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निकल पड़े, उसी का नाम सूत्र है । अथवा जिसकी सहायता से आठ कर्मों का मल बाहर किया जाय, उसका नाम सूत्र है । जैसे एक अन्धा व्यक्ति रज्जु या यष्टि की सहायता से घर के भीतर का सब कूड़ा-करकट बाहर फेंक देता है, इसी प्रकार सूत्र की सहायता से क्रियाकलाप द्वारा आत्मा का कर्म-रज दूर किया जाता है ।
सूत्रों के भेद सूत्रों के मुख्य भेद-संज्ञासूत्र, कारकसूत्र और प्रकरणसूत्र इस प्रकार से तीन होते हैं । पुनः उनके उत्सर्ग और अपवाद रूप दो भेद और होते हैं । संज्ञासूत्र उन्हें कहते हैं, जिनमें किसी भी अर्थ का सामान्यरूप से निर्देश होता है । जैसे
"जे छेए से सागारियं परियाहरे तहा सव्वामगंधपरिन्नाय निरामगंधो परिव्वए” अर्थात् जो छेक (निपुण) है वह मैथुन को छोड़ देता है, ज्ञान-परिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान-परिज्ञा से त्याग कर देता है और निर्दोष वृत्ति से निर्वाह करता हुआ विचरता है । यही संज्ञा सूत्र
____ कारकसूत्र उसको कहते हैं, जिसमें क्रियाकलाप का वर्णन किया होता है । जैसे-"अहाकम्मं भुंजमाणे समणे निग्गंथे कइ कम्म पगडीओ बंधइ ? गोयमा ! आउवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ० से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ” इत्यादि । प्रकरणसूत्र उसको कहते हैं जिसमें नमिप्रवज्या, गौतम केशीय इत्यादि अध्ययनों के नाम से उस प्रकरण का ज्ञान हो जाता है । इस प्रकार मुख्य सूत्रों के ये तीन भेद हो जाते हैं ।
इनमें से प्रत्येक के उत्सर्ग और अपवाद रूप से दो भेद होते हैं । उत्सर्ग सूत्र उनको कहते हैं, जिनमें किसी भी क्रिया का सामान्य रूप से विधान किया जाता है । जैसे
“नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे तालपलंबे अभिन्ने पडिग्गहित्तए” इसमें सामान्य रूप से तालवृक्ष के अभिन्न कच्चे फल का निषेध किया गया है | किन्तु अपवादसूत्र-जिसमें उत्सर्ग विधि का बाध होता है-में “कप्पइ निग्गंथाण निग्गंथीण वा पक्के तालपलंवे भिन्नेऽभिन्ने पडिग्गहित्तए“ उक्त विधि का बाध कर तालवृक्ष के पके तालवृक्ष के पके हुए भिन्न या अभिन्न फल का ग्रहण करना बताया गया है। सूत्रों का उत्सर्गापवाद रूप एक और भेद होता है । इसका तात्पर्य एक पदार्थ का निषेध होते हुए भी किसी विशेष कार्य के लिए उसका विधान कर देना है | जैसे प्रथम पौरुषी का
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