Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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इस प्रकार साधनाखण्ड में विविध प्रकार की जिज्ञासाएं हैं और सटीक समाधान भी हैं। अत्यधिक विस्तार न हो जाये इस दृष्टि से यहाँ संक्षेप में ही कुछ सूचन किया है। भगवती शतक २५, उद्देशक ४ में संक्षिप्त में द्वादशांगी का भी परिचय दिया है। उसका अधिक विस्तार समवायांग और नन्दीसूत्र में मिलता है।
भगवतीसूत्र में जहाँ साधना के सम्बन्ध में गम्भीर चिन्तन हुआ है, उसके विविध भेद-प्रभेद निरूपित हैं; वहाँ पर धर्मकथाओं का भी उपयोग हुआ है। विविध व्यक्तियों के पवित्र चरित्र की विभिन्न गाथाएँ उटंकित हैं। भगवान् महावीर के युग में श्रावस्ती नगरी के सन्निकट कृतंगला नामक एक नगर था, जिसे कयंगला भी कहा गया है। बौद्धसाहित्य के आधार से कितने ही विज्ञ संथाल जिले में अवस्थित कंकजोल को ही कतंगला (कयंगला) मानते हैं। मुनिश्री इन्द्रविजय जी का मन्तव्य है कि कयंगला मध्यदेश की पूर्वी सीमा पर थी जिसका उल्लेख रायपालचरित में हुआ है। यह स्थान राजमहल जिले में है। यह कयंगला श्रावस्ती की कयंगला से पृथक् है ।
भगवान् महावीर के युग में परिव्राजकों की संख्या विपुल मात्रा में थी। परिव्राजक ब्राह्मण धर्म के प्रतिष्ठित संन्यासी होते थे। विशिष्टसूत्र में वर्णन है कि परिव्राजक को अपना सिर मुण्डित रखना चाहिये। एक वस्त्र या चर्मखण्ड धारण करना चाहिये। गायों द्वारा उखाड़ी गई घास से अपने शरीर को आच्छादित करना चाहिये और . उन्हें जमीन पर ही सोना चाहिये। परिव्राजक आवसथ (अवसह) में रहते थे तथा दर्शनशास्त्र पर और वैदिक
आचारसंहिता पर शास्त्रार्थ करने हेतु भारत के विविध अञ्चलों में पहुँचते थे। निशीथचूर्णि में लिखा है• परिव्राजक लोग गेरुआ वस्त्र धारण करते थे, इसीलिए वे गेरु और गैरिक भी कहलाते थे। परिव्राजक भिक्षा से
आजीविका करते थे। औपपातिक सूत्र, सूत्रकृतांगनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, बृहत्कल्पभाष्य, निशीथसूत्र सभाष्य, आवश्यकचूर्णि, धम्मपदअट्ठकथा,१ दीघनिकाय अट्ठकथा,२ ललितविस्तर आदि में परिव्राजक, तापस, संन्यासी आदि अनेक प्रकार के साधकों का विस्तृत वर्णन है। आर्य स्कन्दक का वर्णन भगवती के शतक २
१. तीर्थंकर महावीर, भाग, पृ. १९८ २. (क) डिक्शनरी ऑव पाली प्रोपर नेम्स, मलालसेकर, II पृ. १५९
। (ख) महाभारत १२०१९०६३ ३. निशीथचूर्णि १३, ४४२० ४. निरुक्त १२१४ वैदिककोष ५. औपपातिकसूत्र, ३८, पृ. १७२ से १७६ ६. सूत्रकृतांगनियुक्ति ३, ४, २, ३, ४ पृ. ९४ से ९५ ७. पिण्डनियुक्ति गाथा ३१४ ८. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, पृ. ११७० ९. निशीथसूत्र सभाष्य चूर्णि, भाग २ १०. आवश्यकचूर्णि पृ. २७८ ११. धम्मपदअट्ठकथा २, पृ. २०९ १२. दीघनिकायअट्ठकथा १, पृ. २७० १३. ललितविस्तर, पृ. २४८
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