________________ सार्थ धम्मि एवं मुनिमुखाद्योषा-दोषानाकर्ण्य दुःखितः // अद्याप्यदीपजोगेबः / प्रत्यनाषत धम्मिलः // 51 // महात्मन्नेकरूपाः स्युः / किं समस्ता अपि स्त्रियः // समाः समग्रा नांगुल्यो-ऽपि हि पा. णौ नृणां यतः // 5 // यासां कुदीमुरीचक्रु-र्जिनचक्रधरादयः // जंगमा रत्नखनय-स्ता निं. 466 | द्याः किमु योषितः // 53 // विषवृद श्वापास्यो / बष्टशीलः पुमानपि // कल्पवख्य श्वोपास्याः | सुशीला महिला अपि // 14 // कुशीलयैकया नार्या / नार्याः किं सकला अपि // लवणोद एवी रीते मुनिना मुखथी स्त्रीना दोषो सांजलीने दुःखी थयेलो धम्मिल हजु पण नोगोनी श्वा दीण न थवाथी बोल्यो के, // 51 // हे महात्मन् ! शुं सघळी स्त्रीने एकसरखी होय ? केमके माणसोना हाथनी बांगलीन पण सघळी एकसरखी होती नथी. // 55 // जेनी कु. दिनमां जिनो तथा चक्रवर्तीयादिको नत्पन्न थया , एवी जंगम रत्नोनी खाणसरखी ते स्त्रीन केम निंदनीक होई शके ? // 53 // शीलथी व्रष्ट थयेला पुरुषने पण फेरी वृक्षनीपेचे दर तज. वो जोश्ये, तथा शीलवंती स्त्रीननी पण कल्पवल्लीननीपेठे उपासना करवी जोश्ये. // 24 // एक को कुशील स्त्रीथी शुं सघळी स्त्री कुशील होश् शके ? केमके लवणसमुऽनुं जल खारूं | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust