Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ENARSTIVARTA ABYEANIA SARAS 4. . ॥श्रीजिनाय नमः॥ // श्रीधम्मिलचरित्रं लाषांतरोपेतं .......... (तृतीयो नागः) उपावी प्रसिह करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाल) वीरसंवत्-२४४०. विक्रमसंवत–१ए७१. सने-१९१४. किं. रु.-३-७-० ___ श्रीजैननास्करोदय प्रेस. जामनगर.. INN सोया anaa के बाण माविमान मंदिर की बहाचार अन आरावना Serving Jin Shasan 049535 avanmandin@kobatirth.org P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म 34 // श्रीजिनाय नमः // // अथ श्रीधम्मिलचरितं नाषांतरोपेतं प्रारभ्यते // . (तृतीयो नागः). ........ ( मूलकर्ता–श्रीजयशेखरसूरिः) नाषांतरकती- श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाळा ) - ततस्ता ददिरे तस्या / विषं विषयगृह्णवः // श्राचरंति न किं पापं / विषयाा हि योषितः // // 7 // अथासमाप्तनोगेग / रौद्रध्यानवशंवदा // मृत्वा सा नरकं तु] / पाप पापत्नरेरिता // 7 // ततोऽप्युधृत्य संसार-मनंतं सा ब्रमिष्यति // सहिष्यते च दुःखानि / दुःसहानि पदे पदे // 5 // पजी तेनए विषयमा लालचु बनीने ते कनकवतीने फेर पाप्यु, केमके विषयांध स्त्रीने शं पाप थाचरती नथी? // 7 // हवे जोगोनी श्वा समाप्त नहि थवाथी रौऽध्यानमां पडेली तेक नकवती पापोना समुहथी प्रेराश्यकी मरीने चोथी नरके गइ. // 7 // त्यांची पंण निकलीने ते Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि जगवान गुणवर्मापि / गुरोरागमितागमः // विजदार महीपीठे / निःसंगो वायुवच्चिरं // 10 // स / उस्तपतपःकर्म-दालिताखिलकटमषः // मखजुग्जवनं जे / कृतकालः समाधिना // 11 // तत च्युतः सुतत्वेना-वतीर्य विमले कुले // स प्राप्तचरणप्रौढि-गता लोकोत्तरं पदं // 15 // इति नि३५० शम्य कथां गुणवर्मणः / सुरसरिकालनिर्मलकर्मणः // विषयविप्लव विव्रमनंजनाद् / भवत सौख्य| जुवः सततं जनाः // 13 // इति श्रीगुणवर्मकथा // अनंतो संसार नमशे, अने पगले पगले विकट दुःखो सहन करशे. // 5 // हवे ते जगवान गु. पवर्मा मुनि पण गुरुपासे यागमोना जाणकार थश्ने वायुनीपेठे संगरहित घणा काळसुधि पृ. थ्वीपर विहार करवा लाग्या. // 10 // श्राकरा तपथी सर्व कर्मोरूपी पाप धोने समाधिपूर्वक काळ करीने ते देवलोकमां गया. // 11 // पनी त्यांची चवीने निर्मल कुलमा अवतरीने चारित्रनी पौ. थता मेलवीने ते मोक्षे जशे. // 12 // एवी रीते देवगंगासरखा निर्मल पाचरणवाला गुणवर्मा नी कथा सांनळीने हे लोको ! तमो विषयोनी खराबीनो नंग जांगीने हमेशां सुखोना स्थानरूप था ? // 13 / / एवी रीते श्रीगुणवर्मा कुमारनी कथा संपूर्ण थ.॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि... श्रुत्वेति धम्मिलः स्माद / साधो साधु वदन्नसि // मयापि सेहिरे क्वेश-राशयो विषयाशया // 14 // वद त्वया कथं दुःखं / सोढं प्रौढपराक्रम // मुनिपृष्टेनेति पृष्टे / सहासं धम्मिलोऽभ्यधा त् // 15 // श्ह दुःख न यः प्राप्तो / दुःख हर्तुं न यः दमः / / दुःखे श्रुते न यो दुःखी / दुःख 351 किं तस्य कथ्यते // 16 // वत्स दुःखमहं प्राप्तो / दुःखं हर्तुमहं दमः // दुःखे श्रुते सदुःखोऽस्मि / / तदुःखं मे निवेदय // 15 // श्य्युक्ते मुनिनाथेन / करुणाकरचेतसा // स स्वं विश्वं जगौ वृ ते सांगलीने धम्मिल बोब्यो के हे मुनिराज! थापे बरोबर कह्यु , में पण विषयोनी था. शाथी जथ्थाबंध सुःखो सहन कर्या . // 14 // हे महापराक्रमी ! तें केवी रीते दुःख सहन कर्य ने? एम ते मुनिए पूज्वाथी धम्मिल हास्यसहित बोल्यो के, // 15 // जे या जगतमां दुःख पा. म्यो नथी, तेमज जे दुःख हरखाने समर्थ नथी, तथा ( परंतुं.) फुःख सांजलवाथी जे दुःखी थ. तो नथी, तेनी आगळ दुःख शुं कहेवू ? // 16 // (त्यारे मुनिए कडं के ) हे वस! में दःख वेठ्यु , तेम दुःख हखाने पण हुं समर्थ , वळी ( परनुं ) सुःख सांजळीने हुं दुःखी थनं. माटे ते ( तारुं) दुःख मने निवेदन कर? // 17 // दयालु मनवाळा मुनिराजे एम कहेवाथी / PP.AC-Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 355 धम्मि- / वेश्यापरिचवावधि // 17 // अथ दंतांशुनिसतां / मुनिर्वाचमुपाददे // सेहे कष्टं मयाऽनिष्टं। यत्तदुत्तम संशृणु // 17 // यस्यपामिव पायोधि-स्त्विषामिव दिनाधिपः // श्रवती नाम निःशे. प-श्रियां जनपदः पदं // 1 // पुरी तत्रास्युऊयिनी / जयिनी मरुतां पुरः // त्रिवर्गसाधनफला। पुष्णंती शर्मकेवलं / / 15 / / मंत्रपूर्व प्रतापानौ / हुत्वा माषानिव द्विषः // कृतेतिशांतिकस्त त्र। जितशत्रुरसन्नृपः / / 20 // करे करं प्रयतो / यस्य पौरुषधारिणः // पुरंध्रय वाजवन् / पा. मिले वेश्याएं परानव कर्यो त्यांसुधी पोतानुं समस्त वृत्तांत कही संगलायु. // 17 // हवे ते मु. निराज पोताना दांतोना किरणोथी धोएली वाणी बोल्या के, हे उत्तम ! में जे विकट कष्ट सहन क्यु ने ते तुं सांगळ ? // 17 // जलनो जेम महासागर तथा तेजनो जेम सूर्य तेम सर्व लक्ष्मीना स्थानसरखो अबंती नामे देश जे. // 17 // त्यां देवनगरीने जीतनारी त्रणे वर्गो साधवाना फलवाळी अने केवळ सुखनेज पोषनारी नायिनी नामे नगरी जे. // 15 / / मंत्रपूर्वक ( विचारपूर्वक ) श्रमदनीपेठे शनने प्रतापरूपी अमिमां होमीने नपऽवनी शांति करनारो त्यां जित शत्रु नामे सजा हतो. // 20 // ते बळवान राजाना हाथमा कर आपता एवा अन्य राजानने PP.AC.Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust... Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिलनीयाः परे नृपाः // 21 // तस्यामोघरयः दात्र-सारः सारथ्यमाप्तवान् // हरिणेवार्जुनो येन / / ही सांयुगीनो नृपोऽजनि // 12 // वधूर्विधूतदोषा नृत् / तस्य नाम्ना यशोमती // सा गृहालंकृतिस्त स्याः / पुनः शीलमलंकृतिः / / 23 // तयोरगलदत्ताख्यः / समये तनयोऽजनि // पिता तस्मिन् 353 शिशावेव / जगाम यमसद्मनि // 24 // शोकेन हृदसंमाता / मातास्य व्यलपत्तरां // किमेतद् इ. | ढघातित्वं / हा धातः कातरे जने // 25 // स्वयं संयोज्य मिथुनं / स्वयमेव विभिंदतः // पुराण| अंतःपुरनी स्त्रीजनीपेठे तेने पाळवा पडता हता. // 21 / / ते राजानो अमोघरय नामे एक न. | त्तम दात्री सारथी हतो, के जे सारथीवडे विषाणुवडे जेम अर्जुन तेम राजा रणसंग्राममां जय पा. मतो हतो. // 25 // ते सारथिने दोषरहित यशोमती नामे स्त्री हती. ते स्त्री घरने शोजावनारी हती, अने तेणीने शील शोनावतुं हतुं. // 23 // तेनने योग्य समये अगलदत्त नामे पुत्र थयो, परंतु ढजु तो ते बालक हतो तेवामांज तेनो पिता मृत्यु पाम्यो. // 24 // त्यारे हृदयमां न. हि समाता शोकवडे तेनी माता विलाप करवा लागी के हे विधाता! या कायर मनुष्यपर तें श्रावो कारी घा केम कर्यो ? // 25 // वळी हे विधाता! थाप पुराणपुरुष जतां पण पोतेज जो Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्यापि ते धातः / किमेतद्धालचापलं // 26 // अंगना रंगनाशय / प्रायेण पथिकेष्विति // कि. | मायतपथारूढ / न मां नाथ सहाग्रहीः // 7 // प्राणेऽन्योऽपि प्रियासीति / मिथ्या मामवदस्तदा | // प्राणानादाय मुक्त्वा मां / गतोऽसि कथमन्यया // 20 // जननी वीदय दुःखार्ता-मपि बाल| श्विखेल सः // परहर्षविषादेशु / बालका हि बहिर्मुखाः // 20 // मुंचन्नगलदत्तोथ / बाल्यं व्यक्तमना मनाक् // निपत्य पादयोर्मातुः / क्रंदत्या श्युवाच सः // 30 // तव वर्षासरःप्राये / नि. मेलवीने पोतेज तेने जे नांगी नाखो नो, एवी बालकजेवी चेष्टा शुं आपने योग्य ? // 26 // वळी हे नाथ! प्रायें करीने पंयीनने ( साथे रहेली ) स्त्रीनं तेनंना रंगने नाश करनारी कहे. वाय , परंतु आप तो ज्यारे लांबी मुसाफरीये चाव्या तो पनी मने साथे शामाटे न ले गया? // 27 // तुं मने प्राणोथी पण प्रिय गे एम मने ते वखते फोकटज आप कहेता हता, जो एम न होत तो मने छोमीने वथा प्राणो लेख्ने श्राप शामाटे चाल्या गया ? // 2 // एवी रीते पो. तानी माताने दुःखी जोश्ने पण ते बाळक तो गम्मत करवा लाग्यो, केमके परना ढर्ष अथवा शोकमाटे बालको बेदरकार रहे . // 20 // पनी ते अगलदत्त बाव्यपणुं वीत्याबाद जरा समज .PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 355 धम्मि त्यमंब किमंबके // किं च ते गैरिकग्रस्त–गोधूमान्न तनुस्तनुः // 31 // जगौ यशोमती वस्त्रां चलेनोन्मृष्टलोचना // यस्तोकशोकसंकीर्ण-गलप्रस्खलददारं / / 32 // वत्स नृणां स्फुटेदुःखपूर्ण हृदयपटवलं / यदि तन्निर्गमोपायो / न स्यादश्रुबलाद् दृशोः // 33 // प्रौढेऽप्यश्रुपयःपूरे / | दीप्यमानेव मे तनुः // दग्धा गर्तृवियोगोर्वा–मिना पुष्टिं दधाति किं // 34 // देहबाया विभूषा | णो थवाथी रडती माताने पगे पडो बोल्यो के, // 30 // हे माता! तमारी बन्ने अांखो हमेशां व. | ांकाळना तळावजेवी केम ? तेमज तारुं शरीर पण गेरु लागेला घनं सरखं केम उर्बल ? | // 31 // त्यारे यशोमती वस्त्रना बेमायी अांखो बुझ्ने अत्यंत शोकथी जला गयेल गळांमांयी लथडता अदरोथी बोली के, // 32 // हे वत्स! जो अखिोना अश्रुना मिषथी दुःखने निकळवा | नो जपाय न होय तो दुःखोथी जरेतूं माणसोनुं हृदयरूपी खाबोचीलं फुटी जाय. // 33 // जो के बांसुर्नरूपी जलनो समुह घणो , तो पण मारुं बळतुं शरीर जाणे स्वामिना वियोगरूपी व. डवानलथी दग्ध युं होय नहि तेम शीरीते पुष्ट शश् शके ? // 34 // वळी स्वामिना मृत्यवाद / शरीरनी शोभा, भाषण, (घरनी ) मालीकी, अजिमानपणुं तथा सुख ए पांच वस्तुन होती। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- च / स्वामित्वमभिमानिता // सुखं च पंच नारीणां / न संत्यसति वल्लन्ने // 35 // तत्रापि क्स .मा बालोऽसि / विधेत्ति त्वत्पितुः पदं // चलप्रेमा ददौ नृमा-निहाभ्येत्य प्रहारिणे // 36 // दधाति सोऽधुना बाढं / नवं प्राप्य पदं मदं // विनवस्य ज्वरस्येव / प्रथमोष्मा मि दुस्सहः // 35 // यदा 356 -दव श्वाग्रेऽसा-वेति हेत्तीः प्रपंचयन // तदा मे गलतो नेत्रे / धीर घूमांधिते व // 30 // अ. स्फुटिष्यन्महाजात / कलिका कापि चेत्तव // न संपजमरीयं त-दत्रास्थास्यत्करीरके // 35 // यो. नथी. // 35 // तेमां पण हे वत्स ! तुं उमर अने बुद्धि बन्नेथी बालक नगे, अने तेथी प्रेम न तरी जवाथी तारा पितानी पदवी राजाए ठाही याधीने प्रतिहारने यापी . / / 36 // याज काल ते प्रतिहार नवीन पदवी पाम ने अत्यंत मद धारण करे , केमके ज्वरनी पेठे वैजवनी शिरुया. तनी नष्णता पुःखे सहन थर शके तेवी होय . / / 37 // वळी दावानलनीपेठे रोफ देखाड तो (ज्वाला विस्तारतो) ते ज्यारे नजीक थावे त्यारे हे धीर! मारी अांखो जाणे धूमांधित थ होय नहि तेम गल्या करे . // 30 // वळी हे पुत्र! जो तारी कळी करंक पण खाली हो. त तो था संपदारूपी जमरी कंथेरसरखा ते प्रतिहारप्रते विश्राम करत नहि. // 37 / / स्त्रीजन्ममा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- पिङान्मनि सुप्रापं / न वैधव्यं दुनोति मां / उनोति यत्पदं चतु-रन्यत्र त्वयि स यपि।। 4 / / ही दमा यतित्वे शृंगारो-गारिणां त्व.िमानिता // प्रष्टि/जे हिमो मावे / निदावेऽरिष्टकृत्पुनः / / // 1 // वीदय वह्नेः पितुस्तेजो / परावृतं दिवाकृता // धूमेनापि धनी व्या-बायते तस्य मंडलं 357 // 4 // प्रारंने गर्भगंडोला / बाल्ये विगत॑शूकराः // तारुण्ये च मदाबौंडाः / प्रायः पुत्राः सह स्रशः // 43 // मातृकुदिदरीसिंहा / बाल्ये बंधुदृशां सुधा / / यौवने कुलधौरेया। वित्रा एव सु. सुलग एवा विधवापणामाटे मने दुःख यतुं नथी, परंतु तुं नां मारा खामिनी पदवी जे बीजाने हाथ गश्बे तेथी मने घणुं दुःख थाय जे. // 40 // दमा मुनिपणाने शोनावनारी जे. गृहस्थो. ने अजिमान शोजावनाएं बे, बीजने वृष्टि शोजावनारी , तथा माघमासने हिम शोजावना, परंतु ननाळामां पडेबु हिम नुकशानकारक बे. // 41 // पोताना पिता अमिनुं तेज सूर्ये लोपेबु जोश्ने शुं धूमाडो एकठो थश्ने सूर्यना ममलने याबादित करतो नथी? // 42 // प्रारतमा गर्जना कीडासरखा, बाव्यपणामां विष्टामूत्रमा खरमाता मुक्करसरखा तथा यौवनवयमा मदोन्मत्त थ. | येला एवा प्रायें करीने हजारो पुत्रो होय . // 3 // परंतु माताना दररूपी गुफामां सिंहसर | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ताः पुनः // 4 // परापत्पृलकाः प्रायः / पृथ्व्यां संति परःशताः // विरता एव दृश्यते / परापनः / जना जनाः // 45 // शोकांधकारितं सद्यो / विद्योतयिषसे यदि / कुलदीप मुखं मातु-स्तदाक: एर्णय तत्परः // 46 // 350 ह ते सहते नव्या-धिकारी न कलाग्रहं // संहते हंत दीपस्य / प्रगां किं शलनाः क. चित् // 4 // कोशांब्यामस्ति वस्तुस्ते / सतीर्थ्यो रसिकः सखा // नाम्ना दृढपहारीति / रीतिका खा, बाव्यपणामां स्वजनोनी दृष्टिमां अमृतसरखा, तथा यौवनवयमां कुटुंबनो नार नपामनारा तो कोश् वीरला बे त्रज पुत्रो नीवडे . / / 44 // वळी प्रायें परनु दुःख पूजनारा तो सेंकमोगमे. माणसो था दुनियामां ने, परंतु परतुं दुःख नाश करनारा तो वीरलाज देखाय . // 45 // व ळी हे कुलदीपक पुत्र! शोकरूपी अंधकारथी ऊंखवाएं थयेडं था तारी मातार्नु मुख जोतं तेज स्वी करवाने श्वनो हो तो तुं सावधान थश्ने सांजळ ? // 46 // . यहीं नवो अधिकारी तारा कलाभ्यासने सहन करशे नहि, केमके पतंगीयां शं क्यांय दी. - | पकनी कांति सहन करी शके ? // 4 // हवे कोशांबी नगरीमां शास्त्र अने शस्त्रोनी कलमां | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- शास्त्रशस्त्रयोः // 4 // तमुपेत्य कला त्यासं / कुरु वत्स गुणाकर // पालयस्व पदं चंछ / व मा. | सकलः पुनः // 45 // मातुः शिदामिमां मूर्ध्नि / नीत्वा रत्नवतंसतां / / तद्दत्तशंबलालंधी / कौशां बीमाप स क्रमात // 20 // पितृमित्राय तत्राय-मुत्सुकः समगबन // तेनापि पृचता शुदि / सो 350 लियत कथंचन // 51 // ततः स्वांके निवेश्यैन-माश्विस्य च जगाद सः // वत्स महाकुलस्या पि / किं दशेयम वृत्तव / / 52 // पितृशोकानवी वृतात् / किरन्नश्रूण्यसावपि // पितुर्म युमुदित्वोचे प्रवीण तारा पितानो सहाध्यायी तथा हुशियार दृढपहारी नामे मित्र वसे . // 4 // माटे हे गुणवान पुत्र! तेनी पासे जश्ने तुं कलान्यास कर? अने पजी चंनोपेठे कलावान थश्ने ता. री पदवीनुं पालन कर ? // 4 // एवी रीतनी मातानी शिखामणने रत्नना मुकुटनीपेठे मस्तके चडावीने तेणीए थापेखु भातुं लेश्ने ते अनुक्रमे कोशांबी नगरीमा गयो, // 20 // तया नत्सु. क बनेलो एवो ते अगलदत्त त्यां पोताना पिताना मित्रने मख्यो, त्यारे तेणे पण खवरयंतर प. बतां केटलीक मुश्केलीए तेने नळ्खी कहाड्यो. // 51 // पजी तेणे तेने पोताना खोलामां. | सामीने तथा नेटीने कमु के हे वत्स ! तारी कुलीननी पण आवी दशा केम थ? // 5 // . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- / स्वस्यागमनकारणं // 53 // रुदन्नुदश्रुःखेन / गदोक्तिर्जगाद सः // दृक्सुधासत्र हा मित्र मा / क मया दृदयसे पुनः // 14 // अकस्मादश्मवृष्ट्येव / तवाऽकल्याणवार्तया // श्रवणाचाया स | द्यो / हृदयं स्फुटतीव मे // 55 // वत्स त्वमपि विवाय-वदनो मारुदः सदा // श्रदीणशक्तिदे. 360 | वेंडे-ष्वपि दैवं विचिंतय // 56 // कलाकुलीनतारूप-विद्यावीर्यादयो गुणाः // देवदावानलस्या ग्रे। यांति जीर्णतृणोपमां / / 57 // निरस्य शोकमभ्यस्य / कला श्ह कुलोदह // त्वमेव नवतां सारे ताजा थयेला पिताना शोकथी तेणे पण आंसु खेखतांथकां पोताना पितानुं मरण कहीने पोताना याववानं कारण कहां. // 23 // त्यारे ते दृढप्रहारी पण सुःखयी रमतोथको अांखोमां यांसु लावीने गाद कंटे बोल्यो के अांखोमां अमृतन) नहेरसरखा हे मित्र ! हवे फरीने तं मने क्यां देखाश? // 54 // अचानक पचरना वरसादनीपेते तारां मृत्युनी बात कर्णगोचर थवाथी मारु तो जाणे हृदय फाटी जाय . // 55 // हवे हे वत्स! तुं पण हमेशां निरानंद मुखवाळो थश्ने म नहि, महाशक्तिवाळा देवेंडोनां देवनो पण तुं विचार कर ? // 16 // कला, कुलीनपणु, रूप, विद्या तथा वीर्य आदिक गुणो पण कर्मरूपी दावानलपासे जीर्ण घाससरखी दशा पा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 361 धम्मि प्राप्त / श्वामोघरथो भव // 27 // एवं तदाक्यपीयूष-पानधत्ताध्वजश्रमः // सततं स ततोऽध्ये | तुं / प्रावर्तत शुनेऽहनि / / 27 // अस्मै सुतधिया सोऽपि / कलातत्वमुपादिशत् // योग्यशिष्येषु | गोपायन् / नाम्नायं पापनाग्गुरुः // 60 // सकुंतलाजा सद्धाण-स्फुरदतविग्रहा // अस्य यूनो धनुर्वेद-विद्या बाढं प्रियानवत् // 61 // नवोपात्तकलान्यास-कौतुकी स सदा ययौ // प्रातः प्रातरनाबाधः / स्वगुरोहनिष्कुटं // 62 / / नालस्य धाम्नि सद्वृते / सूर्यालोकादिकखरे // शुचिपदामे. // 17 // हवे हे कुलीन! शोक जोडीने तथा अहीं कलानो अभ्यास करीने तुं पोतेज नवा अमोघरथसरखो था? // 57 / / एवी रीतना तेना वचनरूपी अमृतपानथी मार्गनो थाक दर थवाथी तेणे शुभ दिवसे निरंतर कलान्यासनो प्रारंन कर्यो. // 27 // ते दृढपहारीए पण तेने पुत्रमाफक लेखीने कलान्यास कराव्यो, केमके योग्य शिष्योपते पण कला बुपावनारो गुरु महा. पापी कहेवाय . // 60 // नालांनी कलाना लाजवाळी ( चोटलानी शोगावाळी ) उत्तम बाण थी स्फुरायमान थता अद्भुत संग्रामवाळी ( शरीरवाळी) एवी धनुर्वेदन विद्या ते युवानने सी. | सरखी प्रिय थ पडी. // 61 // नवो कलान्यास करवामां उत्सुक बनेलो ते अगलदत्त हमेशा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- श्रिते तिष्ट-त्यब्जे श्रीः पुंसि भारती // 63 // अथान्यदा तदासन-वेश्मवातायनस्थिता // तम. भ्यासपरं काचि-न्मदिरादी निरैदत // 64 // सोऽन्यासवशतो बाह्यं / वेध्यं विध्यन्नवंध्यधीः // विव्याध वस्तुतो वीर-श्चलं सूदमं च तन्मनः // 65 // परिझापयितुं स्वं सा / पुष्पवृष्टिमिवामरी // 361 | फलोत्पलादिनिक्षेपं / तस्योपरि विनिर्ममे // 66 // सोऽपि तां सुनगां पश्य-ननुरागं दधौ हृदि कई पण बाधाविना प्रजाते उठीने पोताना गुरुने घेर जतो. // 6 // उद्योगना स्थानरूप (ना. लना स्थानरूप) नत्तम आचरणवाळा (गोळाकार ) गुरुने जोश्यानंदित थनारा (सर्यने जो विकस्वर थनारा) तथा पवित्र पदावाळा (पांदडीवाळा) कमळसरखा पुरुषमां लक्ष्मी भने स रस्वती रहे . // 3 // हवे एक वखते तेनी नजीकना घरना जरुखामां बेठेली कोश्क युवतीए अभ्यासमां तत्पर एवा ते अगलदत्तने जोयो. // 64 // ते महाबुध्विान अगलदत्त श्रन्यासने लीधे बाह्य लक्ष्यने तो विंधतो हतो, परंतु ते सुभटे मुख्यत्वे तो तेणीनुं चंचल अने सूक्ष्म मन वीधी नाल्यु. // 65 // हवे ते युवती पोतानो अभिप्राय जणाववामाटे देवी जेम पुष्पवृष्टिने ते. | म तेनातरफ फल कमल थादिक फेंकवा लागी. // 66 // त्यारे ते अगलदत्त पण ते मनोहर P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // न पुनः प्रकटीचक्रे / गुरुशंका गरीयसी / / 67 // एवं चाचिंतयनारी-विलासवशां नरं // वि. द्या सापल्यजीतेव / सेवते न कदाचन // 60 // अहो धैर्य पुरंध्रीणां / यदझाततले जने // प्र. सा कामति पदं दातुं / तरण्य व वारिधौ // 6 // // चेतस्तरौ गुरुपदप्रणयांबुसिक्ते / विद्याफलान्यवि. 363 कलानि कथं प्रयते // सोऽयं सलीलललनाकलनातिगोक्ति-वात्याविवर्तविवशः परिधूयसे चे. | त // 70 // तस्थौ तमोमयी यत्र / कामिनी दर्शयामिनी // हृदि दीणा क्षणात्तत्र / कला युक्तं क| स्त्रीने जोश्ने हृदयमां अनुराग धरवा लाग्यो, परंतु तेणे ते प्रकट कर्यो नहि, केमके गुरुनो डर जबरो होय . // 67 // वळी ते एम विचारवा लाग्यो के स्त्रीना विलासने वश थयेला पुरुषने विद्या सपत्नीपणाथी मरती होय नहि तेम कदापि पण तेने सेवती नयी. // 6 // अहो! स्त्री. न केवं धैर्य ! के जेन समुद्रमा जेम होडीन तेम अजाण्या पुरुषमां पण पोतानो पगपेसारो करी दे , // 67 // जो विलासी स्त्रीननां न कळी शकाय एवां वचनरूपी वायुना वंटोळीयाना | जपाटाथी मनरूपी वृद अति कंपायमान थाय तो गुरुना चरणनी कृपारूपी जलयी सींचाया पण ते वृत विद्यारूपी मनोहर फलोने शीरीते विस्तारी शके ? / / 70 // जेना हृदयमां अमावा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- लावतः // 11 // इत्युपेदयैव तां तस्य / प्रातः श्रमविधायिनः // याविरासीधृदिन्यासी-कृतना म वा कदापि सा // 72 // रक्ताशोकतरोः शाखां / समालंब्य पुरः स्थितां / / वद कासि किमेतासि / त्वं तन्वीति स तां जगौं // 73 // अवदातोदयदंत-द्युतिदमस्य दंगतः // वरख दिपंतीव / 365 स्नेहयोग्यं जगाद सा // 14 // प्रहमेतद्गृहाध्यदा-यददत्तस्य नंदिनी // नामतः श्यामदत्तेति / त्वामपश्यं गादगा // 35 // त्वां बाणवर्षिणं वोदय / स्पर्डिष्णुरिख मन्मयः // मंयरांगी स्ववाणा स्थानी रात्रिसरखी अंधकारमय स्त्री रहेली ने त्यां कलावाननी ( चंदनी) कला जे दाणवारमानष्ट थाय ने ते युक्तज . // 1 // एम विचारी तेणीनी नपेदा करीने अभ्यास करता एवा ते अ. गलदत्तनी पासे एक दिवस प्रन्नातमा हृदयमां प्रेम धरनारी ते युवती प्रगट थर. // 7 // लाल अशोकवृदनी माळी पकमीने सामे उनेली ते स्त्रीने अगलदत्ते कहीं के हे तन्वि! तं कोण ? तथा केम प्रावी ? // 13 // दांतोनी प्रकट थती श्वेत कांतिनी हारना मिषयी जाणे तेने वरमाळा पहेरावती होय नहि तेम ते स्नेहाळ वचन बोली के, // 14 // हुँ या घरना मालीक य. ददत्तनी श्यामदत्ता नामनी पुत्री डं, तथा फरुखामां बेशीने में तने जोयो बे. // 55 // बाणो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि नां / मंक्षु लदीचकार मां // 16 // तत्प्रहाराकुलाऽनन्य-शरणा त्वां प्रपेदुषी // तद्दोष्मन्नवलां मा क्रोडी-कृत्य मां रद मारतः / / 99 // इत्युक्त्वागलदत्तस्य / पादयोर्निपपात सा // कथंचन समु. बाप्य / तेनेति प्रत्यबोध्यत // 7 // सुधावेणिसदृग्वाणि / यदनाणि त्वया मम // प्रबलप्रेमपा थोधेः / स वीचीनिचयः खलु // 7 // ध्यानाडूपातिगात्सुनु / निवृति योगिनो विदुः // यहं तां तव रूपस्थ-ध्यानादेवाप्नुवं ध्रुवं // 70 // परं गैरेयगौरांगि / स्थातुर्गुरुकुले मम // न हि नामां. ने फेंकता एवा तने जोइने जाणे स्पर्धावाने थयो होय नहि तेम कामदेव मने कंपित शरीरवाळीने पोताना बाणोथी मारवा लाग्यो . // 76 // तेना प्रहारोथी व्याकुल थयेली तथा नि राधार एवी हुं तारे शरणे यावेली , माटे हे वीर! मने अबलाने थालिंगन देश्ने कामदेव थी मारुं रक्षण कर ? / / 7 / / एम कहीने ते अगलदत्तने पगे पडी, त्यारे ते पण केटोक प्र. यासे तेणीने उगडीने प्रतिबोधवा लाग्यो के, // |हे अमृतनी नहेरसरखी वाणीवाळी ! जे मने कह्यं ते खरेखर अत्यंत प्रीतिरूपी समुन्ना मोजांना समुहसर जे. // // वलीले | सुन ! योगीन रूपातीत ध्यानथी निवृत्ति कहे , हुं तो तारां रूपस्थ ध्यानयीज खरेखर ते निवः। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि: गनासंग-रंगः संगतिमंगति // 71 // वीरपुत्रोऽपि वीरोऽपि / बिनम्येष मुरोः पुरः // गुरुक्षेत्रं / मा | गतः सूरो-ऽप्युदास्तेऽखिलकर्मसु // 7 // हसित्वा स्माह सा स्वामिन् / कामित्वं तव कीदृशं // | यः स्त्रीजिः प्रार्थितो धत्ते / गुर्वादिभ्यो नयं हृदि / / 73 // जे तब्पं गुरोरेव / शशी किं न क. 366 | वारसी // व्यमृशन्न तु निःशंकः / कलंकमपि जाविनं // 4 // सोऽप्यूचे सत्यमेवैतत् / त्वरां मा. | स्म कृथाः पुनः // सहादास्येऽरविंदास्ये / त्वामवंती व्रजन्नदं / / 75 // एकचितां कथंचित्तां / प्रत्या| त्ति पाम्यो बु. // 70 // परंतु हे गौरांगि! हुं ज्यांसुधी अहीं गुरुकुलमा रह्यो ढुं त्यांसुधी स्त्रीना संगनो रंग मारेमाटे योग्य गणाय नहि. / / 71 // हुँ सुचटनो पुत्र अने सुगट वं. छतां पण गु रुथी डरुं बु. केमके गुरुना क्षेत्रमा गयेलो सूर्य पण. सर्व कार्योमां नदामीन थाय ने. // // सारे ते हसीने बोली के हे स्वामी! त्यारे तमाळं कामीपणुं ते केवु ? के जे स्त्रीए प्रार्थना कर्या बतां हृदयमां गुरुवादिकनो घय धारण करे . // 73 / / कलाना रसिक चं पण शं गुरुनीज शय्या नयी नोगवी? अने तेम करवामां तेणे निःशंक थश्ने थनारा कलंकनो पण विचार क. - | यो नथी. // // त्यारे अगलदत्ते पण कहां के हे कमलमुखी! ए वात सत्यज ने, परंतु तुं न PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- य्य शपथैरसौ // तत्सौंदर्योदधौ मीन-मनाः स्वस्थानमीयिवाद / / 76 // तानुकीर्णामिव स्यूता | -मिव लीनामिवान्वहं // वहन् हृदि व्यलंघिष्ट / कतिचिहासरानयं // 7 // धाम विद्यामयं वि. प्र-दुधृत्तमिव वर्मणः // अन्यदा सुगुरोः पादौ / प्रणम्येति व्यजिझपत // 7 // अनुमन्यस्व | मां राज्ञः / पुरः स्फारयितुं कलां / / कला अगुप्तरूपा हि / रूपाजीवा श्व श्रिये // 7 // अनु. तावळ कर नहि, ज्यारे हं नायिनी जश्श त्यारे तने साथे लेतो जश्श. // 5 // एवी रीते एक मनवाळी एवी तेणीने सोगनपूर्वक केलेक प्रयासे प्रतीति करावीने तेणीना सौंदर्यरूपी स. मुडमां मत्स्यसरखां मनवाळो ते अगलदत्त पोताने स्थानके गयो. // 6 // जाणे कोतरेली, सी. वेली अथवा लीन थयेली होय नहि एम हमेशां तेणीने हृदयमा धारण करता एवा ते अगलदत्ते केटलाक दिवसो व्यतीत कर्या. // 7 // शरीरमांथी जाणे धरी कहाडयुं होय नहि एवां विद्यामय तेजने धारण करतो एवो ते अमलदत्त एक दिवसे गुरुने चरणे नमीने विनंति करवा लाग्यो के, // 7 // हे गुरु ! हवे मारी कला राजापासे देखामवामाटे मने थाझा पापो ? के. .. - | मके वेश्यानीपेठे प्रसिधिमां यावेली कला लक्ष्मी देनारी थाय जे. // ७ए / पजी गुरुए अनुका ) Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ज्ञातोऽय गुरुणा / पुरस्कृत्य तमेव सः॥ गतः सदसि चूनाथ-मनमनमनोवितं // 50 // कोऽ५ मा यमैदंयुगीनेषु / जनेषु परजागाजार // इति पृष्टो नृपेणोचे / तत्कुलाचं कलागुरुः // 11 // कां चित्कलामिलागर्तु-दर्शयेति गुरोगिरा // सोऽबनान्मल्लवदीर-वरः परिकरं दृढं // 55 // प्रशस्तलस्तकन्यस्त-हस्तः स धनुषो गुणं // ध्वनयंस्तत्प्रनिध्वानः / सनारंधांण्यदिध्वनत् // 3 ॥सं. स्थानपूर्वमिश्वास-मुक्तेष्वासशरव्यकं // अविध्यच्चापलं चेतो / योगीव सुगुरोगिरा // 4 // शा. देवाथी तेनेज अगामी करीने ते राजसहामा गयो, तथा ते नमवालायक राजाने नम्यो. // 50 // या काळना मनुष्योमा उत्कृष्ट भाग्यशालीसरखो आ वली कोण . ? एम राजाए पूज्याथी क. लागुरुए ते अगलदत्तनुं कुल आदिक निवेदन कर्यु / / 71 // हवे राजाने तारी कईक कला दे| खाड ? एम गुरुए कहेवायी ते महासुन्टे मल्लनोपेठे मजबूत कागे बांध्यो. // 7 // मनोहर कामगंपर हाथ राखीने धनुषनी दोरीनो अवाज करतोथको ते तेना पमघाथी सजानां द्वारोने पण अवाज कराववा लाग्यो. // 3 // गुरुना वचनयी बरोबर चीत्रीने धनुषमाथी गेडेलां बाण. ::| थी योगी जेम मनने तेम तेणें तुरत एंधाणने वींधी नाख्यु. // 4 // पनी ते आकाशमां स.. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 360 धम्मि- णोत्तीर्णामसिलता-मसौ वियति नर्तयन् // अननेविद्युदारेक-मकांडे निर्ममे नृणां / / 55 // / मा चकासे चतुरश्चक्रं / चालयनेकपाणिना / / चिरं चरटचक्रस्य / चालनां सूचयन्निव / / 76 // सोऽ. दनं ब्रमयन लौहं / मुरं वेगतोऽजितः // यतपूर्व पार्षद्यान / जयदोजमशिदयत् // // दं तांडवयंश्चक्रे / दृष्ट्टणामिति संत्रमं / / युगपज्जगती जग्धुं / यमः किमयमाययौ / / एG // तयोल | लास शस्त्रे स / मुक्तामुक्तोजयात्मके // यथासन जरसीका / निर्मदाः सुनटाः परे // 5 ॥ये. | जेली तलवार नचावतोथको अकाळे वादळविना पण लोकोने विजळीना चमकाराजेवु देखाडवा लाग्यो. // 55 // पंजी ते चतुर सुट एक हाथे चक्र जमावबोथको घणा काळसुधी जाणे कं जारना चत्रनुं चालवु सूचवतो होय नहिं तेम शोजवा लाग्यो. // ए६ // वळी ते अटकावरहित लोखमनुं मुद्गर वेगथी चारे बाजु नमावतोयको सनासदोने अगान कदी न थयेलो एवो जय'नो दोन उपजाववा लाग्यो. // 7 // पनी ते दंम नगलोयको जोनारानने एवो जय पमा डवा लाग्यो के शुं एकी वखते जगतने खावामाटे या यम श्रावेलो ? // 7 // पनी ते म.. | केला अने नहि मुकेलां एम बन्ने प्रकारनां शस्त्रोमां एवी तो स्फुर्ति देखावा लाग्यो के जेगी। P.P.AC.Gupratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| षां वपुः शिलासार-सारैखि विधिय॑धात // तत्रामन्यत मल्लांस्तान् / स गोमयमयानिव / / 1700 // मा तृणायापि न मन्यते / ये योधानायुधोत्कटान् // सोऽजैषीतानिभानोजः-खानिः खानीव सुव्रतः // 1 // खां कलां लालयत्येवं / तस्मिन विस्मितचेतसः // मूर्धानं धूनयामासु-र्गुणकीताः सनास दः॥२॥ स्तुतिनिंदाविधी वंध्य-मनसोऽथ मुनेवि // मुखमेष महीपस्य / पश्यतिस्म पुनः पु. नः // 3 // भूपोऽवग्भऽ मे चित्रं / नानया कलया तव // चेष्टते बहवोऽप्येवं / प्रायेणोदरपूर्तये घपणमां जेम हाथीन तेम अन्य सुनटो मदरहित थ गया. // 7 // जेनन शरीर विधाताए पबरना सारवडे बनाव्यु बे, ते मलोने पण ते गणना बनावेला मानतो हतो. // 1700 // जे हाथीन हथियारबंध योधाने पण तृणसमान मानता हता. ते हायीनने पण मुनि जेम ई. | at दिलने तेम बळनी खाणसरखो ते अगलदत्त जोतवा लाग्यो. // 1 // एवी रीते ते ज्यारे पोता | नी कला देखाडवा लाग्यो त्यारे तेना गुणोथी विस्मय पामेला सजासदो मस्तक धुणाववा ला. ग्या.॥२॥ परंतु मुनिनीपेठे स्तुति अने निंदाथी रहित मनवाळा राजानुं मुख ते फर फररीने जोवा लाग्यो. // 3 // त्यारे राजा बोल्यो के हे गद्र! मने तारी या कलाथी पाश्चर्य थतुं नथी, | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ। धम्मि- // 4 // धनेन धीर कार्य चे-तद्याचस्व यधारुचि // याशानंग न कस्यापि / कुर्मो जैना दयाल वः॥ 5 // सोऽप्यूचे किमहं निकु-र्यत्वत्तः कामये धनं // धनश्रेणीस्तृणीयंति / यशस्कामा दि मानिनः // 6 // प्रियालापेऽपि दारिद्यं / यस्य किं वा स दास्यति // वृया फलाशा पांथानां / ग. 371 यासंशयिनि जुमे // 7 // दत्तं वा प्रियवागहीनं / दानं कांदति कः सुवीः / / कुंताग्रस्थसिताबेणां -जनं किं स्याद् दृशोर्मुदे // 7 // भूपोऽवग निष्कला युक्तं / माद्यंति कलया तव // स्वयं कलाकेमके प्रायें करीने घणा माणसो नदरपूर्तिमाटे आवी चेष्टा करे . // 4 // वळी हे धीर! जो तारे धननुं प्रयोजन होय तो तुं तारी मरजीमुजब मागी ले, केमके अमो जैनो दयालु होवाथी कोश्नी पण याशानो भंग करता नथी. // 5 // त्यारे अगलदत्त पण बोल्यो के शुं हुं निकुक बं? के तमारा पासेथी धन मागु, केमके यशनी डावाळा मानो मागतो धननी श्रेणिने तृणम. मान गणे . // 6 // वळी मिष्ट वचन बोलवामां पण जेने कृपणता ने ते वळी शुं श्रापशे? के. मके जे वृक्ष गया पण देश् शकतुं नथी, तेनी पासेयी पंथीनए फलनी पाशा करवी फोकटने // 7 // अथवा मिष्ट वचनविना थापेलां दानने कयो सुबुछि माणस लेवानी श्ला करे? केमके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- सु निष्णाताः / कयमस्मादृशाः पुनः // // किं तवाजीविकामात्र-कलया कलयानया / ममोसार्थ | त्तमकलान्यासं / शृणु लोकहये हितं // 10 // . इहैव पुरि कौशांब्यां / हरिषेणोऽनवन्नृपः // पद्मेव पद्मनागस्य / प्रेयसी तस्य धारिणी // 372 // 11 // सुबुधिः सचिवस्तस्य / मतिव्रततिमंडपः // सिंहला स्नेहलालाप-सारणिस्तस्य बसना // / // 12 // थानंद स्वजनानंद-कारणं ननयस्तयोः / सखजे प्राप्ततारुण्यो / व्याधिना त्वविरोधि जालांनी अणीपर रहेला सुरमावडे आंखमां अंजन करवाथी शुं हर्ष थाय ? // // राजा बो. ब्यो के तारी कलाथी कलाविनाना माणसो जे खुश थाय ने ते युक्तज जे. परंतु पोतेज कला जमां निपुण एवा अमों केम खुशी थश्ये ? // 7 // फक्त श्राजीविकामाटे मनोहर एवो या ता. री कलावडे शुं थवानुं जे? बन्ने लोकोमां हितकारी एवो मारो नत्तम कलान्यास तुं सांजळ ? // 10 // - बाज कोशांबी नगरीमां हरिषेण नामे राजा हतो, तेने विष्णुने जेम लक्ष्मी तेम धारिणी नामे राणी हती. // 11 // ते राजाने बुद्धिरूपी वेलडीना मंझपसरखो सुबुधि नामे मंत्री हतो, तथा ते मंत्रीनी स्नेहयुक्त वचनोनी नहेरमरखी सिंहला नामे स्त्री हती. // 12 // तेजने स्वजनो. P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak, Trust Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि। ना // 13 // विवत्सुमत्र सततं / विज्ञाय व्याधिनायकं // अशुश्रवद्दपुस्तस्य / तद्भूयः खयथुः स्वयं // 14 // आविर्वजूव दौर्गध्यं / तस्यांगे तत्प्रसृ वरं // न येन सविधे स्थातुं / कोऽपीष्टे मक्षि कां विना // 15 // चिरं चिकित्स्यमानोऽपि / नासौ नीरोगतां गतः // ठरः पठ्यमानोऽपि / वि. 373 | नेयो वैदुषीमिव // 16 // गृहापवरकं नासौ / जुःसाधव्याधिबाधितः / / जहौ जराजर्जरितो / नो. गीव तरुकोटरं // 17 // अन्यदा मंत्रिणः दोणी-नेतुः सदसि तस्थुषः / जवनो यवनदीपा - ने अानंद करनासे यानंद नामे पुत्र हतो, परंतु ज्यारे ते युवान थयो त्यारे तेना शरीरमां चा. ममीनो रोग दाखल थयो. // 13 // ते रोगना नायकने हमेशां तेना शरीरमां वसवानी बावा. को जाणीने तेना नोकर सोजाए पोते तेनुं शरीर स्थूल करखा मांडयुं. // 14 // पड़ी ते रोगने लीधे तेना शरीरमां एवी दुर्गधी विस्तार पामी के जेथी मदिकाविना को पण तेनी पासे बेशी शकतं नहि. // 15 // घणा काळसुधी तेने माटे औषधो कर्या परंतु नणतो एवो पण बुधिवि नानो शिष्य जेम विद्वताने तेम ते नीरोगी थयो नहि. // 16 // अने तेथी घडपणथी निर्बन |थयेलो सर्प जेम वृदनुं बिल तेम असाध्य व्याधिथी पीमित थयेला ते मंत्रिपुत्रे घरनो नरडो। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- छीमान दुतः समाययौ // 17 // दूतः स्वस्वामिनः कार्य / राज्ञे तस्मै निवेद्य सः // नत्तस्थौ ख ब्धसन्मानः / सदसः सह मंत्रिणा // 15 // दूतं समग्रराजन्य-शुधिप्रापणलमकं / / चकार चरि सत्कार-पात्रं मंत्री स्ववेश्मनि // 20 // ददृशे तत्र दुर्गंध-देहो गेहोदरे स्थितः // नत्थून श्व .. 314 | मंकः / कूपांतस्तेन मंत्रिसूः // 21 // कोऽयमंतः परो लद-मदिकाहृदयंगमः // इति पृष्टोऽमुना मंत्री। प्रोचे बाष्पायतेदाणः // 12 // किं वच्मि मंदजाग्योऽहं / यौवनेऽसौ ममांगजः / / फलस्य गड्यो नहि // 17 // एक वखते ज्यारे मंत्री राजस नामां बेठो , तेवामां यवनोपयी एक वे. गवाो बुद्धिवान दूत त्यां यायो. // 17 // ते दूत पोताना राजानुं कार्य ते राजाने कहीने त. था यादरमान मेलवीने मंत्रीसहित सगामाथी उठ्यो. // 15 // सर्व राजाननी खबरअंतर जा. गुनारा ते दूतने मंत्रीए पोताने घेर लेश् जश्ने तेनो घणो आदरसत्कार को. // 20 // त्यां ते. णे जरमामा रहेलो दुर्गध शरीरवाळो ते मंत्रिपुत्र कुवामा रहेला देडकांनीपेठे नळनो जोयो. // 21 // लाखो गमे माखोने प्रिय थ पड़ेलो या कोण जे-? एम ते दूते पूछवायी मंत्री यां| खोमां बांसु लावी बोल्यो के, // 25 // शुं कहुं हुं मंद नाग्यवाळो , केमके फलसमये जेम P.P.Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ || धम्मि- काले शाखीव / प्युष्टः कुष्टदवामिना // 23 // अहं वैद्यप्रतीकारा-नस्याऽनटपानचीकरं / शशाम नाम नो तैस्तु / घृतैखि धनंजयः // 24 // स दृष्ट नृरिखमः / पृष्टानेकबहुश्रुतः // नक्तिकीतोऽभ्य | धात्तस्य / सत्यप्रत्ययमौषधं // 25 // अयं जात्यकिशोरस्य / यदि क्षिप्येत शोणिते // तत्त्वग्दोषे. 375 ण मुच्येत / मलेनेव कृताप्लवः // 26 // युदित्वा गते दूते / व्यमृशन्मंत्रिपुंगवः // लेने व्या. | धिप्रतीकार / एष ईषत्करो मया // 27 // पुत्रमित्रकलत्रेभ्यो-ऽप्यविश्वस्तेन लुजा // यः किशो. | वृक्ष तेम यौवनवयमां या मारो पुत्र कुष्टरूपी दावानलयी व्याप्त थयों ने. // 23 // में तेनामाटे | वैद्योमारफते घणा नपायो कर्या, परंतु घृतथी जेम अमि तेम तेथी थानो रोग शांत थयो नहि. // 24 // जोएल ने घणो पृथ्वीनाग जेणे तथा पूल अनेक बहुश्रुतोने जेणे एवा ते दते मंत्रीनी जक्तिथी खुश थश्ने तेने खरी खातरीनु औषध बताव्यु के, // 25 // जो या तारा पत्र. ने जातिवंत घोडाना वराना रुधिरमां ऊबोळ्वामां आवे तो स्नान करनारनो जेम मेल तेम था. नो या कुष्ट रोग नाश पामे. // 26 // एम कहीने ते दूत गयावाद मंत्रीए विचार्यु के, था तो | मने सहेलो रोगनो नपाय हाथ आव्यो . // 27 // पुत्र, मित्र बने स्त्रीनो पण विश्वास नहि / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ 316 धम्मि-| रो ममावासे / न्यासे मुक्तोऽस्ति सद्गुणः // 2 // रक्तधारास्ततः पुष्ट-शरीरादापगा च // यः | | स्योऽप्युद्धविष्यति / राज्यश्रीकेलिशैलतः // 25 // तासु स्नातो लघल्लाघो / जविता मे कुमारकः // पीनांगश्वं किशोरोऽपि / वृष्ययोंगाजियोगतः // 30 // मंत्रिणाय किशोरस्य / शिरावेधो व्यधीयत // प्रवहद्भिस्ततोऽसृग्निः / दणा कुंडमपूर्यत / / 31 / कोपं नालमिवोद्भिनं / मंत्रिणा धमा नीमुखं // यत्नतः संवृतमपि / न तस्थौ रुधिरं वमत् // 32 // दाणान्निथ्योतितालक्त-पक्ष्मवत्पांमुतां राखता एवा राजाए जे नत्तम लदाणवाळो वजेरो मारे घेर थापण राख्यो , // 2 // राजलक्ष्मी. ने क्रीमा करखाना पर्वतसरखा अने पुष्ट शरीखाळा ते वडेरामांयी नदीनीपेठे रुधिरनी घणीधारा निकलशे, // 27 // अने तेमां स्नान करवाथी मारो पुत्र तुरत निरोगी थशे, अने घा रुमा वनारी औषधी आदिकना प्रयोगथी ते वजेरो पण पागे पुष्ट शरीरवाळो थशे. // 30 // पजी ते | मंत्रिए ते वजेरानी नाडी फोमी, अने तेमाथी निकळनां लोहीथी दाणवारमा कुंडी जरा गइ.॥ .. // 31 // पछी खुली थयेली कुवानी सरवाणीनीपेठे मंत्रीए तेनी नाडीनुं मुख जो के यत्नपूर्वक | बंध कयु, तो पण तेमांथी निकलतुं रुधिर बंध थयु नहि. // 3 // दणवारमां नीचोवी लीधेला P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिन गतः // बालाश्वस्तत्यजे प्राणैररक्ते कोऽवतिष्टते // 33 // कोऽपि देषी नरेंद्राय / तत्स्वरूपं न्य. रूपयत // खलैहि पूरितो लोको / मुत्कुणैरिख मंचकः // 34 // कल्पामिमिव कोपेन / नयन ही. नोपमां नृपः // आरदै राक्षसक्रूरै-महामात्यमबंधयत् // 35 // कषाया श्व पुण्योघं / गृहसारं 377 विबुंट्य ते // सकुटुंबं निजघ्नुस्तं / मारैर्नरकदारुणैः // 36 // गुप्तगात्रो निलीयास्था-दानंदो र. क्तकुंडके // क्लीवः स्वं धीवरात्त्रातु-कामः कूर्म श्वांनसि // 37 // ततोऽपि निशि निर्गत्य / धौ. पळताना फोतरांनीपेठे फिको पमी गयेलो ते वजेरो प्राणरहित थयो, केमके अरक्तपासे कोण रहे? // 33 // त्यारे कोश्क देषी माणसे राजाने ते वृत्तांत निवेदन कर्यो, केमके मांकडोथी जे: म मांचो तेम था जगत खलोथी नरेवु . // 34 // पनी कल्पांतकाळना यामिनीपेठे कोपथी नीचनी जपमाने प्राप्त थयेला राजाए रादाससरखा निर्दय पोलीसमारफते ते महामंत्रीने बंधाव्यो. // 35 // पजी कषायो जेम पुण्यना समुहने तेम तेजए तेना घरनी सर्व मिटकत खुंटीने नरक. सरखा जयंकर मारथी तेने कुटुंबसहित मारी नाख्यो. // 36 // ते वखते ते असमर्थ यानंद म. |बीमारथी बचवानी श्वावाळो काचबो जेम जलमां तेम रुधिरनी कुमीमां पोताना अंगोपांगतो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। तांगः क्वापि वारिणि // स्वमालोकत सायं / निर्मोकमिव पन्नगं // 30 // केनाप्यलक्षितः पर्णमाय वाटं निश्येव सोऽगमत् // तत्स्वामिना च कल्याण / कोऽसि त्वमिति जाषितः // 30 // दीनास्ये. | नादितः स्वीयो-दंते तेन निवेदिते // कृपाबुमत्रिपुत्रं स / रहः स्वगृहमानयत् // 40 // सुपर्णा| दुरगः सिंहा-मृगश्चौरादिवाध्वगः // गुप्तचारी नृपादीत-स्तस्थौ तत्र सुखेन सः // 41 // पु. | पीने बुपाश रह्यो हतो. // 37 // पनी रात्रिए तेमांथी निकलीने क्यांक जळमां पोतानं शरीर धोयाबाद ते पोताने कांचळी विनाना सर्पनी पेठे नीरोगी शरीवालो जोवा लाग्यो. // 3 // पनी त्यांथी कोश्नी नजरे पड्याविना गुप्त रीते रात्रिनी अंदरज ते एक खलावाममां गयो, त्यारे ते खटावामना मालिके तेने पूज्यु के हे कल्याण! तु कोण ? // 35 // त्यारे तेणे पण दयामणे चहेरे पोतानो वृत्तांत पहेलेथी तेनी बागल निवेदन कर्यो, त्यारे ते दया लावीने ते मंत्रि. पुत्रने गुप्त रीते पोताने घेर तेमी लान्यो. // 40 // गरुमथी जेम सर्प, सिंहथी जेम हरिण तथा चोरथी जेम पंथी तेम राजाथी डरेतो ते मंत्रिपुत्र त्यां सुखेथी गुप्तपणे रह्यो. // 41 // हवे ए. | क दिवसे पवित्र शरीरवाळा, धर्मरूपी रथनी धुरासरखा, जर्गतिमां जवाने अटकाववामाटे मजबूत / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि एयांगावन्यदा धर्म-रथस्यैकधुराविव // प्रवेशं दुर्गतौ वातुं / सुश्लिष्टावररी इव // 42 // अलिप्तौ पापपूरेण / संसृतेः पुलिनाविव // साधू सत्तपसाधूत-मोहौ तद्गृहमीयतुः // 43 // युग्मं // . | गयन्नुत्तमांगं स्वं / मंत्रिसूस्तत्पदांबुजे / किं वत्स विमनस्कोऽसि / मुनिन्यामित्यनाष्यत // 4 // 37 उदश्रुणाखिले मूला–निजदुःखेऽमुनोदिते // अयबतां यती धर्म-शिदा दुःखांतकारिणीं // 4 // माधुर्य लवणे सारं / रंभायां सुस्वरः खरे // पावित्र्यं वर्चसो गेहे / स्वादु पानीयमूषरे // 46 // जोगळसरखा, // 42 // पापोना समुहथी नहि लेपायेला, संसारना किनाराजेवा तथा उत्तम त. पथी मोहने नाश करनारा एवा बे साधुन तेने घेर अाव्या. // 43 // त्यारे ते मंत्रिपुत्र ते मु. निना चरणकमलप्रते पोताना मस्तकने ब्रमररूप करवा लाग्यो, त्यारे तेनए तेने पूज्यु के हे वत्स! तुं नदास मनवालो केम देखाय ? // 4 // त्यारे तेणे आंखोमां बांसु लावीने मूळ थी पोतानं दुःख कही संजलाव्यु, त्यारे ते मुनिए तेने दुःखनो नाश करनारो धर्मोपदेश या. प्यो के, // 45 // जेम लवणमां मोगश, केळमां कठिनता, खरमां सुस्वर, चमारना घरमां पवि. त्रता, खारी जमीनमां मीठं पाणी, // 46 // राखमां चीकाश, मषीमां सफेदा तथा अमिमां जेम Jun Gun Aaradhak Trust . P.R.AC.Gunratnasuri M.S. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्नेहो नस्मनि वैशा / मष्यां शैत्यमिवानले // सौम्य कापि सुखं नास्ति / व्यापकापक्रे नवे / / माई // 4 // ये संयोगास्तनुमता-माधमुन्मादकारणं // तेषां निष्टावियोगो हि / व्यापाराणां विपद्य ते // 4 // यत्सर्वबंधुसंहारा-दारात्त्वग्मात्रसारता // तस्य चिंतय वैरस्य / खदेहस्यायतौ ध्रुवं // | // 4 // दिनानामिव जंतूनां / वृधिहानिश्च निश्चिता // श्रासत्तिं विप्रकृष्टिं च ।याति पुण्यविवस्वति // 10 // कैः कैर्युक्तो विनक्तो वा / नवेद्देही न देहिन्निः / / पुलिंद व चिन्वानः / फलानि तरुन्निवने // 51 // तत्त्यक्त्वा खजनवात-मनैकांतिकमध्रुवं // आत्यंतिक ध्रुवं धर्म-मे वैकं शीतलता नथी तेम हे सौम्य ! दुःखथी नरेला या संसारमा क्यांय पण सुख नयी. // 4 // प्रा. पीनने जे संयोगो प्रथम हर्ष करनारा थाय , ते व्यापारोनो खरेखर निश्चयथी वियोग थाय 3. // 4 // वळी तु विचार के जे सर्व स्वजनोना नाशयी फक्त तारुं शरीर शोजीतुं थयं ने, ते तारं शरीर नविष्यकाळमां खरेखर नाश पामशे. // 4 // पुण्यरूपी सूर्य जगते तथा प्रायमते बते दिवसोनी पेठे प्राणिननी वृधि अने हानि निश्चित थयेली . // 20 // वननी अंदर फळ | एकठा करतो निल जेम वृदो साथे तेम था संसारमा प्राणी कया कया प्राणिन साथे संयोग- | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- वजनीकुरु // 12 // स-द्विधा श्रमण श्राध-व्रतन्नेदाज्जिनैः स्मृतः // तत्राद्यो ध्रियते धीरे- वैः क्की वैस्तथेतरः / // 23 // आनंदः स्फुरदानंद-मंदीनृतमनोव्यथः / / अथ तत्प्रथमं भेजे / श्राधधर्म स धीरधीः // // 55 // बधमर्त्यनवायुष्कः / पूर्व नऽकन्नावतः // पश्चात्प्रपालितश्राध-धर्मः काले व्यपादि सः // 55 // पुरेऽत्र हरिषेणस्य / राज्ञः सोऽहं सुतोऽभवं // जितशत्रुरिति ख्यातः / पुण्यैः किं नाम वियोगवाळो.नथी थतो? // 51 // माटे अनेकांत अने चपळ एवा स्वजनोना समुहने गेडीने फक्त एक आत्यंतिक बने निश्चल एवा धर्मनेज पोताना खजनरूप कर? // 5 // ते धर्म साधुबने श्रावकना व्रतना नेदथी बे प्रकारनो जिनेश्वरोए कहेलो , तेमां पहेलो धीर मनुष्यो तथा बीजो कायर मनुष्यो धारण करे . // 53 // हवे आनंद थवाथी जंबु थये. ल मननु दुःख जेनुं एवा ते बुध्विान यानंदे प्रथम श्रावकधर्म अंगीकार को. // 54 // पूर्वे नदकपरिणामथी मनुष्यनवनुं आयुष्य बांधीने पाउलथी श्रावकधर्म पाळीने केटलेक काळे ते म. का रण पाम्यो. // 55 // ते आनंदनो जीव था हुं या नगरमा हरिषेण राजानो जितशत्रु नामनो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| दुर्घटं // 26 // दृष्ट्वान्यदा मुनिद्वंदं / मध्येपुरविचारिणं // गवादगोऽहमव्यूढ-मोहः प्राग्नवममा स्मरं // 27 // तदादि हदि मन्येऽहं / कलासु सकलास्वपि // वल्लीषु कल्पवल्लीव-देकां पुण्यकलां कलां // 27 // वास्तुविद्योर्णनानेषु / सुगृहासु च साग्रहा // हंसे गतं वचः कीरे। नीरे च तर 272 | तिमौ // 27 // हुडे युघ्नता काल-झानं च खरकुर्कुटे // प्रचलाकिनि नृत्यं च / पंचमोगा रिता पिके // 60 // एवं कला किल कापि / कापि दृष्टा पशुष्वपि // न पुनः सफलं पुण्यं / वि. पुत्र थयो बु, केमके पुण्यथी शुं प्राप्त थतुं नथी? // 56 // एक दिवसे नगरनी अंदर विचरतुं मुनिनुं जोमg जोश्ने गवादमां बेठेलो हुँ मोह दूर थवाथी पूर्वनवने याद करवा लाग्यो. // 7 // धने त्यारथी हुँ मारा मनमां एम मार्नु बु के वेलमीनमा जेम कल्पवेली तेम सघली कलानमां एक पुण्यकलाज श्रेष्ट . // 27 // करोळीयामां जेम वास्तुविद्या, सुघरीनमा विशेष प्रकारनी ते विद्या, हंसमां गति, पोपटमां वचन, मत्स्यमां जल तरवानी कळा // 27 // तेतरमां युघकान, खर तथा कुकडामां काळज्ञान, मयूरमां नृत्य तथा कोकिलमां पंचमराग, // 6 // एवी रीते को. | 3 को पशुमां पण कोक कोक कला जोवामां आवे , परंतु पुण्यविना लक्ष्मी, सुख के कीर्ति P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| ना श्रीसुखकीर्तयः // 61 // त्रिनिर्विशेषकं // शिरःशून्याः कलाः सर्वा / एकां धर्मकलां विना / / ततो वीर प्रशंसंति / संतस्तामेव केवलं // 6 // एवं राशि वदत्येव / नागरा फुःखसागराः // समं | समाजमाजग्मुः / सारोपायनपाणयः // 63 // विझं विझपयामासु-स्ते नत्वा नरनायकं / / त्वां या__ 373 | चंते प्रभो स्थानं / पौराश्चौरातिवर्जित // 64 // आत्मनीव सचैतन्ये / त्वयि मध्यस्थितेऽप्यहो / / बुप्तमेतत्पुरं चौर-चस्टैः करटैखि // 65 // आरंजन्नीरव श्व / स्तेनास्ते नाथ पत्तने / खानावसि. सफल थतां नथी. // 61 // एक धर्मकलाविना सघळी कलानं मस्तकरहित , माटे हे वीर ! सं. त पुरुषो केवल ते धर्मकलानेज वखाणे . // 6 // जेवामां राजा एम बोले जे तेवामां अत्यंत पुःखी थयेला नगरना लोको एकग थश्ने हाथमां मनोहर नेटणासहित राजसनामां याव्या,। // 63 // तथा ते विहान राजाने नमीने विनंति करवा लाग्या के हे स्वामी! नगरना लोको थापनीपासे चोरना नपऽवविनाना स्थाननी मागणी करे . // 64 // चेतनाशक्तिवाळा यात्मानी. पेठे आप अंदर रह्या बतां पण नास्तिकोसरखा चोरोए था नगर बुंटीने विनष्ट कर्यु . // 65 // | वळी हे स्वामी! आपना था नगरमां जाणे वारंनथी डरता होय नहि तेम ते चोरो अमारी तै. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परHET धम्मि- छान गृह्णति / दारांश्च विनवांश्च नः / / 66 // क्रूरचौरकृतैश्विः / सांप्रतं सदनेषु नः // प्रवेशमा निर्गमौ जातौ / सुकरौ सर्पसंपदां // 67 // अंगसंगतभूषायै / स्तेनै स्तनया अपि // वध्यंते हंत. | कस्तूरी-कृते गंधमृगा व // 67 // तथा तव पुरे चौरा 1 विलसंतिम निर्भरं // यथा दैगंबरी 375 | दीदा। न चिराद्धाविनी नृणां // 6 // // या मंडनं मुमुक्षुणा-मपरिगृहता मता // अनिच्चूनाम | पि स्तेनैः / सा नः संप्रति दौकिता-॥ 70 // सद्मान्यासन्नसद्मानी–ति सोढं देव नागरैः // म'यार स्त्रीजने तथा धनने ले जाय . // 66 // वळी अमारां घरोमां हमणां ते क्रूर चोरोए क. रेलां बिलोथी सोने याववानुं तथा लक्ष्मीने जावानुं सहेबु थर पडेबु बे. // 67 // वळी कस्तू रीमाटे जेम हरिणोने तेम शरीरपर पहेरेलां बाभूषणोमाटे ते चोरो अमारा संतानोने पण मा. | री नाखे . // 6 // आपना था नगरमां ते चोरो एवी तो चालाकी वापरी रह्या ने के जेथी | माणसोने हवे थोडा समयमांज दिगंबरी दीदा प्राप्त थशे. // 6 // जे अपरिग्रहपएं मुमुकु सा. धुनने शोनावनारंबे, ते अपरिग्रहपणुं नहि श्वता एवा पण अमोने हालमां ते चोरोए आपे। हुँ जे. // 70 // हे स्वामी! घरो जे ऋघिरहित थयां ते तो अमोए सहन कर्ये, परंतु मनुष्योनी / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- य॑ज्ञानिस्त्विहाऽनिष्टा / दृष्टा पूत्कुर्महे ततः // 71 // तत श्रुत्वा पृथिवीपाली / नीष्मनालोऽन्यथा / स्क्रुधा // रे रे ददास्तलारदाः / केयं नो वः प्रमत्तता // 32 // नवत्सु दीप्यमानेषु / दिवाकरकसार्थ रेष्विव // क्रूरचौरतमःपूरः / पौरलोकं रुणधि किं / / 13 / / दृप्ताः सप्ताहमध्ये त-दानयध्वं मलि. ___ 35 म्बुचान् // यूयमेवाथवा चौराः / किं चौराणां खनिः पृथक // 7 // इति राझोदिते सर्वे / ते त वार्थ निरौजसः // अधःपुष्पाः पुष्पिणोव / बनवुय॑ग्मुखा हिया // 7 // अथाप्तावसरः प्रोचेजे हानि थाय ते अमोने दुःखदायक देखाय ने, अने तेथी श्रमो आपनीपासे पोकार करी. ये जीये. // 1 // ते सांजलीने क्रोधथी जयंकर ललाटवाळो राजा बोल्यो के अरे हुशियार पो. लीस अमलदारो! था तमारी गफलती ते केवी ? // 72 // सूर्यना किरणोसरखा तमो देदीप्यमान होवा जतां पण क्रूर चोरोरूपी अंधकारनो समुह नगरना लोकोने केम हेरान करे ? // // 33 // माटे तमो सावधान रहीने सात दिवमनी अंदर ते चोरोने लावो? अथवा तमोज चो. रो.ठरशो, केमके चोरोनी शुं कई जुदी खाण होय ? // 4 // राजाए एम कहेवाथी ते कार्य | करवामां असमर्थ एवा ते पोलीस अमलदारो नीचां पुष्पोवाळा वृदोनोपेठे लहाथी नीचा मख ... Jun Gun Aaradhak Trust RRAS Gnas MS Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ऽगलदत्तो नरेश्वरं / होनारनतमूर्बानो / विमुच्यताममी प्रनो // 76 // यद्यादिशसि जुनेतनश्चेतसा प्रगुणेन मां // तदाहमंतः सप्ताह-मानये चौरनायकं // 7 // दुःकरं सुकरं वेति / न चिंता दिप्ततेजसां॥ विद्युमोलः पतन्नौ / तृणे वा न हि निन्नधीः // 7 // / अथ प्राप्य नृपादेशं / चौरप्राप्तिपरायणः // गंजाप्रपापुरात-सत्रशालासु सोऽघ्रमत् // 7 // दर्श दर्श जनवातं / साचीकृतविलोचनः // श्दांचक्रे चिरं चौर-लदणानि विचक्षणः // 70 // ये वाच थया. // 75 // हवे ते समये अवसर मलवाथी अगलदत्ते राजाने कयु के हे स्वामी! ल. काना नारथी नमेला मस्तकवाळा या पोलीस अमलदारोने या कार्यथी मुक्त करो? // 16 // वळी हे स्वामी! जो आप खरा दिलथी मने फरमावो तो हुं ते चोरोना नायकने सात दिवसनी अंदर लावी आपुं. // 7 ॥श्रा कठीन डे के सहेडं बे, एवी चिंता महापराक्रमीने होती न. थी, केमके पर्वत अथवा घासपर पडता वीजळीना गोळानो कई जुदो प्रकार होतो नथी. // 7 // . हवे राजानें फरमान मेलवीने चोरनी शोधमाटे तैयार थयेलो ते अगलदत्त मदिराशाला, | परब, नगरमा रहेला जुगारखानां तथा सदावतना स्थानोमां नमवा लाग्यो. // 7 // वळी तीरजी / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमि- भौतिका जागवता-श्चरका लिंगिनस्तथा // कापालिकाः कार्पटिकाः / सोऽजुत्तेषु विशेषटकं / / // 1 // चौरं पश्यन्ननालस्य-मतीये पम् दिनानि सः // न तु तं पाप संताप-पूरितश्चेत्यचिंतय| त // 2 // एकतो भूपतेरो / प्रतिझातं सुदुष्करं // धन्यतस्त्वरितं यांति / जंघाला व वासराः 377 // 3 // चौरश्चेलप्स्यते नासौ / नव्यं चौरेण तन्मया // जनदृग्परिहारार्थ / दिवागतिनिषेधतः // 4 // गंतव्यं वा विदेशेषु / वस्तव्यं वा वने क्वचित् // न तूत्सृष्टप्रतिज्ञेन / स्थेयमत्र पुरे म. अांखोथी लोकोना समुहने जोतो जोतो ते हुशियार अगलदत्त घणा वखतसुधी चोरना लक्षणों जोवा लाग्यो. // 70 // वळी ते नौतिक, नागवत, चरक, लिंगी, कापालिक तथा कापमीनने विशेष प्रकारे जोवा लाग्यो. / / 71 // एवी रीते खूब हुशियारीथी चोरनी तपास करतां छ दिव. सो तो व्यतीत थया, परंतु चोर न मलवाथी ते खेदित थश्ने विचारखा लाग्यो के, // 2 // एक तो राजानीपासे जेमाटे प्रतिज्ञा करी ते कार्य दुष्कर बे, घने बीजी बाजु दिवसो एकदम नतावळथी चाल्या जाय . // 3 // वळी जो था चोर नहि मले तो माणसोनी नजर चूकाव. वामाटे दिवसे गमन नहि करवाथी मारेज चोर थर्बु पडशे. // // अथवा परदेशमा जप ! P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ / धम्मि- या // 5 // एवं चिंतास रिवीचि वर्षितखांतवापलः // सप्तमेऽह्नि विकालेऽसौ / निरगानगराद् बहिः // 6 // स्थितः स तस्करं लिप्सु-मलपीवरचीवरः // मरुचलद्दलश्रेणे-स्तत्र चूततरोस्तले | / / वामहस्तस्फुरदंडो / वांउन्निव यमोपमां / / दंडोव चीरिकां विव्र-ध्वजवदुरितौकसि 30 // // जपमालापरावर्त / कुर्वन दक्षिणपाणिना // अमुष्यंत दितौ हंत / कतीति गणयन्निव / / // 7 // बधुं नरतिमीन जाल-मिव कंथां वहन् गले // अव्यक्तं चालयनोष्टौ / चौर्य विद्यां जडशे, अथवा तो कोश् वनमां जश् वसवू पमशे, केमके प्रतिझाभंग थवाथी माराथी बहीं रही शकाशे नहि. // 5 // एवी रीते चिंतारूपी नदीना मोजांथी वृद्धि पामेल ने हृदयनी चपलता जेनी एवो ते अगलदत्त सातमे दिवसे संध्याकाळे नगरनी बहार गयो. // 6 // त्यां ते मलयु क्त कपडां पहेरीने पवनथी चालती ने पांदमांजनी श्रेणि जेनी एवा एक आंबाना वृक्षानीचे चो. रने मेळववानी श्बाथी बेठगे. // 7 // एवामां तेणे जाणे यमनी नपमा श्वतो होय नहि तेम 'मावा हाथमां पकडेला दंडवाळो, अने पापना घरपर रहेली धजानीपेठे दंडपर लटकेलां चीथसं. | वाळो, // 7 // अरे या पृथ्वीपर में केटलाने बुंट्या जे ? एम जाणे गणतो होय नहि तेम ज P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि पन्निव // 10 // न्यस्तनयनो मार्ग / दुर्गतेः स्पृहयन्निव // परिवार ददृशे तेना-जगबन जी. | वनात्तदा / ए१॥ चतुर्भिः कलापकं / / उद्भवपिमिकं दीर्घ जंघमारक्तलोचनं // स्तब्धकेशं वक्रनाशं / निश्चिक्ये तं स तस्करं // ए॥ सोऽपि खोपधिमालंब्य / शाखायां तस्य शाखिनः / / 37 निविष्टो विष्टरीकृत्य / च्युतपत्राणि नृतले // ए३ // जमपोतमिव दीण-सर्वस्वमिव दुःखिनं // नि. मणे हाथे जपमाला फेरवतो, // // मनुष्यरूपी मत्स्योने बांधवानी जाणे जाळ होय नहि ते. वी कंथाने गनमां धारण करनारो, तथा जाणे चोरी करवानी विद्या जपतो होय नहि तेम श. ब्दविना होठ फफडावतो, // ए० // तथा अधोगतिनो मार्ग चहातो होय नहि तेम जमीनपर दृष्टि राखनारो एवो एक परिव्राजक जोगी तेणे जीर्णवनमाथी पावतो जोयो. // 71 // ऊंची पेनीवालो, लांबी जंघावालो, लाल अांखोवालो, स्तब्ध केशोवालो तथा वांका नाकवालो एवो ते. ने धावतो जोइने अगलदत्ते निश्चय कर्यो के खरेखर था चोर . // ए२ // पड़ी ते परिवाज क पोतानां उपकरण ते वृदनी माळमां टांगीने पृथ्वीपर पडेलां पांदडांगें आसन बिगवीने तेपर | बेठो. // ए३ // जाणे वहाण नांगी जवाथी समुद्र तरीने निकल्यो होय नहि एवा, तथा पोतानी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रीदयाऽगलदत्तं सोऽवतंसो मायिनां जगौ // ए। // वत्स विबायतेयं ते / व्यक्तं वक्ति दरिद्रत मा // तदाशु वद विश्वस्तः / कस्त्वं कौतस्कुतोऽसि वा // ए५ // जगादागलदत्तोऽथ / पटुः कपटनाट. | के // ब्रूते परमकारुण्यं / प्रनो प्रश्नोऽयमेव ते // ए६ // अहमुजायिनीवासी / बायोबिनपरिब दः॥ सर्वात्मना श्रिया त्यक्तः / कुलपुत्रोऽस्मि दुर्नगः // ए // लमदारिद्यदावत्वा-दव्यवस्थं नु. वि ब्रमन् // न्यनालयमिहायात-स्त्वां कारुण्यैकसागरं / / ए निश्चितं त्वयि निध्याते / दारियं सर्व मिल्कत जाणे नाश पामी होय नहि एवा ते दुःखी अगलदत्तने जोस्ने ते कपटीनो शिरो. मणि बोल्यो के, // ए४ // हे वत्स! था तारो दयामणो चहेरो प्रगटरीते तारं दरिजपा सचवे बे, माटे तुं मारापर नरुतो राखीने जलदी कहे के तुं कोण अने क्यांनो रहेवासी ने? // 5 // सारे कपटनाटकमां चतुर एवो ते अगलदत्त बोब्यो के हे जगवन् ! आपनो या प्रश्नज पापन अति दयालुपणुं सूचवे . / ए६ // हुँ उऊायिनी नगरीनो रहेवासी , मारी बाल्यावस्थामांज मारो सर्व परिवार नाश पाम्यो , तेमज हुं बिलकुल धनविनानो अने उर्जागी कुलीननो पुत्र .. | ई. // 7 // दारिद्यरूपी दावानल मारी पाउल लाग्याथी हुँ कई पण ठरठेकाणाविना था पृथ्वी / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। शांतमेव मे // शाम्यत्येव पयोराशिः / कुनजन्मन्युदित्वरे // एए // द्रागयो लिंगिनालिंगि / सौः / म्य सम्यग वदन्नसि // मयि प्रसन्ने सन्नेत्र / नावि तेऽतिघनं धनं // 1700 // एवं तयोर्निगदतोः। | कालजपेन नास्करः // अयं हि तारकश्रीणां / हतॆत्यस्तमनीयत // 1 // गते सूरे जाज्जग्धुं / . 31 | परितः प्रवितस्तरे // असज्जनजनवांत-मलीमसतमं तमः ॥२॥कथाकोणादथाकृष्या-युधानि पर जम्या करुं बु, एवामां यहीं दयाना सागर एवा धापनां मने दर्शन थयां बे. // ए // ख. रेखर श्रापर्नु ध्यान धरवाथीज हवे मारुं दारिद्य तो हुं दूर गयेवु मानुं बु, केमके ज्यारे वमवानल नदय पामे त्यारे समुफ शांतज पडी जाय . // एए // हवे ते परिव्राजके तेने तुरत या. लिंगन देने कां के हे सौम्य ! तुं जे कहे जे ते बरोबर , वली हे उत्तम दृष्टिवाळा ! हुँ ता. रापर जो प्रसन्न थयो तो तने घणु धन प्राप्त थशे. // 1000 / / एवी रीते तेन जेवामां वातो क. रेले, तेवामां था पण तारानी लक्ष्मीने दरनार , एम सूचवीने कालराजाए सूर्यने अस्त प. माज्यो. // 1 // हवे सूर्य ज्यारे चाख्यो गयो त्यारे दुर्जन मनुष्यना अंतःकरणसरखो यति माती. न अंधकार चोफेर विस्तार पाम्यो. // 2 // पड़ी ते परिवाजके पोतानी कंथाना गजवामांथी . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रथिकांगजं // परिबाट् स्माह वत्साजवां / गावोऽस्याः पुरोंतरा // 3 // अद्य चौरो मयापीति / प्री| तिनाजाऽविशत्पुरीं / / स स्तेनोऽगलदत्तेनो-पेतः प्रेतेशनीषणः // 4 // श्रीवत्सानुकृतिदात्रं / क. स्यापि श्रीमतो गृहे // स दत्वा तन्मुखे वीर-ममुंचदंचनाचणः // 5 // विलेनाखुखि दात्र-वर्म३९५ नांतः प्रविश्य सः // नूयसीः स्वर्णरत्नादि-पेटाः प्राचीकटद् बहिः // 6 // तमाशु स्तुकामोऽपि / कोपमश्लथयज्थी॥ निःकृपस्यास्य पश्यामि / निष्टामिति लसन्मतिः // 7 // वाहीकानानये यावथियारो कहाडीने अगलदत्तने को के हे वत्स! चाल हवे आपणे था नगरनी अंदर जाये. // 3 // थाजे हवे मने चोर मख्यो , एम खुशी थता ते अगलदत्तसहित यमसरखा ते जयंकर परिवाजके नगरनी अंदर प्रवेश को. // 4 // पनी ते धूर्तशिरोमणि परिवाजके कोक श्री. मंतना घरमा श्रीवत्ससरखं चोखंडं बाकोरु पामीने त्यां ते बाकोरांना मुख बागल अगलदत्तने बेसाड्यो. // 5 // पनी बिलमां जेम नंदर तेम ते बाकोरांवाटे अंदर जश्ने तेणे स्वर्ण तथा ज. वाहीरनी घणीक पेटीन बहार कहामी. // 6 // ते वखतेज अगलदत्त तेने मारवानी बावाळो | थया बतां था निर्दयतुं रहेगण आदिक मारे जोवु जोश्ये, एवी बुद्धि थवाथी तेणे पोतानो / PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि-| त्तावचिंत्यमिदं त्वया / इत्यवस्थाप्य तं तत्र / स्वयं चौरश्वचाल सः // 7 // लोनायित्वोधुरस्कंधान / धीवंध्यान् वृषनानिव // कापि देवकुले सुप्ता-नानैषीदुर्विधानरान् // ए // तैरुपाट्याखिलं लो. त्र-नारं लोनवशंवदैः // स पुरान्निर्ययो चंडः / करंमादिव पन्नगः // 10 // क यात्येष क वा | धत्ते / धनं कोऽस्य परिबदः // ति बोधुं स्थी नाथ-मिव भृत्यस्तमन्वगात् // 11 // गतो जीक्रोध शिथिल कर्यो. // 7 // हवे हुँ जेटलामां मजुरोने बोलावी लावू त्यांसुधी तारे थानी खबर राखवी, एम कही अगलदत्तने त्यां बेसाडी ते परिव्राजक पोते त्यांथी चालतो थयो. // 7 ॥प. जी ते कोश्क देवमंदिरमा सुतेला मजबूत बांधावाळा बलदसरखा निर्बुधि तथा निर्जागी एवा पु. रुषोने ललचावीने त्यां तेडी खाव्यो. // // लोनने वश थयेला एवा ते पुरुषोपासे चोरीनो ते सघळो माल नपडावीने करंमीयामांथी जेम सर्प तेम ते नगरमांथी बहार निकली गयो. / / // 10 // हवे था क्यां जाय ? अथवा था धन ते क्या राखे ? तेनो परिवार कोण ? ते संघवं जाणवामाटे शेठनी पाग्ल जेम नोकर तेम अगलदत्त तेनी पाउल गयो. // 11 // पड़ी ते चोरोनो सरदार जीर्ण वनमां जश्ने ते मजुरोने कहेवा लाग्यो के अरे! शुं बाजे रात्रि स्थिर Jun.Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- पर्णवनं चौर-चक्री वैवधिका जगौ // नोः किमद्य स्थिरीच्या-ऽवतीर्णेयं विनावरी // 15 // / माई अद्यापि पुष्कला रात्रि-स्तदिह स्वपित दणं // पदं वदंति निःशेष-रुजां रजनिजागरं // 13 // | . इति बंधोखिास्योक्त्या / वाहीका विप्रतारिताः / / मुक्तभारा वटस्याधो / लंबपादा अशेरत / / 354 // 14 // नास्ति जागरिणो जीति-रिति नीति स्मरनथ // रथिकः सुस्थिरं काष्टं / श्रस्तरे स्वे प्रत स्तरे // 15 // अप्रमत्तः स्वयं पश्य-नस्य चौरस्य चेष्टितं // न्यग्रोधस्कंधमाश्रित्य / करवालकरः स्थितः // 16 // चौरः सुप्त्वा दाणं विश्वान् / विश्वासयितुमुखितः // निद्रामुग्तिचैतन्यान् / वाही. थइनेज उतरी ! // 12 // ढजु घणी रात बाकी ने, माटे दाणवार यहीं सूइ जान ? केमके रातनो उजागरो सर्व रोगोना कारणरूप . // 13 // .... . एवी रीते जेम नाश्ना तेम तेना वचनथी उगायेला ते मजुरो चार जतारीने वमनीचे लांबा. पग करीने सूझ गया. // 14 // जागताने मर नथी, एवी नीतिने याद करीने ते अगलदत्ते पोताना बीगनापर पोताने बदले एक लांबु काष्ट मेली राख्यु. // 15 // बने पोते सावधानपणे चोरनी हालचाल तपासतोयको हाथमां तलवार लेश्ने वमना थडनी पाउल बुपा बेठो. // 16 // / P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- कानसिनावधीत // 17 // तस्करो मस्करीच्य | चक्रे यान दुर्नयानयं // कार्या मयाय तच्नु. छि-रिति ध्यायति सारथौ // 10 // नृशंसः स तदास्तीणे-श्रस्तरेऽसिमवाहयत् / / आस्फव्य प्राप मोघत्व-मसिर्दारुणि दारुणे // 17 // ततः सोऽत्याकुलीभूतः / कृपाणं नर्तयन करे। वान३९५ रो वृश्चिकग्रस्त-श्व बनाम सर्वतः // 20 // लब्ध एवासि रे दास / क यासि मम पश्यतः // यो ऽध्वा वैवधिकैः शुष्णः / स ते दोधुना मया // 21 // जपन्नित्याययौ हस्त-वशं स रथिनो यहवे सर्वने विश्वास नपजाववामाटे ते चोर पण क्षणवारसुधी सूतो, तथा पजी उठीने निसाथी चैतन्यरहित थयेला ते मजुरोने तेणे तलवारथी मारी नाख्या. / / 17 // अरे! या चोरे मदोन्मत्त थश्ने जे अन्यायो कर्या , तेनी बाजे.मारे खबर लेवी जोश्ये, एवी रीते जेवामां ते अ. गलंदत्त विचारे थे, // 17 // तेवामां ते दुष्ट चोरे तेना बिगनापर तलवारनो घा कर्यो, त्यारे ते. नी तलवार ते जयंकर काष्टमां अथमाश्ने फोकट गश्. // 15 // त्यारे ते अत्यंत व्याकुल थाने हाथमां तलवार नचावतोथको वींबुथी मंखायेला वानरनीपेठे यासपास नमवा लाग्यो.॥२०॥ | अरे दास ! तुं हवे मव्या बतां मारी नजर आगलथी केटलेक जश्श? या मजुरोए जे मार्ग ली। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। दारे दष्ट तिष्ट तिष्टेति / तदा तेनाशु दकितः // 25 // निन्नेऽमुनाऽनृतोत्कंठे। कंठे कुठेतरा. मा सिना॥ पपात पातकनरा-दिवाधस्तस्कराधमः // 3 // ततः कंगतप्राणः / स प्रोचे रथिकांग जं // मां बुधिधाम बुध्यस्व / चौरं नाम्ना जुजंगमं // 24 // वीरापीड दिषोऽपीडे / तवाहं घातचा. 396 | तुरीं // दुर्ग्रहं भटकोटीनियन्मामेवमखंडयः // 29 / / ईदृग्वीरावतंस त्वं / ध्रुवं सत्कारमर्हसि / / धो , तेज मार्ग मारे तने पण, हमणा देखाडवो . // 21 // एम बोलतोयको जेवामां ते अ. गलदत्तने हाथ श्राव्यो त्यारे तेणें तेने तुरत धमकाव्यो के घरे दुष्ट ! तुं जनो रहे, // 2 // एम कही सजेली तलवारथी पापोमां उत्कंठावा एवं ते चोरनुं गर्बु ज्यारे तेणे कापी नाख्यं सारे ते नीच चोर जाणे पापोना जारथी होय नहि तेम नीचे पड्यो. // 23 // पनी कंठे प्राण श्राव्याथी तेणे अगलदत्तने कडं के हे बुछिवान! मने तारे भुजंगम नामे चोर जाणवो. // 24 // हे वीरशिरोमणि! तारी शत्रुनी पण (मने) मारवानी चालाकीनी हुं प्रशंसा करुं बु, केमके को मो गमे सुनटो पण जेने पकमी शक्या नथी, एवा मने तें यावी रीते मार्यो . // 25 // एवो | तुं वीरशिरोमणि खरेखर सत्कार करवा लायक नगे, अथवा हुं तने धन देवानुं वचन आपीने श्र। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- धनदानं प्रतित्याय / सहानीतोऽसि वा मया // 26 // तदेनां विज्ञ विज्ञप्ती / मम सम्यकप्रमाणय ॥वं कृपाणं गृहाणेद–मरिमेदबिदौषधं // 27 // गब श्मशानतोऽमुष्मा-दत्स पश्चिमया दि. | शा॥ पुरः पश्यसि यत्सम / कुर्यास्तवारि शब्दितं // 20 // मम खसा ततो दार-मुद्घाट्य वामुपेष्यति // दर्शयेथा मं तस्याः / करवालं करे स्थितं // 27 // हृष्टाथ मुष्टिमध्या सा / त्वां म. ध्येसद्म नेष्यति / / दर्शयिष्यति चादर्श-मुखी मत्संचितं धनं // 30 // ततस्तां परिणीय त्वं / श्रियं ही लावेलो बु. // 26 // माटे हे चतुर! मारी एक या विनंति तुं सारी रीते स्वीकार ? अने श. जुननो मद जतारवामां औषधसरखी मारी या तलवार ग्रहण कर? // 17 // वळी हे वत्स! या श्मशानथी पश्चिम दिशामां तारे जवं, त्यां आगळ तने एक घर देखाशे, तेने बारणे जइ तारे ढांक मारवी. // 20 // त्यारे मारी बहेन वारणुं नघामीने तारीपासे श्रावशे, तेणीने था मारी तलवार तारा हाथमां लेश्ने देखामजे. // 25 // त्यारे ते पातळी केमवाळी मारी बहेन खुशी थ भने तने घरनी अंदर ले जशे, अने दर्पणसरखामुखवाली एवी ते मारुं संचेढुं धन तने देखामशे. // 30 // पनी तेणीने तुं परणीने तथा सघली लक्ष्मी लेश्ने जो तने रुचे तो त्यां स्टेजे Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 धम्मि- स्वीकृत्य चाखिलां // तत्र स्थेयानिज धामा-निगम्यादा यथारुचि // 31 // प्राणैरेवं वदन्नेव / / मार्ग चौरः सपदि तत्यजे // रथी तत्वज्यादाया-ऽचलत्तदुदिताध्वना / / 3 / / सुतनोरतनोबद्धं / प्राप्य तन्मंदिरं पुरः॥ तं श्रुत्वा निर्ययौ सेंदु-वदना सदनांतरात् // 33 // स वीदय तारतारुण्यां / ता| मरण्य निवासिनी // श्रागानागांगनेयं किं / नुवं नित्वेति दध्यिवान् // 34 // तेनाथ दर्शिते खके / बुध्ध्या बंधुवधं सुधीः // सा दणं सादिणं कृत्वा-त्मानमेव शुचं दधौ // 35 // निगृह्य शोकमअथवा पोताने घेर जजे. // 31 // एम बोलतोथकोज ते चोर तुरत प्राणरहित थयो, अने अगवदत्त पण तेनी तलवार लेख्ने तेणे कहेला मार्गे चाव्यो. // 3 // पनी तेना घर बागल या. वीने तेणे तेनी बहेनने हांक मारी, ते सांजलीने चंडसरखा मुखवाळी ते तरुणी पण घरमांथी बहार थावी. // 33 // अति तरुण वयवाळी थने वनमा रहेनारी एवी तेणीने जोश्ने भालदत्ते विचार्य के शुं पृथ्वी नेदीने था नागकन्या यहीं यावी ? // 34 // परी तेणे तलवार देखा. ड्याथी ते चतुर तरुणीए पोताना बंधुनो वध थयेलो जाणीने क्षणवारसुधी पोताना यात्मानी | सादीएज शोक धारण कर्यो. // 35 // पोताना ते अतिशोकने बुपो राखीने तथा ते अगलदत्तः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 धम्मि-| स्तोकं / पातालोकः प्रवेश्य तं // प्रथयामास वितथं / स्नेहं मायेव देहिनी // 36 // अहो नाग्यं / मा ममापूर्व / यत्त्वं दृक्सुखदोऽनवः // इत्यूचुषी ददौ नत्या-नवमा नवमासनं // 37 // तस्मिन्नास नगे पादौ प्रदाव्य वखारिणा // पट्यंकं वेश्मकोणे सा / विततान वितानयुक / / 37 // योजितांजलिरत्येत्य / सा तमेवं व्यजिझपत // पापैः स्वैरेव मे जाता / हतः किं तव दूषणं // 30 // | श्यं वातार्जिता लक्ष्मी-स्तत्तद्भोगनिबंधनं // इदं च सदनं तस्य / देवानामपि दुर्गमं // 40 // ने भोयरामां ले जश्ने ते कपटमूर्ति तेनाप्रते जूठो स्नेह विस्तारवा लागी. // 36 // अहो ! मा. अपूर्व जाग्य जणाय , के जेथी मने आपनुं दर्शन थयुं ने, एम कहीने तेणीए अतिनक्तिथी तेने ( बेसवामाटे ) एक नवु थासन पाप्यु. // 37 // पनी ते ज्यारे श्रासनपर बेठो त्यारे निर्मल जलथी तेना पग धोश्ने तेणीए घरना खुणामां एक छत्रीपलंग बीगव्यो. // 30 // पजी ते तेनीपासे भावी हाथ जोडीने विनंति करवा लागी के पोताना पापोथीज मारो नाइहणायो बे, तेमां तमारो शुं दोष ? // 35 // ते ते नोगोना साधनरूप aa मारा नाश्नी मेळवेली लक्ष्मी ने. अने देवोने पण दुर्गम एq था तेनुं घर . // 40 // हे स्वामी! था सघg हवेधी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- नेतः सर्वस्वमप्येत-त्वदायत्तमतः परं // प्राग् मां विवाह्य भुंदव त्व-मत्र जोगान् यथारुचि // 41 // | जाने तव परिम्लाने / चक्षुषी वीक्ष्य दक्षिण // अल्पमप्यद्य यामिन्यां / न निखासुखमन्वनः / / | // 42 // पुनातु प्रथमं प्राण-प्रिय शय्यां जवानिमां // दणं गृह्णातु विश्रामं / श्रमं हंतुं सुखदिषं 400 // 53 // अहो अवसरझत्वं / तवेत्युच्चैः पठन शठः // पल्यंके परितो दीप-प्रदीपे सोऽस्वपीन्मृ. दौ // 44 // त्वदंगशैत्यदं स्वामि-नानयामि विलेपनं // इत्युक्त्वा विद्युदंनोदा-दिव सा निर्ययौ बापर्नुज ने, माटे प्रथम तमो मारीसाथें विवाह करीने यहीं नामुजब जोगो जोगवो ? // 41 // वळी हे चतुर! तमारी था घेराती यांखो जोश्ने हुँ एम धारं बं के बाजे रात्रिए तमोए जरा प. ण निद्रासुख अनुजव्यु नथी. // 42 // माटे हे प्राणनाथ! प्रथम आप आ विगर्नु पवित्र करो? तथा सुखना देषी एवा श्रमने दूर करवामाटे आप दणवार विश्राम ब्यो? // 43 // अहो! तुं तो नारे अवसरनी जाण लागे ! एम मोटेथी कहीने ते चतुर अगलदत्त चोफेरथी दीपकना बजवाळांवाला कोमळ पलंगपर सूतो. // 4 // हे स्वामी! हवे आपना शरीरे ठंडक करवामाटे हुं विलेपन लावू, एम कहीने वादळांमांथी जेम वीजळी तेम ते त्यांथी निकली गइ. // 45 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ततः // 45 // अपश्यंस्तां पुरो नीति-चतुरः स व्यचिंतयत् // जडोऽहं यदिपोर्गेहे / स्वपन्न स्मि खवेश्मवत // 6 // ये गत्वा वैरिणो गेहं / विश्वसंति कुबुध्यः // निरौषधवलाः सर्प-बिले ते ख खु शेरते // 4 // जामिः क्रूरस्य चौरस्य / क्रूरैवेयं. जविष्यति // न सर्पसोदरी कापि / सर्पत्व४०१ | ब्यभिचारिणी // 4 // मुखे मधुरमंते च / कुपथ्यमिव दारुण // ये स्त्रीणां बहु मन्यते / वचस्तेषां कुतः सुखं // 4 // ध्यात्वेति मंछ वध्यो:-कल्पं तल्पं मुमोच सः // तत्र स्वपटमास्तीर्यो-पधानदयमंडिते // 10 // ढवे तेणीने पोतानी पासे नहि जोवाथी ते नीतिचतुर अगलदत्त विचारखा लाग्यो के, अरे हं | तो शुं मूर्ख बन्यो बुके या शत्रुना घरमां पण पोताना घरनीपेठे सूतो लुः // 46 // जे मूखों | वैरीने घेर ज तेनो विश्वास करे , तेज औषधना सामर्थ्य विना सर्पना बिलमां सुए . // 4 // ते निर्दय चोरनी या बहेन पण निर्दयज होवी जोश्ये, केमके सर्पनी बहेन कई सर्पपणाथी जदीपाती नथी. // 4 // कुपथ्यनीपेठे प्रारंजमां मधुर तथा अंते भयंकर एवं स्त्रीननु वचन जे. जमाने में, तेजने सुख क्याथी होय ? | HQ || Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दीपपृष्टमवष्टन्यो-दसिः स्वविदसौ स्थितः // नकीलिता तया ताव-तपे यंत्रशिलापनत् // 11 // सार्थ अघाति घातको वातु-रिति प्रमुदिताशया // शयान्यां ददती ताला–मय बाला ननत सा // // 55 // प्रस्थाप्य दक्षिणाशायां / बंधुमेकाकिनं मम // दुर्वृत्त यन्निवृत्तोऽसि / तन्मया मृष्यते क. 402 थं // 53 // अवषेति विश्वासं / यन्मयि त्वमुपेयिवान् / / मंतोस्तस्य फलं वीर-नगिन्यहमदर्श ... . एम विचारीने तेणे वधभूमीसरखी ते शय्या तुरत बोडी दीधी. तथा बन्ने नसीकांथी शोजी. ता एवा ते पलंगपर तेणे पोतानो उपट्टो पाथरी राख्यो, // 10 // तथा पोते खुल्ली तलवारस हित दीपकनी पाबळ ननो, एवामां तेणीए खीली कहाडवाथी ते पलंगपर एक यंत्रशिला उपरथी श्रावी पमी. // 51 // मारा जाश्ने मारनारने में मार्यो, एम विचारी अति खुशी थयेली ते युवती बन्ने हायोधी ताली देश नाचवा लागी. // 12 // मारा चाश्ने एकलोज दक्षिण दिशामां (यमपुरीमां) मोकलीने अरे इष्ट ! तुं जे नीरांते बेठो बुं, ते हुँ केम सहन करी शकं ? // 53 // था तो अबला, एम विचारीने मारापर जे तें विश्वास राख्यो, ते तारा अपराधन या फल में | शूरवीरनी बहेने तने देखाडेवू . // 24 // एवी रीते खूब बबडती एवी ते चोरनी बहेनने खः / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- यं // 24 // अनटपमीति जल्पंती / खजखाटकारभीषणः // जग्राह ग्राहवत्केश-पाशे तां रथि- / कांगजः // 25 // अरेरे गोमुखव्याधि / मानुषीरूपरादसि // विश्वरदादमः किं स्वं / नाहं गो. पायितुं दमः // 27 // लपंत्यसि यथा जातु-स्तथा पंथानमीदासे // तेनेति तर्जिता साचू-द्भ. 403 यत्रांतविलोचना // 27 // अनन्यजीवनोपाया / साऽपतत्तस्य पादयोः // त्वमेव शरणं देव / स. दैन्यमिति चाषिणी // 50 // वीरेषु प्राप्तरेखोऽसौ / स्त्रीहत्यायामरोचकी // तां जीवंती सहादाय जना खादकारथी जयंकर थयेला ते अगलदत्ते. मगरनीपेठे चोटलो मालीने पकडी. // 55 // अरे गायना मुखवाळी वाघण! तथा मनुष्यरूपी रादासी! समस्त जगतनुं रदाण करवाने समर्थ एवो हं शुं मारा आत्मानुं पण रक्षण करूं तेम नथी ? / / 27 // तुं जे था बबडाट करे ने, तेथी जेवा तारा नाश्ना हाल थया ने तेवाज तारा पण हाल थशे, एवी रीते तेणे तर्जना कखादी ते नयनांत आंखोवाळी थ. // 27 // पनी जीववानो को बीजो श्लाज न मलवायी ते तेने पगे पमी, तथा दीनतापूर्वक कहेवा लागी के, हे देव! हवे तो बापज मारे शरणरूप को // 50 // परी वीरशिरोमणि एवो ते अगलदत्त स्त्रीहत्यानो अनिबक थयोथको तेणीने जीव P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। प्रातर्जपसनां ययौ // 60 // निशावृत्तं मुखात्तस्य / निशम्य धरणीधवः / / तमेवं जातरोमांचः / / | स्तुतिव्रत वास्तुत // 61 // जुजतेऽन्ये धनं राज्ञः / कार्य त्वन्ये प्रकुर्वते // पूणां पादाः पिबत्यं. | बु / शाखास्तु ददते फलं / / 6 / / नेका गवंतु सोडेकाः / सरसीपरिशीलने // एक एव पुनर्वत्ते / हंसस्तत्रावतंसतां // 63 // ततस्तों नगिनीकृत्य / वनितामवनिप्रनुः // सहितोऽगलदत्तेन / स्तेनसद्म तदा ययौ / / 64 // वीक्ष्य वस्तु यथावई / गर्भगेहगतं नृपः // दुष्टचौरस्य दुर्वृत्त-ममतीज साथे लेश्ने प्रजाते राजानी सजामां श्राव्यो. // 60 // पनी तेना मुखथी रात्रिनो वृत्तांत सांजलीने रोमांचित थयेलो राजा बंदीनीपेचे तेनी स्तुति करवा लाग्यो के, // 61 // राजानुं ध. न बीजा खाय , अने कार्य तो बीजा करे , केमके वृदोनां मूलीयां पाणी पीये , अने शा. “खान फल आपे . // 6 // तळावमां गम्मत करवामाटे देडकां जाले कुद्याज करो..परंतु ते तलावनी शोना तो एक हंसज धारण करे . / / 63 // परी ते चोरनी बहेनने पोतानी बहेनरूप | गणीने राजा अगलदत्तसहित ते चोरने घेर गयो. // 64 // त्यां ते दुष्ट चोरनां भोयरानी अंदर / राजाए शीलबंध सर्व वस्तु तपासीने पोते जैनी होवाथी तेना दुराचारमाटे विचारखा लाग्यो के, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि ईत महार्हतः // 65 // अनेन वस्तुजातस्य / नास्यं मुजापि नेदिता // बहारि हा निजं जन्म / गृधिग्रस्तेन केवलं // 66 // प्रस्थानमिव निर्मुक्त–मधोगतियियासुना / / न तत्र बजतानेन ।स. | हेदं जगृहे धनं // 67 // ध्यात्वेति भृनुजाहूतो। लोक कस्तदागतः / न्यासीकृतमिव प्राप / 401 खापतेयं निजं निजं // 60 // स्तुतोऽथ रथिकः पोरैः / पूजितः पृथिवीभुजा // अतीये दिवसान कांश्चित् / तत्रोत्सवमयानिव / / 67 // अन्यदा श्यामदत्तायाः / सखी संगमिकान्निधा // प्रदोषे मुक्तदोषं त-मुपेयाय रहःस्थितं // // 65 // या चोरें या सघली वस्तुन्नुं सील पण तोडेढं नथी, घरे! केवळ लोनने वश थइने तेणे पोतानो जन्म गुमाव्यो . // 66 // नीच गतिमा जवामाटे जाणे तेणे प्रस्थान मुक्यं होय नहि तेम तेणे त्यां जतांथकां आ धन साथे लीधुं नथी. // 67 // एम विचारीने राजाए बोलावेला लोको त्यां ते चोरने घेर अाव्या, तथा जाणे थापण राख्यु होय नहि तेम तेजए ते पोतपोतानुं धन ले लीधुं. // 67 // पड़ी नगरना लोकोथी प्रशंसा पामेला तथा राजथी पूजा। येला ते अगलदत्ते त्यां केटलाक उत्सवमय दिवसो व्यतित कर्या. // 6 // Jun Gun Aaradhak ikust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- // 70 // तेनापि दत्तसंमाना / पृष्टाऽगमनकारणं // प्रणामं श्यामदत्तायाः / विझप्येति जगाद सां मा॥ 31 // यां विनांगो नीरजिनी / रजनी शशिनं विना // श्यामा श्यामानना स्वामि-स्त्वां वि. ना प्राप तां दशां // 12 // सांप्रतं सा नयनयो-निर्यदश्वोघदंजतः // जलांजलिमिवाशेष-सु. | खानां स्वब यति // 13 // अंतर्बलदियोगामि-ज्वालायोगादिवान्वहं // स्फुरति तन्मुखे शैत्यनिःखा निःश्वासपंक्तयः // 14 // त्वां वहंत्यक्ला नित्यं / नवनागवलं हृदा // अतिनारादिवाऽवाप - एक दिवसे श्यामदत्तानी संगमिका नामनी सखी संध्याकाळे दोषरहित तथा एकांते बे. ठेला ते अगलदत्तपासे यावी. // 70 // त्यारे तेणे पण तेणीने सन्मान आपीने याववानं का. रण पूज्यू, त्यारे ते पण श्यामदत्तानो प्रणाम कहीने बोली के, / / 71 // हे स्वामी! जलविना कमलिनी तथा चंडविना रात्री जे दशाने पामे ते दशाने ताराविना श्याम मुखवाळी ते श्याम दत्ता पामीने. // 12 // वळी हे स्वन! हाल तो ते अांखोमांथी निकलतां बांसुजना मिषयी णे सर्व सुखोने जलांजलि आपे . // 13 // हृदयमां बळता वियोगरूपी अमिनी ज्वालाना सं. | योगथी होय नहि जेम तेम हमेशां तेणीना मुखमांथी नष्ण निःश्वासोनी श्रेणिन निकल्या क .P.P.AC.Gunratnasuri.M.S, Jun Gun Aaradhak Trust Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' सार्थ या धम्मि- / क्षमतां साधु साधुना // 55 // निःसपत्नमनोरत्न-स्तेनस्य तव लिप्सया // निशायामपि निद्रा / | या। नावकाशं ददाति सा // 76 // भेजे गर्ता न मां नक्ता–मिति त्वदनुवृत्तितः // विधा भ. | ते जनेऽने च / नास्थमृजुरियर्ति सा // 7 // प्रियं विना परः कोऽपि / मास्मन्मयि रागनः / / .07 | इति तांबूलमादत्ते / त्वदशा रागकन्न सा // // कुरुते स्नेहलामालि-मालामालापतो बहिः रे . // 7 // नवा हाथीसरखा बळवाला एवा तने हमेशां हृदयमां धारण करनारी ते अबला जाणे अति बोजाथी होय नहि तेम हालमा जे बळी पड़ी गने ते युक्तज . // 35 // ते णीना अमूल्य मनरूपी रत्ननो चोरसरखो एवो जे तुं, तेने पकमवानी श्वायी रात्रीए पण ते नि जाने अवकाश थापती नथी. // 76 / / मने नक्तने पण मारो स्वामी जोगवतो नथी, एम वि. चारी तारं अनुकरण करीने ते विचारी बन्ने रीते नक्त मनुष्यमां अने जक्त एटले जोजनलायक मानाजमां पण रुचि धरती नथी. // 9 // मारा प्रियतमविना माराप्रते बीजों कोश्पण रागवानो न था, एम विचारीने तने वश थयेली ते श्यामदत्ता राग (रंग) करनारुं तांबूल पण लेती नथी. // 70 // वळी ते बालिका तारा नामना मंत्रना ध्यानमां भंग परवाना मरथी जाणे होय / .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- बाला वदनिधामंत्र-ध्याननंगजयादिव // 15 // मंचको वचको हंस-तूलिका शूलिकायते // सार्थ | त्वां विनास्या दुकूलानि / कुकूलानिलवच्तुचे॥ 70 // तव स्तेनजयक्ष्माप–प्रसादप्रमुखं यशः॥ तत्रागसागरदोने / वह्निदिवायुतां गतं / / 71 // ईग्वियोगदावाग्मि-तप्तांगी तृप्तिहेतुभिः // स्वां. 400 कसंगमपीयूषै-स्तां तोषयितुमर्हसि // 72 // प्रहिताहं तया हंन / तवेति गदितुं प्रभो ॥पासि पौ. रानपायेन्यः / किं मामार्तामुपेदसे // 73 // श्रुत्वेत्यगलदत्तोऽवक् / किमिदं गदितं त्वया // पृ. नहि तेम पोतानी स्नेहयुक्त सखीजनी श्रेणिने पण बोलावती नथी. // 70 // वळी ताराविना | ढोली तेणीने गारो लागे , हंसरोमनी शय्या शूलीजेवी लागे , तथा रेशमी वस्त्रो बुना उष्ण वायुसरखां खेदकारक थर पड्यां . // 70 // वळी चोरनो. जय तथा राजानी कृपा प्रादिकथी नत्पन्न थयेलो तारो यश तेणीना रागरूपी समुद्रने नगळवामां अमिखूणाना वायुसरखो थ३ पड्यो बे. / / 71 // एवी रीते वियोगरूपी दावानलथी तपेलां शरीरवाळी एवी तेणीने शीतल करनारा तारा खोळाना संगरूपी अमृतथी तारे खुशी करवी जोश्ये. // 2 // हवे हे प्रभु! तने | भावी रीते कहेवामाटे तेणीए मने मोकलीने के तुं नगरना लोकोनुं तो दुःखोथी रक्षण करे .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- थग्देहाश्रयाः प्राणाः / श्यामदत्ता हि मे ध्रुवं // 4 // लुजानस्य शयानस्य / व्रजतस्तिष्टतोऽपि | वा // हृदो न दूरीनवति / श्यामा हारलतेव मे // 5 // तब वत्सले सजी-कृत्य तां चानंय पुतं // सोऽहमस्मि प्रतिष्टासुः / प्रातरुऊयिनीप्रति // 76 // तयाय बोधितोदंता / श्यामदत्ता प्र. मोदिनी // श्रादाय रथमायासी हासीकृतमरुऊवं // 7 // ततः पिनसर्वांग-पुलकबलक चुकः // तामालिंग्य सुधासिंधु-स्नानं स स्वममन्यत // 7 // श्यामां च शस्त्रपंक्तिं च / परमारोबे, अने मने दुःखीने शामाटे नपेक्षे ? / / 73 / / ते सांनळीने अगलदत्त बोब्यो के अरे! तं आ शुं बोली? श्यामदत्ता तो खरेखर जुदा शरीरमा रहेला मारा प्राणसरखी जे. // 4 // ते श्यामदत्ता तो हारनीपेठे नोजन करतां, सुतां, चालतां तथा उनतां पण मारा हृदयमांथी दूर थती नथी. // 5 // माटे हे वत्सलं ! तुं जा? अने तेणीने तैयार करीने तुरत लाव? केमके प्रभातमां हैं उज्जयिनीतरफ जवानो बु. // 6 // हवे ते दासीए जश्ने ते वृत्तांत कहेवाथी श्यामढ. तो पण खुशी थक्ने पवनना वेगने जीतनारो स्थ लेश्ने त्यां आवी पहोंची. / / / / पजी सर्वश| पर रोमांचित थयेलो ते अगलदत्त तेणीनुं आलिंगन करीने पोताने अमृतना समुडमां स्ना. P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 410 धम्मि| पकारिणीं // अथो रथोपरि न्यस्य / प्रातर्गबन् जुघोष सः॥ नए // शृएवंतु सुन्नटाः सर्वे / गर्वैः / माणाध्मातचेतसः // श्यामामादाय यात्येष / कर्मसादिणि सादिणि // ए०॥ यो युधे जुजकंमूलो / / यियासुर्यमसम यः // यो नवांबापयस्कामः / स मां यांतं निषेधतु / ए१ // एवं निजनुजस्था. | म / स्फोरयन् जटकोटिषु // केनाप्यरुष्प्रसरः // सुरश्रोतःप्रवाढवत् // 72 // निर्गतो नगरादडि| कंदरादिव केसरी // प्रपेदे वर्त्म सोऽवत्याः / कृत्वा दिग्देवतानति // 13 // त्रिनिर्विशेषकं / / नो. न करेलो मानवा लाग्यो. // 7 // पनी अति कामने शांत करनारी एवी ते श्यामदत्ताने, तथा परने माखामाटे उपयोगी एवी शस्त्रोनी श्रेणिने ते रथमां नाखीने प्रजाते जतोयको मोटेथी बोलवा लाग्यो के, // नए // गर्वथी नरेला मनवाळा हे सर्व सुनटो! तमो सांगलो? आ ह सू. येनी साक्षीए श्यामदत्ताने ले जानं बुं. // 50 // युधमाटे जेना हाय चळवळी रह्या होय. जे यमने घेर जवाने बतो होय, अथवा जेने नवी माताना स्तनपाननी श्वा होय ते मने जतो घटकावे. // 71 // एवी रीते क्रोडोगमे सुनटोनी वच्चे पोतानुं भुजावळ प्रगट करतोयको तथा दे. वगंगाना प्रवाहनीपेठे कोश्यी पण न अटकावाएलो, // ए५ // पर्वतनी गुफामांथी जेम केसरीः | P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- जनावसरे बंधु-वियोगात्परिदेविनी // स कापि सरसि श्यामां / सप्रश्रयमनोजयत् // ए // वि. धाय वाजिनोस्तृप्तिं / तृप्तिं स्वस्यापि कल्पयन् // भूयो रथी रथारूढो / यो वर्त्म व्यलंघयत् // | // 5 // स ययौ कंचन ग्रामं / दशार्णविषयांतिकं // पिंडीत जनवातं / तस्य सीनि ददर्श च 411 // ए६ // तस्माद् द्वौ पुरुषों पाथ-वैषो रथिकपुंगवं // सरस्तीरे हयपयः-पानव्यग्रमुपेयतुः // 7 // तौ कुतः पथिकायासी / क गंतासीत्यपृबतां / नवाच सोऽपि कौशांब्या / गंतास्म्युऊयिनीमहं // सिंह तेम नगरमांथी निकळीने ते दिशादेवीने नमीने अवंतीने मार्गे चाल्यो. // ए३ // पजीनो. जनवखते बंधुऊना वियोगथी खेद पामती एवी ते श्यामदत्ताने कोश्क तब्बवने किनारे याग्रह पूर्वक तेणे जमामी. // 4 // पछी घोडा ने तृप्त करीने तथा पोते पण तृप्त थश्ने ते अगल दत्त पागे स्थपर चीने घणो मार्ग नळंगी गयो. // 55 // पड़ी ते दशार्ण देशनी पासे रहेला कोक गामपासे गयो, त्यां ते गामनी सीममां तेणे एकग थयेला जनसमुहने जोयो. // 56|| ते समुहमांथी पंथीना वेषवाळा बे पुरुषो तळावने किनारे घोमाने पाणी पावामां पडेला ते . गलदत्तनी पासे याव्या, // 7 // अने पूजवा लाग्या के हे पंथि तुं क्याथी आवे ? तथा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri. M.S. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- // एG // तो पुनः प्रोचतुर्विश्व-मान्य यद्यनुमन्यसे // यूथेशं यूथवत्तत्त्वां / सार्थोऽयमनुगबति / / मा // एए // कुंनी गंजीरवेदी दृ-ग्विषोऽहि:प्यकं पुनः॥ अर्जुनश्चौरसेनानी-रेते दुष्टा हा ध्वनि // 1500 // रथिके पथी नामीज्यो / नेतव्यं मयि रदके // इत्युदित्वा विसृष्टौ तौ / स्वयू. 415 थेन्यस्तदुचतुः॥१॥ ततस्ते सकलाः प्रीति-कलाः कलकलाकुलाः // यावत्प्रतस्थिरे ताव-दु. | चे कोऽप्येत्य तापसः // 2 // श्राधः सिप्रासरिहारि-वारिताखिलकल्मषां // पुरीमुज्जयिनी गंत / क्यां जवानो ने? त्यारे अगलदत्ते कह्यु के हुँ कोशांचीथी बाबु बु तथा उज्जयिनी जवानो वं. // ए // त्यारे वळी तेनए कह्यु के हे जगतमान्य! जो तुं कबुल करे तो संघपतिनी पाल जेम संघ तेम आ सघलो सार्थ तारी पाबल चाले. // ए // केमके या मार्गमां गंजीरवेदी हा. थी, दृष्टिविष सर्प, वाघ, तथा अर्जुन नामनो बुटाराननो सरदार, एटला विघ्न करनारा दृष्टो रहे . // 1000 // तमारे मार्गमां तेनथी मखु नहि, केमके हुँ तमारुं रहाण करीश, एम कहीने विसर्जन करेला तेन बन्नेए पोताना टोळमां श्रावी ते वृत्तांत सर्वने कह्यो. // 1 // त्यारे तेज | सघन हर्षथी कोलाहल करताथका जेवामां त्यांथी नपड्या तेवामां कोश्क तापसे आवीने तेन / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- चिरादुत्कंठितोऽस्म्यहं // 3 // परं क्रूरकरिख्याल-दीपिचौराकुले पथि // शक्तो न गंतुमेकाकी / | नाकीव दितिजालये // 4 // प्रपद्ये भवतां सार्थ / न नवत्यधृतिर्यदि // परवाधकरी चेष्टा / नेष्टा / | क्वापि तपस्विनां // 5 // एह्येहि मा विलंबिष्टा-स्तैरियुक्तोऽखिलैरपि // दीनास्योऽदर्शयदसौ / / 413 | दीनारान पंचविंशति // 6 // श्मान ममास्तिकः कोऽपि / देवार्थमदान्मुदा // तदमी. किं समी. ने कह्यु के, // 2 // सिप्रा नदीना जलथी निवारण थयेल ने सर्व पापो जेमांथी एवी नायिनी नगरीप्रते जवाने हुं श्रावक घणा काळथी नत्कंठित थयेलो इं, // 3 // परंतु क्रूर हाथी, सर्प वाघ तथा चोरथी व्याकुल थयेला था मार्गमां देव जेम दैत्योना स्थानमा तेम हुं एकाकी जय शकुं तेम नथी. // 4 // माटे जो तमोने कई हरकत न होय तो हुं तमारो सथवारो लेनं, के मके परने हरकत यावे एवी चेष्टा क्यांय पण तपस्वीनने इष्ट न होय. // 5 // अरे! तं पण चालने खुशीथी, परंतु हवे विलंब न कर ? एम तेज सघळाए. कह्याथी ते तापसे दयामणे चहेरे पोतापासे रहेली पचीस सोनामहोरो तेजने देखाडी, // 6 // घने बोल्यो के कोश्क आस्तिके देवपजामाटे मने था सोनामहोरो हर्षथी थापी ने, माटे या साची डे के खोटी ते मने जो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- चीना / हीना वेति जंगाद सः॥७॥ ते.प्रोचुर्मुग्ध केनापि / विप्रबुब्धोऽसि मायिना // मान | | कूटानपि प्राप्य / यद्वाल व नृत्यसि // // स दुःखं कृत्रिमं तत्र / दधानोऽथ धरातले // विबु. लोठ कृतानंद-ममंदं ताडयन्नुरः // ए // ततः प्रसृतकारुण्यैः / स तैरालापि तापसः // शुचालं | संति दीनारा / नुयांसो नस्तवैव ते // 10 // सार्थ सार्थ स विझाय / न्यायहीनो वहन्मुदं / / च. चाल तैः सह व्याल / श्व नित्यं दुराशयः // 11 // निध्याय तं रथी दध्यौ / क्रूरं कृतधियां वरः यापो? // 7 // त्यारे (ते जोस्ने ) तेन बोल्या के अरे मुग्ध ! कोश्क कपटीए तने ठग्यो . के जेथी या खोटी महोरो मेलवीने पण तुं बालकनीपेठे नाचे में. // 7 // त्यारे दुःखी थयानो ढोंग करीने ते पृथ्वीपर लोटी पड्यो, तथा घाणु रुदन करतोयको गती कुटवा लाग्यो. // // यारे दया भाववाथी तेनए ते तापसने कह्यु के हवे तुं शोक कर नहि, अमारीपासे घणी सो. नामहोरो ने. अने ते सघळी तारीज जे. // 10 // हवे ते सार्थने धनवाळो जाणीने ते बच्चो ता. पस हर्ष पामतोथको सर्पनीपेठे हमेशां दुष्ट पाशयवाळो थयोथको तेनीसाथे चालवा लाग्यो. | // 19 // हवे बुध्विानोमां श्रेष्ट एवा ते अगलदत्ते ते तापसने क्रूर जाणीने विचार्य के, घासथी P.P.AG..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 415 धम्मि- // विश्वासो मे तृणबन्न-कूपस्येवास्य नोचिंतः // 15 // समर्थः सार्थमादाय / बुधः सज्जीकृतायु. धः // स यसीमलंघिष्ट / भुवं दिवमिवार्यमा // 13 // मध्यंदिने दिनाधीश-तापास्तेि मृगा श्व | // पांथाः पुरः सरित्तीर-तरुबायाः सिषेविरे // 14 // तापसः पथिकानूचे / नवद्भिर्मयि सकपैः / / नाद्य पाकक्लमः कार्यो / विवाहामंत्रितखि // 15 // .. . . अस्ति नद्यास्तटेऽमुष्या / गोमहिष्यादिसंकुलः // ग्रामोऽध्वचारिणां दुग्ध-दधिसत्र व ध्रुवः बवायेला कुंवानीपेठे मारे या तापसनो विश्वास करखो उचित नथी. // 12 // पड़ी ते समर्थत. था हुशियार अगलदत्त हथियारों सऊ करीने ते सार्थने लेश्ने सूर्य जेम आकाशने तेम घणी भूमीने नलंगी गयो. // 13 // हवे मध्याह्न काळे सूर्यना तापथी खेद पामेला ते पंथीन हरिः णोनीपेठे पागळ आवेली एक नदीने किनारे वृदनी गयामां बेग. // 14 // त्यारे ते तापसे तेथिनने कीधुं के आज तो मारापर महेरबानी करीने जाणे तमो विवाहमां नोतरेला हो न. हितेम तमारे रसोइ करवानी तकलीफ उठाववी नहि. // 15 // . मके या नदीने किनारे गायो भने भेसोथी गरे एक गाम , के जे गाम वटेमार्ग P.P.AC.Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak Trust Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्य // 16 // प्रयागंप्रति पुण्यार्थी / पुराऽवतीपुराद् व्रजन् // ग्रामेऽत्र लोकहर्षाय / वर्षावास व्यधामहं माई // 17 // चिरं परिचिता जक्ता / नक्तमापत्त्रमत्र मे // ग्राम्या दास्यति तेनातः / नोजयिष्यामि वः सुखं // 10 // इत्युक्त्वा. ग्राममध्यं स / जगध्ध्वंसनधीर्गतः // विषसंपृक्तनक्तेन / क्रूरः पात्राण्य- 416 पूरयत् // 15 // शिरसा सरसाहार–पूर्णपात्राएयुदस्य सः // सार्थमध्यमितो नोक्तुं / सार्थिकांनु| दतिष्टपत // 20 // तैरीतिझैः पथि प्रीति-वशतः शयिता रथे / भोक्तुमामंत्रितः स्पष्ट-माचष्ट र. उमाटे दूधदहींना निश्चल सदाव्रतसरखं जे. // 16 // अमान पुण्यमाटे हुं अवंती नगरीथी ज्या. रे प्रयाग जतो हतो, त्यारे था गामना लोकोने खुशी करवामाटे में यहीं चतुर्मास कर्यु हतु.॥ // 17 // तेथी मारा घणा काळना परिचयवाळा अने भक्त एवा था गामना लोको मने यहीं क्षुधानी वेदनाथी रक्षण करनारं गोजन थापशे, अने ते जोजनथी हुँ तमोने सखे जमा. मीश. // 10 // एम कहीने जगतने माखानी बुद्धिवालो ते तापस गामनी अंदर गयो, अने त्यां ते दुष्टे फेरयुक्त नोजनवाळां पात्रो गर्या. // 15 // पनी ते रसयुक्त नोजनथी नरेलां पात्रो म. | स्तके जंचकीने सार्थमां भावीने चोजनमाटे सार्थना लोकोने नठाडवा लाग्यो. // 20 // त्यारे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि थिकांगजः // 21 // अद्यास्त्यजीर्णदोषो मे / मा जुग्ध्वं यूयमप्यहो / परिवार जन्मराशिस्थ-। मा शौरिक्रूरोऽयमीयतां // 25 // मलिनानां मृदो वाचो / विश्वसेन्न कदाचन // दत्ते वृश्चिकवदंश / मधुपो मधुरध्वनिः // 13 // श्युक्तं रथिना व्यक्तं / नास्मार्पुस्ते बुभुदिताः // जैनें5 शासनं का. 417 म-रागार्ता व देहिनः / / 24 // जोक्तुं पंक्त्या निषसाना-मथैषां पर्यवेषयत् / / हा रथी वंचितो ते व्यवहारकुशल लोकोए. मार्गमां थयेली प्रीतिने लीधे रथमां सुतेला अगलदत्तने नोजनमाटे आमंत्रण कर्याथी ते स्पष्ट रीते बोल्यो के, / / 21 / / मने तो बाजे अजीर्ण थयुं बे, अने तमो पण (आ तापसे लावेलु ) भोजन जमशो नहि, केमके या तापसने तमारे जन्मराशिमां रहे. ला शनिसरखो क्रूर जाणवो. // // नीच माणसोनां मीठां वचनोपर कदापि विश्वास करवोन. लि. केमके मधुर शब्द करनारो जमरो शुं वीबुनीपेठे मंख थापतो नथी ? // 23 // एवी सेते अगलदत्ते प्रगट कह्या जतां पण कामातुर लोको जेम जिनेऽशासनने तेम ते दुधातुर लोकोए तेने कडेवं कइंगणकार्यु नहि. // 24 // पड़ी तेन सघला नोजनमाटे जेवामां ढारबंध बेशी गया तेवामां अरे! या रथवानने (अगलदत्तने ) तो कर्मेज उग्योने, एम कहेतोथको ते ताप ) Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac Gunratnasuri M.S. . Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ धम्मि- देवेनेति वाक्तापसस्तैदा // 25 // पूर्व दध्योदनावाद - सादरत्वेन तेऽखिलाः // शिरांसि / / यामासु-विषस्यावेशतस्ततः // 26 // लिंगिना जुक्तवंतस्ते / शाखिबायासु शायिताः॥ दाणात प्राणबिदं मूर्ग / प्रमीलामिव लेनिरे / / 57 // जस्माधारादथाकृष्य / कृपाणं निःकृपोऽबुनात्॥ यो. 417 | गी युगंधरीशीर्ष-लावं तेषां शिरांसि सः // 20 // करात्तरुधिरा सि-दंडः स रथिनंप्रति // अ. धावतोर्ध्वलांगूलो / जलूक व जीषण // 2 // बागबन रथिकेनायं / निहतस्तरवारिणा // सं तेनने पीरसवा लाग्यो. // 25 // प्रथम तो दहींजातना खादमां रंस लागवाथी तेन सघन (खुशी थश्ने) पोतानां मस्तको धुणाववा लाग्या, तथा पली फेर चम्वाथी तेन तेम करवा लाग्या. // 26 // जोजनबाद तापसे तेजने वृदानी गयामां सुवाड्या, तथा कणवारमां तो तेनं प्राणोने नाश करनारी प्रमीलासरखी मूर्ग पाम्या. // 27 // परी तें निर्दय तापसे कोलीमाथी त. लवार कहामीने तेथी जुवारना हुंमांनी कापणीनी पेठे ते नां मस्तको कापी नाख्यां. // 2 // पनी रुधिरथी खरमायेली तलवार हाथमां लेश्ने ते तापस जंची करेली पंडीवाळा संजनीते नयंकर थयोथको अगलदत्तपते दोड्यो. // श्ए / परी दुस्तर जलवाळो वरसाद जेम एकदम वे P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- बलाद् बलाहकेनेव / तरु स्तरवारिणा // 30 // ततो जम श्व स्तंभो / नमो ब्रष्टोऽज्यवर्त सः // चौरोऽस्मि धनपुंजोऽहं / धनपुंजार्जनोर्जितः // 31 // योऽहं जिग्ये पुरा शूरैः / केसरीव न कैश्च नं // त्वं तु तं कृतउष्टाप-दष्टापद श्वाजयः // 32 // किंचास्मात्पर्वतादाक् / परतः सरितः पुनः 415 // चौराणां तीर्थवद्देव-कुलमस्त्येकमुन्नतं // 33 // पृष्टतस्तिष्टतस्तस्य / शिला दृक्पथमेति या // विवरं दृश्यते घोरं / रयादुध्धृतया तया // 34 // तदंतः संति मे दारा / स्फाराश्च धनकोटयः / / दने तोमी पाडे तेम अगलदत्ते तेने आवतोयकोज तलवारथी कापी नाख्यो. // 30 // त्यारे जांगेला स्तंगनीपेठे पृथ्वीपर पडेलो ते तापस बोल्यो के, हुं धननो समुह मेलववामां तैयार थ. येलो धनपुंज नामे चोर ई. // 31 // पूर्व केसरी सिंहनीपेठे हुँ को पण शूरवीरोथी जीतायो नथी, अने करेल ने दुष्टोने दुःख जेणे एवा तें तो मने अष्टापदनीपेठे जीयो . // 32 // व. ली या पर्वतनी पाछळ नदीने पहेले पार चोरोना तीर्थसरवू एक -चुं देवमंदिर . // 33 // ते. नी पाजळ नन्नतां जे शिला नजरे पडे तेने खेसर्ववाथी त्यां एक भोयरुं देखाशे. // 34 // तेमां | मारी स्त्री अने क्रोमोगमे मनोहर धन दे, ते सघर्बु मधमाखोए एकळं करेबु मध जेम वाघ तेम PP.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तद्गृहाणाखिलं व्याघ / श्व कुद्रार्जितं मधु // 35 // दद्या नदारदारूणि / व्यापन्नस्य पुनर्मम / / सार्थ एवं वदत एवास्य / प्राणाः पथिकवैद्ययुः / / 36 // सोऽपि बंधुखिाशंकं / ज्वालयामास तबवं ॥न | परप्रार्थनाभंगं / कचित्कुति तादृशाः // 31 // स्नातः सरिज्जले देव-कुलं सोऽगानिराकुलं / 420 बली शिलां समुध्धृत्य / ददर्श विवरं पुरः // 30 // दृष्ट्वा तदंतरा दांत-रतिरूपां स्त्रियं रथी॥ स्निह्यन स नुकुटीनंग-मवादि श्यामदत्तया // 35 // त्वत्कृते तत्यजे बंधु-वेश्मसारं मयाखिलं // तारे लेश लेवं. // 35 // वळी मने मरण पामेलाने तारे सारां काष्टोथी अमिदाह देवो, एम क. हेतांथकांज पंथीनीपेठे तेना प्राणो चाव्या गया. // 36 // पड़ी तेणे पण बंधुनीपेठे निःशंक थ. ने तेना शबनो अमिसंस्कार कर्यो, केमके तेवा सज्जनो परनी प्रार्थनानो भंग करता नथी.॥ // 37 // पनी ते तळावना जलमां नाहीने व्याकुल थयाविना ते देवमंदिरमां गयो. पनी तेव. ळवाने जेवी ते शिला नपाडी के तेवू त्यां नोयरुं जोयु. // 30 // वळी त्यां मनोहर रतिसरखा रूपवाळी स्त्रीने जोड्ने ज्यारे अगलदत्त तेणीतरफ स्नेहथी जोवा लाग्यो, सारे श्यामदताए जु· | कुटी चडावीने का के, // 35 // तारेमाटे तो में मारा बंधुनने तथा घरनी सर्व मिल्कतने गे. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि, त्वं त्वस्यां रज्यसेऽलऊ / धिक्पुंसां चपलं मनः॥ 40 // चौरस्य पत्नी चौर्येव / स्यादेत्तीत्यल्य धीरपि / / तस्यां हताश विश्वास-नाजो धिक्तव चातुरीं // 1 // अपत्रपिष्णुरित्युक्त्या / त्यक्त्वा रामा रमां च तां // प्रवृत्तः स पुरो गंतु-माससाद महाटवीं // 42 // पिशाच्यो यत्र खेलति / 421 | वेश्मनीव पितुः स्त्रियः // चरति रादसाः शून्य-ग्रामसीनीव तस्कराः // 3 // यत्र नानाध्वकुंजे षु / निलीनं स्तेनवत्तमः // सूरस्यापि दुराकर्ष / करैस्तीव्रतरैरपि // 4 // गुहासु दमाभृतां ध्वांतमी ने, अने हे निर्लज्ज ! तुं तो या स्त्रीमां मोहित थाय , माटे पुरुषोना चपल मनने धिक्कार . // 40 // वळी चोरनी स्त्री चोरज होय एम एक मूर्ख पण जाणी शके, अने एवी स्त्रीमां पण हे हताश! तें विश्वास कर्यो, माटे तारी चतुराश्ने धिकार बे. // 41 // तेणीना ते वचनथी लातुर थश्ने ते स्त्री तथा ते लक्ष्मीने गेडीने ते बागळ चालवा लाग्यो, तथा एक महोटी अटवीमां भावी पड्यो. // 42 // पिताना घरमा जेम स्त्री तेम पिशाचीन ज्यां खेली रही है तथा उज्जम गामनी सीममां जेम तेम ज्यां चोरो फर्या करे , // 43 // वळी ज्यां विविध मा. मां रहेता निकुंजोमां सूर्यनां अति पाकरां किरणोथी पण दूर न करी शकाय एवो अंधकार ) Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC. Gunratnasuri M.S. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- खनीषु रजनीधिया // दिवापि जझिरे यत्र / वाचाटाः करटारयः // 45 // अनादिनारिन्निन्नेनमाई| कुंभनौंक्तिकोत्करः // यत्र तीवकरत्रस्त–तारकौघ ख्वागतः // 46 // बिले बिले सदर्पाणां / स. पाणां स्फारफूत्कृतैः // वायु विनाप्यदीप्यंत / यस्यां दवहविर्जुजः // 4 // निर्बध्यार्थ्यमानेषु / पांथेषु सकृपा श्व // रुदंति निरव्याजा-द्यस्यां पर्वतपंक्तयः // 4 // मूतैः पापैखि श्यामै-र. नसा वन्यसैरिनैः // यत्र प्रेर्यापनीयंते / पांथाः खंस्वामिनं पुरः // 4 // रिमायकुलाकी / चोरनीपेठे बुपाइ रहेलो ने, // 44 // वळी ज्यां अंधकारनी खाणसरखी पर्वतनी गुफा-मां रात्री जाणीने दिवसे पण घुवमो घूत्कार शब्द करी रह्या बे, // 45 // वळी ज्यां सूर्ययी मरीने ताराननो समुह जाणे आव्यो होय नहि तेम सिंहे मारेला हाथीननां कुंनस्थलमाथी निकळेलो मो. तीननो समूह शोनतो हतो. // 46 // वळी ज्यां दरेक बिलोमा रहेला जयंकर सोना जबरा फं. फाडानथी वायविना पण दावानल जोरथी सळगी रहेलो , // 4 // निलोए बांधवाथी कालावाला करता एवा पंथीप्रते जाणे दयालु थया होय नहि तेम ज्यां पर्वतनी हारो करणानना मिषथी रड्या करे . // 4 // वळी ज्यां मूर्तिवंत पापसरखा जंगली श्याम पाडा पंयोनी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। श्रोतः पूरबिनीषणां // क्षुद्रोपद्रव ऋयिष्टां / सर्वतोद्भिन्नकंदलां // 50 // यत्नात् स तां वनी क्रामन् / / | नवस्थ श्व संसृतिं // ददर्श पतितं दंड-कुंमिकोपानहादिकं // 51 // श्यामां सोऽभिदधे चिढ़साथ | रेनिर्जानामि नामिनि // पलायतेस्म कोऽप्यत्र / सार्थो व्यालजिया पुरा // 5 // अनी वार्त | या कंप–मानां मृचलतामिव / / मा भैरिति रथी स्थाम-धामधीस्तामधीरयत // 53 // साशंकं पाउल पमीने तेनने पोताना स्वामी यमपासे ले जाय बे, अर्थात् मारी नाखे बे. // 45 // शियाळोना समुहथी नरेली, फरणाना समुहथी जयंकर थयेटी, घणा क्षुष नपज्वोवाळी तथा सर्व जगोपर फुटेला अंकुरानवाळी // 50 // एवी ते अटवीने संसारी माणस जेम संसारने तेम नळंगतांथकां ते अगलदत्ते त्यां पडेलां दंड, कुंमी तथा पगरखां श्रादिक जोयां. // 11 // त्यारे ते श्यामदत्ताने कहेवा लाग्यो के हे स्त्री! या चिन्होथी हुं जाणुं बु के हाथीना मरथी अगाडी कोक सार्थ जागी बुट्यो . // 52 // एवी रीते जयनी वातथी कोमळ वेलडीनीपेठे कंपती ए. की ते श्यामदत्ताने निर्णय तथा बल अने तेजस्वी बुझिवाळा अगलदत्ते धीरज थापी के, हे प्रि. | ये! तुं जरा पण डर नहि. // 53 // एवामां शंकासहित चालता एवा ते अगलदत्तनी सामे. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- चलतस्तस्य / सानुमानिव जंगमः / / दाढ्य गतस्तमःपूर-श्व प्रादुरभृदिनः // 55 // प्रसारयन्मुः। साई खं नीष्म-मंधकूपसहोदरं // शुंडां तांडवयन् दंड-धरदोईडवद्दिवि // 55 // रुष्यन् वायोरपि स्पर्श-ऽप्यमृष्यंस्तुंगतां तरोः // पत्रेऽपि पतिते कुप्य–निजबायामपि हिषन् / / 56 // लता मृद्रंस्तरून नजन् / जूतग्रामं च भापयन् // दृष्टमात्रोऽप्यसौ रथ्य-हयत्रासमजीजनत् // 57 // थामत्तः स्फुरत्सत्व-स्तस्य कुन बिनेद सः // शुन्निस्तिसृनिर्मोहं / निग्रंथ श्व गुप्तितिः // 5 // गम पर्वतसरखो तथा जाणे अंधकारनो समुह घाटो थश्ने पड्यो होय नहि एवो एक हाथी प्र. कट थयो. // 55 // अंधारा कुवासरखं जयंकर मुख फाडतो, यमना भुजादंमसरखी सुंढने पाका. शमां नचावतो, // 55 // वायुनो स्पर्श थतां पण क्रोधायमान थतो, वृदनी जंचाइने सहन न हि करतो, पांदखें पमवाथी पण कोप पामतो, पोतानी गयाप्रते पण क्रोधातुर थतो, / / 56 ॥वे. खमीनने कचरतो, वृदोने चांगतो तथा जंतुनना समुहने डरावतो एवो ते हाथी नजरे पमयो. घको पण स्थना घोमाने त्रास पमाडवा लाग्यो. // 57 // त्यारे स्फुरायमान पराक्रमवाला ते अ. . गलदत्ते साधु गुप्तिनवडे जेम मोहने तेम त्रण बाणोथी ते हाथी- कुंभस्थल भेदी नाख्यु. // | P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- गिरिशृंग व ब्रष्टे / कुंजरे घातजर्जरे // श्यामदत्तावदत्तारं / जय वीरवृतिन्निति // 27 // अ. म थो पुरश्चरन् सर्प-मन्यायांतमवैदत // फणबलाध्धृतबत्र-मिव हिंस्रेषु जंतुषु // 27 // महोदरो मनोहत्य / पीत्वा यः पवनं वने // तनोतिस्म तदुजारान् / स्फारफुत्कारदंनतः // 60 // अर्धचंड 425 | शरेणास्य / बुलाव फणमंडलं / / योधाधिपो वधूवेणी-स्पईयेवापराधिनः / / 61 // लोखोलालित // 27 // अने तेथी घायल थयेलो हाथी ज्यारे पर्वतना शिखरनीपेठे नीचे त्रुटी पड्यो त्यारे श्यामदत्ता मोटेथी बोली के हे वीरवती! तुं जय पाम ? // 27 // पनी यागळ चालतां तेणे फ णाना मिषयी हिंसक प्राणि-मां जाणे त्र धारण कर्यु होय नहि एवा एक सर्पने तेणे सामो यावतो जोयो. // 27 // ते सर्प बेक कंठसुधी वननो पवन पीने मोटा नदरवाळो थयोथको ज. बरा फुफाडाना मिषधी तेना उद्गारो कहाडवा लाग्यो. // 60 // त्यारे ते वीरशिरोमणिए (पो. तानी) स्त्रीना चोटलानी स्पर्धा करवाथी जाणे अपराधी थयो होय नहि एवा ते सर्पनी फणा अर्धचंडाकार बाणथी कापी नाखी. // 61 // पनी बागल चालतां चपल अने लपलपायमान जि. ह्वाना अग्र नागवाळा, तपावेलां त्रांबांसरखी अांखोवाळा, पर्वतनी गुफामांथी निकलता पदया. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 426 धम्मि- जिहाग्रं / ज्वलदाताम्रलोचनं // पुष्टीकृतरवं ग्राव-गुहाभ्यः प्रतिशब्दितैः // 6 // प्रस्फुरत्केसरा टोपं / सोऽपश्यद् दीपिनं पुरः // दंडप्रचंमलांगूलं / दैतीयिकमिवांतकं // 63 // युग्मं // वीरस्तू | पीरतां नीत्वा / तस्यास्य पंचभिः शरैः // सुचरं स चिरं चक्रे / मार्गमारण्यकांगिनां // 64 // का | मन्नयाटवी श्यामा निःस्नेहस्फटितत्वचः // तुमुलोत्तालवदना-नीलनेपथ्यधारिणः // 65 / / पृष्टतं बतूणीरान् / कराकुंचितकार्मुकान // शैलादुत्तरतो निदान / निरैदत स लदाशः // 66 // युग्मं वडे पुष्ट थता शब्दोवाळा, // 6 // फरकती केशवाळीना यावरवाल तथा दंडसरखा जयंकर घुबडांवाला बीजा यमसरखा ते सिंहने तेणे जोयो. // 63 // त्यारे ते शूरवीर अगलदत्ते पांच बा. पोवडे तेना मुखने नाथांसरखं बनावीने जंगलना प्राणीनमाटे घणा काळसुधी ते मार्ग सगम करी दीघो. // 64 // पनी ते अटवीमां बागळ चालतां तेणे श्याम रंगना, कठोर अने फाटेली चामडीवाला, कोलाहलयुक्त मुखवाला, श्याम वस्त्र पहेरनारा, / / 62 / / पाबळ बांधेल नाथांवाला तथा हाथथी खेंचेल कामठांवाला एवा लाखोगमे निलोने तेणे पर्वतपरथी नतरता जोया.॥६६॥ | पनी पतंगीयांज जेम दीपकने तेम तेजना एक स्थानसरखा ते अगलदत्तने पोताना पदथी गर्व PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। // श्राश्रयस्तेजसामेकः / स्वपदावलगर्वितैः // अवेष्ट्यत दणादेष / तैर्दीपः शलनैखि // 67 // तेज्योतिबिन्यती श्यामा / परिरेने दृढं प्रियं // अनन्यशरणामुष्य // विवकुखि वर्मणि // 6 // चेटानिव यमस्यामू-नहं श्यामे यमालयं // दणान्नेष्यामि तन्मा भै-रभ्यधत्तेति तां रथी // ६ए / 427 सोऽथ सन्नाहमाधाय / प्रियां पृष्टे विधाय च // चिल्लानामन्यमित्रोऽनु-दमिः स विषनियां // // 50 // कुंडलीकृतकोदंडः / कांमश्रेणीरथामुचत् // प्रावृषः परिवेषीव / वारिधारा दिवाकरः / / 1 / / युक्त थयेला ते निल्लोए कणवारमां घेरी लीधो. // 67 // ते निलोथी अत्यंत मरती एवी ते श्याः मदत्ता बीजो आधार न मलवाथी जाणे तेना शरीरमां पेशी जवानी बावाली होय नहि तेम पोताना नर्तारने मजबूत आलिंगन करीने रही. // 67 // त्यारे अगलदत्ते तेणीने कडं के य. मना दाससरखा था निलोने दणवारमा यमने घेर पहोंचाडी देश्श, माटे तुं डर नहि. // 65 // पनी बखतर पहेरीने तथा पोतानी स्त्रीने पाउल राखीने शत्रुना नयने नदि गणकारतो एवो ते अगलदत्त ते निल्लोसाथे लमवा लाग्यो. // 70 // धनुष खेंचीने वर्षाथी घेरायेलो सूर्य जेम ज. लधाराने तेम ते बाणोनी श्रेणि मुकवा लाग्यो. // 71 // तेना शरपातथी डरेला ते निल्लो त्यां. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- किरातास्तबरापाता-दीवः प्रपलायिताः॥ धनलाजार्थिनस्ते हि / न पुनर्निधनार्थिनः // 7 // माई अथाविरनवच्चौर-सेनानीर्जुनानिधः // वैरिनिनिदे सिंह-समः समरकौतुकी // 73 // नश्यतः स निजान सैन्यान् / संग्रामायोदसाहयत // नाट्याय जरताचार्य / श्व रंगच्युतान्नटान् // 14 // र. णरागात्तमन्यागा-हीरोऽसौ सोऽप्यमुं ततः // व्यधत्तां इंद्वयुद्धं तौ / हरिप्रतिहरी च // 15 // वंचनात्परघाताना-मन्योऽन्यं प्रजिहीर्षतो // तयोर्जयश्रिया चक्रे / कं वृणोमीति संशयः॥ 76 // थी पलायन करी गया, केमके तेज धन लेवानी बावाला हता, कई मरण पामवानी जावा. सा नहोता. // 7 // एवामां वैरीजरूपी हाथीनने मारवामां सिंहसरखो बने लडवानो कौतकी एवो अर्जुन नामनो चोरनो सेनापति त्यां प्रगट थयो. // 73 // निरुत्साही थयेला नटोने नाट. कमाटे जेम सूत्रधार तेम ते पोताना नाशता सुनटोने संग्राममाटे नत्साहित करवा लाग्यो. // // 4 // लडवाना रसथी ते शूरवीर अगलदत्त तेनी सामे याव्यो, घने ते बर्जुन पण तेनी सन्मुख श्राव्यो, पनी तेन बन्ने वासुदेव तथा प्रतिवासुदेवनीपेठे इंयुक करवा लाग्या. // 7 // | परनो घा बटकावीने एकबीजाने मारवानी श्वावला तेज बनेने जोश्ने या बन्नेमांधी मारे को. ' P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- छमानौ युधमानौ / खजाखजिशराशरी // विदधाते किरातेषु / चिरं तौ नयनोत्सवं // 7 // शत्यसाध्यं रिपुं मत्वा / विजिगीषुश्ब्लेन तं // धीमान्निवेशयामास / श्यामामग्रे रथे रयी / / 7 // जूरिऋषणदीप्तांगी-मदिनंगविलासिनीं // श्लथीकृतोपसंव्यानां / लावण्यरसवाहिनीं // 7 // चिरं ४२ए चरटचक्री तां / ग्रामीण व नागरी / / मुक्त्वा समरसंरंभ / स्फारितादो निरैदत // 70 // युग्मं // | तया विदितयाऽज्रस्य-नस्य शस्त्राणि पाणितः // दलान्युदितयेव -शाखतः शिशिरश्रिया // 1 // | ने वरवं? एम जयलक्ष्मी संशयमां पडी गश्. // 76 / / वधी वधीने तलवारथी तथा बाणोथी यह करता एवा तेज बन्ने घणा काळसुधी निलोनी अांखोने आनंद पापवा लाग्या. // 9 // . हवे शत्रुने बळथी जीतवो अशक्य जाणीने तेने ग्लथी जीतवानी श्वावाळा ते बुध्विान अगलदत्ते रथमां श्यामदत्ताने अगामी बेसामी. // 7 // घणां बाभुषणोथी देदीप्यमान शरीवाळी, कटादोना विलासवाळी, ढीली करेली साडीवाळी तथा लावण्यरूपी रसनी नदीसरखी एवी तेणीने जोइने // 7 // गामडीयो जेम नगरनी स्त्रीने तेम ते चोरोनो सरदार रणसंग्रामनो संरंभ त. | जीने एकीनजरे तेणीनेज जोवा लाग्यो. ॥०पनी शिशिरकतु याववाथी वृदानीमाळीमांथी जे Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasun M.S. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - धम्मि- अन्यचित्तं परिझाय / बाणेनारामुखेन तं // रथिको हदि विव्याध / स्पईयेव मनोनुवः // 7 // माई स ततः पतितः -पृथ्व्यां / शीर्णस्कंध व हुमः // जितं मयेति माद्यंत-मुवाच रथिकांगजं // 3 // मा प्राप्सीः शूर यच्चौर-सेनानीनिहतो मया // हतोऽहं स्मरवीरेण / पूर्व पश्चात्त्वया पुनः // 4 // 430 विधिना वंचितः सोऽहं / यदायोधनसंकटे // सितायामिव शुक्लांत-दयितायां मनो न्यथां // 75 / / मदाब्यो रिपद्मोऽपि / प्रकटोप्युन्नतोऽपि च // वारीनिखि नारीनिः / पुंनागः श्वेव बध्यते // 6 // म पांदडां तेम तेणीने जोतांज तेना हाथमांथी शस्त्रो पडी गयां. // 1 // एवी रीते तेने अ. न्यचित्तवाळो जाणीने कामदेवनी स्पर्धाथी जेम तेम अगलदत्ते अणीदार बाणथी तेने हृदयमां वांधी नाख्यो, // 2 // अने तेथी ते सडेला थडवाला वृदनीपेठे पृथ्वीपर पड्यो, पजी में प्रा. ने जीत्यो एम गर्व करता ते अगलदत्तने अर्जुने कडं के, // 3 // हे शूरवीर! तुं गर्व नहि क रजे के में चोरोना सेनापतिने मार्यो , केमके प्रथम तो मने कामदेवरूपी सुनटे मार्यो सेय. ने तें तो त्यारपती मार्यो . // 4 // वळी मने तो कर्मेज उग्यो , केमके समाश्ना संकटवख| ते पण में साकरनीपेठे स्त्रीमा मन जोडयु. // 5 // मदथी नरेलो, घणी लक्ष्मीवाळो, प्रसिक P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- कांतारसंगतः प्राणी / प्राणैरपि विमुच्यते // निःकृपस्मरबुंटाक-विद्युप्ताखिलधीधनः // 7 // वदः / तोऽस्येति निर्वाणाः / प्राणा निःस्नेहदीपवत् // चौराश्चादृश्यतां जग्मु-स्तस्यांशव श्व स्वयं // 7 // एवं भुजबलेनाप-बहरीः समतीत्य सः // सुखेन प्रांतरप्रांत-माप पारमिवोदधेः / / नए // मार्गशे. षमतिक्रम्य / गतोवंती पुरी रथी / प्रियाया दर्शयन् पौरों / श्रियमागात् खमंदिरं // 50 // स. | अने चंचो एवो पण पुरुषरूपी हाथी कुतरानीपेठे बंधनसरखी स्त्रीनंथी बंधा जाय . // 6 // स्त्रीना रसमां लीन थयेलो (अरण्यमां गयेलो) प्राणी निर्दय कामदेवरूपी बुंटाराथी सघबुं बु. छिरूपी धन खुटार जवाथी प्राणोथी पण रहित थाय . // 7 // एम बोलतांथकांज तेलविनाना दीवानीपेठे तेना प्राणो नष्ट थया, अने तेना नागोनीपेठे चोरो पण सघळा पोतानी मेळेज अदृश्य थ गया. // 7 // एवी रीते पोताना गुजावलथी दुःखरूपी मोजांने संगीने समु. उना किनारानीपेठे सुखेथी ते विकट अटवीनो पार पाम्यो. // ए // पनी ते बाकीनो मार्ग में. लंगीने अवंती नगरीमां पहोंच्यो, तथा त्यां पोतानी प्रियाने शहेरनी शोना देखामतोयको ते पो. | ताने घेर याव्यो. // ए०॥ तेने यावेलो जाणीने कपटविनानी यशोमती जगता चंद्रनी सामे / Jun Gun Aaradhak Trust. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 43 धम्मि- मायातममाया त-मवगम्य यशोमती // अन्यागाहार्डिवेलेव / सुधाकरमुदित्वरं // 1 // वमंतीमथुः / मार्ग दंभेन / सुखं पुत्रवियोगजं // मातरं जातरंगोऽय-मनमच्चरणौ स्पृशन् // ए // समुबाय तमा शीनि-रानंद्यालिंग्य सा चिरं // शिरस्याघ्राय सस्नेहं / गेहस्यांतस्वीविशत् / / ए३ // श्यामापि स्यं. दनोत्तीर्णा / श्वश्रूपादाववंदत // सास्यै चुदव समं जा / सुखमाशिषमित्यदात् // ए४ // वैदेशिकं व्यतिकरं / पृचंत्या मातुरादरात् // श्रवः कुंडे निजं वृत्त / सुवापूरयतिस्म सः // 55 // वजनौ जेम समुद्रनी वेळा तेम तेनी सामे यावी. // 1 // यांसुना मिषयी पुत्रना वियोगयी थ. येला दुःखने वमती एवी पोतानी ते. माताना चरणोने स्पर्श करतोथको ते अगदत्त हर्षथी ते. णीने नम्यो. // 7 // सारे ते यशोमतीए तेने जठामीने, याशीर्वचनोथी खुश करीने. तथा खूब नेटीने, अने स्नेहपूर्वक तेनुं मस्तक सुंघीने घरमा प्रवेश कराव्यो. // 23 // पनी ते श्यामदत्ता पण रथमांथी उतरीने सासुने पगे पडी, त्यारे तेणीए पण आशीष आपी के तुं तारा न. रिसाथे सुख नोगव? | ए // पनी विदेशसंबंधी वृत्तांत माताए पूछवाथी तेणे श्रादरपूर्वक पो. ताना वृत्तांतरूपी अमृतथी तेणीनो कर्णरूपी कुंम जरी दीघो. // 55 // पनी घणे काळे मलवा | P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 433 | धम्मि-घं वजन्नेष / चिरान्मिलितुमागतं // व्याहारैरमृताहारै-रिवारंजयदंजसा // ए६ // परेधुरात्तालंका. रः। स्वल्पसारपरिबदः॥ सोपदः संसदासीनं / स ननाम नरेश्वरं / / ए // गुणानामिव वासौको / युवासौ को निगद्यतां / / राज्ञेत्युक्ता जगुगौर-मुखनासः सनासदः // 7 // खामिन्नगलदत्ता| ख्यः / सूनुस्त्वत्सारथेरयं // दूरादात्तकलः प्राप्त-भांमो वणिगिवागतः / / एए // पृथ्वीपतिस्थ प्री. तः / पत्तेस्तस्मै पदं ददौ // द्विगुणं तुष्टिदानं च / कः कलासु न रज्यति // 2000 // कृषिः फल श्रावेला पोताना सगांजने जेटीने तेणे अमृतनोजनसरखा पोताना वृत्तांतथी खुशी को. // // ए६ // पजी बीजे दिवसे ते आभूषणो पहेरीने स्वल्प परिवारसहित नेटणासाथे सनामां बेठे. ला राजाने नम्यो. // ए // कहो के गुणोना निवासस्थानसरखो वळी या युवान कोण ? ए. म राजाए कहेवाथी मुखनी श्वेत कांतिवाला सनासदो बोल्या के // // हे स्वामी! यापना सारथिनोया अगलदत्त नामनो पुत्र बे, अने ते धन कमायेला वणिकनीपेठे दूरदेशथी कलान मेळवीने यहीं श्रावेलो . // एए // त्यारे राजाए खुशी थश्ने तेने जमादारनी पदवी पापी. तथा बम तुष्टिदान प्राप्युं, केमके कलाथी कोण खुश यतुं नथी? // 2000 // खेती काले P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- ति कालेन / कालेन फलंति कुमः // काले सेवा वणिजोऽपि / सद्यः फलति सत्कला // 1 // - | मा पादाप्ताऽविसंवादि-प्रसादः सादरप्रियः // यातोऽपि दिवसान देवो / दिवीव न विवेद सः॥२॥ . हुमान् दवामिना दग्धा-नपि पल्लवयन वने // प्रावर्तत वसंतर्तु-मनोभूमित्रमन्यदा // 3 // 435 | चिक्रीडिषो वनको / प्राप्ते सांतःपुरे नृपे // न ययुन गराः के के / देवाः केलिप्रिया च // 4 // ययावगलदत्तोऽपि / सहितः श्यामदत्तया // नाग्यनागिति सानंद-मीदयमाणः पुरीजनैः // फळे , वृक्ष पण समये फले ने, अने वणिकनी सेवा पण अवसरे फलेने, परंत नत्तम कला तरत फलेने.॥१॥ राजा तरफथी थयेली विघ्नरहित कृपाथी तथा यादवाळी स्त्री मलवाथी ते अगलदत्त देवलोकमां रहेला देवनीपेठे जता दिवसोने पण न जाणवा लाग्यो. // // .. . हवे एक वखते त्यां वनमां दावानलथी बळेलां वृदोने पण नवपल्लव करनारी अने कामदेवना मित्रसरखी वसंत ऋतु यावी. // 3 // ते वखते क्रीडा करवानी बाथी जनानासहित रा. जा ज्यारे वनमां गयो त्यारे क्रीमामां प्रीतिवाळा देवोनीपेठे कया कया नगरना लोको पण त्यां | न गया ? // 4 // अहो! था केवो जाग्यशाली ! एम नगरना लोकोवडे यानंदथी जोवातो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- // 5 // तत्र प्रियोच्चितैः पुष्पैः / केऽपि कंठावलंबिन्निः // बाणैः कुसुमबाणस्य / विद्या व विरे जिरे // 6 // कैश्चित्सरसि फुलाब्जे / लालाद्भिहसलीलया // नड्डीयान्यत्सरो नेजे / हं सैर्जातन्त्रमैः |खि // 7 // कामिनो मृवृत्तेषु / रंभास्तंनेषु केचन // ददिरे निजकांतोरु-भ्रांत्या तीदपशिखा 435 | नखान् // 7 // ददृशुः केऽपि संगीतं / गेयं केचन शुश्रुवुः / / केचिदोलासु चिक्री-त्रैमुरन्ये | यदृबया // 5 // ललन्नगलदत्तोऽपि / वने विविधकेलिन्निः // पत्न्या सह व्यतीयाय / वासरं वा एवो अगलदत्त पण श्यामदत्तासहित वनमां गयो. // 5 // त्यां स्त्रीनए वीणेलां बने कंठमां प. हेरेला पुष्पोथी केटलाक पुरुषो जाणे कामदेवना बाणोथी वांधाया होय नहि तेम शोनवा लाग्या. // 6 // वळी प्रफुल्लित कमलोवाळां तलावमां ज्यारे केटलाक हंसोनीपेठे क्रीडा करवा ला. ग्या त्यारे जाणे ब्रांतिमां पडेला होय नहि तेम हंसो नडीने बीजा तळावमां गया. // 7 // व. ली केटलाक कामी पुरुषो कोमल अने गोळाकारवाला केळना स्तंजोने पोतानी स्त्रीजना साथळ जापाने तेनमा तीक्ष्ण अणीदार नखोरीयां मारवा लाग्या. // 7 // केटलाक संगीत जोवा ला. ग्या. केटलाक गायन सांजलवा लाग्या, केटलाक हिंचोळा खावा लाग्या, तथा बीजा केटला Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- सवोपमः // 10 // पौरैः सह महीनाथे / सायं याते पुरांतरा // यावन्निजगृहं गंतुं / रथी रयमसः | साथ ज्जयत् // 11 // तावदांदोलनासक्ता / माधवीवल्लिमंडपे // पस्पृशे कामुकेनेव / श्यामा काकोदरा '| हिना // 12 // अनिबंतीव सा पाणि-पंकजे परिधुन्वती // पपात पत्युरुत्संगे / रद रक्षेति ना. 436 | पिणी // 13 // परिरज्य स तां बाढं / मा भैस्तन्वि वदन्निति // प्रेषीनिज परीवार-मातुरं मातुरं. | तिके // 14 // वायुनास्य विषावेशो / मार्गे मास्म भृशायत // इति संनिहिते देव-कुले बालां मरजीमुजब नमवा लाग्या. / / ए // हवे ते इंडसरखा अगलदत्ते पण स्त्रीसहित विविध क्रीडापू. र्वक वननी अंदर दिवस व्यतीत कर्यो. // 10 // पठी संध्याकाळे नगरना लोकोसहित राजा ज्यारे नगरमां गयो त्यारे अगलदत्त पण जेवो घेर जवामाटे रथ तैयार करे , // 11 // तेवामां मा. धवीलताना मंडपमां हींचोन खाती श्यामदत्ताने कामुकनीपेठे सर्प मंख मार्यो. // 12 // त्यारे जाणे श्वती न होय नहि तेम पोताना हस्तकमलने कंपावतीथकी मने बचावो बचावो एम बो. लीने ते पोताना खामिना खोळामां पडी. // 13 // त्यारे अगलदत्त तेणीने खूब नेटीने बोल्यो | के हे तन्वि! तुं डर नहि, एम कहीने पोताना उःखी परिवारने तेणे पोतानी मातापासे मोकली। PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घमि- ननाय सः // 15 // व्यापन्नामिव निश्चेष्टां / विषविध्वस्तचेतनां / / पत्नी पश्यन् स तत्याज / धैर्यः / | धामापि धीरतां // 16 // यस्त्यस्या अगदंकारः / कापि कोऽपीति वीदितुं // अत्युत्सुक व ही. पां-तरं नानुस्तदा ययौ // 17 // हृदुःखेनैव रथिन-स्तमसा जग्रसे जगत् / / तदास्य श्व घि. 437 | कारै-स्तारैोम्नि व्यजृन्यत // 17 // पंथा न पंथा सार्थना-बुलोके म्लानदृष्टिना // श्यामाया दीधो. // 14 // मार्गमां वायुथी याने विशेष झेर न चडे तो ठीक एम विचारीने तेणीने ते ए. क नजीकना देवमंदिरमां ले गयो. // 15 // ते वखते जाणे मरी गश् होय नहि तेम चेष्टाविनानी तथा फेरथी बेनान थयेली पोतानी ते स्त्रीने जोश्ने अति धैर्यतावाळा पण ते अगल. दत्ते धीरज गेडी दीधी. // 16 // हवे याने माटे क्यांय को पण वैद्य ने के केम ? तेनी तपा. समाटे जाणे अति उत्सुक थयो होय नहि तेम सूर्य पण ते वखते हीपांतरमा गयो. // 17 // सारे ते अगलदत्तनुं हृदय जेम दुःखथी तेम जगत् अंधकारथी व्याप्त थयु, तथा अाकाशमां जेम ताराज तेम तेना मुखमाथी धिक्कारो प्रकट थवा लाग्या. // 10 // वळी ते श्यामदत्ताने जीवाड. वाना नपायमाटे मूढ बनेला अने म्लान दृष्टिवाला एवा ते अगलदत्ते तेज प्रयोजनमां लीन Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साग 430 खसाद धम्मि जीवनोपाय / श्व मूढधियामना // 10 // तौ दंपती निरीदयेव / कोकदंदैर्व्यघट्यत // सरस्सु मी लितं पद्म-रनयोनयनैखि // 20 // क्रोमीकृत्य प्रियां देव-कुलहारे निशाजरे / रुरोद रथिका | स्तार-मश्रुधाराः किरन दृशोः // 21 // गुणान्निरामे हा रामे-श्वरि श्यामे समाशये // बहुदुः. खसाहये त्वं / किं प्रेयसि न जाषसे // 1 // संस्तुतेऽप्युपेत्य त्वं / मय्यरज्यस्तदा मुदा // संप्रति प्रीतिपात्रं मां / किं प्रेयसि न भाषसे // 23 // धनाच जीविताचाहं / विशिष्ट वामजीगणं // थश्ने मार्गतरफ पण दृष्टि करी नहि. // 17 // ते बन्ने स्त्रीजरतारने जोवाथीज जाणे कोकपक्ति जंना जोडलां वियोगी थयां, थने तेज बन्नेनी अांखोनीपेठे तलावोमां कमळो बीमा गयां. // // 20 // हवे रात्रिए देवमंदिरना दरवाजामां ते बगलदत्त पोतानी प्रियाने पालिंगन देने यांखोमांथीयांसुनी धारा कदामतोथको मोटेथी रमवा लाग्यो. // 21 // हे गुणियल! हे जी. वितेश्वरी ! हे श्यामा! हे शुल आशयवाळी! तथा हे घणा दुःखोमां सहायभूत एवी प्राणप्यारी ! तु केम बोलती नथी? // 15 // ते वखते परिचयविना पण तु मारीपासे यावीने मारामां अनु. रागवाळी थर हती, परंतु हे प्रियतमा! हाल तुं मने प्रीतिपात्रने पण केम बोलावती नथी? / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- चेटबुध्यापि मामध। किं प्रेयसि न भाषसे // 14 // यो जिगाय पथि व्याल-व्याघचौरादिकान सुखं // सोऽहं हतोऽस्मि दैवेन / हरता जीवितेश्वरी // 25 // एष वच्मि हितं हो / शृणुतोद्या| नदेवताः / माघदद्य वनस्यास्य / रक्ष्यतां स्त्रीवधायशः // 26 // कापि नागदमन्यस्ति / यदि यु. 435 ष्मासु रे लताः // तदाविरस्तु सा नावी / नेदृशोऽवसरः पुनः // 27 // कापि रात्रिबलात्वा / हे रात्रिमटपक्षिणः // वीदाध्वं मेषजं यूयं / ध्वांतध्वस्तहगरम्यहं // // एवं तदा तदाकंदै / खे च. // 23 // हुँ तने धनथी तथा जीवितथी पण अधिक मानतो हतो, तो बाजे हे प्यारी ! मने दा सनी बुछिए पण केम बोलावती नथी? // 24 // मार्गमां हाथी, वाघ तथा चोर आदिकने जे. णे सुखेथी जीत्या हता, एवा मनेज मारी प्राणप्यारीने हरता एवा दैवे बाजे हणी नाख्यो जे. // 25 // अरे उद्यानदेवीन! या हुं तमोने हितवचन कहुं बु ते सांजो ? स्त्रीवधथीथता बपयशथी तमो या वननुं रदाण करो? // 26 // अरे लताज! तमारामां जो कोश् नागदमनी ना मनी लता हो तो ते प्रगट थान ? केमके फरीने आवो अवसर नहि यावे. // 27 // अरे निशाचर पदिळ ! रात्रिना बळ्थी तमो क्यांक जश्ने औषधनी तपास करो? केमके हं तो अंधका Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 440 धम्मि- रत् खेचरदयं // निश्चलीच्य शुश्राव / धैर्यप्राणप्रमाथिनं // 25 // सविवेकस्तयोरकः / परार्थर सार्थ | सिकः खगः // पत्न्येव कृपया नुन्नो-ऽवातरत्तत्र कानने // 30 // किं रोदिषीति तेनोक्ते-ग लदत्तो गलन्मदः // तां व्यालगरलग्रस्त–चैतन्यां समदर्शयत् // 31 // जत्तिष्ट नई निस्तंद्रमित्युदित्वाथ खेचरः // तां चक्रे निर्विषां स्पृष्ट्वा / पाणिनामृतवर्षिणा // 32 // रथिकोऽपि निशी. थेऽपि / प्राप्तः प्रीतिमयं महः // स्तौतिस्म विस्मितः खेटं / प्रणम्य रचितांजलिः / / 33 // जय त्वं रने लीधे नष्टदृष्टिवाळो थयो बु. // 2 // एवी रीते धैर्यरूपी प्राणनो नाश करनारो ते वखतनो तेनो विलाप आकाशमां चालता बे विद्याधरोए निश्चल थश्ने सांजव्यो. // // तेज बन्ने माथी एक परोपकारी विद्याधर पत्नीथी जेम तेम दयाथी प्रेरायोथको त्यां वनमा जतो. // 30 // तथा तेणे अगलदत्तने पूज्यं के तुं केम रडे जे? त्यारे रांकडाजेवा बनेला अगलदत्ते पण सर्पना फेरथी नष्टचैतन्यवाळी पोतानी ते स्त्री बतावी. // 31 // त्यारे ते विद्याधरे तेणीने कां के हे न! तुं निस्तंऽ थश्ने उठ? एम कहीने अमृत वर्षता एवा पोताना हाथथी स्पर्श करीने ते. | णे तेणीने फेररहित करी. // 32 // हवे मध्यरात्रीए पण प्रीतिमय तेजने पामीने ते अगलदत्त / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ धाम्म-| खेचराधीश / जय त्वं करुणाकर // जय वं अखिनां बंधो / जय त्वं जीवितप्रद // 34 // नृयां / सोऽपीह वीदयंते / कारणेनोपकारिणः // निष्कारणोपकारित्वं / त्वध्यगीष्ट कुतो नवान् // 35 // कुति नंति वा कार्य / ये प्रस्तावबहिर्मुखाः // तेषां हीनाथ दीनाना-मपि ददोपमा त्वयि // 36 // 441 प्राणेन्योऽपि प्रियतमा–मिमां जीवयतः प्रियां // प्राणैरपि निजैर्दत्तै-हिं स्यामनुणस्तव // 37 // | खगो जगौ रथिन्मा मां / नारय स्तुतिभिर्भृशं // यतो ममास्ति गंतव्यं / दुरेऽद्यापि ननोऽध्वना | पण विस्मित थयोथको हाथ जोडी नमाने ते विद्याधरनी स्तुति करवा लाग्यो के, // 33 // हे खेचरेश्वर! हे करुणाना भंडार! हे दुःखीनना बंधु! हे जीवितदान देनार! तुं जय पाम ? // 3 // या जगतमां कारणने लेश्ने तो घणा नपकारीन देखाय बे, परंतु कारणविना नपकार करवानुं तं था क्याथी शीख्यो ढुं? // 35 // वली हे दद! जे प्रस्तावथी बहिर्मुख थयाथका कार्य क₹ने अथवा हणे , एवा दीन मनुष्योनी उपमा पण तने यापवी ए लायक नयी. // 36 // प्राणोथी पण अत्यंत वहाली एवी था मारी स्त्रीने जीवामनारा एवा तने हुं मारा प्राण थापवाथी | तारा करजथी मुक्त थ शकुं नहि. // 37 // त्यारे विद्याधर बोल्यो के हे अगलदत्त ! तुं म Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 442 धम्मि- // 30 // गतेऽथ खेटे नीता सा / मध्ये देवकुलं जगौ // ध्वांतांजनसमुक्षेत्र / वसंतीश बिने / सार्थ | म्यहं // 35 // तयादिष्टस्ततो वह्नि-मानेतुं प्राचलज्थी // पुरंदरनिदेशेना-नियोगिक श्वा मरः // 40 // चितेः समुचिते वहा-वहाय ववले रथी॥ मानुदेकाकिनी श्यामा / श्यामास्येति विचिंतयन् // 41 // यस्याः करोषि दासत्वं / तद्वृत्तं दृदयसि स्वयं // वह्निर्घटीस्थितोऽहासी—दि. ति द्युतिमिषेण तं // 42 // बागबन्नयमालोक्या-लोकं देवकुलांतरा // अप्रादीदायतादी ताने यावी स्तुतिनंथी हवे वधारे बोजावाळो न कर ? केमके हजु मारे अाकाशमार्गे दर जवानं बे. // 30 // पजी ते विद्याधर गयाबाद तेणीने अगलदत्त देवमंदिरनी अंदर ले गयो, त्यारे ते बोली के हे स्वामी! अंधकाररूपी अंजनना डावमासरखा था देवमंदिरमा रहेवाथी हं डरूं बं. // | // 35 // पनी इंजना हुकमथी जेम बानियोगिक देव तेम तेणीए कह्याथी अगलदत्त अनि ले. वा चाल्यो. // 40 // मारी त्यां एकली रहेली श्यामदत्ता गजराय नहि तो ठीक, एम विचारीने अगलदत्त कोश्क चितामांथी अनिलेश्ने त्यांची तुरत पाडगे वल्यो. // 41 // जेणीनुं तुं दासप. |एं करे ने तेणीनुं पाचरण तुं पोतेज जोश, एम माटलीमा रहेलो अनि कांतिना मिषथी ते PP.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिमंतोतिः किमीदितं // 43 // सहसा स्माह सा माया-मयी कि प्रिय पृज्यते // योऽमिस्त्वया हृतस्तस्यै–तत्तेजः प्रतिबिंबितं // 4 // ततः ख समास्या / वहिं सोऽदीपयत् स्वयं // प्रिया. प्रयासन्नीरु -न्यस्तजानुवाङ्मुखः // 45 // करवालं करात्तस्याः / सहसा पतितं पुरः // विलोक्य 443 व्याकुलोऽपृबत् / किमेतदिति स प्रियां // 46 // सावदगुज्यते देव / तद्दूरे न स्त्रियः करे॥त. अगलदत्तनी हांसी करवा लाग्यो. // 42 // हवे तेणे आवतांथकां देवमंदिरनी अंदर प्रकाश जो. इने विस्तीर्ण नेत्रवाली पोतानी स्त्रीने तेणे पूठ्युं के अंदरना नागमा मने प्रकाश केम देखा यो? // 43 // त्यारे ते कपटी श्यामदत्ता एकदम बोली उठी के हे प्रिय! एमां ते शुं पूगे गे? जे या तमो अमि लाव्या गे, तेना तेजनुं प्रतिबिंब पम्युं होशे. // 4 // पनी अगलदत्त मा. री प्रियाने तस्दी आपवी ठीक नहि एम विचारी तेणीने खा थापी पोते पृथ्वीपर घुटण राखी नीचे मुखे अनि फुकवा लाग्यो. // 42 // एटलामां तेणीना हाथमाथी अचानक तलवार पमी गश, ते जो व्याकुल थयेला अगलदत्ते तेणीने पूज्युं के था शुं थयु ? // 46 // त्यारे ते बो. ती के हे स्वामी! था तलवार तो थापना हाथमांज रहेवी जोश्ये, स्त्रीना दायमा रहेवी न जो Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ममायं जन्मन्नीरोः / कृपाणः पाणितच्युतः // 47 // असूषुपदथ स्वेन / यामिकत्वं प्रपद्य सः / / ज्व. साई | लितज्वलनाचांत-ध्वांते देवकुले प्रियां // 4 // जदिते नास्वति श्यामा-शुधिजिज्ञासया ततः // // आगतस्वजनस्याग्रे / निशावृत्तं जगाद सः // 4 // पत्नी न्यस्य रथे रूप-सपत्नीकृतमन्मथः॥ 188| पौरैः श्लाघितलाग्यश्री-निज धाम जगाम सः // 10 // भुंजानः सततं साकं / तया सांसारिकं सु. खं // सोऽन्यदा नृपतेर्देशा-द्ययौ दशपुरं पुरं // 11 // राजकार्य निवेद्यारि-दमनस्य नरेशितः श्ये, केमके जन्मधीज बीकण एवी जे हुं तेना हायमांधी या तलवार पडी गइ. // 4 // पनी अंगलदत्ते पोते जागता रहीने सळगावेल अमिथी दूर थयेल अंधकारवाला ते देवमंदिरमां पो. तानी ते प्रियाने सुवामी. // 7 // हवे सूर्योदय थयाबाद श्यामदत्तानी खबरअंतर जाणवामाटे यावेला स्वजनोपासे अगलदत्ते गत्रिनो वृत्तांत कही संजलाव्यो. // 45 // पनी रूपधी कामदे. वसरखो तथा नगरना लोकोथी वखणाती नाग्यलक्ष्मीवाळो ते. अगलदत्त पोतानी स्त्रीने स्थमा बेसाडीने पोताने घेर गयो. // 20 // त्यां हमेशां तेणीनी साथे सांसारिक सुख जोगववा ला| ग्यो. पछी एक दिवसे ते राजाना हुकमयी दशपुर नामना नगरमा गयो. // 51 // त्यांना अरि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म // अहानि कतिचित्तत्र / तस्थौ सौधे तदर्पिते // 55 // एकदा तस्य मध्याह्ने / भुक्त्वा धाम्नि निसार्थ षेपः // आगाजागादिविदेषि-विश्लेषिश्रमणयं // 53 // यन्मलक्लेदमप्यंगे / गंधधूलिधिया द | धौ // विवेद खेदबिंदूंश्चा-मुक्तमौक्तिकममनं // 24 // दिव्यांशुकाधिकामास्थां / ययौ जीर्णेऽपि 445] वाससि // यत्पामरमुखाक्रोशा-नपि मेने स्तवानिव // 55 // समस्तवस्तुसौंदर्य-ध्वंसने पिशु. नोचिते // वैरिणीव शरीरेऽपि / नानुबंध बबंध यत् // 56 / / तन्मुक्तमानमानम्य / सम्यग्भावनया दमन राजाने पोताना राजानुं कार्य निवेदन करीने ते तेणे थापेला महेलमां त्यां केटलाक दिवसोसुधी रह्यो. // 5 // हवे एक दिवसे मध्याह्नसमये नोजनबाद जेवामां ते घरमां बेठो ने, तेवामां रागयादिक शत्रुनने दूर करनारा बे मुनिजे त्यां श्राव्या. // 53 // तेना शरीरपर र. हेला मलना खरेटा पण कस्तूरीसरखा सुगंधी लागता हता, तथा पसीनाना बिंदुन मोतीना था. शुषणसरखा देखाता हता, // 14 // वळी जेन जीर्ण वस्त्रमा पण दिव्य वस्त्रथी अधिक यानंद मानता हता, तथा नीच लोकोना मुखना अश्लील शब्दोने पण ते स्तुतितरीके मानता हता / // 55 // सघळी वस्तुनी सुंदरतानो नाश करनारा पिशुनसरखा शरीरमां पण वैरीनीपेते ते Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथै | 446 धम्मि- रथी॥ नक्तपानं महानक्ति-रदत्तोदात्तमानसः // 27 // तस्मिन्निवृत्ते तप–साधुसंघाटकोऽपरः // तत्राययौ सोऽपि तेन / तथैव प्रत्यलान्यत // 27 // तस्मिन्नपि गते साधु-इंदमागातृतीयक // तदपि प्रतिलानय्य / मनीषी विममर्श सः // 17 // किं पुरेऽत्रास्ति पुर्मिदं / किं वा लोको 1/ मितंपचः // रथ्या वा गहना येना-यातावेतौ पुनः पुनः / / 60 // सोऽथ पप्रब तो नत्वा / साधू ममता राखता नहोता. // 56 // एवा ते मानरहित मुनिना जोमलांने नमीने उत्तम नावनाथी अत्यंत नक्ति लावीने नदार मनथी अगलदत्ते नातपाणी थाप्यां. // 17 // हवे ते साधुन ग. याबाद तेनाज सरखा रूपवाळा बीजा बे साधुन त्यां याव्या, त्यारे तेनने पण तेणे एवीजरीते प्रतिलान्या. // 27 // पजी ते पण गयावाद तेना जेवुज त्रीजु साधुनुं जोमबुं याव्यं, तेने प. ण प्रतिलानीने ते बुध्विान अगलदत्ते विचार्यु के, // 55 // शुं या नगरमां शुष्काळ पड्यो ? अथवा यहींना लोको शुं कृपण जे? अथवा शुं शेरीन नीमानीडवाळी , के जेथी या बन्ने साधुन फरी फरीने यहीं श्राव्या! // 60 // पनी तेणे तेनुने नमीने पूज्युं के हे मुनिन ! था. |प क्या जतर्या गे? अमो वनमां नतर्या जीये, एम कहीने तेज बने साधुन पण वनमां गया. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- क युवयोः स्थितिः // आवां वने स्थ झ्युक्त्वा / तावप्युद्यानमीयतुः // 61 // मत्वा वेलानुमाना. | तौ / कृताहारौ मुनीश्वरौ // ययौ स योगिसंचार-पावनं वनमेककः // 6 // ... तत्र प्रणेमिरे तुव्य-रूपाः षण्मुनयोऽमुना // श्रीजैनधर्मराजस्य / मूर्तिमंतो गुणा श्व // 63 // 44 स दध्यौ किममून वेधा / बिबेनैकेन निर्ममे // येनाहमपि संदेह-दोलारूढ श्वानवं // 64 // तां वंदे जननीं यस्याः / कुतिमेते प्रपेदिरे // यां स्वपादैः स्पृशत्येते / सावनी लोकपावनी / / 65 // // 61 // पनी काळना अनुमानथी तेजने आहारथी निवृत्त थयेला जाणीने ते अगलदत्त एका. की मुनिना संचारथी पवित्र ययेला ते वनमा गयो. // 6 // त्यां ते श्रीजैनधर्मरूपी राजाना जाणे मूर्तिवंत ब गुणो होय नहि एवा तुव्य रूपवाळा उ मनिनने नम्यो. // 63 // पनी तेणे विचार्यु के शुं था सघळानने विधाताए एकज बिंबधी ब. नाव्या होशे? के जेथी हुँ पण संदेहरूपी हींचोळपर चडेलाजेवो थर गयो. // 64 // जेणीनी कुतिमां या जन्मेला , एवी तेजनी माताने हुं वंदन करुं डं, तेमज या मुनि जे पृथ्वीने पोताना चरणोथी स्पर्श करे , ते पृथ्वी पण लोकोने पवित्र करनारी जाणवी. // 65 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्मः यथा कृषन परक्षेत्र / नाग्यात्कोऽप्यनुते निधि // तथाहं राजकार्येणा-गतोऽत्र मुनिदर्शनं // 66 // / सार्य अथो रहस्य धर्मस्य / पृष्टस्तेनादिमो मुनिः॥ जगाद शारदांनोद-नादसोदरया गिरा // 67 // शृणु सौम्य दयापुण्यं / प्राज्ञैः पुण्येषु वर्यते // दृक्तेज व तेजस्सु / बलेष्विव भुजावलं // 6 // मौनमूनोदरत्वं वा / ज्ञानं दानं जपस्तपः // मोघं दयां विना सर्व-मेतकृषिरिखांबुदं // 6 // // का. | विधर्मक्रिया सिधि / नाश्नुते जीवितं विना // तस्माज्जीवितदानेन / किं पुण्यमुपमीयतां // 7 // कोश परतुं खेतर खेडतोयको नाग्यथी निधान पामे तेम राजाना कार्यमाटे आवेला एवा मने अहीं मुनिनन दर्शन थयु . // 66 // हवे तेणे धर्मनुं रहस्य पूछवाथी पहेला मुनि शरद ऋ. तुना मेघनी गर्जना सरखी वाणीथी बोख्या के, // 67 // हे सौम्य! तुं सांभळ ? जेम सर्व तेजो. मां यांखोनुं तेज, तथा सर्व बलोमां जेम जाबल तेम सर्व पुण्योमा दयापुण्यने पंमितो वखाणे 3. // 6 // जेम वरसादविना खेती तेम दयाविना मौन, ऊनोदरपणुं, ज्ञान, दान, जप अने तप, ए सघg वृथा बे. // ६ए / कोश पण धर्मक्रिया जीवितविना साधी शकाती नथी, माटे जी. | वितदानसाथे कया पुण्यनी जपमा पापी शकाय! // 70 // जो अमि तृषा मटाडे, अने फेरथी | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- वह्विस्तृडपनोदाय / जीवनाय हलाहलं // यदि स्यात्तर्हि हिंसापि / पुण्याय परिकल्प्यतां // 71 / / | निर्मतून नंति ये जंतू-नंतकाः खलु ते नराः // नपालनंते दिक्पालं / दाक्षिणात्यं मुधा बुधाः // 72 // न मेदिनीमणिस्वर्ण-श्रेणिविश्राणनेऽपि तत् / / यत्पुण्यं जायते जंता-वेकस्मिन्नपि रदि. ते // 73 // सा च जीवदया सम्य-ग्मुनीः परिपाव्यते // उपासकैस्तदंहीणां / लेशेन गृहमेधि. निः // 14 // न जीवहिंसा नाऽसत्य-भाषा न स्तन्यमैथुने // न परिग्रहवैयग्यं / येषां ते मुनिजीवित मळे, तोज हिंसाथी पण पुण्य थव शके. // 31 // जे पुरुषो निरपराधी प्राणीनने मारे के तेज खरेखर यम बे, दक्षिण दिशाना दिक्पालने तो पंमितो फोकट नपालंन थापे . ॥७शा एक जंतुनुं रदण करवाथी पण जे पुण्य थाय , ते पुण्य पृथ्वी, मणि के स्वर्णनी श्रेणि या | प्याथी पण थतुं नथी. // 73 // ते जीवदया संपूर्ण रीते तो मुनीश्वरोज पाली शके , थने ते मनिनना चरणने सेवनारा गृहस्थीन तो लेशमात्र पाळी शके . // 14 // जेन जीवहिंसा करता नथी, असत्य नाषा बोलता नथी, चोरी करता नथी, मैथुन सेवता नथी, तथा परिग्रहमां लो| खुप थता नथी, तेज खरा मुनींदो . // 75 // क्यां सूर्य घने क्या पतंगीनं? क्या मेरु धने PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 450 धम्मित पुंगवाः // 75 ॥क तिग्मांशुः क खद्योतः / क मेरुः क च सर्षपः // क नाकौकः कं नानाकुः / / क साधुः क पुनर्ग्रही / / 76 // एवं मुनिपतेः श्रुत्वा / धर्मतत्वं दधन्मुदं // रथी तमेव पप्रल / पु. नरुद्गृतकौतुकः // 9 // नवंतो नगवंस्तुल्या-काराः षडपि साधवः // कुतो वैराग्यतो नेजुस्तारुण्येऽपि महातपः // 70 // निरस्तमन्मथो वाच-मथोवाच महामुनिः॥ उद्देलबोधिपाथोधिस्फारफेनानुकारिणी // // तस्किं यन्न नवे वत्स / नवे दैराग्यकारणं // समं हि नैकमप्यंग / कुसंस्थानमये मये // 70 // तत्र कस्यापि केनापि / हेतुना बोधिरेधते // एक एव हि नानेहा / क्यां सरसव ? क्यां देवविमान थने क्यां बिल? तेम क्यां साधु अने क्यां गृहस्थ ? // 16 // ए. वी रीते ते मुनीश्वरपासेथी धर्मर्नु तत्व सांगलीने हर्ष धरनारा अगलदत्ते आश्चर्य उत्पन्न थवाथी फरीने तेज मुनिने पूज्युं के, // 7 // हे नगवन! तुल्य याकारवाळा यापे गए मुनिए या युवावस्थामां पण शाथी वैराग्य पामीने दीदा लीधी ? // 70 // दूर करेवने कामदेव ने एवा ते महामुनिराज ज्ञानरूपी उबळेला समुदना विस्तीर्ण फीणसरखी वाणी बोल्या के, // 7 // | हे वत्स! या संसारमां एवी कश् वस्तु बे ? के जे वैराग्यना कारणरूप न थाय, केमके कुत्सित P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 451 धाम्मः। दृष्टः सर्वान्नसिष्ये / / 71 // शृणु नः कारणं बोधे / विंध्यनामास्ति धरः // यत्र दिपाश्चलाइंड शैललीलायितं दधुः // 72 // प्रवालीकृतगुंजानां / गजमुक्तास्रगतरा // पुलिंडीणां प्रिया पल्ली। तत्रास्त्यमृतसुंदरा // 3 // स्नेहो वसाशनं मांसं / वासः कृत्तिगुहा गृहाः / / कृत्यं हिंसा कला चौ. | ये / प्रायशो यन्निवासिनां // // यदोकस्सु दिपरदैः / स्थूणाः कुड्यानि कीकसैः // गोकर्णे संस्थानवाळा शरीरमां एक पण अंग सीधुं होतुं नयी. // 70 // माटे त्यां कोस्ने कोइ पण का. रणथी वैराग्य थाय ने, केमके सधली जातना अनाजना पाकमाटे कई एकज समय होतो नथी. // 1 // हवे तुं अमोने बोध थवानुं कारण सांगल ? विंध्याचल नामे एक पर्वत , के ज्यां हाथीन नाना जंगम पर्वतोनी शोनाने धारण करता हता. // 2 // हाथीनना मोतीननी मा लानी अंदर प्रवालारूप करेल ने चणोठीन जेणे एवी जिलमीनने वहाली तथा देवलोकजेवी मंदर एक पल्ली . // 3 // ते पल्लीमा रहेनारा भिल्लोने पायें करीने चरबीनी चीकाशवाळू मांसनं नोजन, चर्मरूपी कपडां, गुफा रूपी घर, हिंसारूप कार्य तथा चोरीरूप कला ने. // GUn जेजना घरोमां हाथीदांतोना थंजान, हाडकांनी नीतो, गायोना कानोनां तोरणो तयारी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Traina Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्तोरणावंडो-दयाश्चित्रकचर्मनिः॥५॥ दात्रवंश्योऽर्जुनस्तत्र / स्तेनसेनाधिपोऽजनि // यस्तेने | सार्थ | सह शार्दूलै-बक रैखि बर्करं // 6 // चलत्वं कपिन्निः क्रौर्य / व्यालैः काविन्यमस्मन्निः // शै. | लाधिपस्य शैलस्थैर्यस्य दंम्पदे ददे // 7 // न स कश्चन नृपोऽभू-नस मंत्री न वा नटः 12 // एतं सौदामिनीदाम-धामधाम जिगाय यः // // नपपल्ख्यन्यदा कोऽपि / सप्रियः संचरन् नटः // रथस्थो रुरुधे तेन / सेतुनेव पयःप्लवः // // शिविरस्थान स्थी तस्य / शवरानवधूय सः राना चामडांना चंद्रवा . // 5 // त्यां दत्रीवंशमां नत्पन्न भयेलो अर्जुन नामे चोरोनो से| नापति रहेतो हतो, के जे सिंहोने पण बकरासमान जाणीने तेजनी साथे लडतो हतो. // 6 // पर्वतना स्वामी एवा ते अर्जुनने पर्वतमा रहेता वांदराए पोतार्नु चपलपणुं दंमतरीके पाप्यं 6. तुं, सोए पोतानी क्रूरता पापी हती, तथा पबरोए पोतानी कठोरता यापी हती. // 7 // ए. वो कोई पण राजा मंत्री के सुजट नहोतो के जे वीजळीनी श्रेणिना तेजसरखा तेजवाळा एवा ते अर्जुनने जीती शके. // 1 // एक दिवसे ते पल्लीपासेथी स्त्रीसहित रथमां बेशीने कोक | सुनट जतो हतो, एवामां बंध जेम जलना प्रवाहने तेम ते अर्जुने तेने रोक्यो. // 7 // तेनी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्मः // हरिणेव हरिस्तेन / सह योधुं प्रचक्रमे / / ए० // अजय्यं तं परिझाय / स्वशस्त्रैश्चतुरो रथी।। | संझीप्सुर्विषमात्रेण / रथाग्रेऽस्थापयस्त्रियां // ए१ // तस्यां लावण्यवाहिन्या-मस्य मीनीनवदृशः | // तीदणधीस्तीदणबाणेन / विव्याध हृदयं रथी // 2 // बंधौ ज्यायसि कीनाश-पुरीपांथत्वमीयु. .453 वि॥ अनेशाम वयं तस्या-नुजाः पमपि कातराः // 13 // ततः प्राप्ता गृहं नासा-रूढश्वासाः क. थंचन // अवाधिष्महि ाचा-कंबया वयमंवया // 4 // रे निर्लजा निजत्रातु-Cतकेऽ. गवणीमा रहेला निलोने हरावीने ते सुन्नट सिंहसाथे जेम सिंह तेम ते अर्जुनसाथे लडवा लाग्यो. // 70 // पछी पोताना शस्त्रोथी ते अर्जुनने जीतवो मुश्केल जाणीने ते सुनटे तेने कामदेवना शस्त्रथी जीतवानी हाथी पोतानी स्त्रीने रथना श्रगामी नागमां बेसाडी. // 1 // लावण्यनी नदीसरखी एवी ते स्त्रीमां ज्यारे ते अर्जुननी आंखो मत्स्यजेवी थर गश्, त्यारे ते तीक्ष्ण बुध्विाळा सुनटे तीदण बाणथी तेनुं हृदयं वांधी नाख्यु. // 55 // एवी रीते अमारो मो. टोना ज्यारे यमपुरीने मार्गे पड्यो त्यारे श्रमो तेना गए नाना नाश्न मरीने त्यांथी नाशी गया. // ए३ // पजी क नाके चडेला श्वासवाळा यमो केटलीक मुश्केलीए घेर पहोंच्या. त्यां P.P.AC.Gunratnasurn.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म प्यप्रतिक्रियैः // भवद्भिरिसूनाम / मम सूनामनीयत // 5 // यलोके वारिणावारि / कृशानोरकृ. / सार्थ | शापि नाः // तबोषयति वारीशं / तद्वंधुर्वमवानलः // 6 // यो मित्रामित्रयोः शक्तो / नोपका| रापकारयोः // धत्ते तस्याऽयशोवल्लि-बीजतां दीर्घजीविता // एy // एवं निःकृपया मात्रा / प्रजावः | त्यापि तर्जिताः // प्रास्थिष्महि प्रतिझाय / वयं वैविधं गृहात् // // ततो स्थानुसारेण / गता न. ऊयिनी पुरीं // उष्टव्यंतरवन्नित्यं / निजाण्यद्राम वैरिणः // एए / सोऽन्यदा सहितः पत्न्या / सअमारी माता अमोने दुर्वचनोरूपी सोंटीथी मारवा लागी के, // ए४ // अरे निलको! पोताना भाश्ने मारनारन वेर लीधाविना तमोए यहीं यावीने मारुं वीरमातानुं नाम नष्ट कर्यचे. // 5 // था दुनियामां जले अमिना अतिशय तेजने पण जे निवायु , तेथी तेना बंधु वडवानले ज. लना स्वामी समुद्रने शोषी नाख्यो . // ए६ // जे माणस मित्र बने शत्रुपर नपकार बने अ. पकार करवाने समर्थ नथी, तेनुं लांबा काळसुधीनु जीवन अपयशरूपी वेलमीना बीजपणाने धा. रण करे . // 7 // एवी रीते संतानवाळी निर्दय माताए तर्जेला एवा अमो वैरीना वधमाटे / प्रतिज्ञा करीने घेरथी निकल्या. // ए // पनी अमो ते रथने अनुसारे उज्जयिनी नगरीमा ग. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म। रतिस्मरसुंदरः // पुरः परिसरोद्यानं / वसंतसमये ययौ // 2100 / / विजनेत्र वने क्रीड-नेष घाः / सार्थ तिष्यते सुख // इति गृढधियः सर्वे / वयमन्वगमाम तं // 1 // विसृष्टस्वजनो दृष्ट्वा / दष्टां दुष्टा. हिना प्रियां // सायं सुरौकसो हारि / स्थितस्तारं रुरोद सः // 2 // सोऽहमेव न किं येन / जातं 455] सर्वमिदं मम // ध्यायन्निति स्थी प्रोचे / ततः किं किं भुनीश्वर // 3 // खेटः कोऽपि तदा श्रुत्वा। या, तथा त्यां दुष्ट व्यंतरनीपेठे हमेशां ते वैरीनां बिडो जोवा लाग्या. // एए // हवे एक दिव. से रतिसहित कामदेवसरखो सुंदर ते सुन्नट पोतानी स्त्रीसाथे वसंत ऋतुमां नगरबहार नद्यानमां गयो. // 2100 // था उज्जम वनमां कीडा करता एवा आ सुनटने आपणे सहेलथी मारी श. कीशं, एवी रीते गुप्त विचार करीने अमो सघला तेनी पाबळ गया. // 1 // एवामां दुष्ट सर्प मं. खेली पोतानी प्रियाने जोश्ने ते सुजट स्वजनोने विसर्जन करी पोते संध्याकाळे एक देवमंदि. रना हारमा प्रावीने मोटेथी रमवा लाग्यो. // 2 // अरे! ते तो आ हुँ पोतेज केम न हो ? केमके या तो सघ मनेज लागु पडे बे, एम विचारतोथको ते अगलदत्त बोल्यो के, हे मुनी. श्वर! पनी शुं शुं थयुं ? // 3 // एवामां कोश्क विद्याधरे तेनो विलाप सांजळीने दयाथी प्रेराने PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमि विलापान कृपयेरितः // एत्य स्वपाणिस्पर्शन / तस्य जायामजीवयत // 4 // गते खेटे समं वध्वा | / स विवेशामरालयं / / चचाल चामये प्रोक्तो / ध्वांताकुलितया तया // 5 // मज्जातायं च तत्रा. | मि-समुझमुदघाटयत् // प्रकाशे प्रसृते वर्षों-स्तत्प्रिया निरैदत // 6 // नारीहक्कार्मणेनास्य / 456 रूपेण शुचिताशया // सौम्य कोऽसि त्वमत्रेति / सा मृदृक्त्यामुमालपत् // 7 // व्रातृवैरात्तव धवं / हत्वा वं गृह्यसे मया // इत्यस्य वचसा तस्याः। कर्णयोरमृतायितं // 7 // सावादीदेव यद्येवं / त्यां भावी पोताना हाथना स्पर्शयी तेनी स्त्रीने जीवाडी. // 4 // पछी ते विद्याधर गयावाद स्त्रीसहित ते सुजट देवमंदिरमा गयो, परंतु अंधकारथी व्याकुल थयेली ते स्त्रीना कहेवाथी ते अ. मि लेवामाटे चाख्यो. // 5 // एवामां था मारा जाइए अमिनो डाबडो एटले चोरफानस नघा. ड्युं, एटले अमिनो प्रकाश फेलावाथी ते सुभटनी स्त्रीए था मारा नाश्ने जोयो. // 6 // स्वीनी थांखोने कामणसमान एवा तेना रूपथी मोहित थयेली ते स्त्रीए तेने कोमळ वचनथी बोलाव्यो के हे सौम्य ! तुं वळी यहीं कोण ? // 7 // मारा नाश्ना वेस्थी तारा भर्तारने मारीने हं तने ले जश्श, एवी रीतनुं तेनुं वचन तेणीने पोताना कानमां अमृतसरखं लाग्यु.॥ // प P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- तदीदव समाहितः // सुखेन जातविश्वासं / हनिष्याम्यहमेव तं // ए // नतस्ते स नटः कुर्यात् / प्रतिघातं कदापि चेत् // शुष्कस्तदुदयन्नेव / मन्मनोरथपादपः // 10 // तस्पियोऽथ पुतं तत्रा-ग बदात्तहुताशनः // अपबच्च प्रियामत्र / मया ज्योतिः किमैदयत // 11 // एतत्तेजस्तवानीत-व४७ | ह्वेरेवेति भाषिणः // सोऽदाख कलंत्रस्य / वनौकस वोल्मुकं // 12 // स्वयं चादीपयहिं / न्यग्मुखः स्फारफूत्कृतैः // रहो दास्यं हि दासीना-मपि कुर्वति कामिनः // 13 // अथ कृत्येव तं बीते बोली के हे स्वामी! जो एम जे तो तुं सुखे जोया कर ? केमके हुंज ते मारा विश्वासु स्वामीने सहेलाथी मारी शकीश. // // // केमके तेने मारता एवा तने कदाच ते सुजट सामो घा करे तो मारो था मनोरथरूपी वृक्ष तो नग्यानेळोज सूकाइ जवाजेवू थाय. // 10 // हवे एवामां तेनो स्वामी पण अमि लेश्ने त्यां तुरत याव्यो, अने तेणे पोतानी स्त्रीने पूज्यु के यहीं मने प्रकाश केम जोवामां याव्यो? // 11 // ए प्रकाश तो तमोए लावेला अमिनोज हतो, एम कहेती एवी पोतानी स्त्रीना हाथमां वांदराना हाथमा जेम मसाल तेम तेणे तलवार पापी. // // 1 // पजी ते सुभट पोते नीचु जोस्ने खूब फुकीने अमि सळगाववा लाग्यो, केमके कामी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- हंतुं / सा कृपाणमसळायत // तद् दृष्ट्वा स्त्रीविरक्तांत-करणो दध्यवानसौ // 14 // धिक् धिक | सार्थ | धाष्टये पुरंध्रीणा-मीदृशं स्नेहनाजनं // जनं जनकहतार–मिव हा प्रहरंति याः // 15 // सुरू | पे सुन्नगे स्निग्धे / यारज्यन्नात्र नर्तरि / लप्स्यते सा मयि स्थैर्य / कः श्रछत्ते सुधीरिदै // 16 // | येन स्नेहेन वयते / येन देहोऽपि दीयते // रुज श्वाप्तप्रसरा-स्तमपि नंति योषितः // 17 // | दृशं कृशधीरेषा / पुरुषं विषयाशया // ही विहेष्टि नन्नोरत्नं / घूकीव ध्वांतकाम्यया // 10 // रस| माणसो गुप्तपणे दासीननी पण नोकरी बजावे . // 13 // पनी राक्षसीनीपेठे तेने माखाने तेणीए तलवार जगामी, ते जोश्ने स्त्रीश्री विरक्त हृदयवाळा aa मारा गाए विचार्य के, // 14 // थरे! स्त्रीजनी धिगश्ने धिक्कार बे, के जेन यावा स्नेही माणसने पण पोताना बापने मारनार नीपेठे मारी नाखे . // 15 // मनोहर रूपवाळा, सौजाग्यवाळा तथा स्नेहवाल आ जरिमां प णजे रंजित थ नहि, ते मारामां स्थिरता धरशे, एवी श्रका कयो बुध्विान माणस राखे? // | // 16 // पुरुषो के जेन स्नेहथी स्त्रीन- पोषण करे , तथा पोतानुं शरीर पण तेणीने सोंपी दे |, एवी पण स्त्री रोगनीपेठे विस्तार पामीने (बहेकी जश्ने ) तेज पुरुषोने मारे जे. // 17 / / / P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एए धाम्म झरौषधरसै / रसेंडः स्थैर्यमाप्यते // निश्चलः क्रियते शाखा-मृगो रज्जुनियंत्रणैः // 15 // कंपः मा प्रकंपनस्यापि / धृत्या वृत्त्यापनीयते // न तु केनापि चापल्यं / त्याज्यते कामिनीमनः // 20 // ध्यात्वेति तस्या थाहत्या–पहस्तेन स सत्कृपः / वातेन कदलीकांम-मिव बाहुमधूनयत् // 1 // | तस्या विश्वस्तघातिन्या। अन्यायोद्यतचेतसः // अनिबन्निव संस्पर्श / कृपाणः पाणितोऽपतत् // // // श्राः स्खं पतिमहं हंतुं / कुस्त्रीसंगात् प्रचक्रमे // इत्यात्मकृत्यशःखार्त / श्व खमोबुद | नीच बुद्धिवाळी या स्त्री घुवमी जेम अंधकारनी श्वाथी सूर्यनो तेम विषयनी श्वाथी पावा पु. रुपनो पण देष करे . // 17 // धातुवादीन औषधना रसथी पाराने स्थिर करी शके ने, तथा दोरीथी बांधवाथी वांदराने पण निश्चल करी शकाय ने, // 15 // वायुनो वेग पण धीरजथी वा. डवडे दर करी शकायचे, परंतु स्त्रीना मननी चपलता कोश्थी पण गेडावी शकाती नथी. // 20 // एम विचारीने मारा था दयाबु भाइए वायुथी जेम केळना थंनने तेम पोताना मात्रा हाथथी ते. णीनो हाथ खूब कंपान्यो. // 11 // ते वखते विश्वासघात करनारी तथा अन्यायमां नद्यमवंत म. नवाळी एवी ते स्त्रीना स्पर्शने जाणे न श्बती होय नहि तेम तेणीना हायमांथी तलवार पसी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . धम्मि- वि // 23 // किमेतदिति स स्वस्थः / पृछन् शधिया तया // जयेनायं च्युतः ख / न्युदि. त्वा परीप्सितः // 24 // प्राप्तोक्ताविव तहाचि / स विधेनं दधत्ततः // निनाय नायकायुक्तः / सु. खं तत्र विनावरी // 25 // देवप्रतिमया क-खनमूर्तिरसावपि // तत्र तस्थौ बृहद्धांड-निगूढ . 460 | व मूषकः // 26 // प्रगे स्वसमगे तस्मिन् / निशावृत्तेऽमुनोदिते // विवेकचकुवैराग्यां-जनेनो गइ. / / // अरे नीच स्त्रीना संगथी हुं मारा स्वामीने पण मारवाने तैयार थइ! एवा पोताना पुष्कार्यना दुःखथी जाणे खेदित थ होय नहि तेम ते तलवार पृथ्वीपर लोटवा लागी. // 3 // अरे! या शुं थयु ? एम ते सुनटे पूज्वाथी ते बुच्चीए नयने लीधे या ख मारा हाथमांथी प. मी गयु, एम कहीने वात नडावी दीधी. // 24 // त्यारे सर्वाना वचननीपेठे तेणीना वचनमां विश्वास राखीने ते सुनटे त्यां सुखे ते स्त्रीसहित रात्री व्यतीत करी. // 25 // या मारो हशियार नाइ पण मोटा घडामां बुपायेला नंदरनीपेठे ते वखते त्यां देवप्रतिमानी पाउळ पाइने बेशी रह्यो. // 26 / / पजी प्रनाते ते सुजट पोताने घेर गयावाद रात्रिनुं सघडं वृत्तांत अमारा था नाए अमोने कहेवाथी वैराग्यरूपी अंजनथी अमारां विवेकरूपी चकुन खुल्ली गयां. // 27 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- दुघटिष्ट नः // 27 // दध्यवांसश्च नो गेहं / गंतुं युक्तमतः परं // कः पाशान्निर्गतः पाशे / पुनः पित्सति सन्मतिः // // निहंतुमहितं भ्रातु-रातुरा मातुराझया // निर्गता मोहमारादीन् / पूर्व | हन्मः स्ववैरिणः // 25 // उपनामंति बाह्यारीन् / जेतुं जगति जन्मिनः // कामाचैर्हतसर्वस्वं / न 461 खं जानंति बालिशाः // 30 // बंधवो बंधनं योषा / सदोषा विषया विषं // जानंतोऽपीत्यनार्या ही / / स्वकार्याय पराङ्मुखाः // 31 // न प्रेमधामवनिता न नितांतपुष्टा / लदम्यो न लदाणलसहपु. | तेथी अमोए विचार्यु के हवे तो आपणे घेर जवू युक्त नथी, केमदे पाशमांथी निकळेलो कयो सद्बुधि माणस पागे पाशमां पडवानी ना करे? // 20 // मातानी आझाथी नाश्ना शत्रुने मारवाने यातुर थ निकळेला एवा यापणे प्रथम मोह तथा काम आदिक यापणा शत्रुनने मारवा जोश्ये. // 25 // था जगतमां प्राणी बाह्य शत्रुनने जीतवाने प्रयत्न करे , परंतु का. मादिक शत्रुन पोतानी जे सर्व मिल्कत बुंटी ले रे तेने तो ते मूल् जाणी शकना नथी. // // 30 // बंधुन बंधनसरखा , स्त्रीन दोषोवानी ने तथा विषयो विषसमान ने, एम जाणतांथकां | पण मूर्ख लोको पात्मकार्यमाटे बेदरकार रहे . // 31 // नरकरूपी अंध कुवामां पमता प्राणी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः षस्तनूजाः // नो वा निरंतरहृदः सुहृदः कदाचि-दालंबनं निपततां नरकांधकूपे // 35 // एवं सं. / सार्थ सारवैराग्यात् / प्रचेलिमो वयं ततः // विषवल्लीमिव त्यक्त्वा / पल्ली दूरे दिशैकया // 33 // तीर्थ कंचन याचंतः / पापप्रदालनदाम / वयं ददृशिमः कापि / दृढवत्यधिं गुरुं // 34 // श्रुत्वा तद्दे. 461 शनां दीदा-मादिष्महि ततो वयं // चिंतामणिमिवांचोधे-ाग्यहीनैर्दुरासदं // 35 // दृढधर्मो धर्मरुचि-धर्मदासश्च सुव्रतः // दृढव्रतो धर्मप्रिय / श्त्याख्या नो ददौ गुरुः / / 36 // विहरामस्ततो. नने प्रेमाळ स्त्रीज, खूब एकली करेली लक्ष्मी, लदाणयुक्त शरीरवाळा पुत्रो तथा अंतररहित हृदयवाळा मित्रो पण कोइ पण वखते बालंबनरूप थता नथी. // 32 // एवी रीते संसारपरथी वै. राग्य थवाथी अमो विषवल्लीनीपेठे ते पल्ली दूर गेडीने त्यांथी एक दिशातरफ चालवा लाग्या. | // 33 // पापोने धोवामां समर्थ एवा कोश्क तीर्थनी शोध करतांथकां अमोए एक जगोए दढव ती नामना गुरुने जोया. // 34 // तेमनी देशना सांभलीने जाग्यहीनोने दुर्लन एवं चिंताम|णि रत्न जेम समुद्रमाथी तेम अमोए तेमनी पासेथी दीक्षा लीधी. / / 35 // पजी ते गुरुमहाराजे | अमारां अनुक्रमे दृढधर्म, धर्मरुचि, धर्मदास, सुव्रत, दृढव्रत तथा धर्मप्रिय एम नामो आप्यां. // 36 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 463 | धम्मि- ऽवन्या-मन्योऽन्यं संहिता वयं // अस्मदैराग्यवृदस्य / बीजमेवं मृगेक्षणा / / 37 / / इति श्रुत्वा न वाद्भिन्न-पथीतमना रथी / बभाषे जगवंस्तं मां / विधि स्वव्रातृघातकं // 30 // अहं पत्न्यास्तव गिरा-ज्ञासिषं गूढमायितां // ग्राम्यो नागरिकस्योक्त्या / मणेः कृत्रिमतामिव / / 35 / / भाग्यवान | स्मि नूनं य-न हन्येस्म तदा तया / / नो चेदर्तिवशो मृत्वा-उजविष्यं नरकाध्वगः // 40 // | सरितः सिकता बिंदूं-नब्धेव्योनि च तारकाः // संख्यातुमीशते ददा / न दोषान् योषितां पुनः // त्यारथी श्रमो परस्पर मदद करताथका पृथ्वीपर विहार करीये जीये, एवी रीते अमारां वैराग्यरूपी वृक्षानुं बीज स्त्री ने. // 37 // ते सांजलीने संसारथी विरक्त मनवाळो अगलदत्त बोल्यो के हे न. गवन ! तमारा भाश्ने मारनार तरीके यापे मनेज जाणवो. // 30 // वळी एक गामडीने नगरना लोकना वचनथी जेम मणीनु बनावटीपणु जाणे तेम पापना वचनथी में मारी स्त्रीनुं गूढ क. पटीपणुं जाण्यु जे. // 30 // खरेखर हुँ जाग्यवान बुं के ते वखते स्त्रीची मरायो नहि, नहितर भार्तध्यानपूर्वक मरीने मारे नरकमां जवु परत. // 40 // विद्वानो नदीनी वेळू, समुद्रना बिंद | तथा श्राकाशमा रहेला ताराननी पण संख्या करी शके डे, परंतु स्त्रीना दोषोने गणी शकता. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ 464 धम्मि- // 41 // मायाखानिर्मषासत्रं / वैरस्योत्पत्तिऋमिका // कुसंगरंगो दुर्बुधि-सीमा सीमंतिनीजनः / / // 42 // आऽियंते जमा एव / योषितः सुखवांउया // हुताशनाशया गुंजाः / शीतार्ता व वान: सः॥ 43 // महिलास्नेहममानां / मदिकाणामिवांगिनां // सत्पदाबलहीनानां / मृत्युः संनिहितो | ध्रुवं // 44 // प्रनो वैषयिकं मोहं / मम त्वत्संगमोऽधुना // नुनोद कतकदोद / श्व काबुष्यम जसः // 45 // तत्प्रसीद जवांभोधौ / निमऊतमिमं जनं / चारित्रचारुपोतेन / निर्माय व ता. थी. // 41 // वळी ते स्त्रीन कपटनी खाणसरखी, जूगश्नी दानशालासरखी, वैरनी जन्मभूमीतु. व्य, कुसंगना रंगवाळी तथा उर्बुधिनी हदसरखी जे. // 45 // जेम ठंडीथी पीडाता वांदरान अ. मिनी बाथी चणोठीन एकली करे , तेम मुर्ख माणसोज सुखनी श्वाथी स्त्रीनने ग्रहण करे // 3 // घृतमां पडेली माखोनीपेठे स्त्रीना स्नेहमां पासक्त थयेला तथा उत्तम पदाना बलथी रहित थयेला पुरुषोनुं मोत नजदीक आवे . // 44 / / हे नगवन् ! कतकफलनुं चूर्ण जेम जलनो मेल दूर करे , तेम थापना संगमे हाल मारा विषयसंबंधी मोहने दूर कयों ने // 4 // माटे जवसमुष्मां मुबता एवा या प्राणीपर आप कृपा करो? तथा निर्यामकनीपेठे चारित्ररूपी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ/ धाम्म। स्य // 46 // ततो जवविरक्तं तं / ज्यायानृषिरदीदयत् // अशिदयच्च निःशेषं / साध्वाचारं महो. द्यमः // 4 // राजकार्य समुत्सृज्य / स्वकार्य कर्तुमुद्यतं // तमेवागलदत्तं मां / विधि धार्मिक |म्मिल // 4 // श्यं ब्रांतिरयं मोहो / मांद्यमेतदयं नमः॥ कदाग्रहोऽयं यत्स्त्रीणा-मंगीकारः 465 | सुखाशया // 4 // योषित्परावृतिनवं निशम्य / सोढं मया कष्टकदंबमेवं // यानवानप्यनिशं म हेला-विलासजलीन्निरनेद्यधैर्यः // 20 // मनोहर वहाणवडे तारो? // 46 // पनी संसारथी विरक्त श्रयेला एवां ते अगलदत्तने मोटा मु. निए दीदा थापी, तथा खूब महेनत लेश्ने तेने सघळो साधुनो श्राचार शिखयो. // 4 // हे धार्मिक धम्मिल! एवी रीते राजकार्यने गेमीने यात्मकार्य करवामां नद्यमवंत थयेला एवा मने ज तारे ते अगलदत्त जाणवो. // 40 // सुखनी आशाथी स्त्रीननो जे स्वीकार करखो ते ब्रांति, मोह, मूर्खा, ब्रम तथा कदापहरूप जे. // 4 // एवी रीते में कष्टोनो समुह सहन कर्यो बे. माटे हे धम्मिल! तुं पण स्त्रीना परानवथी थता कष्टने सांजलीने हमेशां स्त्रीजना विलासरूपी नालांथी न भेदी शकाय एवा धैर्यवाळो था? // 50 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि एवं मुनिमुखाद्योषा-दोषानाकर्ण्य दुःखितः // अद्याप्यदीपजोगेबः / प्रत्यनाषत धम्मिलः // 51 // महात्मन्नेकरूपाः स्युः / किं समस्ता अपि स्त्रियः // समाः समग्रा नांगुल्यो-ऽपि हि पा. णौ नृणां यतः // 5 // यासां कुदीमुरीचक्रु-र्जिनचक्रधरादयः // जंगमा रत्नखनय-स्ता निं. 466 | द्याः किमु योषितः // 53 // विषवृद श्वापास्यो / बष्टशीलः पुमानपि // कल्पवख्य श्वोपास्याः | सुशीला महिला अपि // 14 // कुशीलयैकया नार्या / नार्याः किं सकला अपि // लवणोद एवी रीते मुनिना मुखथी स्त्रीना दोषो सांजलीने दुःखी थयेलो धम्मिल हजु पण नोगोनी श्वा दीण न थवाथी बोल्यो के, // 51 // हे महात्मन् ! शुं सघळी स्त्रीने एकसरखी होय ? केमके माणसोना हाथनी बांगलीन पण सघळी एकसरखी होती नथी. // 55 // जेनी कु. दिनमां जिनो तथा चक्रवर्तीयादिको नत्पन्न थया , एवी जंगम रत्नोनी खाणसरखी ते स्त्रीन केम निंदनीक होई शके ? // 53 // शीलथी व्रष्ट थयेला पुरुषने पण फेरी वृक्षनीपेचे दर तज. वो जोश्ये, तथा शीलवंती स्त्रीननी पण कल्पवल्लीननीपेठे उपासना करवी जोश्ये. // 24 // एक को कुशील स्त्रीथी शुं सघळी स्त्री कुशील होश् शके ? केमके लवणसमुऽनुं जल खारूं | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ धम्मि- जले दारे / न दारमखिलं जलं // 55 // स्नानाशनादिकं सौख्यं / धर्मो देवार्चनादिकं // गृहं विना गृहस्थस्य / स्याद्यथावसरं कथं // 26 // शिवशब्दो हरश्रेयो-मोदमुख्यार्थनागपि // वि. ना कुंडलिनी शक्तिं / प्रयाति शवरूपतां // 27 // बहुप्रियाः स्त्रियो नैव / दृश्यंते पुरुषा यथा // 467 | मृतप्रियाः पुनः पाणि-ग्रहं पुंवन्न कुर्वते // 27 // नरा हि नरकं यांति / सप्तमं न पुनः स्त्रियः // ननयेषामपि प्रोक्तः / श्रुते मोदगमः समः // एए / सलकाः संवृतांगाश्च / मृदुचित्ता मृदृक्तयः होवाथी शुं सघj जल खारं होश् शके ? // 55 // स्नान भोजन आदिक सुख तथा देवपूजादि. क धर्म घरविना गृहस्थीने योग्य अवसरे केम थर शके ? // 56 // 'शिव' शब्द महादेव. कल्याण तथा मोद यादिक अर्थवाळो होवा उतां पण इस्वविना शवरूप थ जाय . // 27 // जेम पुरुषो घणी स्त्रीजवाळा देखाय , तेम स्त्रीन घणा पुरुषोवाळी देखाती नथी, वळी ते स्त्री. नजारना मृत्युबाद पुरुषनीपेठे पुनलम पण करती नथी. // 20 // वळी सातमी नरके पण पुरुषो जाय , पण स्त्रीने जती नथी, अने मोक्षे जवानुं तो बन्नेने शास्त्रमा तुल्य कां // // // लावाळी, गोपवेलां अंगोवाळी, कोमल हृदयवाळी, मृदु वचनोवाळी तथा परुषोधी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasun M.S. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // धर्मकर्योऽधिकं पुन्यः / किं निंद्यते त्वया स्त्रियः // 60 // सतीनां चरितं हृद्यं / लोके बुधजः / मार्ग ना अपि / वीदय धुन्वंति मूर्धानं / दृष्टांतेन धनश्रियः // 61 // तथाहि - समस्तवस्तुविस्तार- सारसमसमन्विता // विशालास्ति पुरी ख्याता-ऽवंतिमंमलमंझनं // 6 // 460 जितारिस्तत्र जपोऽनु-द्यस्य जीवितकारणं // याज्ञां शिरसि नृपाला / मौलिमुत्सृज्य बिभ्रति // // 6 // श्रेष्टी सागरदत्तोऽत्रा-उजवद् सुवनविश्रुतः // धनेशधनितागर्व-सर्वकषधनोचयः // 3 // अधिक धर्म करनारी एवी स्त्रीनने आप शामाटे निंदो गे? // 60|| था दुनियामां सतीननं मनो. हर चरित्र जोश्ने धनश्रीना दृष्टांतथी पंमितो पण पोतानां मस्तक धुणावे . / / 61 // ते धनश्रीन दृष्टांत कहे - सघळी वस्तुनां विस्तारवाळां मनोहर घरोवाळी तथा अवंतीदेशने शोनावनारी विशाला नामनी एक प्रख्यात नगरी 3. // 6 // त्यां जितारी नामनो राजा हतो, के जेनीयाडाने जी. वितना कारणरूप मानीने राजा मस्तकपर मुकुट पण तजीने धारण करता हता. // 6 // ते नगरमां कुबेरना धनवानपणाना गर्वने दूर करनारा धनना समुहवाळो अने जगतमा प्रख्यात साः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaraunak Trust Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सार्थ धम्मि- चंद्रश्रीरित्यभृत्तस्य / रूपरत्नखनिः प्रिया / यद्देहदुर्गमालंब्य / कामो विश्वं जिगीषति // 64 / / तत्कुदिकंदरकोड-केसरी वरविक्रमः // समुद्रचंद्र श्त्याख्यां / दधानस्तनयोऽजनि // 65 // मते भागवते बघा-नुरागः सागरः सदा // नपस्वभवनं कंचित् / परिवाजमतिष्टपत् // 66 // पनि ४६ए तरशालासु / श्येन्मेष स्वधर्मतः // इति तेन परिवाजा / श्रेष्टी पुत्रमपीपठत् // 67 // पठन् कदा. | प्यसौ प्रातः / प्रातराशविधित्सया // प्राविशत्पट्टिकां मोक्तुं / मठस्यांतः शरेतरः // 6 // स तत्र गरदत्त नामे शेठ वसतो हतो. // 63 // तेने रूपरूपी रत्ननी खाण सरखी चंदश्री नामे स्त्री ह. ती, के जेणीना शरीररूपी किल्लानो अाधार लेश्ने कामदेव जगतने जीतवानी श्वा राखतो ह. तो. // 64 // तेणीनी कुदिरूपी गुफाना मध्य नागमां केसरीसिंहसरखो महापराक्रमी समुषचंद्र नामे पुत्र थयो. // 65 // नागवत मतना अनुरागी एवा ते सागरदत्त शेठे पोताना घरपासे कोश्क तापसने राख्यो हतो. // 66 // बीजी निशाोमां भगवाथी या पोताना धर्मथी भ्रष्ट न थाय तो वीक एम विचारीने शेठ ते तापसपासे पोताना पुत्रने जणाववा लाग्यो. // 67 // एक दि. वसे ते चालाक समुऽचंद्र प्रनातमां नणतोयको शीराववानी श्बाथी पोतानी पाटी मुकवाने ते P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- लिंगिनानेन / सममब्रह्म सेविनी // अंबां ददर्श बब्बूल-फुमलगां लतामिव // 6 // // व्यावृत्तोऽथ क्षणं वज्रा-हतवज्जातवेदनः // शिलयेव हियाक्रांतो। विवेकी विममर्श सः // 50 // अहो नी चरता नार्यो / मदिकासख्यमियति // चंदनद्रवमुत्सृज्य / श्लेष्मणे स्पृहयंति याः // 31 // गुण४० ग्रामनवे विश्व-व्यापके सद्यशःपटे / नत्पादयति मालिन्यं / नृणां शशिमुखी मषी॥७॥ तुं. गं स्थिरं विशालं च / कुलं सयति दणात् // महिला मुक्तमर्यादा / वार्डिवेलेव पर्वतं / / 73 // तापसना) मठमा दाखल थयो. // 67 // त्यां तेणे बावळना वृदने वळगेली वेलमीनीपेठे ते तापससाथे मैथुन सेवती एवी पोतानी मातांने जो. // 6 // // त्यारे ते त्यांथी पागे वळीने जा. पो.वज्रथी हणायो होय नहि तेम दुःखित थयोथको जाणे शिलाथी तेम लगायी दवाने ते विवेकी विचारखा लाग्यो के, // 70 // अहो! नीचमां शासक्त थयेली स्त्रीन मदिकाननू तुल्यप धारण करे , केमके तेन चंदनरस तजीने श्लेष्मने श्वे . // 11 // चंद्रसरखा मुखवाळी खी मषीनीपेठे पुरुषोना गुणोना ( दोराना) समुहथी उत्पन्न थयेला तथा जगतमां प्रसरेला उत्तम यशरूपी कपडामा मलीनता उत्पन्न करे . // 72 / / समुद्रनी वेळा जेम पर्वतने तेम स्त्री P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Gunazadihak Trust Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- अस्य व्याजपरिवाजः / पाखंझ खफशोऽस्तु ही // विनाशं स्वाश्रयस्यैव / विदधाति शिखीव यः॥ // 4 // बोधयिष्यत्यसौ किं नः / स्वयं मोहवशं गतः // सरित्पूरे स्वयं मऊं-स्तारयत्यपरं कथं // // 75 // अयं गुरुरियं माता / मम पूज्यावुनावपि // अनयोरनयो वक्तुं / जनकस्यापि नार्हति 471 // 16 // असाविव दुराचारा / मन्ये सर्वा अपि स्त्रियः॥ यथैकाब्धेश्चला वीचिः। शेषा अप्य खिलास्तथा // 39: // विद्याविवेकवैशद्य-दारकं दारकर्म तत् // करिष्ये नाहमेवं स / निश्चिका. पण मर्यादा गेडीने नचां स्थिर तथा विशाल कुलने पण कणवारमा तोमी पाडे जे. // 3 // श्रा कपटी तापसनुं पाखंड पण टुकडे टुकडा थर जान ? केमके ते अमिनीपेठे पोताना आश्रयनोज विनाश करे . // 14 // पोतेज मोहने वश थयेलो था तापस अमोने शुं प्रतिबोध थापी शकशे! केमके पोतेज नदीना पुरमां बुझतो माणस बीजाने शीरीते तारी शके ? // 7 // आ गुरु ने, धने था माता ने, एम ए बन्ने मने तो पूज्य , माटे या बन्नेनो अन्याय पिताने कहेवो ते पण युक्त नथी. // 16 // पानीपेठे हुं सर्व स्त्रीनने दुराचारीज मानुं , केमके सम। उनं एक मोजु ज्यारे चंचल होय त्यारे बीजा मोजां पण शुं स्थिर होश् शके ? // 9 // मा P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- य तदा हृदा // 9 // नद्यौवनोऽथ योगीव / गुणरत्नखनीः कनीः // अन्वेषयंत जनकं / वयस्यैः सन्यषेधयत् // 7 // सोऽपि तं स्माह वत्स त्वां / पितृनत्यंबुपवलं // कदा कदाग्रहग्राहः / प्र विश्यायमदषयत् // 70 // पुत्रमुत्पाद्य संवर्य / समध्याप्य विवाह्य च // यांत्यनृण्यं पूर्वजानां / म. 472 | नुजा नान्यथा पुनः // 1 // त्वं सुपुत्रोऽसि नतोऽसि / पितृणान्मां विमोचय // मन्यस्व वति. विद्या अने विवेकना माहात्म्यने नाश करनारो विवाह हुं करीश नहि एम तेणे पोताना हृदयमां निश्चय कर्यो. // 70 // हवे ज्यारे ते यौवनवयनो थयो त्यारे तेनामाटे गुणोरूपी रत्नोनी खाणसरखी कन्यानी शोध करता एवा पोताना पिताने तेणे मित्रोमारफते ना कहेवरावी. // // // त्यारे तेना पिताए तेने कह्यु के हे वत्स! पितानी जक्तिरूपी जलना तळावसरखो एवो जे तं तेमां कदाग्रहरूपी मगरमचे प्रवेश करीने तने क्यारे दूषित कर्यो के ? // 70 // माणसो पुत्रने नत्पन्न करीने, पोषीने, नणावीने तथा परणावीने पूर्वजोना करजथी रहित थाय , बीजी रीते थता नथी. // 1 // वली तुं तो जक्तिवान सुपुत्र बगे, माटे मने पितृनना करजथी मुक्त कर? अने मानी जा? केमके विवाह तो मुनिनेज ला करनारो ने. // 2 // त्यारे तेणे P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म नामेव / बीमाकृत्पाणिपीमनं // 2 // प्रत्यूचे सोऽपि वीवाहा-द्यदस्म्येष पराङ्मुखः // तत्ताताः / तश्रुतान्यास-रसान्न तु कदाग्रहात् / / 73 // श्रुतान्याशु विलीयंते / वशाव्यासंगतो नृणां // यथा, | रंनाफलान्येला-चूर्णादभ्यर्णवर्तिनः // 4 // किंच वैषयिके नावे / तात ते. प्रेरणा वृया / / न H73 | हि नीचर्बजहारि / शिदा कस्याप्यपेदते // 5 // निरुत्तरीकृतः पुत्रेणैवं दुःख वहन हृदि / सागरस्तविवाहाथै / बंधुवर्गमशिदयत् / / 76 // तदत्यर्थनयाप्यस्मिन / स्खनिश्चयमनुष्नति / / घना | कह्यु के हे पिताजी! विवाहमाटे जे हुँ निषेध करुं बुं ते फक्त शास्त्रान्यासना रसथी करुं , प. रंतु कदाग्रहथी करतो नथी. / / 73 // जेम नजीक रहेल एलचीना चूर्णयी केळनां फलो तेम स्त्रीना संगथी माणसोनो शास्त्राच्यास नाश पामे . // 4 // वळी हे पिताजी! वैषयिक सुखमाटे आपनी प्रेरणा फोकट में, केमके नीचे जतुं जल कई कोश्नी शिखामणनी थपेदा राखतुं नथी. // 5 // एवी रीते पुत्रे निरुत्तर करेलो ते सागरदत्त हृदयमां दुःख धारण करतोथको तेने विवाहमाटे बंधुवर्गमारफत समजाववा लाग्यो. // 6 // ते बंधुवर्गनी प्रार्थनाथी पण ज्यारे तेणे |पोतानो निश्चय गेड्यो नहि त्यारे. ते सागरदत्त शेठ एक वखते घणो लाज मेलववानी साथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- यन् व्यवसायेना-न्यदा प्रास्थित सागरः // 7 // वार्घिसंवर्धितश्रीकं / सुराष्ट्रामंडलं गतः // | चिरं गिरिपुरे स्थित्वा / व्यवसायं परं गतः // 7 // धनेन श्रेष्टिना सत्रा। तत्रानुदस्य सौहृदं // सौरभ्यमिव कस्तूर्या / यीति कदापि न // ए० // नव्यो नरभवात्पुण्य-मिवोपाय॑ धनं धनं U9 | // व्यावृत्तः स ततः प्रोचे / प्रीतिववीधनं धनं // 31 // एकस्थानस्थयोरत्र / नियूढा प्रीतिरावयोः // अथ निन्नाधिकरणा। निर्वोढा सा कथं सखे // ए॥ परं लनेत यद्येषा-अपत्यसंबंधबंधनं // देशांतरप्रते चाल्यो. // 7 // समुज्थी वृधि पामेल लक्ष्मीवाळा सुराष्ट्रदेशमां ते गयो, तथा त्यां गिरिपुरमा लांबो वखत रहीने घणो व्यापार करवा लाग्यो. // 7 // त्यां तेने एक धन नामना शेठसाथे मित्राय थे, के जे मित्राश् कस्तूरीनी सुघंधीनीपेठे कदापि पण कमी थइ नहि. // // ए. // पजी नव्य माणस मनुष्यजवमाथी जेम पुण्यने तेम ते घाणुं धन मेलवीने त्यांथी ज्याः रे ते पागे वन्यो त्यारे तेणे ते धनश्रेष्टिने प्रीतिरूपी वेलने वरसादसरखं वचन कह्यं के, // 7 // वहीं एक जगोए रहेता एवा आपण बन्नेनी प्रीति तो सारी रीते चाली ने, परंतु हे मित्र! हवे | थापण बन्ने ज्यारे जूदा पमशुं त्यारे ते प्रीति शीरीते टकी शकशे ? // ए॥ परंतु जो या प्री PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- तदानुवीत स्थेमान-मालानस्थेव हस्तिनी // ए३ // अनीकिनीव कामस्य / कनीयं यत्त्वया धन // धनश्रीम तनूजेन / समुद्रेण विवाह्यतां // 4 // शब्योछारमिवामस्त / मुदितस्तदवो धनः // सा | की नानुमन्यते योगं / माणिक्यस्वर्णमुज्योः // 45 // सागरोऽभिदधे तर्हि / मया गृहगतेन सः 475 // किंचित्कार्यमिषं कृत्वा / समित्रोऽत्र पहिष्यते // 6 // यातिथ्यदंनादाकार्य / विवाह्यः स रह| स्त्वया // यत्सोऽस्ति कातरः शस्त्री–ष्विव स्त्रीषु पराङ्मुखः // 9 // ति आपणा संतानोना संबंधरूपी बंधनवाळी थाय, तो स्तंन्नमां बांधेली हाथणीनीपेठे ते स्थिर थाय. // 73 / / माटे कामदेवनी सेनासरखी तारी धनश्री नामनी पुत्रीने मारा समुद्रदत्त नामना पुतनी साथे परणाव ? // ए४ // त्यारे जाणे पोतानुं शल्य निकळी गयुं होय नहि तेम खुशी थश्ने धनश्रेष्टीए तेनुं वचन स्वीकार्य, केमके माणिक्य अने खणेनी वींटीनो संयोग कोण सारो माने नहि? // 5 // पनी सागरदत्त बोल्यो के त्यारे हवे हुं घेर जश्ने कक कार्यना मिषयी हं ते मारा पुत्रने यहीं तेना मित्रो सहित मोकलीश. // 6 // परोणागतना मिषथी तारे तेने बोलावीने गुप्त रीते परणावी देवो, केमके ते शस्त्रोथी जेम तेम स्त्रीनथी कायर थयेलो. // 7 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि ति निःशेषतः शिक्षा–सावधाने धने स्थिते // ययावुज्जयिनी श्रेष्टी। प्रयाणैरविलंबितैः मा // स तत्रोत्कंठयायातैः / स्वजनैतिसंगमः // व्याजझो व्याजहारेति / पुत्रं द्वित्रिदिनात्यये | // एए // अहं गिरिपुरे किंचि-न्मुक्त्वा पण्यमिहागमं // विक्रीणते विना लाभं / वस्तु जातु न वाणिजः // 2200 // तहिकेतुं जवांस्तत्र / वत्स गढवतुबधीः // संप्रति प्राप्तकालो य-वस्तुनस्तस्य विक्रयः // 1 // समुडः पितुरादेशा--दचलद्भक्तिनिश्चलः // श्रेष्टिज्ञापितवीवाह-वृत्तैर्मित्रैः प. - एवी रीते सर्व शिदायी ते धनश्रेष्टी सावधान रह्ये ते सागरदत्त शेठ विलंबरहित प्र. याणोथी उज्जयिनीमां गयो. // 7 // त्यां ते उत्कंठाथी बावेला स्वजनो साथे मढ्यो, पजी बे त्रण दिवसो गयावाद मिषना जाणनारा ते शेरे पुत्रने कह्यु के, // एए // हुँ गिरिपुरमां थोडं. क करीयाएं बाकी मेलीने यावेलो बुं, केमके व्यापारी लाभविना वस्तु कदापि पण वेचता नथी. // 2200 // माटे हे वत्स! ते वस्तु वेचवामाटे उत्तम बुध्विाळो तुं त्यां जा? केमके हवे ते वस्तु वेचवानो अवसर जे. // 1 // पजी शे जणावेल ने विवाहवृत्तांत जेनने एवा मित्रो. | सहित जक्तिमां निश्चल समुद्रदत्त पिताना हुकमथी त्यांथी चाल्यो. // 2 // पनी मधुर बाजवा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-। रिस्कृतः // 2 // क्रमागिरिपुरं प्राप्तो / मित्रैरूचे धनाय सः॥ वसंतो वनमायातो / मृदुध्वानैः पि. कैखि // 3 // कृत्वा विवाहसामग्रीं / प्रपंचचतुरो धनः // न्यमंत्रयत तं नोक्तुं / समित्रं स्वगृहे नि| शि॥ 4 // धनांगजा त्रियामाया-मायातं स्वसुहृद्युतं // वीक्ष्याऽहृष्यच्चकोरीव / मृगांकमुरुमध्यगं 895 // 5 // नोजयामास तं नक्त्या / रंजयामास समिरा // धनः सागरजातत्वा-जीवितादपि वनभं | // 6 // जुक्तोहितो धनेनासौ / बलात्पुत्री व्यवाह्यत // संस्तुतत्वात्तवाचं / व्यावर्तयितुमदमः॥ की कोयलो जेम वनमां आवेला वसंत ऋतुने जणावे , तेम मित्रोए धनश्रेष्टिपते तेने अनु क्रमे गिरिपुरमा आवेलो जणाव्यो. // 3 // सारे प्रपंचमा हुशियार धनश्रेष्टिए विवाहनी सामग्री करीने तेने रात्रिए नोजनमाटे मित्रसहित पोताने घेर बोलाव्यो. // 4 // त्यारे पोताना मित्रसहित रात्रिए आवेला तेने जोश्ने धनश्रेष्टीनी पुत्री ताराजे वच्चे रहेला चंद्रने जोश्ने चकोरीनी. पेठे खुशी थइ. // 5 // पनी धनश्रेष्टीए सागरदत्तनो पुत्र होवायी जीवितथी पण वान एवा ते समुदत्तने नक्तिथी जमाड्यो, तथा उत्तम वचनथी खुशी को. // 6 // जमीने नठ्याबाद ध. | नशेने बलात्कारे तेने पोतानी पुत्री परणावी, परिचय न होवाथी तेनुं वचन ते फेरवी शक्यो | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 7 // सवधूकः स वासौकः / सवयीजिरनीयत // बलेनागस्करः कारागारमारदकैखि // 7 // साथै | योगीव जाग्रदेवासौ / वासौकसि निशि स्थितः // विषलिप्तामिव वधूं / नास्पृशत्पाणिनापि.. तां // // ए // निद्रामुदितनेत्राब्जां। जनी नीरजिनीमिव // मुक्त्वा निशीथे शेतेस्म / मित्रमध्यमुपेत्य सः // 10 // अपश्यंती प्रियं तल्पे / प्रचाते धननंदिनी // दिनेशेऽप्युदिते शोक-तमसा जग्रसेडद्भुतं // 11 // अवलोक्य च खे खेलत् / प्रजाते मित्रमंडलं // ययौ वनं वियन्नीलं / रंतुं तन्मिनहि. // 7 // पजी पोलीस बलात्कारे गुन्हेगारने जेम केदखानामां तेम मित्रो तेने वहसहित वासभुवनमां ले गया. // 7 // त्यां वासलुवनमां ते योगीनीपेठे रात्रिए जागतोज रह्यो. परंत जाणे फेरथी लीपायेली होय नहि तेम तेणे ते धनश्रीने हाथथी पण स्पर्श कर्यो नहि // // पजी कमलिनीनीपेठे निद्राथी वींचायेली आंखोवाळी ते धनश्रीने गेमीने मध्यरात्रिए ते पोता. ना मित्रोपासे आवीने सृश् रह्यो. // 10 // पडी प्रनाते बिछानामां पोताना स्वामीने नहि जोती एवी ते धनश्री आश्चर्य बे के सूर्योदय थया बतां पण शोकरूपी अंधकारथी व्याप्त थर. // 11 // पनी प्रनाते सूर्यमंडलने आकाशमां क्रीडा करतुं जोश्ने ते मित्रमंमल पण आकाशसरखा ली. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- त्रमंडलं // 1 // नूनं दृष्टव्यलीकासु / न रज्ये रमणीष्वहं / बलादप्यबलासंगं / कर्तारो माममी - पुनः // 13 // व्याजेनाजनि यद्येवं / मां विवाहयिता पिता / / तन्मे गृहमपि त्यक्त्वा / गंतव्यं कसाथ चिदन्यतः // 14 // ध्यात्वेति काननक्रीमा-व्याकुले सुहृदां कुले / समुद्रोऽनश्यदन्याऽन्य-वृ. 4 दवीक्षणदंनतः // 15 // पायांतः पृष्टतोऽप्येततसुहृदः स्नेहसुंदराः // अनीदय तमजायंत / वी. दापन्नाः दाणादपि // 16 // वयस्यैर्वोदितोऽप्येष / नाधिजग्मे यदा तदा // पुरो धनस्य पूचके / ला वनमां क्रीमा करवा गयु. // 15 // त्यां समुद्रदत्ते विचार्य के दीवला ने दोषो जेणीना एवी स्त्रीनमा हुँ खरेखर राग धरतो नथी, थने या मित्रो मने बलात्कारे पण स्त्रीनो संग करावशे. // 13 // ज्यारे मारा पिताए वहानुं कहाडीने थावी रीते. मने परणाव्यो , त्यारे मारे हवे घर पण गेमीने क्यांक अन्य स्थले जq. // 14 // एम विचारीने मित्रोनो समुह ज्यारे वनक्रीमा करवामां रोकायो हतो, त्यारे ते समुद्रदत्त बीजां बीजां दो जोवाना मिषयी त्यांथी नाशी गयो. // 15 // परी तेना स्नेही मित्रो जो के तेनी पाछळ याव्या, परंतु तेने न जोवाथी दाणवारमा तेने वालखा पडी गया. // 16 // पनी ते ए शोध कर्या बतां पण ज्यारे ते न मब्यो त्यारे चो. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः राज्ञो हृतधनैखि // 17 // सपौरुषैः स पुरुषै-र्धनोऽपि तमशोधयत् // कापि नापत्पुनः पाथोसाई नाथांतच्युतरत्नवत् // 10 // सापि बाला शुचोत्ताला / विलपंती वियोगतः // वर्म ग्रीष्मस्य वासा. | य / वर्षाणां चाक्षिणी ददौ // 17 // हृदि संक्रांतदुःखौ तौ / पितरौ तामवोचतां // धत्से वत्सेs. 05 | व्यवछेदं / किं खेदं चेति चिंतया // 20 // निवकं प्राग्नवे कर्म / जंतुना यच्चुनाशुनं / प्रत्य| ति निरोधं त-दिपाकं नाकिनोऽपि न // 21 // प्राग्नवोपार्जितं कर्म / ददातीह नवे फलं // ग. रायेला धनवाळा जेम राजापासे तेम तेजए धनशेग्नीपासे पोकार को. // 17 // त्यारे हिमतवान पुरुषो मारफते धनश्रेष्टिए तेनी शोध करावी, परंतु समुद्रनी अंदर पडेलां. रत्ननीपेठे ते क्यांय पण हाथ लाग्यो नहि. // 10 // शोकथी व्याकुल थयेली ते धनश्रीए पण जरिना वि. योगथी विलाप करतांथकां ग्रीष्म ऋतुने वसवामाटे पोतानुं शरीर तथा वर्षा ऋतुने वसवामाटे पो. तानी आंखो पापी. // 17 // त्यारे हृदयमां दुःखी थयेला तेणीना मातपिता तेणीने कहेवा ला. ग्या के हे वत्स! तुं श्रावी रीतनी चिंताथी शामाटे अत्यंत खेद धारण करे . // 20 // पूर्व न. ! वमां प्राणीए जे शुभ अथवा अशुन कर्म बांध्यु जे तेना विपाकने रोकवाने देवो पण समर्थ था | PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- नितो जलदः शीत-काले वर्षासु वर्षति // 22 // झुंजते स्वकृतं कर्म / विश्वे विश्वेऽपि जंतवः // / शोजामात्रफला ह्येते / पितृभ्रातृसुतादयः // 23 // तत्त्वं पितृपदोपांते / स्थिता पुण्यानि संचय // | पुण्यैः कदापि दीयेत / कर्म नोगांतरायकं // 24 // सा पिनोरनुशिष्टयेति / यष्टयेवात्तावलंबना // 471 | खं बाह्यशोकजंबालात् / कथंचिदुददीवरत् // 25 // ननाश सागरन्यासः / पाणितो नः प्रमादतः // श्तीव लज्जानारेण / पादैर्मदप्रपातिन्निः // 26 // व्यावृत्त्याथ वयस्यास्ते / प्रापुरुङायिनी पुरी ता नथी. // 21 // पूर्व नवमां नपार्जन करेबु कर्म या नवमां फल थापे , केमके शियालामां गर्जित थयेलो वरसाद वर्षाऋतुमां वरसे . // // था उनियामां सर्व प्राणी पोतार्नु करेलु कर्म नोगवे , भने था पिता, नाइ, तथा पुत्र यादिको तो शोलामात्र फलवान ने. // // 3 // माटे तुं यहीं मातपिताना चरणोपासे रहीने पुण्योनो संचय कर? केमके कदाच पु. एयोथी तारं नोगांतराय कर्म दीण पण थशे. // 24 // हवे एवी रीतनी पोताना मातपितानी | शिखामणरूपी लाकडीनुं अवलंबन लेश्ने केटलेक प्रयासे तेणीए बहारना शोकरूपी कादवमांधी पोताना आत्मानो नकार कर्यो. // 25 // अरे! आपणी गफलतीथी सागरशेठनी थापण याप. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // हत्याकारा श्व म्लानाः / शप्ता व निरौजसः॥ 27 // युग्मं // सदारं दारकं नूनं / दृदयावो. मा ऽथाचिरादपि // ध्यात्रोः पित्रोः समुऽस्य / तस्थुस्ते साश्रवः पुरः // 7 // समुद्रोऽस्ति शुभंयुः कि / —मित्यौत्सुक्येन पृबतोः // तयोस्तनुरुदः शुहिं / ते जगुः स्खलददरं // 27 // हा नौ स्पृहय४२| तो भं / मूलदतिरञ्चदिति // लपंतौ तौ शुचाशैला-क्रांताविव बनवतुः // 30 // . . णा हाथमाथी गुम थर, एम विचारीने जाणे लज्जाना नारथी होय नहि तेम मंद पमतां पगलांनथी॥१६॥ ते मित्रो त्यांथी पाग वळीने हत्या करनारानीपेठे म्लान थयेला तथा श्राप पामेलानीपेठे निस्तेज थयाथका नायिनी नगरीमां याव्या. // 27 // आपणे हवे तुरतज यापणा पुत्रने वहुसहित जोश्शुं, एम समुद्रदत्तना मातपिता विचारते ते ते मित्रो यांसुसहित तेनीपासे यावी नभा. // // शुं समुद्रदत्त खुशीमां तो नी? एम ते ए आतुरताथी प्रया. थी ते मित्रोए लथमता बदरोथी तेना पुत्रना समाचार कह्या. // 25 // अरेरे! अमोने तो लाननी छा करतां उलटी मूलनी पण हानि थर, एम बोलतायका तेनं शोकरूपी पर्वतयी द. / बायेलानीपेठे थर गया. // 30 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 473 धम्मि- .. अथ पंजरनिर्मुक्तः / पदीव सकलामिलां // समुद्रो ब्राम्यदन्यान्य-नेपथ्यग्रहणाग्रहः // // 31 // वर्षाणि द्वादशातीत्य / स कार्पटिकवेषभृत् // जिज्ञासुः स्वप्रियावृत्तं / पुनस्तत्पुरमाययौ / // 32 // धनस्य सोऽमिलत्तेन / किं वं वेत्सीत्यनाष्यत // सर्व वेद्मीत्यनेनोक्ते / प्रत्युवाच धनः पुनः / / 33 // नंदारांग मदाराम-जुमांस्तर्हि विवर्षयः॥ एकैकं रूपकं दास्ये / कर्मभर्मणि तेऽ: | न्वहं // 34 // प्रसत्तिस्तव यद्यस्ति / रूपकैस्तदलं मम // इति तस्य प्रियालापैः / समाधत्ताधिक हवे पांजरामाथी बुटा थयेला पदीनीपेठे समुद्रदत्त जूदा जूदा वेषो लेने समस्त पृथ्वीपर जमवा लाग्यो. // 31 // एवी रीते बार वर्षों वीत्याबाद ते समुद्रदत्त कापमीनो वेष लेश्ने पोता. नी स्त्रीनी हकीकत जाणवामाटे फरीने ते नगरमां थाव्यो. // 32 // पनी त्यां ते धनश्रेष्टीने म. ब्यो, तेणे तेने पूज्युं के तुं शुं जाणे जे? त्यारे समुद्रदत्त बोब्यो के हुं सघg जाएं बु, त्यारे वळी ते धनश्रेष्टी बोल्यो के, // 33 // हे मनोहर शरीरवाळा! त्यारे तुं मारा बगीचाना वृदोनुं पो. षण कर? थने ते कार्यमाटे तने हमेशां एकेक रुपीन हुँ पापीश: // 34 // जो यापनी कपा तो मारे रुपीयानी कई जरुर नथी, एवी रीतनां तेनां प्रिय वचनोथी ले धनशेत अधिक ख P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- धनः // 35 // समानयोनी वनवृतवासिनौ / सितबवी व्योमगती ननावपि // तथापि गिति मार्च | निंदितो जनै–र्दिकः पिकस्तु प्रियवागिति स्तुतः / / 36 // वृदायुर्वेदवित्सोऽथ / तथाराममवाल. यत् // गां गोपस्तनयं वप्ता / दलं तांबुलिको यथा // 37 / / सुराझीव प्रजास्तस्मिन् / पालके वि. | पिनडुमाः // बनवुः सततं वरि-फलपुष्पादिसंपदः // 30 // मधुकर्यो वनस्यास्य / दृष्ट्वा नवमिवो. | अवं // जगुर्मगलकारिण्य / श्व ऊंकारदंगतः // 35 // दृष्ट्वा पुष्पफलश्रीणां / वनं सत्रमिव ध्रुवं॥ शी थयो. // 35 // समान जातिवाल, वनवृदोपर रहेनारा, काळा रंगना, तथा आकाशमां गमन करनाग एवा काग घने कोयल बन्ने सरखा बे, तो पण कागडाने दुर्वचनवाो जाणीने लोकोए निंदेलो , तथा कोयलने प्रियवचनवाळी जाणीने तेनी प्रशंसा करेली . // 36 // हवे गो काळ जेम गायनी, पिता जेम पुत्रनी, तथा तंबोली जेम पाननी तेम वृदोसंबंधी थायुर्वेदने जा. णनारा ते समुदत्ते ते बगीचानी मावजत करवा मांमी. // 37 / / नत्तम राजा जेम प्रजानं तेम ते समुद्रदत्त तेनुं पोषण करते बते ते बगीचानां वृदो जत्थाबंध फलपुष्पादिक आपनासं थयां. // 30 // ते वननी एवी रीतनी नवी संपत्ति जोश्ने ऊंकारना मिषधी नमरीन मंगलपाठकनीपेचे | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Thus Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ | रिमं // तेने तारकितव्योम-ब्रमं तहनमयपि // 41 // सप्रसास्वादनफला / सबायाशुक. 45 कर करौ तव // एवं निःस्पृहवंदीव / तं स्तौतिस्म मुहुर्मुहुः // 4 // अयमुच्चैः कलासद्म / कर्म गायन करवा लागी. // 38 // पुष्पो अंने फलोनी संपत्तिनी दानशाळासरखा ते बगीचाने जो ने कोलाहल करताथका ब्राह्मणोए (कागडानए) तेजनुं पालुं गेमयुं नहि. // 40 // विकस्व. र पुष्पोथी नरेखो तथा घाटा लीलां वृदोवाळो ते बगीचो दिवसे पण ताराजवाळा अाकाशनो ब्रम उपजावतो-हतो. // 41 // मनोहर रसना खादरूपी फलवाळी नत्तम गयावाळी तथा शुकपदिनने (शीघ कविने ) प्रिय एवी ते वामी नाटिकानीपेठे धनश्रेष्टिने खुश करवा लागी. // 43 // हे कलाकर! वृदोने पुष्ट करनारा तारा बन्ने हाथो जय पामो? एवी रीते लालचविनाना बंदीनीपेठे धनश्रेष्टी तेनी वारंवार स्तुति करवा लाग्यो. // 4 // या जंचा प्रकारनी कलावा. लो माणस नीच कार्य करवाने लायक नथी, एम विचारीने धनश्रेष्टिए तेने बगीचामांथी दर Jun Gun Aaradhak Trust * P.P.AC:Gurtratnasuri M.S. Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- नीचैर्न चाहति // ध्यात्वेति तं वनादूरी-कृत्य स्वाट्टे न्यवेशयत् // 45 // जग्राह ग्राहकादेष / मा मृदुवाग्दानतो धनं // श्रकोपनो गोप श्व / धेनुग्धं तृणार्पणात् // 46 // कलावत्युदिते नित्यं / / तस्मिन्नमृतवर्षिणि // मुखमुद्राजवलेष-हट्टेषु कुमुदेष्विव // 4 // महर्म्यमपि तस्याद्राद्-ग्रा. 46 | हका वस्तु गृहुते // पुनर्मुधापि नान्येन्यः / प्रजारागो हि दुर्खनः // 4 // श्रुत्योर्नस्त्वं निजं ना मो-तंसयेत्यर्थितो जनैः // स स्वस्याकलयन्नाम / विनीत इति सान्वयं // 4 // कलाकौशलतः रोने पोतानी दुकाने बेसाड्यो. // 45 // गुस्सो नहि करनारो गोवाळ गायने घास यापीने जेम दुध ग्रहण करे तेम ते त्यां मिष्ट वचनो आपीने ग्राहकोपासेथी धन लेवा लाग्यो. // 46 // ए. वी रीते अमृत वर्षनारो ते कलावान समुद्रदत्त हमेशां नदय पामवाथी कुमुदोनीपेठे बाकीनी द. कानोपर मुखमुद्रा थर एटले ग्राहकोविना ताला देवाश् गया. // 4 // मोंघी मळवा उतां पण ग्राहको तेनी दुकानेथी वस्तु लेवा लाग्या, धने बीजी दुकानेथी तो मफत पण लेता नहि, के. मके प्रजाराम दर्शन होय . // 4 // तारा नामथी अमारा कर्णो शोगाव? एम लोकोए प्रा. | र्थना कर्याथी तेणे पोतानुं विनीत एवं सार्थक नाम प्राप्यु. // 45 // कलाकौशलथी ख्याति पा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- ख्यातं / मा महीशो ग्रहीदमुं // इति स्वसद्मनि धनः / कोशाध्यदं व्यधत्त तं // 20 // विनीतो मा नीतिमानेष / यदादिशति किंचन // तन्मान्यमितरैरेवं / सोऽन्वशात् खं परिबदं // 51 // सोऽपि दानेन मानेना-प्रीणात्परिजनं तथा // यथा सर्वोऽपि तदत्त-मेवादत्त दशावधि // 55 // धनश्रियो विशेषेण / तेनानुववृते मनः // अपि चेटोचितं कर्म / स्वयं तस्या विनिर्ममे // 53 // तस्याः प्रनोरिवादेशं / न ललंधे मनागपि // विदधेऽनिदधे तच्च / यत्तस्या एव रोचते // 14 // एवं स्व| मेला था विनीतने जो राजा न लेश ले तो ठीक, एम विचारीने धनश्रेष्टीए तेने पोताना घरमां भंडारी बनाव्यो. // 20 // या नीतिवान विनीत जे कई हुकम करे ते बीजाए मानवो, एम ते. णे पोताना परिखारने फरमाव्यु. // 51 // पछी ते विनीत पण दान धने मानथी ते परिवारने एवो तो खुश करवा लाग्यो के जेथी तेज सघळा क दोरासुधी तेणेज थापेर्बु लेवा लाग्या. // 5 // वळी ते विनीत पण धनश्रीना मनने विशेष प्रकारे अनुसखा लाग्यो, तथा तेणीनुं दासोचित कार्य पण पोते करवा लाग्यो. // 53 // वळी शेठना हुकमनीपेठे तेणीना हकमनो जरा पल अनादर करतो नहि, तथा तेणीनेज जे गले तिज ले करतो तशा कहेतो हतो. P.P.AC.Gunratnasura M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ब्पदिनः सोऽनृत् / तस्या विश्वासानाजनं // हृदयायैव सा तस्मै / रहस्यमपि नाहुत // 25 // वे. | मा मनः सप्तभौमस्यो–परि वातायनस्थिता // सा किंचिच्चर्वितरसं / तांबूलं मुमुचेऽन्यदा // 56 // | तांबूलः काकतालीय-न्यायेनाधः पपात सः॥ व्रजतः पथि दुर्वार-स्तलारदस्य मूनि // 27 // | धौतधूपितवस्त्रोऽसौ / नव्यदिव्यांगरागभृत् // पुष्पापूरितधम्मिलो। विवाहार्थमिवोद्यतः // 17 // | किमियं विझविहंगस्ये-त्यूचं पश्यन्निरैदत // पाथोदपथपाथोज-ब्रांतिदायि तदाननं // 5 // // 55 // एवी रीते थोडा दिवसोमांज ते तेणीनो विश्वासपात्र थ पड्यो, अने तेथी पोताना हृदयनीपेठे तेणी तेनाथी गुप्त वात पण बुपावती नहि. // 55 // एक दिवसे घरनी सातमीनों ए फरुखामां बेग्ली एवी ते धनश्रीए थोमांक चावेलां तांबूलनो रस थुक्यो. // 56 // हवे न अटकावी शकाय एवो ते तांबूलनो रस काकतालीय न्यायथी नीचे मार्गमां चालता कोटवाना मस्तकपर पड्यो. // 7 // ते वखते ते जाणे परणवामाटे जतो होय नहि तेम धोएलां ने धू. पेलां वस्त्रोवाळो, नवां श्रने दिव्य अंगविलेपनवाळो तथा पुष्पोथी गुंथेला केशोवाळो हतो. // | // 27 // शुं था को पदीनी विट पमी? एम विचारी चंचु जोतांथकां तेणे आकाशकमलनी। PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धाम्म- दध्यो चास्या मुखौपम्य-मिंजुनापि कदापि न // यतो याते ममोन्मेष-मदरं चकुरबुजे // 6 // | अहो नेत्रे श्रियः पात्रे / अहो पद्मसखं मुखं // अहो स्तनौ पीनघनौ / अहो शोलायुजौ जौ | / / 61 // तांबूलो मूर्ध्नि मे लमो / रंगश्च ववृधे हृदि / तदिदं नोजिते चैत्रे / मैत्रस्योदरपूरणं // Uए | // 6 // तस्य तां पश्यतो मोहं / कृत्वाथ स्मरदांभिकः // वसत्यपि पुरे यत्नं / धृतिरत्नमचूचुरत् // 63 // नविता संगमोऽस्या मे / श्यामेतररुचः कथं // विमृशन्निति सोऽपश्य–दिनीतं तं तदं ब्रांति पापनारुं तेणीनुं मुख जोयु. / / एए // त्यारे तेणे विचार्य के आना मुखनी नपमा कोश पण दिवसे चंद्रने पण थापी शकाय तेम नथी, केमके याने जोवाथी मारां चकुरूपी कमल क. इंपण अटकावविना उलटां विकसीत थयां बे. // 60 // अहो! आ स्त्रीनां चकुन लक्ष्मीना पा. त्ररूप ने, मुख कमलसर , स्तनो पुष्ट आने कठण ने, तथा हाथो शोनावाला ने. // 61 // तांबलनो रस तो मारा मस्तकपर लाग्यो, परंतु रंग तो मारा हृदयमा वृद्धि पाम्यो, माटे या तो चैत्रे भोजन कर्याथी मैत्रनुं उदर नरवाजेवू थयु ! // 6 // हवे मोहथी तेणीने जोतांथकां का. | मदेवरूपी कपटी चोरे नगरनी भरचक वस्तीवच्चे पण तेनुं धैर्यरूपी रत्न चोरी लीधुं. // 63 // . PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तिके // 64 // ध्रुवं धनगृहे मान्यो / विनीतो विनयावनिः // तदुपायोऽनपायोऽय-मेव लब्धं ध. नश्रियं // 65 // इति जातमतिस्तं स / समानीय खवेश्मनि // कुलदैवतववस्त्र-जूषणाद्यैरपूपु. जत // 66 // लोकेऽत्र दानमेकं हि / वश्यकर्मणि काणं // मातंगमपि सेवंते / दानसक्तं सदाUए० लयः // 6 // नत्वा क्रमदयं तस्य / स बघांजलिरब्रवीत् // वयस्य चेत्प्रसन्नोऽसि / तन्मेलय ध. | वे मने या श्वेत कांतिवाळी स्त्रीनो संग शीरीते थशे? एम विचारतांथकां तेणे तेणीनीपासे न नेला विनीतने जोयो. // 64 // खरेखर था विनयी विनीत धनशेठना घरमां मानीतो माणस . माटे धनश्रीने मेलववामाटे तेज निर्विघ्न नपायरूप जे. // 65 // एवी रीतनी बुछि थवाथी ते कोठवाळे ते विनीतने पोताने घेर बोलावीने कुलदेवीनीपेठे तेनी वस्त्र तथा आभूषणादि| कोथी पूजा करी. // 66 // था जगतमा खरेखर एक दानज वश करवामां कामणसमान ने, के. मके दान (मद) यापनार मातंगने (हाथीने) पण विद्वानोनी श्रेणि (जमरा) हमेशां से. वे . // 67 // पनी तेना बन्ने चरणोने नमीने ते हाथ जोडीने बोल्यो के हे मित्र! जो तं मा। रापर प्रसन्न भयो होय तो धनश्रीनो मेलाप कराव? / / 60 / / ठीक ने एम कहीने ते सघलो वृ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trusic, Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म नश्रियं // 60 // नमित्युक्त्वा रहोऽवादीत् / तत्सर्व स धनश्रियः // सान्यधाभृकुटीजीष्म-जाला / | ज्वालाकिर गिरं // 6 // कोऽप्यन्यो वक्ति यद्येवं / तं कृतांतालये नये // मान्यत्वात्त्वं तु मुक्तो. | ऽसि / तन्मा पुनरिंदं ब्रवीः // 70 // निषिद्योऽपि तयात्रार्थे / पृबत्यारदके पुनः // असिष्मपि 471 | सिहं तत् / कार्य तस्मै जगाद सः // 11 // सोऽथावसथमागत्य / विमना मलिनाननः // गमपो. ते श्व स्तेन-गृहीत व तस्थिवान // 12 // तदवस्थं तमालोक्य / बजाषे धननंदिनी // विने |त्तांत तेणे गुप्त रीते धनश्रीने कह्यो, त्यारे भृकुटीथी जयंकर ललाटवाळी ते धनश्रीए तेने अमि नी ज्वालासर वचन कह्यु के, // 65 // जो को बीजो मने भावी रीते कहे तो तेने तो यमने, घेर मोकली यापुं, परंतु तुं मारे माननीक होवाथी हुँ तने नोमी देवं बु, माटे फरीने पा. वू न बोलजे. // 70 // एवी रीते तेणीए ते कार्यमाटे निषेध कर्या तां पण पाबु ज्यारे कोटवाळे तेने पूज्यु त्यारे कार्य पार पड्या विना पणं तेणें तेने कां के तारुं कार्य में पार पाडी था. प्यं जे. // 31 // पजी ते विनीत घेर यावीने विलखां मुखवाळो बेचेन थइने जाणे पोतानुं वहा. ण जांगी गयुं होय नहि तेम जाणे चोरोए खुंटी लीधो होय नहि तेम तें बेठो. // 12 // हवे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पए धम्मि- बिनोः किमारदा-त्वं नेको जुजगादिव // 73 // एवमेवेति तेनोक्ते / सुधाक्तं सामुचदचः // सार्थ मिलितव्यं त्वया नातः-परं तस्य गुणाकर // 14 // ततोऽतीत्य दिनान स त्रि-चतुरांश्चतुराश | यः // पुनर्विषादविवाय-मुखोऽवादि धनश्रिया // 35 // जानामि कामिना तेन / मत्कृते य| सेतरां // ततोऽशोकवनीमेतु / सोऽद्य सोद्यममानसः / / 76 // त्वं च पव्यंकमासूत्र्य / ततो मैरे. यमानयेः // श्रुत्वेति दध्यिवानेष / धिग्योषिज्जनचापलं / / 99 // न स्यानारीषु सौगीव्यं / स्यादा | एवी अवस्थावान तेने जोश्ने धनश्री बोली के अरे! सर्पथी जेम देडकुं तेम शं तुं कोटवालथी | डरे ? // 3 // एमज , एम तेणे कह्याथी ते अमृतसर वचन बोली के, हे गुणाकर! आज पनी तारे तेने मलq नहि. // 14 // पनी त्रण चार दिवसो गयाबाद ते चतुर पाशयवालो वि. नीत फरीने ज्यारे पागे शोकथी विलखा मुखवाळो थश्ने बेठो त्यारे धनश्रीए तेने कहां के, // // 75 // हं धारु बु के ते कामी कोटवाळ मारेमाटे तने कष्ट आपे , माटे बाजे ते कोटवाळ नले तैयार थाने अशोकवाटिकामां आवे / / 76 // अने तारे त्यां पलंग बिगवीने दारु लाव वो, ते सांगलीने तेणे विचार्य के धिक्कार ने स्त्रीनी चपलताने. / / 39 // स्त्रीनमां सुशीलपणुं हो.. . P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 43 धाम्म-। तन्न चिरस्थिति // श्रामेष्टिककृतौकोव-न्मुंडमौलिस्थपुष्पवत् // 70 // अपश्यं चतुरो वर्णा-नवमं यसीं भुवं / पुनः सर्वत्र नारीषु / हलिष्विव कुशीलता // 7 // वाग्मार्दवं सुरूपत्वं / लीलासुजगता यथा // तथा स्थैर्यमपि स्त्रीषु / धातस्तात न किं कृतं // 70 // ध्यात्वेत्युपवने धाम्नः / शय्यां सजीचकार सः / / नवमासवमानीया-जुहावारदकं ततः // 71 // अथारदः कृतस्नानः / सर्वालंकारजासुरः // श्वशुरोक श्वाशोक-कनिकामार मारलः // 2 // तदावदातशृंगारा / तत्रा तुं नथी, घने कदाच होय तो पण ते काची इंटोथी बनावेला घरनीपेठे तथा मुंमां मस्तकपर रहेला पुष्पनीपेठे घणो काळ टकतुं नथी. // 70 // में चारे वर्णो जोया, तथा घणी नमीपर हुं नम्यो, परंतु सर्व जगोए खेमुतोनीपेठे स्त्री-मां तो कुशीलपणुंज (कोशज ) जोयु. // 7 // हे विधातारूप पिताजी! स्त्रीनमा जेम ते वचनोनी कोमळता, सुरूपपणुं, लीला तथा सौनाग्यप एं बनाव्युं , तेम ते मां तें स्थिरपणुं शामाटे न बनाव्युं ? // 70 // एम विचारीने तेणे घरना बगीचामां शय्या तैयार करी, तथा पछी तेणे नवो दारु लावीने कोटवालने त्यां बोलाव्यो. // 1 // हवे ते कोटवाल पण स्नान करी सर्व बाजूषणोथी शोनितो तथा कामातुर थश्ने जेम ससराने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.Ac Gunratnasuri M.S. . Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथै धम्मि- याता धनांगजा // इंदुलेखेव तच्चेतो-वार्षिमुनूंखलं व्यधात् // .73 // प्रत्यदवनदेवीव / सा प / व्यंके निषेदुषी // मद्यं मृदृक्तिरत्यर्थ्य / पाययामास सा पुतं // 4 // प्रथम मदनेनासौ / पश्चा न्मदनयानया // गतजीव वारद–श्चैतन्यबंशमाप सः // 5 // अथ तस्यैव खगेन / शिरस्त. ए| स्य बुलाव सा // साहसिक्यो ध्रुवं प्राण-दानग्रहणयोः स्त्रियः // 6 // स्व एवासिर्विनाशाय / तस्याजायत सांप्रतं // घाटी स्वघोटकैरेव / यतः पतति दुधियं // 7 // सा तमेव तलारद-कं. घेर तेम अशोकवाटिकामां गयो. // 7 // ते वखते मनोहर श्रृंगारवाली धनश्री पण त्यां श्रावी, तथा चंनी कळानीपेठे तेणीए तेना चित्तरूपी समुद्रने नरळेलो कर्यो. // 3 // पछी प्रत्यद वनदेवीनीपेठे तेणीए पलंगपर बेशीने मिष्ट वचनोथी प्रार्थनापूर्वक जलदी तेने मदिरापान का राव्यु. // 4 // हवे प्रथम कामदेवथी तथा पजी या मदिराथी जाणे निर्जीव थयो होय नहि तेम ते कोटवाल चैतन्यरहित थयो. // 5 // पनी तेणीए तेनीज तलवारयी तेनुं मस्तक बेदी नाख्यु, केमके स्त्रीने खरेखर प्राणो देवामां तथा लेवामां साहसीक होय . // 6 // एवी रीते | ते समये तेनी पोतानीज तलवार तेनो नाश करनारी थर, केमके दुर्बुघिमाणसपर तेना पोता- | - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | उकर्त्तननिःकृपं // चंमिकेवासिमुभीर्य / विनीतं प्रत्यधावत // 7 // सोऽपि प्रस्ताववित्तस्याः / प्र पेदे शरणं पदौ // कृपाणं सह कोपेन / संवृत्याथ जगाद सा // जय // मुमुर्पुरसि रे मूर्ख / यः न्मामीशकर्मणि // अप्रेरयः पयःपूर / श्व तृण्यामधोऽध्वनि // 50 // श्रितो मनोविनोदाय / मया त्वं पाप्मनेऽनवः // जवनज्वालनायेव / दीपो दीप्तिकृते कृतः // 1 // शीलं स्त्रिया ययात्यानाज घोमाथी धाम पडे . // 7 // परी ते कोटवालनो कंठ कापवामां निर्दय एवी तेज त. लवार नगामीने चंमीनीपेठे विनीतप्रते दोडी. // 7 // त्यारे समय जाणनारो ते विनीत पण तेणीनाज चरणोने शरणे गयो, त्यारे धनश्री पण कोपनी साथे तलवारने पण म्यानमां नाखी. ने बोलली के, // जय // अरे मूर्ख! शुं तने मखानी.श्बा थने ? के जलनु पूर होडीने जेम नीचे मार्गे ले जाय , तेम ते मने थावां कार्यमाटे प्रेरणा करी! // 50 // में फक्त मनना विनोदमाटे तारो धाश्रय को हतो, अने तुं तो पापी नीवड्यो, धने या तो अजवाळांमाटे क रेलो दीवो जेम जलटो घरने बाळे तेनाजेवू थयु. // 1 // जे स्त्रीए पोतांना अनुपम यादृष. | समान शील तजेबु , ते माठी अने पडररूप सुवर्ण तथा मणिनो जार शामाटे धारण क. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- जि / निर्व्याज वर्मभूषणं // सा मृत्प्रस्तरयोहेम-मण्यो र विनति किं // ए॥ श्रास्तामयं | मा सुरेंद्रोऽपि / मम शीलमहामणि // हर्तु हृदयमंजूषा-मध्यस्थं न प्रयते // ए३ // एवं तनिश्चयं - सादा-दीदयालं स चमत्कृतः // तदादेशात्तलारदं / न्यधान्निधिमिव दितौ / ए४ // अन्यदा तेन को नर्ता / तवेत्युक्तान्यवत्त सा // अवंतीस्थो ममोहोढा / समुः सागरांगनः // 5 // थापाणिपीमनदिना-परमेष कचिद्ययौ // अनाहारनाग्यौ / चातकस्येव वारिदः // 6 // दि. रे ? // ए॥ अरे या कोटवाल तो एक बाजु रह्यो, परंतु देवेंऽ पण मारां हृदयरूपी पेटीमां रहेला शीलरूपी महामणिने हरवाने समर्थ नथी. // 53 // एवी रीते सादात तेणीनो नि: श्चय जोश्ने ते अत्यंत आश्चर्य पाम्यो, तथा तेणीना हुकमथी तेणे निधाननीपेठे कोटवालने जमीनमां दाटी दीधो. // 4 // पनी एक दिवसे ते विनीते तेणीने पूज्युं के तारो चार कोण ने? त्यारे ते बोली के अवंती नगरीनो रहेवासी. सागरदत्त शेग्नो समुद्रदत्त नामे पुत्र मने परएयो बे. // 5 // परंतु विवाहना दिवसथी मामीने मारां अतिशय बजाग्योने लीधे चातकाते / जेम मेघ तेम ते क्यांक चाल्यो गयो ने. // 6 // अने त्यारथी वनमां उगेली मालतीनीपेठे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jug धाम्म- वसान दैववैवश्यात् / पूरयामि ततः परं // अरण्ये मालतीबाह-मुपनोगपराङ्मुखी // एy // त. | तो दृगंबुनिः कृप्त-कुब्या शब्यायितप्रिया // तेन सावादि कारुण्य-कोमलीन्तचेतसा // ए॥ यद्यादिशसि तगडे / ब्रांत्वा देशांतरादपि // श्रानयामि विवोढारं / तव वायुरिखांबुदं // एए / सा प्रत्युवाच यद्येवं / करोषि करुणापर / / तत्कस्त्वत्तोऽपरः प्राण-प्रदानप्रवणो मम // 5300 // वि. सृष्टोऽथ तया मंक्षु / गत्वावंती ननाम सः // कयास्मृतिपथानीत-तनुजौ पितरौ निजी // 1 // नपभोगरहित थश्यकी कर्मना विपरीतपणाथी हुँ मारा दिवसो पूरा करुं बु. // ए॥ एम कहीने ते शब्यरूप नर्ताखाली धनश्री अश्रुनी नीक चलाववा लागी, त्यारे दयाथी कोमल थयेला चित्तवाळा विनीते तेणीने कह्यु के, // 7 // हे नद्र! जो तुं कहे तो वायु जेम वरसादने तेम देशांतरमा भमीने पण हुं तारा जरिने शोधी लावू. / / एए // सारे तेणीए प्रत्युत्तर या. प्यो के हे दयाबु विनीत! जो तुं एम करीश तो पड़ी ताराशिवाय बीजो मने प्राणो देवामां प्र. वीण कोण थ शके? // 2300 // पड़ी तेणीए रजा यापवाथी ते जलदी अवंतीमां जाने ( पोताना यागमनना) समाचारथी याद करावेल ने पुत्र जेनने एवा पोताना मातपिताने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तं वीदय सहसा पित्रो-यो व्यवर्धत संमदः // तत्प्रथिम्णः पुरः पाथो-नाथोऽप्यचुबुकायत // 2 // माय तस्यागमं गिरिपुरे / पितृभ्यां बोधितो धनः // पदती अपि कृत्वा तं / दृष्टुमायुलकं दधौ // 3 // अथाह्वयनरैराप्तैः / स जामातुरनातुरः // पुरस्कृतसखः सोऽपि / तत्र पित्रेरितो ययौ // 4 // मयूरी. मिव वर्षौ / कोकीमिव दिनोदये // नृत्यंतीमुररीचके / गौरवात्स धनश्रियं // 5 // यदनोगउर्निदं / तस्या द्वादशवार्षिकं // धाराधर श्वाशेषं / तल्झुलोप स लोलुपः // 6 // हेतोः कुतोऽ. म्यो. // 1 // तेने अचानक श्रावेलो जोश्ने तेना मातपितानो जे हर्ष वृधि पाम्यो, तेना वि. स्तार थागळ समुद्र पण एक अंजलिसरखो थर गयो. // 2 // पनी तेना मावापे तेनुं श्राववं गि. रिपुरमा रहेला धनश्रेष्टीने जपाव्यु, त्यारे ते धनश्रेष्टी पांखो करीने पण ( त्यां जइ) तेने मळ. वाने उत्सुक थयो. // 3 // पनी तेणे हर्षित थश्ने पोताना मुनिमोने मोकली जमाइने बोलाव्यो, त्यारे पिताए प्रेरणा कर्याथी समुद्रदत्त पण पोताना मित्रोने अगाडी करीने त्यां गयो. ॥शा वर्षाऋतुमां जेम मयूरी तथा दिनोदयसमये जेम कोकी तेम अत्यंत खुशी थयेली. धनश्रीने ते. * पो श्रादरपूर्वक स्वीकारी. // 5 // हवे तेणीने जे बार वर्षीसुधी नोगोनो दुकाळ पड्यो हतो, ते | P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- पिसान्येद्यु-र्दधाना धर्मनायितं // निदानं तेन दुःखस्य / पृष्टा स्पष्टमभाषत / / 9 // . नाय प्राग. तिथीते / दुस्सहे विरहे तव // ममामिलत्पुमानेको / विवेको मूर्तिमानिव // 7 // स शीलशा. लिकेदारो / विनीत इति विश्रुतः // मनो विनोदयामास / चिरं त्वहिरहातुरं // 5 // कियंतमपि पए कालं स / स्थित्वा सूक्तसुधानिधिः // त्वदानयनदंभेन / कापि न झायते गतः // 10 // तवावा. संघला काळने वरसादनीपेठे तल्लीन थयेला समुद्रदत्ते दर को. // 6 // पजी एक दिवसे कई क कारणथी तेणीनुं मन ज्यारे दुनावा लाग्युं त्यारे समुदत्ते दुःखनु कारण पूवाथी तेणीए प्रगट रीते कडं के, // 7 // हे स्वामी! ज्यारे आपनो अस्सह विरह मने थयो हतो त्यारे मने मूर्तिवंत विवेकसरखो एक पुरुष मब्यो हतो. // // शीलरूपी मांगरना क्यारा सरखा ते विनीत नामना पुरुषे थापना विरहथी थातुर थयेला मारा मनने घणा वखतसुधि खुशी कर्यु हतुं. // 5 // उत्तम वचनरूपी अमृतना निधानसरखो ते माणस केटलोक काळ रहीने बापने शोधी लाववा. ना मिषयी कोण जाणे क्यां गयो , ते जणातुं नथी. // 10 // माटे पापना मेलापना वर्षथी बने तेना विरहनी पीमाथी एकी वखते प्रकाश बने अंधकारथी व्याप्त थयेली संध्यानीपेई Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- प्तिमुदा तस्य / विरहव्यथयाप्यहं // शश्वत्तेजस्तमिसान्यां / संध्येवास्मि विझबिता // 11 // विना / | तेन विनीतेन / कलाकुमुदिनींदुना / / वैधुर्यध्वांतविध्वस्ता-जलोका रात्रिरिखानवं // 12 // हसि स्वाथ समुद्रोऽव-कः शोकस्तत्कृते प्रिये // यो निःशूक श्वारदं / चिक्षेप दमातले तदा // 13 // 500 | ततस्त्रपानरेणेव / सा भृशं नमितानना // स्ववृत्तशंसनात्तेन / समतोषि विशेषतः // 14 // धन श्रियं समादाय / धनश्रियमिवांगिनीं // समुद्रोऽपि ततस्तुष्ट-हृदियाय पितुर्गुहं // 15 // तौ. परविमंबना पामी बु. // 11 // कलारूपी कुमुदिनीने चंद्रसरखा एवा ते विनीतविना अधीरारूपी अंधकारथी नाश पामेला प्रकाशवाळी रात्रिसरखी हुँ थ गश् बु. // 12 // त्यारे समुदत्त हसी. ने बोल्यो के हे प्रिये! जेणे निर्दयनीपेठे ते वखते कोटवालने जमीनमां दाटी दीधो तेनेमाटे तारे शामाटे शोक करवो जोश्ये? // 13 // त्यारे जाणे लज्जाना नारथी होय नहि तेम अत्यं. त नमेला मुखवाळी एवी ते धनश्रीने तेणे पोतानुं वृत्तांत कहीने वधारे खुशी करी. // 14 // पजी देहधारी महान लक्ष्मीसरखी धनश्रीने लेश्ने थानंदित मनवाळो समुद्रदत्त पण पोताना वि. | ताने घेर गयो. // 15 // परी अत्यंत प्रीतिरसथी नरेला मनवाळा फक्त याकारथीज निन्न तथा / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- प्रेमसर्वस्व-रससंपूर्णमानसौ // मूत्यैव जिन्नौ चित्तैक्य-जाजी जन्म व्यतीयतुः // 16 // ____सतीरत्नं यथा साधो / सा धनश्रीरुदाहृता // तथा भवंति चेदन्या / अपि तत्को निषेधकः॥१७॥ सदसत्त्वं हि कस्यापि / वस्तुनो नास्ति वास्तवं // सदसत्त्वाधिरोपस्तु / रागदेषकृतः पुनः // 10 // 501 विरक्तो मन्यसे सर्वा / योषा दोषाकरा इति // संसारसारतास्ता / मन्येऽहं रागवान पुनः // 1 // निग्रहीतुमहं दुःखं / दमोऽस्मीति प्रजल्पता // यत्त्वयास्ति प्रतिझातं / तत्स्मारय मुनीश्वर // 50 // मननी ऐक्यतावाला एवा तेन बन्ने पोतानो जन्म व्यतीत करखा लाग्या. // 16 // एवी रीते हे मुनि! जेम सती मां रत्नसरखी धनश्रीनुं नदाहरण प्राप्यु तेम जो कोईवीजी स्त्री पण होय तो तेनो कोण निषेध करी शके ? // 17 // मुख्यत्वे करीने कोइ पण वस्तुनें सत् असत्पणुं नथी, सत् असत्पणानो जे यारोप मुकाय रे ते तो रागद्वेषथीं थायं . // 10 // वळी हे मुनि! आप तो विरक्त होवाथी सर्व स्त्रीनने दोषोनी खाणसमान गणो गे, परंतु हं तो रागी होवाथी ते स्त्रीनने संसारमा सारत मानुं बु. // 15 // वळी हे मुनीश्वर! हुं दुःख दूर क. खाने समर्थ बुं, एम कहीने आपे जे प्रतिज्ञा करेली , ते आप याद करो? // 20 // जमा | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| दीणा नाद्यापि नोगेला / मनोऽद्यापि धनीयति // तत्त्वामान्यर्थये प्रीति-निचितं रचितांजलिः॥ साई // 21 // तथा कुरु यथात्रैव / यथा स्यां भोगभागहं // न मंत्रसाधकस्येव / मम दूरफले स्पृहा // ...| // // तत्कालं न फलं दत्ते / यः स्वामीव निषेवितः // कथं कालविलंबेन / धर्मः स च फलि. ष्यति // 23 // एवं धम्मिलमालोक्य / सांदृष्टिकफलार्थिनं // कृपारसलसच्चित्तो-गलदत्तोऽब्रवीदि. ति // 24 // सौम्य सजावसत्तायां / धर्मः फलति सत्वरं // ईप्सितोदकमेदिन्यो-योगेनामतरुर्यथा |री नोगोनी वा दीण थइ नथी, तेम माझं मन हजु धन मेलववानी बावाद्यं बे, अने तेथी | हुं हाथ जोडीने प्रीतिपूर्वक आपनी प्रार्थना करुं बु. // 21 // माटे श्राप एम करो के जेथी है या नवमांज लोगोवाळो थलं, अने मंत्र साधनारनीपेठे मारी श्छा दूर फलवाळी न थान.॥ // 2 // जे धर्म सेवेला शेग्नोपेठे तुरत फल थापतो नथी, ते धर्म घणे काळे शोरीते फल आपशे? // 13 // एवी रीते धम्मिलने तुस्त फल मेळववानो अर्थी जोश्ने कृपारसथी नल्बसा. यमान हृदयवान अगलदत्तमुनि बोल्या के, // 24 // हे सौम्य! जेम योग्य जल तथा पृथ्वीना . संयोगथी थाम्रवृक्ष तुरत फले ने, तेम उत्तम नाव राखवाथी धर्म पण तुरत फले . // 25 // P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| // 25 // चूतोऽपि ताहगंनो-सामग्री बनते न चेत् / / नः फलेत सविलंबं वा / फलेष्मस्तयैव | च // 16 // अथाचाम्लतपो वत्स / वत्सरार्धे विधास्यसि // सत्वात्त्वं साधुनेपथ्य-स्तदिष्टां लप्स्य| से श्रियं // 27 // वह्नितापः श्रिये हेनो / ग्रीष्मोष्मा घनवृष्टये // दारो वस्त्रस्य शुध्यर्थ / पाटवा यौषधं कटु // 27 // टंको बिंबस्य पूजार्थ / पृथ्व्याः शस्याय दारणं // कारणं दारुणमपि / तपः कष्टं तथा श्रियः // 15 // जोगार्थ धम्मिलः साधो-नैजेऽथ व्रतमित्वरं / / पृथुकार्थमिव क्षेत्रं / शा. वळी आम्रवृद पण जो तेवां जल अने पृथ्वीनी सामग्री न पामे तो ते फले नहि, अथवा घणे काळे फले, माटे धर्मना संबंधमां पण तेमज जाणवुः // 26 // माटे हे वत्स! साधुनो वेष ले. ने जो तुं धरधां वर्षसुधी हिम्मत राखीने आंबेलनो तप करीश तो मनोवांजित लक्ष्मी पामीश. // 27 // अमिनो ताप वर्णनी शोना वधारे , उनाळानी गरमी वरसादने लावे बे, खारो क. पडांनो मेल दूर करे , तथा कम्वु औषध रोग माडे . // 20 // टांका मूर्तिनी पूजा करा. वे, तथा जमीनने खेमवाथी धान्य नीपजे , तेम आकरूं तपकष्ट पण लक्ष्मी पापनारं थाय | ने.॥ 27 // हवे लक्ष्मीनो समुह करनारा मांगरना क्षेत्रने जेम पोखमाटे सेववामां यावे . ते. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि लेः श्रीचरकारणं // 30 // नपात्तसाधनेपथ्यः / प्रस्थितः स ततो पुतं / ययौ मन् वमन किं. साध चि-दनीदितवरं पुरं // 31 // तस्मादहिः कचिद्गृत-गृहेऽसौ निःपरिग्रहः ॥अन्यो त श्वो. / भृत-कुवेलत्वादवस्थितः // 32 // जलयुक्तेन चक्तेन / मुष्टिमानेन सर्वदा // स्वस्य सोऽकल: 504 | यद् वृत्तिं / निरपेद वासुषु // 33 // विना स्नानं समुद्भूत-प्रऋतखेदपिडला // अनुचक्रे तनु| स्तस्य / सेवालितशिलातलं // 34 // सर्वार्थसाधकतया / प्रत्याख्यातमिवेह सः॥ मनागप्यमुचः म धम्मिले पण अमुक वखतसुधि जोगोमाटे साधुनुं व्रत अंगीकार कर्यु. // 30 // पछी ते साधुनो वेष लेश्ने त्यांथी तुरत चालवा लाग्यो, तथा नमतो जमतो कोश्क अजाण्या नगरपासे ग. यो, // 31 // तथा रात्री थवाथी ते नगरनी बहार कोश्क नृतना मंदिरमां बीजा तनीपेठे ते परिग्रहविनानो धम्मिल रह्यो. // 32 // वळी जाणे प्राणोनी अपेदाविनानो होय नहि तेम ते हमेशां जलसहित मुठीजर अनाजथी पोतानुं गुजरान चलावतो हतो. // 33 // स्नानविना अति. शय पसीनाथी चीकासवावं तेनुं शरीर सेवालथी नरेली शीलासरखं देखावा लाग्यु. // 34 // | सर्व प्रयोजन साधनारं जाणीने जाणे तेणे प्रत्याख्यान कर्यु होय नहि तेम तेणे जरुरी प्रयोजः P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-। न्मौनं / न प्राज्येऽपि प्रयोजने // 35 // यूकामत्कुणदंशादि-जुद्रजंतुसमुद्भवां / सेहे देहेन नि ग्रंथो / निर्वाणार्थीव स व्यथां // 36 / / एवं उव्यव्रतस्थेन / षण्मासास्तेन निन्यिरे // तदंते च | दिवो दैवी / वाणी प्रादुरदिति // 37 // नव धम्मिल विश्वस्त-स्वं चोगान गोक्ष्यसे भृशं // 505/ विद्याधरनृपेच्यानां / प्राप्य झात्रिंशतं कनीः // 30 // व्योमजा वारिधारेव / सा वाक्तचित्तकानने / / तपस्याफलसंदेह-दहनं निखापयत् / / 37 // तपस्वीव कृताहारः / दयीवाप्तरसायनः // दवानमाटे पण जरा पण मौन गेडयुं नहि. // 35 // मोदार्थी साधुनीपेठे ते जु, मांकम तथा डांस आदिक कुद्र जंतुथी शरीरमा उत्पन्न थयेली व्यथाने सहन करवा लाग्यो. // 36 // एवी रीते द्रव्य व्रतमा रहीने तेणे छ मासो व्यतीत कर्या, त्यारे याकाशमांथी एवी दिव्य वाणी प्रगट थ६ के, // 37 // हे धम्मिल! तुं विश्वास राख? तुं विद्याधर राजा तथा शाहुकारोनी बत्रीस कन्या मेलवीने घणा लोगो जोगवीश. // 30 // एवी रीते आकाशमाथी उत्पन्न थयेली जलधारासरखी ते वाणीए तेना चित्तरूपी वनमा उत्पन्न थयेला तपस्याना फलना संदेहरूपी अभिने बुझावी ना. ख्यो. // 30 // पनी जोजन करेला तपस्वीनीपेठे, रसायण खाधेला दयरोगीनीपेठे तथा वरसा. PP.Ac. Sunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिस्पृष्टशाखीव / जलवाहजलोदितः // 40 // निशि दिव्यगिरा यावत् / तुष्टस्तिष्टति धम्मिलः // तावत्कात्यायिनी कापि / तन्मठद्वारमाययौ // 41 // अत्र किं धम्मिलोऽस्तीति / तया पृष्टे कृशध्वनिः॥ धम्मिलोऽत्राहमस्मीति / प्रत्युत्तरयतिस्म तां // 42 // एह्येहि रथमारोह / चल चंपां पुरींप्रः ति / तयेत्युक्ते क्षणं चित्तो-दधौ स तिमितां दधौ // 3 // केयं वेत्ति कथं नाम / ममाह्वयति किं च मां // यं निशाचरी माजू-वहालं चिंतयानया // 4 // तस्या एवाधुना चिंता। दे. दना जलथी सींचायेला दवदग्ध वृदनीपेठे // 40 // ते दिव्य वाणीथी खुश थश्ने रात्री जे. वामां ते बेठो बे, एवामां कोश्क तापसी ते मठना द्वारपासे यावी. // 41 // अहीं शं धम्मिल बे? एम तेणीए धीमे अवाजे पूज्वाथी तेणे तेणीने प्रत्युत्तर याप्यो के थाह धम्मिल शाही बेठो बं. // 42 // त्यारे चाल चाल? रथपर चड? बने चंपा नगरीप्रते चाल? एम तेणीप क. | हेवाथी धम्मिल क्षणवार तो पोताना चित्तरूपी समुद्रमा मत्स्यजेवो थर गयो. // 43 // ( तथा विचारवा लाग्यो के ) या तापसी कोण हशे? मारुं नाम केम जाणती हशे? मने केम बोला| वे ? या राक्षसी तो नहि होय! अथवा या चिंताथी सर्यु. // 44 // केमके जे देवीए आक P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म-। व्याः कृतमिदं यया // न हि सा कार्यमारन्य / निर्वाहे विघटिष्यते // 45 // अथ नृतम कारा-मिव मुक्त्वा कृशोऽपि सः // पुष्टांग श्व फालेना-रोहत्तं लीलया रथं साय॥४६॥ ऋषिवेषः स निःशेष-सिऽर्थे तेन तत्यजे // यदा विदलिते व्याधा-वौषधं नोपयु 207| ज्यते // 4 // पूर्वारूढा रथे तेन / ददृशे कापि कन्यका // वस्त्रेणाथ सुश्लिष्टेन / गदिताशेषवि. | ग्रहा // 4 // स रथे सारथीय / शउस्तान्यामलदितः // रथ्यामालंब्य चंपाया / रथ्यावश्वाववा य, तेनेज हवे मारी चिंता , . मके ते कार्यनो प्रारंन करीने तेनो निर्वाह करवामाटे कई | पानी पानी नरशे नहि. // 45 // | हवे ते धम्मिल सुबळो उतां पण बलवाननीपेठे केदखानासरखा ते नृतना मठने गेडीने वेंक मारीने लीलामातथी ते स्थपर चमी बेठो. // 46 // पी एवी रीते सघg कार्य सिह थया. थी तेणे मुनिनो वेष पण गेडी दीपो, केमके रोग गयाबाद औषधनी कई जरुर रहेती नथी.॥ // 4 // हवे त्यां प्रथमथीज रथमां बेठेली तथा मजबूत वस्त्रथी ढांकेल ने सर्व शरीर जेणी एवी कोश्क कन्याने तेणे दीठी. // 4 // हवे तेन बन्नेमांथी कोइए नहि नळखेलो एवो ते P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- हयत् // 4 // असावैबन्निशो वृधि / जानन्निव वपुःस्थितिं / दिदृक्षुस्तस्य रूपं सा / ग्रंशं चुप कनी पुनः // 20 // यात्तं यस्यानया नाम / सोऽन्यः कश्चन धम्मिलः // न हिं कस्यापि नाम्नः स्या-देक एव वितु वि // 21 // अहं स्वनामश्रवणात् / साथै तमोऽनयोवृथा // मपं नन्विमे | प्रात-दिय द्वेषं गमिष्यतः // 12 // एवं चिंतयतस्तस्य / पथि पर्यगलन्निशा // तदा च ध्वस्ततिमिरः / सहस्रकर नद्ययौ // 53 // जपायनीकृतानेक-प्रफुल्लांगोजसौरजां // असौ निरैदत न. बुच्चो धम्मिल सारथी थश्ने चंपा नगरीने मार्गे रथना घोमानने हंकारखा लाग्यो. // 45 // ह. वे ते धम्मिल पोताना शरीरनी स्थिति जोश्ने रात्रीनी वृद्धि बवा लाग्यो, तथा ते राजकन्या तेनुं रूप जोवामाटे रात्रिना नाशने श्बवा लागी. // 20 // था तापसी ( ते वखते ) जेनं नाम बोली ने ते. को बीजोज धम्मिल होवो जोश्ये, केमके कोर पण नामनो या जगतमां को. 3 एकज माणस कई मालिक होतो नथी. // 51 // वळी हुं मारं पोतानुं नाम सांजलीने फोकट या बन्नेनी साथे चाल्यो लु, खरेखर था बन्ने प्रचाते मारू रूप जोश्ने गुस्से थशे. // 55 // एम . | ज्यारे ते चिंतवतो. तो त्यारे मार्गमांज रात्री संपूर्ण थक्ष, अने ते वखते अंधकारने नाश कर P.P.AC.Gunratnasurn M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दी / नदीनह्रदयः पुरः // 24 // युक्तिझो योक्त्रमुत्तार्य / तटे तस्या अनातुरः // तुरगौ वारि त.. स्वारि / सोऽध्वश्रांतावपीप्यत // 55 // स पद्मस्पर्धया प्रात-र्जातलोचनपाटवः // कन्याममेय लावण्यां / तां दृष्ट्वा मुमुदे भृशं // 16 // अंतराले वर्तमान / मुनिगार्हस्थ्यवेषयोः // सा तु तं | जीषणाकारं / वीदय खिन्नेत्यवोचत // 27 // अर्कोझतस्थूलकेशो / निम्नीनृतादिगोलकः // लंब. ग्रीवः कृशः क्लीवः / सूर्पाकारनखक्रमः // 27 // कुधा दामोदरः दीण-कटीवस्यत्पटच्चरः // निर्माः नारो सूर्य उदय पाम्यो. // 53 // एवामां आनंदित हृदयवाळा ते धम्मिले भेट करेल ने अनेक विकस्वर कमलोनी सुगंध जेणे एवी एक नदीने अगामीना नागमां दीठी. // 24 // पजी युक्तिः ने जाणनारा ते गंजीर धम्मिले ते नदीने किनारे जोतर छोमीने मार्गमां चालवाथी थाकेला घोमाजने तृषा निवारनारं जल पायु. // 55 // हवे कमलनी स्पर्धाथी प्रजाते अांखो खुल्याबाद ते धम्मिल अत्यंत लावण्यवाळी ते कन्याने जोश्ने घणो खुशी थयो. // 26 // पजी मुनि शने गृहस्थना वेषनी वच्चे रहेला जयंकर थाकारवाळा ते धम्मिलने जोश्ने खेद पामेली ते कन्या बो. ली के, // 27 // अरे माता! बरधा नगेला जाडा केशवाळो, नीचा थयेला यांखोना मोळावा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि, सशोणितं देह-मस्थिकूटमयं दधत् // 27 // उर्दशादयिताश्लिष्टो / उनिदस्येव सेवकः // रंकोमा ऽयं को दहा मातः / खसार्थे गृहितस्त्वया // 60 // मन्ये नृतगृहात्तस्मा-भृतोऽयं कोऽपि निर्गतः | // यदीहरभीषणाकारो / मनुष्यः कापि नेदितः // 61 // यदि वा न हि नृतोऽयं / न पिशाचो | न सदसः // किंतु मूर्तमिदं पापं / मम लमं पुराकृतं // 6 // ददृशे यो मया पूर्व / नेत्रांनोज को, लांबी डोकवाळो, मुबळो, निर्बल, सुपमाजेवा नखपगवाळो, / / 27 // कुधाथी खाली जदरवा. लो, मुबळी केम्परथी खसी जतां वस्त्रवाळो, मांस अने रुधिरविनाना फक्त हामपिंजरजेवां शरीरने धारण करनारो. // एए // दरिद्रतारूपी स्त्रीथी आलिंगित थयेलो, तथा दुकाळना सेवकसरखो ए. वो कयो माणस तें पापणी साथे लीधो ? // 60 // हुं तो धारु बुं के ते नृतघरमांथीया कोश्क नृतज निकली आव्यो बे, केमके धावा नयंकर आकारखाळो माणस तो क्यांय पण जोवा. मां श्राव्यो नथी. // 61 // अथवा था भूत पिशाच के रादास नथी, परंतु या तो पूर्वे करेलु मा. रुं पापज मूर्तिवंत थश्ने मारी पाबळ लागेछु . // 6 // मारां नेत्रोरूपी कमलोने सूर्यसरखो जे घम्मिल पूर्व में जोयो बे, ते तो था नथीज, था तो हे माता! खरेखर मारां नेत्रोरूपी कमलोने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- दिनोदयः // न सोऽयं निश्चितं मात-नेत्रांनोजनिशोदयः // 63 // दपया पापयातां / तदा मे गदिते दृशौ // रथोपरि समारोढ-मस्य नादास्यमन्यथा / / 64 // यदि धम्मिलनामा स्या-त. थाप्येष न मे प्रियः // हरिनानि समानेऽपि / किं श्रीः श्रयति दरं / / 65 / / चेदासेचनको न. 511 | त / न मातः समगस्त मे // अलं तदग्रतो गत्वा / पश्चाद्यास्याम्यहं पुनः / / 66 / / धात्री स्माह गता पश्चा-दत्से लाघवमाप्स्यसि // श्याहि चंपा तत्तत्र / कुर्याद्यत्तेऽनिरोचते // 17 // श्रुतामचंद्रसरखो . // 63 // ते वखते या दुष्ट रात्रीए मारां नेत्रो थानादित कर्या हता, नहितर हं र. थपर चडवा पण न वापत. // 64 // कदाच थातुं नाम धम्मिल हशे, तो पण ते मने प्रिय था. य तेम नथी, केमके तुल्य हरिनामवाळा पण देडकानो शुं लक्ष्मी श्राश्रय करे ! // 65 // हे माता! जो महारो प्रियतम नार मने मब्यो नथी तो हवे आगल जवाथी सयु, हुं तो हवे पा. जी जश. // 66 // त्यारे ते धावमाता बोली के हे वत्से ! जो तुं पानी जश्श तो तारी हलकाइथशे, माटे हाल तो तुं चंपापुरीमां चाल ? पनी त्यां तारी श्वामुजब करजे. // 6 // एवी री. तनी तेजनी कथा सांजव्या बतों पण जाणे बहरो थ गयो होय नहि तेम ते धम्मिले पोता. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust - Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- प्यश्रुतां कुर्व-स्तयोरेवं मिथः कथां // रथे सोऽध्ययुनग्वाही / धार्य ध्यायनिजे हृदि // 6 // धम्मिलो रथमारोहुँ / यावच्चक्रे ददौ पदं // तावत्प्राचीचलद्धाला / सारथीन्य सा रथ // 70 // रथं हस्तादमुंचतं / पूपममिवानकं // अनुदनिर्दया चुप-कन्या प्रवयसेन तं // 71 // कूरूप रंक निर्लज्ज / मुंच रे मामकं रथं // लेष्टूनिवाननुक्रोशा-क्रोशानिति जगाद सा // 7 // पास. नान्यस्तसंन्यस्त-संस्कारादिव नात्यजत् // असौ कमां च मौनं च / मान्यपि स्वार्थसिष्ये // 13 // ना मनमां बुच्चा वापरीने घोडानने स्थमा जोड्या. // 65 // पजी रथपर चमवामाटे जेवामां धम्मिले चक्रपर पग दीधो, तेवामां ते कन्याएज सारथी थश्ने रथ चलाव्यो. // 70 // हवे बा. ळक जेम मीगना टुकडाने तेम हाथमाथी रथने नहि गेमता एवा ते धम्मिलने ते निर्दय रा. जकन्या चाबुक मारखा लागी. // 71 // तथा घरे कुरूप! रंक! निर्ला! तुं मारा स्यने नोम? एवी रीते अत्यंत आक्रोशवाळां वचनो कहेवा लागी. // 72 // नजीकमां थान्यस्त करेला सन्या. सीपणाना संस्कारथी जाणे होय नहि तेम मानी जतां पण तेणे स्वार्थसिधिमाटे क्षमा अने | मौन तज्यां नहि. // 13 // हवे ते कमलमुखी कन्याए मार्गे चालतांथकां जोजनवखते थाक न / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Luncu Aaradhak Taust Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- जोजनावसरेंजोज-नयना पथि गबती // श्रमं निराकर्तुकामा / स्थापयामास सा रथं // 13 // प्रवेष्टुमदमे मध्ये / ग्राम योषित्वन्नावतः // अन्यागत्येंगितझान-प्रवीणो धम्मिलो जगौ // साथ // 4 // विलाये मास्म जायेथां / युवामत्रैव तिष्टतां // गत्वा भोजनसामग्री-मानयामि तं त्व. 513 | हं // 35 // यथावस्थाप्य ते तत्र | ग्राममध्यमसौ गतः // युक्तमस्तोकलोकेन / ग्रामस्वामिनमैद | त // 76 // तुरंगं लोकमध्यस्थं / / दर्श दर्श विषादिनं // प्रणिपत्य तमप्रादीत् / स विषादस्य का रणं // 7 // ग्रामाधीशोऽवदङ्ग / किशोरो मे सलदणः // हेतोः कुतोऽप्यनुदिनं / दीयते क तारवामाटे रथ ननो राख्यो. // 73 // हवे इंगितझानमा हुशियार एवा ते धम्मिले तेनने स्त्री. खनावथी गाममां जवाने असमर्थ जाणीने सामे आवीने कडं के, // 14 // तमो मुंफा मां, अने अहींज रहो, अने हुँ गाममां जश्ने जलदी नोजननी सामग्री लावू बु. // 35 // पनी तेनने त्यां राखीने धम्मिल गामनी अंदर गयो, त्यां तेणे घणा माणसोथी युक्त थयेला ते गाम|ना ठाकोरने जोयो. // 16 // त्या माणसोनी वच्चे रहेला एक घोमाने जो जोस्ने खेद पामता | एवा ते कोरने नमीने तेणे खेदनुं कारण पूज्युं. // 7 // त्यारे कोरे कडं के हे नद्र! मा P.P. Ac Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि यरोगिवत् // 70 // अस्य विदधिरे वैद्यै-रुपचारा अनेकशः // गिराविव शरास्तेऽपि / सर्वे वैयर्थ्यमाई मीयिरे // 17 // मम जीवितसर्वखं / अश्वो विश्वोत्तराकृतिः // अनुपायात्परजवं / गंता तेनास्मि | दुःखितः // 70 // धम्मिलोऽनिदधे धीम-त्रहं जानामि चेष्टितैः // प्रबन्नं पापकर्मेव / शव्यं देहे. 514 | | अस्ति किंचन // 1 // ततः स चतुरो मृष्ट्या / सलिलक्विन्नया तदा // तुरंगस्य तनुं नितिं / सु. धावलेपयत्ययं // 7 // गयास्थे तुरगे पूर्व-मशुष्यद्यत्र मृत्तिका // तस्मिन्नवयवे शब्य-मंतःस्थं रो या उत्तम लक्षणवाळो वजेरो कोण जाणे शां कारणथी हमेशां दयरोगीनीपेठे दीण थतो जाय . // 70 // याने माटे वैद्योए अनेक उपायो कर्या, परंतु पर्वतप्रते जेम बाणो तेम ते सघला फोकट गया . // ya // मारा प्राणसरखो तथा जगतमां अनुपम श्राकृतिवालो मारो या घोडो नाश्लाजे मरण पामशे, अने तेथी हुँ खेद पामुं बु. // 70 // त्यारे धम्मिल बोल्यो के हे बुध्विान् ठाकोर ! हुं आनी चेष्टायी धारु बु के गुप्त पापकार्यनीपेठे थाना शरीरमां कईक शल्य जे. // 1 // परी ते चतुर धम्मिले तेज वखते जीतपर जेम चुनो तेम पाणीथी भींजवेली मा. .... टीवडे ते घोडाना शरीरपर लेप को. / / 2 // हवे ते.घोडाने गयामां राख्याथी तेना शरीरना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- निश्चिकाय सः // 3 // तुरंगस्य अविबेदा-ततः शल्ये निराकृते / स व्रणं व्रणरोहिण्या-रो. हयामास सत्वरं / / 4 // हये निरामये जाते / जानन पुण्यविशालिनं // पाललाप कलापात्रं / ग्रामेशस्तं ससौहृदं // 79 // रूपांतरितनाकोकः / कलाप्राप्तसरस्वति // वद कौतस्कुतोऽसि त्वं / 515 कियांस्तव परिबदः // 6 // सोऽवक्कुशाग्रनगरा-दहमायासिषं सखे // ग्रामसीनि च रामाया / ममास्ति स्थापितो रथः // 7 // जे नागपर प्रथम ते माटी सुकाइ गर, ते भागमां अंदर कश्क शल्य बे एम तेणे निश्चय कर्यो. // 73 // पड़ी तेणे ते घोमाना शरीरमां ते जगोए वाढकाप करीने तेमांथी शब्य कहाडी नाख्यु, तथा ते जखमने व्रणरोहिणी नामनी औषधीथी तेणे तुरत रुमावी नाख्यो. // 7 // एवी रीते घोडो ज्यारे नीरोगी थयो त्यारे ते कलावान धम्मिलने पुण्यशाली जाणीने राजाए मित्रतापूर्वक बोलाव्यो के, // 5 // हे रूपांतर देव! तया कलाथी प्राप्त करेली ने सरस्वती जेणे एवो तुं क. हे के क्यांधी यावे ? तथा. तारो हेटलो परिवार ने? // 76 / / त्यारे धम्मिल बोल्यो के हे मित्र! हुं कुशाग्रनगरथी आq डं, तथा गामनी सीममां में मारो स्थ राख्यो . // 7 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि अथो रथं युतं तान्यां / ग्रामेशो ग्रामसीमतः // कलाक्रीत व प्रेष्यो / गत्वा ग्रामांतरानयत् / माई // // तस्मै सरमणीकाय / स सिक व चेटकः // स्थानस्नाननिवसना-शनादिकमपूरयत् / / // // स्वस्थानादधिकं मानं / दूरेऽपि लगते गुणी // यथा विदेशे न तथा / महर्यो मणिरंबुधौ // 70 // स ग्रामेशाग्रहात्तत्रैवातिचक्राम धामवान् // दिनापरार्ध तत्साई। ग्रामलोकैर्वि नोदतः // 1 // मनःप्रियप्रियाप्राप्ति-पश्चात्तापेन पूरिता // सर्वे न्यः प्रथमं सायं / सुष्वाप माप. पजी ते ठाकोर तेनी कलायी खरीदायेला चाकरनीपेठे त्यां जश्ने गामनी सीममांयी ते ब नोकरनीपेठे मकान, स्नान, वस्त्र तथा गोजनादिक पूरा पाड्यां. / / जय // गुणी माणस पोता. ना स्थानथी दूर देशमां गयोथको अधिक मान पामे , केमके अमूल्य मणिनी जेवी परदेश मां किमत थाय ने, तेवी तेनी समुद्रमा पमी रहेता थती नथी. // 50 // पनी ते पराक्रमी धम्भिले ते ठाकोरना आग्रहथी गामना लोकोसाथे विनोद करतांथकां त्यांज दिवसनो बाकीनो अरधो | नाग व्यतीत कर्यो. // ए१ // मनने प्रिय एवो प्रियतम न मलवाथी पश्चात्तापमां पडेली ते रा / P.P.AC. Sunratnasuri M.S. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- नंदिनी / / ए // तस्यां निद्रामुदितादयां / विसृष्टे ग्रामनेतरि // कात्यायिनी मनाक्सौम्य-मुखी | प्रोवाच धम्मिलः // ए३ // के युवां चलिते कस्मा–दकस्माइब्दितोऽस्मीति // शब्दितश्चेत्तदेषा किं / बाला व्यालायते मयि // ए४ // स्वबनावाथ सावादी–दात्सब्यविशदं वचः // आकर्णय 517 | सकर्ण त्व-मस्मचरितमादितः // 55 // अस्ति हस्तिहयवात-जातशोजमहापथं // पुरं सारश्रियां सीमा / श्रीमागधपुरं पुरं / / ए६ // तत्रारिदमनो नाम / नामयन्नरिजनुजः // गुजदंमात्तचक्रजपुत्री संध्याकाळे सर्वथी पहेलां निद्रावश थर. // ए // हवे तेणीनी आंखो निहाथी बीडाइ गयाबाद तथा ठाकोरना पण गयाबाद जरा शांत मुखवाळी ते तापसीने धम्मिले पूज्युं के, // 3 // तमो बन्ने कोण गे? शामाटे निकली छो? तथा मने शामाटे बचानक बोलाव्यो? अने जो बोलाव्यो तो पछी था कन्या माराप्रते सर्पनीपेठे शामाटे पाचरण करे ? // ए४ // त्यारे नि मल अंतःकरणवाळी ते तापसी स्नेहयुक्त वचन बोली के, हे चतुर! तुं अमारं वृत्तांत मूळथी सां. नळ? // 5 // हाथीघोमार्जना समुहथी थयेली शोभावाला राजमार्गवाद्यं तथा उत्तम लक्ष्मीनी सीमासरखं मागधपुर नामर्नु नगर . // ए६ // त्यां शत्रु राजा ने नमाडनारो तथा लुजदंडपर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः श्चक्रवर्तीव नृपतिः // 7 // तस्येयं दुहिता नाम्ना / कमला कमलानना // मामस्या एव जानी / सार्थ | हि / धात्री तु विमलानियां // ए // प्राणेन्योऽपि प्रियामेना-मध्यापयदिलाप्रियः // कला ज. पकलाचार्य / सकला ललनोचिताः // एए // श्यमुद्भिन्नतारुण्या / पूर्वासीत कर्मदोषतः // घात. 510 केष्विव तातस्य / पुरुषेषु पराङ्मुखी // एए // श्रमी स्वकार्यरसिका / निःकृपाश्चलचेतसः // प. रार्थनेदका ये च / निनिदेयं नरानिति // 2400 // यदा कदाचिदद्रादी-देषा कंचिनरं पुरे / / पृथ्वीचक्रने धरनारो चक्रवर्तीसरखो अरिदमन नामे राजा जे. // // तेनी था कमलसरखां मु. खवाळी कमला नामनी पुत्री बे, अने मने तेनी विमला नामनी धाव जाणवी. // // पोता. ना प्राणोथी पण वहाली एवी या पुत्रीने राजाए कलाचार्यपासे स्त्रीने लायक सघनी कलान जणावी जे. // एए // ज्यारे था युवान थ त्यारे प्रथम कर्मोना दोषथी पोताना पिताना घात | ., .. कोनीपेठे पुरुषोते देषवाळी हती. // ए0 // या पुरुषो खार्थी, दयावगरना, चलचित्तवाळा अ. ने परकार्यने नांगनारा ने एम तेणी तेजनी निंदा करती हती. // 2400 // जे को वखते ते | नगरमां को पुरुषने जोती त्यारे खार चोपडेला गुममांथी जाणे पीमा होय नहि तेम ते वधा- / PP.AC.Gunratnasuri M.S. JUNGU Aarauak TTUSI Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- दिप्तदारव्रणाव / विशेषेण व्यषीदत // 1 // ये कुलीनाः कलावंतो / युवानः दात्रियोत्तमाः // एषा तेष्वपि नारज्यत् / दीणकुन्मोदकेष्विव // 2 // अन्यदाहं व्यमार्द किं / गुणज्ञेयं सुता मम | // नुश्चक्षुष्यानपि देष्टि / चंद्रांशूनिव पद्मिनी // 3 // अचिंतयं च चेदेषा / मुच्येतोपचतुष्पथं // त. ५१ए कंचिन्नरमालोक्य / स्यादस्या जातु निर्वृतिः॥३॥ अथ विज्ञप्य राजानं / विमान व त्रुमिगे || अस्थापयमहं धाग्नि / पृथुनि श्रीपथांतिके // 4 // तत्र वातायनस्थेयं / योषिन्मात्रपरिबदा / | रे सुःख पामती. // 1 // जेम दुधाविनाना माणसने लामा रुचि न थाय तेम कुलीन कलावा| न तथा युवान उत्तम दत्रिप्रते पण या कन्या रागवाळी थ नहि. // 2 // पनी एक दिवसे में विचार्य के कमलिनी जेम चंद्रना किरणोपते तेम मारी था गुणज्ञ पुत्री मनोहर पुरुषोपते | पण शामाटे देष करती हशे? // 3 // जो आने चहुटामां मुकवामां आवे तो कदाच ते कोश्क पुरुषने जोश्ने रागवाळी थाय. // 3 // पनी में राजाने विनंति करीने चहुटामां पृथ्वीपर रहेला | विमानसरखा एक विशाल मकानमा तेणीने राखी. // 4 // त्यां फक्त स्त्रीननाज परिवारवाळी ते राजपुत्री फरुखामां बेठीथकी लीलापूर्वक पोतानी चपल दृष्टि नगरमां चारे बाजु फेंकवा लागी. Jun Gun Aaradhak Trust PR.AC.Gunratnasuri M.S. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः चक्षुश्विक्षेप लीलाजि-मैथरं परितः पुरे // 5 // रुरोचयिषवोऽमुष्यै / स्वमित्यदत्रसूनवः // युवानः / सार्थ | कृतश्रृंगाराः / समन्येयुरनेकशः // 6 // कथं ब्रमंत्यमी काम-पिशाचबलिता श्व // इति प्रत्युत्त. | रशेषा–नेषा तानकरोभृशं // 7 // सौरजोल्लसन्निद्र-पुष्पोत्तंसितमस्तकः // सर्वांगसंगिशृंगार ज्योतिर्योतितदिङ्मुखः // 7 // दिव्यांवराक्तसौरन्य-संवासितपुरोदरः / / श्रीपथे मन्मथो मूर्त / |श्व कोऽप्यचलावा // 5 // युग्मं // तदर्शनेन पुंदेषः / सहसास्याः शमं ययौ / घनांबुना जग॥ 5 // त्यां तेणीने पोतापते मोहित करवामाटे शाहुकारोना तथा दत्रिनना अनेक युवान पु. त्रो बनीठनीने श्राववा लाग्या. // 6 // कामरूपी पिशाचथी गांडा बनेलानीपेठे या जुवानीया यहीं शामाटे भटक्या करे ? एटलोज फक्त प्रत्युत्तर तेने ते वापती हती. // 7 // एवामां सुगंधथी जलसायमान अने प्रफुल्लित पुष्पोना मुकुटयुक्त मस्तकवाळो, सर्व शरीरपर रहेलां बाबू. षणोनी कांतिथी दिशानना मुखोने तेजस्वी करनारो // 7 // दिव्य वस्त्रोमां गंटेली सुगंधियी नगरना मध्यनजागने सुगंधी करनारो तथा मूर्तिवंत कामदेवसरखो कोश्क युवान ते राजमार्गेथी चालवा लाग्यो. // 7 // जगतने नाश करनारो दावानलनो अनि जेम वरसादना जलथी शांत P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| ध्वंसी / श्व दाहो दवोनवः // 10 // इंदौ कैरविणी खौ कमलिनी धाराधरे बर्हिणी / हंसी त हिगमे महोदधिजले मत्सी मृगीव स्थले // श्रीदेवी जजते मुदं जलशये गौरी गिरीशे तथा / स्वबंदं रमते विचित्ररुचिकं चेतः कचित्कस्यचित् // 11 // एषा मामध्यधान्मातः / कोऽयं गति 521 नो युवा / अस्य दर्शनमात्रान्मे / सुधासिक्तमतचः // 12 // तथा कुरु यथा मंक्षु / मामेष प्र. तिपद्यते // नद्यहं व्रजतः प्राणा-नीशे धतु विनामुना // 13 // अथाहं दध्युषी कार्य-मेतद् थ जाय तेम ते युवान पुरुषने जोश्ने तेणीनो पुरुषप्रतेनो देष एकदम शांत थ गयो. // 10 // जेम चंडमां कैरविणी, सूर्यमां कमलिनी, वरसादमां मयूरी, वरसादना नाशमां हंसी, महासागरनां जलमां मानली, जमीनपर हरिणी, विष्णुमां लक्ष्मी तथा महादेवमां जेम पार्वती तेम विचित्र रु. चिवाबु को कोनुं चित्त को कोई वस्तुमा स्वबंदपणे रमे जे. // 11 // पनी तेणीए मने क. हां के हे माताजी! था युवान पुरुष कोण जाय ? पाने फक्त जोवाथीज मारुं शरीर अमृतथी सींचायाजेवू थयुं . // 15 // माटे हवे तुं एम कर? के जेथी मने ते जलदी अंगीकार करे. केमके तेनाविना हुँ मारा जता प्राणोने धारी शकुं तेम नथी. // 13 // हवे में विचार्य के प्रया Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- जागेव साध्यते // पुनर्जावपरावर्ती / मास्याचुच्चलचेतसः // 14 // नमुक्त्वाहं गता तत्र / पुरुषं सार्थ | तमन्नाणिषं // रूपश्रीकेश कोऽसि त्वं / कस्य वा तनयो वद // 15 // सदृश्यकुंदकलिका–क. लिकारिरदोऽवदत् // पुत्रः समुद्रदत्तस्य / श्रेष्टिनो धम्मिलोऽस्म्यहं / / 16 // अहं पुनरखोचं तं / वत्स त्वं पुण्यवानसि // यदेषां नृषु सर्वेषा / त्वय्यरज्यन्नृपांगजा // 17 // सौनागिनेय तदिमामुदूह्य स्नेहनिर्भरां // बुंपख विश्वविश्वस्थ-पुंसां सुनगतामदं // 17 // ततः सोऽनिदधे मातकार्य जलदी साधी लेवू जोश्ये, केमके या मारी पुत्रीनू चपल चित्त पाबु फरी न जाय तो सा. रं. // 14 // एम विचारीक ने एम कहीने में ते पुरुषपासे जश्ने तेने कहूं के हे रूपश्रीप्रते विष्णुसरखा! तुं कोण ? तथा कोनो पुत्र जे? ते कहे ? // 15 // मनोहर डोलरनी कळीनने पण जीतनारा दांतोवाळो ते पुरुष बोल्यो के हुँ समुद्रदत्तशेठनो धम्मिल नामे पुत्र बु. // 16 // सारे फरीने में तेने कह्यु के हे वत्स ! तुं पुण्यवान जो, केमके पुरुषोपते द्वेषवाळी एवी पण या राजकन्या ताराप्रते रागवाळी थयेली . // 17 // माटे हे सौजाग्यवान ! स्नेहथी नरेली आ रा. जकन्याने परणीने तुं समस्त जगतना पुरुषोना सौनाग्यपणानो मद दूर कर? // 17 // त्यारे ते P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रेतत्कस्मै न रोचते // परिणेया परं राज-कन्या मे वणिजः कथ // 15 // क कल्पवल्ली क तृणं / कमणिः क च कर्करः / / क राजहंसी क बकः / क करेणुः क बर्करः // 20 // क पद्मिनी क साथै | | मंरकः / व लक्ष्मीः क्व च दुर्गतः // क सा पृथ्वीपतेः पुत्री / क चाहं प्राकृतो जुवि // 21 // म 553 योचे वत्स कोऽयं ते / विचारश्वतुरोचितः / कः कामधेनुमायांती-मयोग्योऽस्मीति दूरयेत् // 12 // | अवदघम्मिलो मात-र्युक्तमुक्तमिदं त्वया // किंतु स्वपितरौ पृष्ट्वा / दारकर्मोचितं मम // 3 // बोब्यो के हे माताजी! या वात कोने न रुचे? परंतु हुं वणिकपुत्र राजकन्याने शीरीते परणी शकुं? // 17 // केमके क्यां कल्पवेली बने क्यां घास? क्यां मणि अने क्यां कांकरो? क्यां रा. जहंसी अने क्यां बगलो? क्यां हाथणी अने क्यां बकरो? // 20 // क्यां कमलिनी बने क्या देडको? क्यां लक्ष्मी अने क्यां दरिडी? तेम क्यां गजानी पुत्री बने क्या हुं था पृथ्वीपरनो पामर मनुष्य ? // 21 // त्यारे में तेने कह्यु के हे वत्स! तुं वळी था महापणमायानीपेठे शं विचार करे ? केमके हुं अयोग्य बुं एम कही यावती कामधेनुने कोण निवारे? // 25 // त्यारे ध. म्मिल बोल्यो के हे माताजी! तमो था युक्तज कहो बगे, परंतु मारा मातपिताने पूजीने मारे | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिा बागमभु पितरं / पृष्ट्वेत्यनुमतो मया // यातः स पुनरायातः / दाणादेवेत्यवोचत / श्या या सारी पृष्टो मातस्त्रार्थे / तातो मामन्वशादिति // दृष्ट्वा राजांगजारागं / वत्स गबसि किं मुदं // 25 // दादालतामिव मयः / कस्तूरी मिव सैरिभः // मुक्तावलीमिवारिष्ट-स्त्वमेनां प्राप्तुमर्हसि // 26 // 524 वाधिकैः सह संबंधं / न बनंति सुबुध्यः // पटवलं विपुलश्रोतः-श्रोतसा दीर्यते न किं // 17 // वत्स त्वदुचिताः कन्याः / संपत्स्यते परा अपि // दास्यस्य स्पृहयाबुश्चे-त्तदेतामुररीकुरु // 20 // परणवं उचित . // 23 // तारा मातपिताने पूजीने तुं जलदी आवजे, एम में अनुमति पाप्या थी ते जश्ने क्षणवारमा पागे धावी बोल्यो के, // 24 // हे माताजी! थामाटे पूज्वाथी मारा पिताए मने कां के, हे वत्स! राजपुत्रीनो राग जोश्ने तुं शामाटे खुश थाय ? // 25 // नं. ट जेम द्रादवल्लीने, पाडो जेम कस्तूरीने, दरिडी जेम मीतीजनी माळाने तेम तं या राजकन्याने मेलववाने लायक गे. // 26 // सुबुछि माणसो पोताथीं अधिक मनुष्योसाथे संबंध बांधता न थी, केमके विशाल फरणाना प्रवाहथी शुं नानुं तनाव फाटी जतुं नथी? // 27 // वली हे वत्स! | तारा लायक बीजी कन्या पण मलशे, माटे जो तने दासपणानी ना होय तो या राजपुत्री PP.AC.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाग्म-। निषेधितोऽपि पित्रैव-मुपयलेयं चेदिमां // निषिधकारी गेहेऽह-मुपतिष्टेयं तत्कथं // 27 // परं / | चंपापुरे मात-मातुलोऽस्ति ममातुलः // तत्तत्र परिणीयेमां / तिष्टामि यदि मन्यसे // 30 // म. याप्यूचे महाभाग / साधु साधु मतिस्तव // का न्यूनता विदेशेऽपि / ययूढा राजकन्यका // 31 // 525 राजकन्या समानेया / सायं नृतगृहे त्वया // इति प्रदत्तसंकेतः / स जगामान्यतस्ततः // 3 // प्रायेण वणिजि स्नेहो / राजपुत्र्यास्त्रपाकरः // इति व्यतिकरं पुत्र्या / नाहं नृपमजिपं // 33 // स्वीकार ? // 2 // एवी रीते पिताए निषेध्या छतां पण जो हुँ या राजपुत्रीने पाणुं तो तेमनी याज्ञानो अनादर करनारो हुँ घरमां केम रही शकुं? // 27 / / परंतु हे माताजी! मारो एक अ. नुपम मामो चंपा नगरीमां रहे , माटे जो तुं कहे तो थाने परणीने त्यां रहुं. // 30 // त्यारे हं पण बोली के हे महानागी! तने ठीक बुधि सूजी, केमके ज्यारे ते राजकन्या परणी. त्यारे परदेशमां पण तने शुं जंगश रहेवानी ने? // 31 // हवे संध्याकाळे तारे नृतघरमां था राजकन्याने लाववी, एम संकेत देश्ने ते त्यांथी अन्य जगोए चाव्यो गयो. // 35 // प्रायें करीने व. |णिकपते राजपुत्रीनो स्नेह लज्जा करनारो , एवो था मारी पुत्रीनो वृत्तांत में राजाने जणान्यो P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धग्नि- थारोह्येमां रथे रात्रौ / तत्रागां नृतमंदिरे // आहूते धम्मिले तस्माद् / नवान् नदक निर्ययौ / / साई // 34 // धातुवस्तुविपर्यासं / कापि कुर्वति वाणिजः // नरभेदस्तु तत्रत्यै- तैर्यदि पुनः कृतः / / | // 35 ॥.स्निह्यति सा कथं रूपा-कूपारे तत्र रागिणी॥ त्वयि ग्रामश्रोतसीव / हंसी मानसवासि. 125 | नी // 36 // वत्स त्वमपि विश्वस्तो / वद खं वृत्तमादितः / / सौहृदं वपरोदंत-कथनप्रश्नसार्यक // 37 // सोऽप्यूचे शृणु हे मातः / कुशाग्रपुरवासिनः॥ सूनुः सुरेंद्रदत्तस्य / श्रेष्टिनो धम्मिलोऽ. | नहि. // 33 // पनी या राजपुत्रीने रथमां बेशाडीने हुं रात्रीए ते नृतमंदिरमा श्रावी, अने ध. म्मिलने बोलाव्याथी हे जद्रक ! तेमांथी तो तुं निकळी. पड्यो! // 34 // वणिको धातुविगेरे व. स्तुनो क्यांक फेरफार करी नाखे , परंतु त्यां रहेला तोए तो मनुष्यनो पण फेरनार करी नाख्यो! // 35 // रूपना समुऽसरखा एवा ते पुरुषमा रागवाळी थयेली ते मानसरोवरमा रहेनारी हंसी जेम गामनी गटरमा तेम तारामां शीरीते रागवाळी थाय? // 36 // वळी हे वत्स तं पण विश्वासी थाने प्रथमथी पोतानुं वृत्तांत कहे, केमके मित्रा तो पोतानुं अने परतुं वृत्तांत कहेवा। थी तथा पूजवाथीज सार्थक थाय जे. // 31 // त्यारे ते पण बोल्यो के हे माताजी! तमो सांच P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम- स्म्यहं // 30 // वेश्याव्यसनतः दीण–वेश्मवित्तपरिबदः // आश्वासितोऽहमुद्याने / मर्तुकामो महर्षिणा // 35 // भोगानिलाषुकस्तस्मा–दुपात्तद्रव्यसंयमः॥ ब्राम्यन् तमठे तत्र / तपस्तेपे. | अर्धवत्सरं // 40 // तदंतर्दिव्यया वाचा / यावत्सप्रत्ययोऽनवं / / त्वमाजुहाविध दारे। तावत्संकेति 517 | तेव मां // 41 // साथोचे वत्स जाग्यैर्न-स्त्वं यः कश्चिदुपागतः // स एवासि प्रमाणं किं / नि ष्फलैः परिदेवनैः // 42 // तथा ब्रूयास्तथा कुर्या / दद कामुष्यनागपि / / श्यं त्वयि प्रसन्ना स्यालो? कुशाग्रपुरमा रहेनारा सुरेंद्रदत्त शेठनो हुं धम्मिल नामनो पुत्र बु. // 30 // वेश्याना व्यस नथी मारुं घर धन तथा परिवार नाश पाम्यां बे, अने तेथी हुँ थापघात करवानी श्वाथी वन मां गयो हतो, धने त्यां एक महर्षिए मने शांत पाड्यो हतो. // 35 // पनी नोगोना अनि लापथी हं अव्य संयम लेश्ने नमतोथको ते नृतमठमां श्राव्यो, अने त्यां हुं बरधा वर्षसुधी तप तप्यो.॥४०॥ पनी त्यां दिव्य वाणीथी जेवामां मने खातरी थइ तेवामां संकेत करेलीनीपेले तें मने बारणेथी बोलाव्यो. // 41 // त्यारे तेणीए कहूं के हे वत्स! अमारां नाग्योथी तंज जे | कोश मळी श्राव्यो तेज अमारे प्रमाणत ने, हवे फोकट पश्चात्ताप करवाथी शुं थवानुं जे? // Jun Gun Aaradhak Trust ..PP.AC.Gunratnasun M.S. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ। धम्मि- बरदीव नदी यथा // 43 // धम्मिलः स्माद सेत्स्यति / मम सर्वे मनोरथाः / / सत्कर्मपरिणत्येव / त्वया मातः प्रसन्नया // 4 // एवं मिथः कथादिप्त हृद्न्यां तान्यां तमखिनी // दीणैव ददृशे साकं / कमलायाः प्रमीलया // 45 // ग्रामाधिपमथापृच्छ्य / प्रातस्ताच्यामधिष्टितं // रथं सोऽचाल५० / यचंपा-ध्वनि ध्वनितऋतलं // 46 // उत्तालतालाहिंतालं / स्फुरवंबरमंबरं // दारुणोदारदार| मनेकानेकपाकुलं // 4 // निःशूकदंदशूकाली-कालीकृतमहीतलं // प्रतन्तसंचारं / कांतारं // 42 // माटे हे दद! हवे तुं एवी रीते बोलजे तथा करजे के जेथी या दुभायेली एवी. पण मारी पुत्री शरदऋतुमां नदीनीपेठे ताराप्रते प्रसन्न थाय. // 3 // त्यारे धम्मिल बोल्यो के हेमाताजी! सत्कर्मनी परिणतिनीपेठे जो तमो मारापर प्रसन्न थशो तो मारा सर्व मनोरयो सिक थ. शे. // 4 // एवी रीते परस्पर कथामांज लीन थयेला मनवाळा एवा तेज बन्नेए रात्रिने क्षय | पामेली जोइ बने ते साथे कमलानी निंद्रा पण नष्ट थर. // 45 // पजी ते गामना गकोरनी रजा लेश्ने प्रजाते तेन बन्नेथी अधिष्टित थयेला रथने पृथ्वीने शब्दवाळी करतोयको. चंपा नग. / रीने मार्गे चलाववा लाग्योः // 46 // पछी ते उंचां ताल अने हिंतालनां वृदोवाळां, कुदता सा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः प्रविवेश सः // 4 // युग्मं // तत्रायमनिसर्पतं / सर्प दर्पमिवांगिनं // नत्सारिणीनिर्विद्यानिः / दरे रज्जुमिव व्यधात // 45 // अग्रतोऽसौ गतोऽमान-मानुषामिषलोलुपं // मूर्त्यतरमिव प्रेत पतेा निरदत // 20 // नतकेसरसटं / तं व्यात्तवदनोदरं // मंत्रैः स मृगतां निन्ये / सु. ५२ए| खे क्लेशं करोति कः // 51 // पुरश्चरनिरैदिष्ट / प्रवहन्मदनिर्भरं // गजं स जंगमं शैल-मिव बरोना श्रामबरखाला, जयंकर मोटा घोरखोदांवाला, अनेक हाथीनथी व्याकुल थयेला, // // निर्दय सोनी श्रेणिथी श्याम थयेला पृथ्वीतलवाळा तथा घणा नृतोना संचारवान एवा वनमां ते दाखल थयो. // 40 // त्यां देहधारी अहंकारसरखा सामे थता सर्पने नत्सारिणी विद्याथी दो. रीनीपेठे तेणे दूर फेंकी दीघो. // 4 // पनी अगामी चालतां तेणे घणा मनुष्योना मांसना लोलुपी तथा यमनी जाणे बीजी मूर्तिज होय नहि एवा एक वाघने तेणे जोयो. // 50 // . ची करेली केशवाळीवाळा तथा विस्तारेल मुखवाळा एवा ते वाघने तेणे मंत्रोयीज हरिणसरखो बनावी दीधो, केमके सुखसाध्य कार्यमाटे वळी कोण क्लेश जठावे ? // 51 // पनी भागळ चालतां तेणे करता मदना समुहवाळा, जंगम पर्वतसरखा अने मोटा दांतोवाळा एक हाथीमे जो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाग्म- प्रबलदंतकं // 5 // नत्तालं व्यालमालोक्य / जीते एते नन्ने अपि // स स्माह साहसी क्रीडा रसो मम निरीक्ष्यतां // 53 // सांगोऽय समुत्तीर्य / स्थतः स महानटः // मलोमलमिवाबास्त / कुंजरं नरकुंजरः // 55 // क्रुधानिधावतस्तस्य / पुरतः स निचिदिपे // संव्यानं मस्तकारोहा५३० | त्सापराधमिव स्वकं // 55 // सिंधुरे शत्रुवत्तत्र / शुंमां कुंमलयत्यसौ // दतोर्दत्तपदः स्कंधं / त. स्यारोहन्नृकेसरी // 56 // योगिनीव स्थिरीय / तस्मिन् पृष्टमषिष्टिते // जल्ललनास्टन धाव-श्चिरं यो. // 5 // एवा जंचा हाथीने जोश्ने ते बन्ने स्त्रीने डरी गश्, त्यारे ते हिमती धम्मिले ते. जने कह्यु के तमो मारी रमतनो रस तो जुन. // 13 // परी ते पुरुषोमां हाथीसरखो सुजट सऊथ रथथी नीचे उतरीने एक मल्ल जेम बीजा मन्वने तेम ते हाथीने पडकावा लाग्यो.॥ // 55 // पनी ज्यारे क्रोधथी ते हाथी तेनी सामे दोड्यो त्यारे धम्मिले मस्तकपरथी जाणे अ. पराधी होय नहि तेम पोतानो फेंटो ते हाथीनी सामे फेंक्यो. // 15 // त्यारे हाथी शत्रनीपेठे ज्यारे पोतानी सुंढ ते फेंटापर वींटाळवा लाग्यो त्यारे माणसोमां केसरीसिंहसमान धम्मिल तेना | बन्ने दांतोपर पग मुकीने तेना मस्तकपर चमी गयो. // 56 / / पजी योगीनीपेठे स्थिर थश्ने ज्या P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि तस्थौ मतंगजः // 27 // वृथा व्यापारयामास / तस्मिन् क्रूरः करं करी // मालारूढमिव दमास्थो।। न तु शक्तोऽप्यवाप तं // 27 // स चिरं खेदयित्वैवं / दैवदुष्टमिव दिपं // मुक्त्वा च स्वरथं नेजे साव / गजः सोऽपि पलायितः // एए // पुरः संचरतस्तस्य / पाउरासीद्राशयः / / गवलः कवलोपा. | त-हरिणस्तृणलीलया / / 60 // तं वीदय रोषरक्तादं / वाजिनौ यमवाहनं / / तस्य त्रसितुमुक auN / बघावपि बनवतुः // 61 // अवमुक्तस्थः पश्चाद् / भूत्वास्य तुरगषिः / सिंहनादं तनोतिरे ते तेनी पीठपर बेठो त्यारे ते मदोन्मत्त हाथी घणा वखतसुधी कुदवा बूमो मारवा तथा दोड. वा लाग्यो. // 57 // वळी ते क्रूर हाथी तेनापते फोकट पोतानी सुंढ नगळवा लाग्यो, परंतु म. जलापर चडेला माणसने जेम जमीनपर रहेलो माणस तेम ते तेने पहोंची शक्यो नहि. // // 27 // एवी रीते ते दुर्नागी हाथीने घणो वखत खेद थापीने तथा पगी तेने छोडीने धम्मि. ल पोताना रथमां बेठो, अने ते हाथी पण त्यांथी नाशी गयो. // 55 // पजी भागळ चालतां दष्ट श्राशयवाळो तथा घासनीपेठे कोळीयातरीके उपाडेल ने हरिण जेणे एवो एक पाडो प्रगट थयो. // 60 // रोषथी लाल यांखोवान ते यमना वाहन पाडाने जोश्ने तेने डराववामाटे वा.. P.P.AC. Gunratnasuri M.s. Jun Gun Aaradhak Trust Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्म / स तथा सिंहविक्रमः // 6 // अकस्मात्प्राप्तपारी-शंकया स रजस्वलः॥ यथा नाजीगण / नश्यन् / ग वादिकं हि सः // 63 // दुष्टानप्युरगद्दीपि-मातंगमहिषानसौ // न जघान सम र्थोऽपि / जैनाः प्रायेण सहयाः // 6 // ... | ततः स पुरतो गह-नतुबायुधशालिनः // चौरानापततोऽनेका-निगाल्यैवं व्यंगावयत् // | // 65 // किमुबिता जुवं नित्वा / किं वा व्योम्नच्युता यमी // किं वा संमूर्बिमा ह्येते / तातो | धेला घोमा पण नंचा कानवाल थया. // 61 // हवे सिंहसरखा पराक्रमवाळा ते धम्मिले रथप. रथी नतरी ते पाडानी पाउल पमीने एवो तो सिंहनाद कयों के, // 6 // अकस्मात श्रावेला सिंहनी शंकाथी ते इष्ट पाडो एवी रीते तो जाग्यो के नाशतांथकां तेणे खामा तथा नमरीया. यादिकनी पण दरकार करी नहि. // 63 // उष्ट एवा पण सर्प, वाघ, हाथी तथा पामाने पोते समर्थ बतां पण तेणे मार्या नहि, केमके जैन लोको पायें करीने दयालु होय जे. // 6 // . : पनी ते पागल चालतोथको मोटा हथियारोथी शोजता अनेक चोरोने सामा आवता जो. इने विचारखा लाग्यो के, // 65 // शुं या पृथ्वीने नेदीने निकल्या ने? अयवा आकाशमाथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथै धम्मि- गर्नजाः कथं // 66 // जातिहीनैरनात्मझै-नषनिर्विरसस्वरं // सर्वतोऽवेष्ट्यत स तै-वराह च / कुक्कुरैः // 67 // रथोत्तीर्णः स विस्तीर्ण-यमदंडानुकारिणा // पाहत्य लगुडेनैकं / मलिम्बुव मपातयत् // 67 // तमेव व्रमयन् दं / स. चौरानितरानपि // त्रासयामास काकोला-निव को 533. लाहलाकुलान् / / 65 / / नश्यतस्ते जहुवर्म-धर्मशक्तिशरादिकं / / व्याधेनाकुलिताः पिब-गुवं सर्पाशना श्व // 70 // स बने त्रसितस्तेन-मुक्तैः स्वरथमायुधैः // धुतवल्लीच्युतैः पुष्पैः / करंडखर्या ने? अथवा संमूर्जिमो ? केमके गर्नज तो थाटला क्याथी होय? // 66 / / पनी कुतरान जेम मुकरने तेम हीनजातिवाळा बुद्धिविनाना अने कटु शब्दो बोलनारा एवा ते चोरोए तेने चारे कोरथी घेरी लीधो. // 67 // त्यारे ते धम्मिले स्थपरथी नतरीने विस्तीर्ण यमदमसरखी डां. गवडे एक चोरने मारीने नीचे पामी नाख्यो. // 60 // पनी तेज दंमने नमावतोथको कागमाजनीपेठे कोलाहल करता बीजा चोरोने पण त्रास आपवा लाग्यो. // 6 // त्यारे पाराधीयी व्याकुल थयेला मयूरो जेम पीछान्ना गुबाने तेम ते नाशता चोरो (पोतानां ) बखतर, धनुष, भाला तथा बाणादिक ( त्यां) छोमी गया. // 70 // पनी ते मरेला चोरोए गेमी दोघेलांते P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाग्म- मिव मालिकः // 11 // नदायुधस्तदा चौर–सेनाप्रटरनृत्पुरः // किरातवातमातंक-युक्तमुत्साह / सार्थ यन युधे // 7 // अमुं गृह्णीत गृह्णीत / मा मा नश्यत रे नटाः // मयि जीवति को युष्मान / जेष्यतीति पलापिनः // 13 // तस्य वदो महाशक्तिः / शत्यस्त्रेण विभेद सः // द्विरदः स्वरदेने 534 | व / विपदपुरगोपुरं // 14 // युग्मं // सेनान्यां वियुजि प्राणै-पाणैः शरैर्गतं // निन्ने हिम हथियारोथी माली जेम कंपावेली वेलमीमांथी खरेलां पुष्पोथी करंमीन तेम तेणे पोतानो रथ गर्योः // 11 // एवामां जयजीत थयेला ते जिलोना समुहने युष्माटे नत्साहित करतोयको ते चोरोनो सेनापति हथियार जगामीने तेनी सामे थयो, // 15 // अने बोलवा लाग्यो के अरे सुनटो! तमो आने पकडो पकडो? नाशो नहि, मारा जीवतां तमोने कोण जीती शके तेम? / / 73 // एम बोलता ते. चोरोना सेनापतिनी गती हाथी जेम पोताना दांतोयी शत्रना नगरना दखाजाने तेम. ते महाशक्तिवान धम्मिले नालाथी नेदी नाखी. // 14 // एवी रीते ते सेनाप ति ज्यारे प्राणरहित थयो त्यारे निरुत्साही थयेला ते सघला निलो त्यांथी नाशी गया. केमके | ज्यारे मस्तक चेदाइ जाय त्यारे बाकीनी इंद्रियो शुं काम करी शके ? // 15 // पड़ी ते विजयी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घम्मिः स्तके शेषैः / प्रतीकैः का धुरीणता / / 75 // सोऽथ खं चालयामास / जितकासी पुरो रयं // च / के च तद्गुणश्लाघां / विमला कमलांप्रति // 76 // वत्से शौर्यकलैवास्य / वक्ति महाकुलीनतां // प्रजवः कौस्तुभस्य स्या-न हि रत्नाकरं विना // 9 ॥असौ कलावलान्नूनं / मानं दूरेऽपि ल. स्यते // त्वमत्र द्वेषमापन्ना / स्वं क्लेशयसि केवलं // 5 पौंस्त्वे महावने लोल-खजावे चाल. नोद्यते // वल्लीव नंदत्यबला / निराधारा कियच्चिरं // 7 // अमर्तृगाजनाधारां / राछ नक्तमिव | धम्मिले पोतानो रथ आगळ चलाव्यो, त्यारे विमला कमलापते तेना गुणोनी प्रशंसा करवा ला. गी के, // 76 // हे वत्स! पानी या शूरतानी कलाज भानुं महाकुलीनपणुं जणावे , केमके रत्नाकरविना कौस्तुनमणिनी नत्पत्ति संजवे नहि. // 77 // खरेखर या धम्मिल पोतानी कळा ना बळथी बागल पण मान मेलवशे, अने तुं जो तेनाप्रते द्वेष राखीश तो केवल तुं पोताना | श्रात्माने क्लेशमां नाखीश. // 70 // चपल खजाववाळो कामरूपी वायु ज्यारे चलाववा मांडे त्यारे वल्लीनीपेठे निराधार अबला केटलोक काळ नजी शके ? // ७ए. // वळी हे पुत्री! नाररू. पी नाजनना बाधारविनानी रांधेला अन्नसरखी स्त्रीने दुःखे घटकावी शकाय एवा लफंगारूपी P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- स्त्रियं / / कदर्थयंति दुराः / पुति पल्लविकदिकाः // 70 // तत्त्वं पुत्रि समर्थापि / पुंसः स्वीकार मर्हसि // अपेदते जात्यमणि-रपि स्वर्णपरिग्रहं // 1 // त्वयदि धम्मिलो यः स / रूपवानेव केवलं // चेद्गुणेष्वनुरक्तासि / गुणज्ञे तदमुं वृणु // 72 // इत्यस्या वचनैः स्वादु-शीतलैः स. ... 536 लिखि // श्रवःप्रविष्टैनिं / धुन्वती कमला जगौ // 3 // मन्ये विस्मृतशीलासि / मातरास नवार्धका || यस्य नाम निषिघापि / यत् श्रावयसि मां सदा // 4 // किं वच्मि पुण्यहीनाई / कागमा कदर्थना करे . // 70 // माटे हे पुत्रि तुं समर्थ तां पण तारे पुरुषनो स्वीकार क. खो लायक डे, केमके जमर्दु मणि पण वर्णना स्वीकारनी अपेक्षा राखे . // 1 // वली तें जे धम्मिलने जोयो रे ते केवल रूपवानज , माटे हे गुणझ! जो तुं गुणोमां रागवाळी हो तो या धम्मिलने वर? // 2 // एवी रीतना तेणीना स्वादिष्ट बने जलसरखां शीतल वचनो कर्णमां जवाथी मस्तक धुणावती कमला बोली के, // 73 / / हे माता! हुं धारं नु के घडपण नजीक श्राव्याथी तुं शीलने विसरी गश् बुं, केमके तने निषेध कर्या बतां तुं मने थानुं नाम हमेशां संगलाव्या करे . // 4 // हुं शुं कहुं ? खरेखर हुं पुण्यहीन डं, केमके देवे मने कल्पवृक्ष दे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. un in Aaradhak Trust Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः यास्मि देवेन वंचिता // प्रदर्य सुमनःशालं / ददता कलिपादपं / / 75 // सुपात्रे वा कुपात्रे वा / निर्विशेषाग्रहा हहा // रसझा न हि किं तूर्वी / दर्वी जिह्वा मुखे तव // 6 // नामाप्यस्य न में | प्रीति-कारि दूरेऽस्तु दर्शनं // धूमोऽप्युटेजको वढे-रस्त्वालिंगनमंगिनां // 7 // गर्दास्थानं 537 | हि गार्हस्थ्यं / मातः कुपुरुषैः सह // कंटकैरेव विध्यंते / बब्बूलममाश्रिताः // 7 // सनर्तृका | अपि परै-धृष्याः स्युरधरस्त्रियः // सेव्यते तरुणालीटा / अपि मँगैलता न किं / ए // नैकाकि खाडीने क्लेशरूपी वृत पापीने ठगी . // 5 // अरेरे! सुपात्र अथवा कुपात्रना तफावतने नहि जाणनारी या तारा मुखमा रहेली जीभ रस जाणनार) नथी, परंतु फक्त चाटवी (कडछी) सरखी जे. // 6 // या धम्मिलनु नाम पण मने प्रीति करनारं नथी, त्यारे तेनुं दर्शन तो दूर रा. केमके अमिनो धूमामो पण प्राणीनने ज्यारे कंटाळो आपनारो मे, त्यारे तेना स्पर्शनी तो वातज शं. करवी? // 7 // माटे हे माता! कुपुरुषोसाथे करेलो गृहस्थावास निंदवालायक ने, केमके जेल बावळना वृदानो आश्रय करे जे ते कांटा थीज वांधाय . // 7 // जरिवाळी | एवी पण बीजी नादान स्त्रीनने परपुरुषो हेरान करे , केमके वृदने वळगेली वेलडीने पण शं P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- न्यपि जीयेत / साविकी स्त्री कचित्पुनः // एकापि श्वापदौवेन / व्याधी जेघीयतेऽपि किं // 50 // सार्थ शीलवत्या महासत्या / मातचिंतय साहसं // क्रूरानपि नृपादीन् या / स्कवनिरगर्ल्सयत् // 1 // दीपेऽत्र जरते क्षेत्रे | मध्यमंमलमंडनं // लक्ष्मीनिवासमित्यस्ति / नगरं प्रीतनागरं ॥एशा स्था. 537 नं हारिविहाराग्रे / प्राप्य प्रमुदिता श्व / / ननृतुः किंकिणीनादा-नुगं यत्रानिशं ध्वजाः // ए३ // राजारिमर्दनस्तत्र / सुत्रामेव त्रिविष्टपे // कः परबलोबेदे / चक्रे राजन्वतीः प्रजाः // ए४ // का. जमराज सेवता नथी? // जय // परंतु हिमतवान स्त्रीने एकली बतां पण परपुरुषो हेरान करी शकता नथी, केमके एकली वाघण पण शुं पशुनना समुहथी जीताय ? // 50 // वळी हे मा. ता! तुं महासती शीलवतीनी हिमतनो विचार कर? के जेणीए क्रूर एवा राजाधादिकोने पण निम्री नाख्या . // 1 // श्रा जंबूद्वीपमा चरतक्षेत्रमा मध्यममलने शोजावनाएं श्रने खुश थयेला पुरजनवाचं लक्ष्मीनिवास नामे नगर ने. // ए॥ मनोहर मंदिरोना अग्रभागमां स्थान मेलवीने जाणे खुश थ. | होय नहि तेम ज्यां हमेशां ध्वजा घुघरीनना नादने अनुसरतुं नृत्य करती हती. // 73 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ 530 धम्मि- मं पूरयता विश्व-कामितान्यमितौजसा // निराशो नवरं तेन / तेने स्तेनासतीगणः॥ 55 // 3 // न्यः सागरदत्तोऽजू-तत्र श्रीद श्व श्रिया // संख्यानं तानवं निन्ये / पराय॑मपि यनैः / / ए६:॥ विनयश्रीरिति ख्याता / नयश्रीखि देहिनी // स्थेयसी मेरुचूलेव / प्रेयसी तस्य चालवत् // ए॥ | समुह व गंजीरो / न पुनर्जमिमालयः // समुद्रदत्त श्त्यासी–त्तयोः पुत्रः पवित्रधीः // 7 // शशिनः स्पर्धया वर्ध-मानः प्राप्तोऽखिलाः कलाः // वाप पुष्पचापस्य / सवयः स वयः क्रमात् देवलोकमां जेम इंद्र तेम त्यां अरिमर्दन नामे राजा हतो, के जेणे हुशियारीथी शत्रुना लश्करनो नाश करीने प्रजाने जाहोजलालीवाळी करी हती. // ए४ // ते महाप्रतापी राजाए जगतना मनोवांगितो सारी रीते संपूर्ण कर्या हता, परंतु एटर्बु विशेष के तेणे चोरो तथा कुलया स्त्रीनना समुहने निराश कर्या हताः // 5 // त्यां लक्ष्मीथी कुबेरसरखो सागरदत्त नामे शेव हतो, के जेना धने परार्धनी संख्याने पण सूक्ष्म करी नाखी हती. / / ए६ // तेने देहधारी नयलक्ष्मीसरखी तथा मेरुनी शिखरपेठे स्थिर एवी विनयश्री नामनी प्रख्यात स्त्री हती. // ए.॥ .समुज्नीपते | गंजीर, परंतु जडताना स्थान विनानो एवो तेजने पवित्र बुध्विाने समुदत्त नामे पुत्र हतो.॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ धाम्म | ए // जोगयोग्योऽथ तातेन / महोत्सवपुरस्सरं / पर्यणायींद्रदत्ते न्य-पुत्रीं शीलवतीति सः // 2500 // पितुः प्रसादानिश्चितः / सततं स तया सह // तृतीयपुरुषार्थस्य / रसनिःस्पंदमन्वत् | // 1 // अथ तस्य पिता पश्यन् / जरामासेषीमिति // अधीतविस्मृतमिवा-वसाने व्यमृशनिशः 240 // 2 // यहो सुरक्षितमपि / दीयमाणं दणे दणे / अंजलिस्थं जलामिव / निष्टामायुरियाय मे | // 3 // इदं कृतमिदं कृत्य-मिति ध्यायंत एव हि // आक्रांताः स्मः कथं वैरि-धाट्येव जरयानया // // ते वृधि पामतोथको चंद्रनी स्पर्धाथी सर्व कला मेलवीने अनुक्रमे कामदेवनी मित्रसरखी वयने प्राप्त थयो. // ए // त्यारे तेने नोगोने योग्य जाणीने पिताए महोत्सवपूर्वक इं. द्रदत्त शेग्नी शीलवती नामनी पुत्रीसाथे परणाव्यो. // 2500 // पनी पितानी कृपाथी ते नि: श्चित थश्ने हमेशां तेणीनी साथे वीजा पुरुषार्थना रसना करणने अनुनववा लाग्यो. // 1 // हवे तेनो पिता घरपणने नजीक श्रावतुं जोश्ने अन्यासबाद जाणे विसरी गयो होय नहि ते. म रात्रिने जेडे विचारखा लाग्यो के, // 2 // यहो! सारी रीते रक्षण कर्या उतां पण अंजलिमां रहेला जलनीपेठे दणे दणे नाश पामतुं मारु श्रायु खलास थवा श्राव्युं . // 3 // अरे! अ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. lindin AaradhakTrust . Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 4 // श्रस्तं रूपं बलं बुप्तं / रुहः कंठो हृता रदाः // जरेयताप्यतुष्टा मे / चेतनामपि लिप्सते. // 5 // हरित्केशांकुरान् पाक-पांकुरांस्तन्वती जरा // तृष्णां संवर्धयत्येव / चैत्रानंपसहोदरा // | // 6 // तदस्ति यावदायुर्मे / पारं तारुण्यवारिधः // परलोकहितं किंचि-त्तावत्कुर्वे समाहितः / / | // 7 // मया श्रियोजनाद्भोगाचार्थकामौ कृतार्थितौ // अथैतव्यमूलस्य / धर्मस्यावसरो मम मोए था कर्यु, हजु था करवान बे, एम हजु ज्यां थमो विचारीये जीये तेवामांज वैरीननी धामनीपेठे या जराए अमोने घेरी लीधा बे. // 4 // मारुं रूप नष्ट कर्यु, बल लोपी नाख्युं, कंठ रोकी दीधो तथा दांतो पामी नाख्या, एटलाथी पण संतोष न पामीने या जरा मारी चैतन्यश. तिने पण ले लेवा श्खे . // 5 // चैत्रमासना ताप सरखी था जरा केशोरूपी लीला अंकुरा. नने पाकवाथी पांसुर बनावीने उलटी तृष्णाने वधारे जे. // 6 // माटे युवावस्थारूपी समुडना किनारासरखं ज्यांसुधी मारुं थायु जे, त्यांसुधी हुं सुखे समाधे कईक परलोकनुं हित कलं. // 7 // में लक्ष्मी नपार्जन करीने अर्थ तथा कामने तो कृतार्थ कर्या , हवे था ऽव्यना मुलरूप धर्मकार्य करवानो मारो अवसर जे. // 7 // वल्प कालनी मुसाफरीमाटे पण लोको ज्यारे सगवम P.P.Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ घमिन // // प्रयाणेऽप्यल्पकालीने / जनाः कुर्वति सूत्रणां // परयोकश्याणे किं / निश्चिंता हंत जंत. | वः // 5 // सामान्य रिपुनीत्यापि / न निद्रांति सुखं जनाः // नित्यं मृत्युरिपुः पार्था / मूढाः ख. स्थास्तथाप्यहो // 10 // तद्यावन्न जराज्येति / तावन्निजहिते यते // न पालिः शक्यते बधुं / प. यःपूरे पसर्पति // 11 // . . ...... शति निश्चित्य स झाती-नापृच्छ्य तदनुझ्या // कुटुंबनारं तनवे / धुरंधर श्व न्यधात् // करे , त्यारे अरेरे! परलोकनी मुसाफरीमाटे प्राणीन केम बेदरकार रहेता होशे! // // ज्यारे साधारण शत्रुना जयथी पण लोको सुखे निद्रा करी शकता नथी, त्यारे या मृत्युरूपी शत्रु हमेशां पासे रह्या जतां पण मूर्ख लोको स्वस्थ थ बेशी रहे . // 10 // माटे ज्यांसुधीमां था जरा न भावी पहोंचे त्यांसुधीमा हुं मारा हितमाटे प्रयत्न करूं, केमके जलन पर अाव्या.प. बी पाळ बांधी शकाती नथी. // 11 // . एम निश्चय करीने ते शेने पोताना संबंधितनी रजा लेश्ने तेमनी अनुमतिथी वृषनपर | जेम तेम पोताना पुत्रप्रतै कुटुंबनो चार स्थापन कर्यो. // 12 // पनी ते बुध्विान शेने संसारथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 12 // स्वयं च नवनिर्वृ त्तेः / कर्ममर्माविधं बुधः // सुगुरुत्यस्तदा दीदा-माददे पारमेश्वरीं // / // 13 // तप्यमानस्तपस्तीवं / दूरयन चरितानि सः // नपात्तपुण्यपाथेयः / सौधं नेजे सुधानुजां | // 14 // धुरं समुद्रदत्तोऽपि / पैत्रिकी पितृवद्दधौ // पितुस्तुव्या हि सत्पुत्रा / न बीजादसहक्कलं 543 | // 15 // अथान्येारसौ प्रात-जर्जातनिद्रात्ययः श्रियं // समर्जयितुमूर्जस्त्रि-मना एवमचिंतयत् | // 16 // कोटिशोऽस्ति गृहे द्रव्यं / तातपादैरुपार्जितं / मातुः स्तन्यमिवेदानीं / तन्न लोगोचितं | | विरक्त थइने सुगुरुपासेथी कर्मोना मर्मस्थानने नेदनारी जैनदीदा ग्रहण करी. // 13 // पछी ते तीव्र तप तपतोयको बने पापोने दूर करतोयको पुण्यरूपी नातुं मेलवीने देवलोकमां गयो.॥ / / 17 // हवे समुद्रदत्ते पण पितानीपेठेज पोताना पितानी पदवी धारण करी, केमके नत्तम पु. त्रों पितासरखाज होय बे, केमके बीजथी फळ भिन्न पमतुं नथी. // 15 // पछी एक दिवसे प्रनातमा निद्रा नड्याबाद हिमती मनवाय ते समुद्रदत्ते धन कमावामाटे विचायु के, // 16 // घ. रमां तो मारा पिताजीए उपार्जन करेवू क्रोडोगमे द्रव्य बे, परंतु माताना स्तन्यनीपेठे हवे मारे | ते जोगववालायक नथी. // 17 // वळी पिताए मेळवेली लक्ष्मीना दान अने नोग सहेवा ने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- मम // 17 // सुकरौ दाननोगौ स्तो / जनकोपार्जितश्रियः // न तत्र गर्व कुर्वति / स्वबाहुबलशाः / लिनः // 17 // विदेशमपि गत्वा त-दर्जयिष्याम्यहं धनं // गृहहट्टगतायात-भवेदाजीविकैव य त् // 15 // एवं स मांसलोत्साहो / देशांतरयियासया // प्रियां शीलवती शील-शालिनीमन्व५४४ जिझपत // 20 // ततः शीलवती प्रोचे / दरदश्रुविलोचना // नाथ त्वदिरहं सोढुं / न समर्था | स्मि सर्वथा // 21 // वरं वह्निरसंदेहं / देहं दहति यो पुतं // नित्यमंतवलंबन्नो / न पुनर्विरपरंतु पोताना भुजाबलथी शोलता पुरुषो ते माटे गर्व करता नथी. // 17 / / माटे परदेशमां प. णा जश्ने हं धन उपार्जन करीश, केमके घर घने दुकानवच्चे जवा भाववाथी तो मात्र बाजी. विकाज चाले जे. // 10 // एवी रीते ते अत्यंत उत्साही थश्ने देशांतर जवानी श्वाथी पोता. नी शीलथी शोजिती शीलवती नामनी स्त्रीनी सलाह लेवा लाग्यो. // 20 // त्यारे शीलवती यांखोमांथीयांसु पामतीथकी बोली के, हे नाथ! हुं आपनो वियोग सहन करवाने सर्वथा अ. समर्थ बु. // 21 // अमि सारो के जे संशयविना शरीरने जलदी बाळी नाखे, परंत हमेशां . | तःकरणमां गुप्त रीते बळतो एवो विरहरूपी अनि सारो नहि. // 25 // चेक विवाहना दिवसथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमि हानलः // 12 // श्रापाणिपीडनात्प्रौढिं / प्राप्तो यः प्रेमपादपः // जवदृष्टिसुधावृष्टिं / विना मंक्षु स शुष्यति // 23 // त्वया समं समेष्यामि / स्वामिन्नहं बलादपि // श्याग्रहैकवाचाला / समुद्रः प्रत्यवोच तां // 24 // नर्तृ चित्तसरोहंसि / प्रत्युत त्वां सहाददे / / परं सिरीषमृदंग्या / विदेशः क्वे. शकृत्तव // 25 / / पुरुषः परुषः सर्व / सहते पथि न स्त्रियः // त्रासेऽपि तासां न त्राणं / किंतु | चिंतेव केवलं // 26 // ततस्तिष्ट त्वमत्रैव / त्वयि प्रेमवशंवदः // दूरादपि वलिष्येऽहं / पारापत . थापणू जे प्रेमरूपी वृत वृधि पाम्युं चे, ते हवे आपनी दृष्टिरूपी अमृतनी वृष्टिविना जलदी सू. का जशे. // 23 // माटे हे स्वामी! हुं तो हरथी पण यापनी साथेज यावीश, एवी रीते फक्त आग्रहथीज बोलती एवी ते शीलवतीने समुऽदत्ते कडं के, // 24 // हे जरिना चित्तरूपी तनावपते हंसीसरखी : जो के तने हुं साथे ले जनं, परंतु सरसवना पुष्पसरखी कोमळ शरीर. वाळी तुंबे, माटे तने परदेशमा मुःखी थर्बु पडशे. // 25 // पुरुष कग्नि हृदयनो होवाथी मा. मां सघg सहन करे , परंतु स्त्री सहन करी शकत नथी, मर वखते. पण तेजने कई श. रणरूप नथी, केवळ तेजने चिंताज थया करे . // 26 // माटे तुं यहींज रहे, हुं तारामां - - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- व ध्रुवं / / 27 // सदा मयि हृदंतस्थे / का ते विरहनीरुता // मामकी मा मुचः शिदा-मिमां प्रिमा यसखीमिव // // कुर्याः प्रेयसि दीनसाध्वतिथिषु खस्योचितां सतियां / दानाद्यैः परितोषयेः परिजनं श्वश्रू च सम्यग्गजः।। नेपथ्यं परिवर्जयेः परमनोधैर्यापनोददमं / प्रायेणावसथे ख एव 556 निवसेः शीलं परिपालयेः // 25 // श्याश्वास्य प्रियां याव-दात्तभांडश्चचाल सः // तावत्सदैन्यमेयोचे / सोमतिः सुहृद्दिजः // 30 // प्राप्तौ कदाचिदावां नो / वियोगं जन्मतो मिथः // अ. मवाळो हौवाथी खरेखर पारापतनीपेठे दृरथी पण पागे वळीश. // 7 // वळी तारा हृदयमां हैं हमेशां बेठो बुं, तो पछी तने विरहनो डर शानो ? वळी प्रिय सखीसरखी या एक मारी शि. खामणने तुं डोमीश नहि. // 2 // हे प्यारी! तुं दीन, साधु बने अतिथि प्रते पोताने न. चित सत्कार्य करजे, दानयादिकथी परिवारने संतुष्ट करजे, तथा सासुनी सम्यक प्रकारे सेवा का रजे, वळी परना मननी धैर्यतानो नाश करनारां वस्त्रावृषणनो त्याग करजे, तथा प्रायें करीने पो. तानाज घरमा रहेजे, अने शील पाळजे..॥ 27 // एवी रीते पोतानी स्त्रीने आश्वासन पापीने सरसामान लेश्ने जेवामां ते चालवा. लाग्यो, तेवामां तेनो मित्र सोमति नामनो ब्राह्मण तेनी . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमि धुना त्वं धृतस्नेह-बंधनश्चलितः सखे // 31 // हृद्य यद्यनुजानासि / तत्प्रतिष्टे त्वया सह // तेने. त्यालापितः श्रेष्टी / प्राह स प्रहसन्मुखः // 32 // सखे उग्धे सिताखळं / घृतपूरांतरे घृतं // कर नमध्ये कर्पूर-मेलाचूर्ण जलांतरे // 33 // यथा तथा प्रतिष्टासौ / मयि तुष्टयै त्वदागमः // वि. 547| देशोऽपि स्वदेशः स्या-द्यन्मे संनिहिते त्वयि.॥ 34 // एवं समुदत्तेना-ज्यनुज्ञातसहागमः | // विप्रः प्रयाणसजोऽन-दढो मैत्र्यमकृत्रिमं // 35 // प्रमाणयन्निमित्ताद्य / पश्यन् शकुनसौष्टवं पासे श्रावी बोल्यो के, // 30 // हे मित्र! चेक जन्मथी श्रापण बन्ने परस्पर वियोग पाम्या नथी, परंतु स्नेहबंधनथी बंधायेलो तुं बाजे चालतो थाय ने. // 31 // माटे जो तुं कहे तो हुँ पण ता. रीसाथे चावू, एवी रीते तेणे कह्याथी शेठ पण हसते चहेरे बोल्या के, // 35 // हे मित्र! जेम दूधमां साकर, घेवरमां घी, करंजमां कपूर, तथा जलमां जेम एलचीन चूर्ण, // 33 // तेम मारी मुसाफरीमां तारं साथे यावq मने हर्ष करनारंबे, केमके जो तुं मारी साथे होश तो परदेश पण मने स्वदेशजेवोज थर पडशे. // 34 // एवी रीते समुद्रदत्ते साथे थाववानी अनुझा देवाथी ते ब्राह्मण पण प्रयाणमाटे तैयार थयो, अहो! मित्रा तो खानाविकज होय ! // 35 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्म- // प्रयाणं विधिवच्चक्रे / समुद्रः शोभने दिने // 36 // पद्ममत्र श्रियः सद्म / नालस्य प्रसरं ददत् / // याप्रयाणात्ततोऽत्याजि / तेनाप्यालस्यवश्यता // 37 // अश्रीकमेव स्वविति / श्रीयुग जागर्ति वारिज // स वर्त्मनि धनश्रीक / श्यन्नित्यजागरः // 30 // एवं मार्गमतिकाम-नविजिनः प्र 547 | याणकैः // ययौ यियासितं स्थानं / श्रेष्टिमः सुहृदा सह // 35 // तत्र वाणिज्यवैयध्याद् / व्रतो पजी समुद्रदत्ते निमित्तयादिकने प्रमाणरूप गणीने तथा शुभ शकुन जोश्ने शुग दिवसे विधिपू. र्वक प्रयाण कयु. / / 36 / नालनो विस्तार अापतुं कमल लदगीना स्थानरूप थाय बे, एम वि. चारीने तेणे पण प्रयाणना दिवसथी मांझीने बालसना वशपणानो त्याग कर्यो. // 37 // श्री. क एटले विकखरतारूपी शोजाविनानुज कमल ने एटले बीमार जाय , परंतु श्रीयुक एटले विकस्वर थयेबु कमल जागे के एट्ले प्रफुल्लित थाय , एम जाणीने घणी लक्ष्मीवाळो ते समद्रदत्त पण मार्गमां हमेशां जागतो रहेतो हतो. // 30 // एवी रीते अविजिन्न प्रयाणथी मार्ग नं. गीने ते श्रेष्टिपुत्र मित्रसहित मनोवांछित स्थाने पहोंच्यो. // 35 // जेम देवलोकमां गयेलो प्राणी सुखथी तेम त्यां व्यापारमां लीन थवाथी तेणे जता एवा घणा दिवसो पण जाण्या नहि. / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Ummerocineleuote Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः अपि न जझिरे // यांसों दिवसास्तेन / स्वःप्राप्तेन सुखादिव // 40 // निर्व्यापारः पुनर्विप्रः / सः / साष्टदिवसात्यये // स्मरनिज परिजनं / विजने श्रेष्टिनं जगौ / / 41 // स्वस्थानस्य विमुक्तस्य / ब वुर्बहवो दिनाः // अतो ममाक्षिणी जाते / स्वजनालोकनाकुले // 4 // अंत्र मित्र स्खलोनेन 54 / घटते ते चिरं स्थितिः // दिवसे दिवसे गब-नस्ति मे वत्सरः पुनः // 43 // तन्मामादिश ये नाहं / संगने स्वजनैर्निजैः // ध्यातर्विध्यः करीवात् / न स्थाः दणमुत्सहे / / 44 // श्रेष्टयन्यधा| // 40 // परंतु त्यां कई पण व्यापारविना नवरो बेठेलो ते ब्राह्मण सात बाठ दिवसो गयावाद पोतानुं कुटुंब याद थाववाथी एकांते शेठने कहेवा लाग्यो के, // 41 // मने मारूं घर गेडये घ. णा दिवसो थया ने, माटे हवे तो मारी थांखो मारा कुटुंबने जोवाने यातुर थयेली . // 4 // वळी हे मित्र! धनना लोनथी तारे तो यही घणा वखतसुधी रहेवार्नु लागे , परंतु मारे तो दिवसे दिवसे एक वर्ष जवाजेवू थ पडयं . // 43 // माटे मने तुं रजा आप? के जेथी मारा कुटंबने हं जश् मधं, केमके याद थावेल ने विंध्याचल जेने एवा हाथीनीपेठे हुँ यहीं कणवार पण रहेवाने खुशी नथी. // 4 // त्यारे शेठ बोल्या के हे मित्र! तुं था पराया माणसनीपेते P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 250 धाम्म- दयस्यैतत् / किमन्य श्व नापसे // अस्ति कोऽपि बलात्कारः / किं बालसुहृदि त्वयि // 45 // तिः / | ष्ट वा गल वा खैरं / पूना कान निरर्थका // नेदिष्टो वा दविष्टो वा / वं मे हृद्येव वर्तसे // 46 // चेद्यासि तदिम लेख-मिदमानरणं हृदः // गृहाण तत्र च गतो / मत्प्रियायाः समर्पयेः // 4 // | वस्तुयं तदादाय / विप्रः विप्रमथाचलत् // सत्वरं स पुरं प्राप्तः / समगस्त परिबदं // 4 // ते | लेखाचरणे मित्रा-पिते कृत्वा सुसंचिते // स्वयं स्नात्वा च जुक्त्वा च / सौधस्योपरि सोऽस्वपीत् | केम बोले ? केमके बालमित्र एवो जे तुं, तेनापते शुं कई मारो बलात्कार ? // 45 // ता. री खुशीमुजब तुं रहे अथवा जा, या बाबतमां तारे फोकट शामाटे पूवं जोश्ये? तुं नजीक हो अथवा दूर हो, तोपण तुं मारा हृदयमांज वसी रह्यो इं. // 46 // हवे जो तुं जाय ने तो था मारो कागल थने मारा हृदयतुं यानूषण तुं ग्रहण कर? अने त्यां जश्ने ते बन्ने वस्तु मारी प्रा. णप्रियाने पापजे. // 7 // पनी ते ब्राह्मण ते बन्ने वस्तुन लेश्ने त्यांथी चालतो थयो, तथा तु. स्त पोताना नगरमां जश्ने कुटुंबने मल्यो. // 40 // मिते आपेला ते कागळ तथा आनुषणने | सारी रीते पेटीमां मूकीने पूपोते स्नान र्वक नोजन करीने घरने जपले मजले सुतो. // 40 // ह. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // // प्रियमित्रं समायातं / श्रुत्वा सा शीलवत्यपि // दयितोदंतजिज्ञासु-स्तस्य मंदिरमाययौ // 50 // क स विप्रवरोऽस्तीति / तयाबि परिबदः // तेनोचे सांप्रतं नुक्त्वा / गृहोज़ शयितो. ऽस्त्यसौ / / 51 // 251 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य तृतीयो नागः समाप्तः // | वे ते शीलवती पण पोताना नरिना मित्रने श्रावेलो जाणीने तेमनो समाचार जाणवानी इ. | बाथी तेने घेर यावी. // 50 // ते उत्तम ब्राह्मण क्यों ? एम तेणीए तेना परिवारने पूज्यं, यारे परिवारे कयुं के हमणाज नोजन करीने घरने उपले माळे सुता . // 11 // // एवी रीते श्रीधम्मिलचरित्रनो त्रीजो नाग संपूर्ण थयो . // P.R.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23 न // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य नाषांतरोपेतस्य तृतीयो नागः समाप्तः // H P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust