येत-अनुभवेत्, श्रद्दधीत। बीहणओ- भापयति-भयवन्तं करोतीति भापनकः। प्रश्न. स्था०४६। बुट्टोसि-छुटितः। निशी० ३४७ आ। बीहावणयं-भापनम्। ओघ. २०३। बुद्धंतो- बुध्नान्तः-अधोभागः। सूर्य० २८७। बीहावेति-भापयति। आव० १९१। बुद्ध-बुद्धाः-आचार्या। प्रज्ञा० २०| बुद्धः-अवगततत्तवः बीहियव्वं- भेतव्यम्। आव० १२२॥ गीतार्थः। दशवै० १९०| बुद्धः-अवगतवस्तुतत्त्वो गुरुः। बुदि- बुन्दिः -शरीरम्। उत्त० ६६८। बुदि-शरीरम्। तन्दु०। उत्त०५४। बुद्धःअवगततत्त्वः सर्वज्ञः। सूत्र०४०५। बुद्धःबुंदुच्छियं- बिन्दूद्धारः। मरण। अज्ञाननिद्राप्रसुप्ते जगत्यपरोपदेशेन जीवादिरूपं तत्त्वं बुइआरक- कपाटयोः पश्चाद्भागे यन्त्रम्। बृह. १६४ आ। बुद्धवानिति। बुद्धः-सर्वज्ञसर्वदर्शिस्वभावबोधरूपः। प्रज्ञा. बुइए- उक्तं-कथितम्। भग० १५५ उक्तः । भग. २४८। ११२ बुद्धः-कालत्रयवेदी। सूत्र० २४८। बुद्धः-अवगबुइय- उक्तम्। उत्त० ४४५। उक्तं-प्रतिपादितम्। सूत्र तत्त्वः। जीवा० २५६। आगामिचतुर्विंशतिकायां રાછરા. चतुर्विंशति-तमजिनस्य पूर्वभवनाम। सम० १५४| बुद्धःबुइयाइं- व्यक्तवाचोक्तानि स्वरूपतः। स्था० २९७) जीवादितत्त्व-ज्ञाता महावीरः। जीवादितत्त्वं बुद्धवान्। बुक्कसं भग० ९। बुद्धः-ज्ञानवान्। भग० १११। बुद्धाः-तत्त्वं मदगमाषादिनखिकानिष्पन्नमन्नमतिनिपीडितरसम्। ज्ञातवन्तः बुद्धवन्तः परमार्थमिति। स्था० ३३। उत्त० २९५। चिरन्तनधान्यौदन-पुरातनसक्तुपिण्डं, | बुद्धउत्त- बुद्धानां-आचार्यादीनां पुत्र इव पुत्रः बुद्धपुत्रः। बहु-दिवससम्भृतगोरसं गोधूममण्डकं च। आचा० ३१५) उत्त० ४६। बुद्धोक्तं-बुद्धःबुक्कह- भक्षयत। मरण। अवगततत्त्वैस्तीर्थकरादिभिरुक्तं-अभिहितम्। उत्त. बुक्कासकुलाणि- बाक्कशालियाः-तन्तुवायाः। आचा० ३२७ बुद्धउत्तेनियागट्ठी- बुद्धैः-अवगततत्त्वैरुक्तमभिहितं बुज्झंति- बुध्यन्ते घातिकर्मक्षयेण। उत्त० ५७२। निजकं ज्ञानादि, तदर्थयते-अभिलषतीत्येवंशीलः बुध्यन्ते-केवलिनो भवन्ति। आव०७६१| बुद्धोक्तनिज-कार्थी। उत्त० ४६। निरावणरत्वात्केवलावबो-धेन समस्तं वस्तुजातम् बुद्धजागरिय- बुद्धानां-व्यपोढाज्ञाननिद्राणां जागरिकाबुध्यन्ते। जीवा० ४८१ प्रबोधो बुद्धजागरिका। भग० ५५४। बुज्झइ- बुध्यते-अवगच्छति। प्रज्ञा० ६०६। बुध्यते- बुद्धबोधितः- साधुभेदविशेषः। भग० ४। अनुभवति। भग० २८९। बध्यते-सम्यक् श्रद्धत्ते इति बुद्धबोधिताः-आचार्यादिबोधिताः। स्था० ३४॥ बोधेः सम्यक्श्रद्धानपर्यायत्वात्। भग० २३९। रूयते। बुद्धबोहिय- बुद्धबोधितः-आचार्यबोधितः। नन्दी० १३२। आव०४२७। रूयते-निद्रां जहाति। उत्त. १३७ स एव | बुद्धबोहिय- बुद्धबोधितः- आचार्यस्तैर्बोधिताः सन्तो ये यदा समुत्पन्नकेवलज्ञानतया | सिद्धाः ते बुद्धबोधितसिद्धाः। नन्दी० १३१| ४६। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [24] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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