Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
[Type text]
९११
बाहुल- इन्द्रदत्तराज्ञो दासचेडः। उत्त० १४८१
बितिउग्गह-दवितीयप्रतिग्रहकः। ओघ. २१५ बाहुलेर- बाहुलेयः। आव० ८८
बितिज्ज- साहाय्यकः। आव०७१८१ नपरतं-उत्सन्नम्। आव० ५९०
बितिज्जिया-दवितीयिका। दशवै. ९७। बाह्यग- बाह्य-नगरबहिर्वर्तिप्रदेशं गच्छतीति
बितिसत्त-दवितीया सप्तरात्रिकी। आव०६४७९ बहिर्निष्क्रामन्तम्। उत्त०४८३।
बिदलकट्ठमओ-द्विदलकाष्ठमयः। आव० ७२७) बाह्यपरिधि- पर्यन्तचक्रवालम्। प्रश्न०६१।
बिदलियचटुलयछिन्न-द्विदलवत्तिर्यक्छिन्नः। आव. बिंट- वृन्तं-प्रसवबन्धनम्। प्रज्ञा० ३७|
६५१| बिंटबद्ध-वृन्तबन्ध-वृन्ताकप्रभृतिः। जीवा० १३६। बिन्दुः- पुलकः। सूर्य. ४। बिन्दवः-छटाः। जम्बू. २३६। बिंति- ब्रुवते-अवधारयन्ति। सूत्र० ११२
| बिन्दुसार- चतुर्दशं पूर्वनाम। स्था० १९६। आव०६९। बिंदुसार- चंदगुत्तस्स पुत्तो। बृह० ४७ अ। चंदगुत्तस्स | बिन्दुसारः-राजविशेषः। दशवै. ९१।
पत्तो। निशी. २४३॥ चन्द्रगुप्तस्य पुत्रः। बृह. १५४ अ। | बिन्दुसारपव्व- चतुर्दशं पूर्वम्। सम० २६। बिंब- बिम्ब-बिम्बीफलम्। प्रज्ञा. ९१। जीवा. १६३। बिम्बं- | बिन्नागयड-बेन्नाकतट-नगरविशेषः। उत्त. २१८। रूपम्। आव० ५२२। प्रतिमा। आव० ५२४१
बिब्बोअ-उच्छीर्षकं। गच्छा० हस्तपादकर्णनासाक्षिविवर्जितं बिम्बम्। निशी. ४५ । बिब्बोयण- उपधानकम्। सूर्य. २९३। जीवा. २३१। उपआ। बिम्ब-गर्भप्रतिबिम्ब, गर्भाकृतिरातवपरिणामः। धानम्। ज्ञाता० १५। उपधानकम्। राज० ९३। स्था० २८७ बिम्बः-चर्मकाष्ठादि। ओघ० २२३। बिम्बः- | बिभीतक-नोकर्मद्रव्यकषायास्तु बिभीतकादयः। आचा.
अत्याम्लम्। आव०४३७ बिंबफलं- गोल्हाफलम्। जीवा. २७२ प्रश्न. ८१। बिम्ब- बिभेल-सन्निवेषवेगशः। भग०५०११ फलं-पक्वगोल्हाफलम्। जम्बू० ११२
बिब्बोट्ठी-बिम्बोष्ठीबिंबभूय- बिम्बभूतः-जलचन्द्रवत्तदर्थशून्यं
पक्वगोल्हाभिधानफलविशेषाकारोष्ठी। कूटकार्षापणवद्वा लिङ्गमात्रधारी पुरुषाकृतिमात्रो वा। बिरालिय-कन्द एव स्थलजः। आचा० ३४८। सूत्र० २३५
बिल- विवरम्। भग० २३७। नन्दी. १५२। कूपः। जम्बू० बिहणिज्ज- बृहणीयं धातूपचारित्वात्। जम्बू. ११९ ४१। जीवा० १९७। खनिविशेषोत्पन्नं लवणम्। आचा० बिइज्जयं-द्वितीयम्। आव. २११, ३४९।
३४३। बिलानीव बिलानि स्वभावनिष्पन्ना जगत्यादिषु बिइज्जिय-दवितीयम्। आव. ३४९।
कूपिका। प्रज्ञा० ७२ बिलानिकूपाः। राज० ७८। बिलंबिइयकसाया- द्वितीयकषाया- अप्रत्याख्याननामधेयाः विवरम्। भग० २३७। कूपः। जम्बू०४१। रन्ध्रः। ज्ञाता० क्रोधादयः। आव०७७
१९९। बिइयदुय- द्वितीयद्वयं-हेतुस्तच्छुद्धिश्च। दशवै० ७६। | बिलकोलीकारग- बिलकोलीकारकः-परव्यामोहनाय बिखुरा- द्वौ द्वौ खुरौ प्रतिपदं येषां ते विखुराः- विस्वर-वचनवादी विस्वरवचनकारी वा। प्रश्न.४७ उष्ट्रादयः। प्रज्ञा० ४५
बिलधम्म- गृहस्थैः संवत्यैकत्र स्थानम्। बृह. १३६ आ। बिगुणं- द्विगुणं-द्विसंख्याङ्क बिगुणं-प्रधानं बिलपंतिआ- बिलपङ्क्तिः । अन्यो . १९५५ गुणरहितम्। जम्बू०९११
बिलपंतिया- बिलानीव बिलानि-स्वभावनिष्पन्ना बिचक्खु-देवो विचक्षुः चक्षुरिन्द्रियावधिभ्याम्। स्था०
जगत्यादिषु कूपिकास्तेषां पङ्क्तयो बिलपङ्क्तयः। १७१
प्रज्ञा० ७२ बिलप-क्तिका-धात्खनिपद्धतिः। प्रश्न. बिजडी- द्विजटी। जम्बू० ५३५
१६० बिडाल- मार्जारः। जम्बू० १२४१ उत्त०६३६। जीवा. २८२। बिलपंती-बिलपड़क्तिः -विवरश्रेणिः । भग. २३८५ बिण्णि-वौ। भग. १७९।
बिलवासिण- बिलवासिनः। निर०२५
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[22]
"आगम-सागर-कोषः" [४]

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 ... 246