________________ सार्थ/ धाम्म। स्य // 46 // ततो जवविरक्तं तं / ज्यायानृषिरदीदयत् // अशिदयच्च निःशेषं / साध्वाचारं महो. द्यमः // 4 // राजकार्य समुत्सृज्य / स्वकार्य कर्तुमुद्यतं // तमेवागलदत्तं मां / विधि धार्मिक |म्मिल // 4 // श्यं ब्रांतिरयं मोहो / मांद्यमेतदयं नमः॥ कदाग्रहोऽयं यत्स्त्रीणा-मंगीकारः 465 | सुखाशया // 4 // योषित्परावृतिनवं निशम्य / सोढं मया कष्टकदंबमेवं // यानवानप्यनिशं म हेला-विलासजलीन्निरनेद्यधैर्यः // 20 // मनोहर वहाणवडे तारो? // 46 // पनी संसारथी विरक्त श्रयेला एवां ते अगलदत्तने मोटा मु. निए दीदा थापी, तथा खूब महेनत लेश्ने तेने सघळो साधुनो श्राचार शिखयो. // 4 // हे धार्मिक धम्मिल! एवी रीते राजकार्यने गेमीने यात्मकार्य करवामां नद्यमवंत थयेला एवा मने ज तारे ते अगलदत्त जाणवो. // 40 // सुखनी आशाथी स्त्रीननो जे स्वीकार करखो ते ब्रांति, मोह, मूर्खा, ब्रम तथा कदापहरूप जे. // 4 // एवी रीते में कष्टोनो समुह सहन कर्यो बे. माटे हे धम्मिल! तुं पण स्त्रीना परानवथी थता कष्टने सांजलीने हमेशां स्त्रीजना विलासरूपी नालांथी न भेदी शकाय एवा धैर्यवाळो था? // 50 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust