________________ साथ धम्मि- जले दारे / न दारमखिलं जलं // 55 // स्नानाशनादिकं सौख्यं / धर्मो देवार्चनादिकं // गृहं विना गृहस्थस्य / स्याद्यथावसरं कथं // 26 // शिवशब्दो हरश्रेयो-मोदमुख्यार्थनागपि // वि. ना कुंडलिनी शक्तिं / प्रयाति शवरूपतां // 27 // बहुप्रियाः स्त्रियो नैव / दृश्यंते पुरुषा यथा // 467 | मृतप्रियाः पुनः पाणि-ग्रहं पुंवन्न कुर्वते // 27 // नरा हि नरकं यांति / सप्तमं न पुनः स्त्रियः // ननयेषामपि प्रोक्तः / श्रुते मोदगमः समः // एए / सलकाः संवृतांगाश्च / मृदुचित्ता मृदृक्तयः होवाथी शुं सघj जल खारं होश् शके ? // 55 // स्नान भोजन आदिक सुख तथा देवपूजादि. क धर्म घरविना गृहस्थीने योग्य अवसरे केम थर शके ? // 56 // 'शिव' शब्द महादेव. कल्याण तथा मोद यादिक अर्थवाळो होवा उतां पण इस्वविना शवरूप थ जाय . // 27 // जेम पुरुषो घणी स्त्रीजवाळा देखाय , तेम स्त्रीन घणा पुरुषोवाळी देखाती नथी, वळी ते स्त्री. नजारना मृत्युबाद पुरुषनीपेठे पुनलम पण करती नथी. // 20 // वळी सातमी नरके पण पुरुषो जाय , पण स्त्रीने जती नथी, अने मोक्षे जवानुं तो बन्नेने शास्त्रमा तुल्य कां // // // लावाळी, गोपवेलां अंगोवाळी, कोमल हृदयवाळी, मृदु वचनोवाळी तथा परुषोधी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasun M.S.