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________________ धम्मि- // धर्मकर्योऽधिकं पुन्यः / किं निंद्यते त्वया स्त्रियः // 60 // सतीनां चरितं हृद्यं / लोके बुधजः / मार्ग ना अपि / वीदय धुन्वंति मूर्धानं / दृष्टांतेन धनश्रियः // 61 // तथाहि - समस्तवस्तुविस्तार- सारसमसमन्विता // विशालास्ति पुरी ख्याता-ऽवंतिमंमलमंझनं // 6 // 460 जितारिस्तत्र जपोऽनु-द्यस्य जीवितकारणं // याज्ञां शिरसि नृपाला / मौलिमुत्सृज्य बिभ्रति // // 6 // श्रेष्टी सागरदत्तोऽत्रा-उजवद् सुवनविश्रुतः // धनेशधनितागर्व-सर्वकषधनोचयः // 3 // अधिक धर्म करनारी एवी स्त्रीनने आप शामाटे निंदो गे? // 60|| था दुनियामां सतीननं मनो. हर चरित्र जोश्ने धनश्रीना दृष्टांतथी पंमितो पण पोतानां मस्तक धुणावे . / / 61 // ते धनश्रीन दृष्टांत कहे - सघळी वस्तुनां विस्तारवाळां मनोहर घरोवाळी तथा अवंतीदेशने शोनावनारी विशाला नामनी एक प्रख्यात नगरी 3. // 6 // त्यां जितारी नामनो राजा हतो, के जेनीयाडाने जी. वितना कारणरूप मानीने राजा मस्तकपर मुकुट पण तजीने धारण करता हता. // 6 // ते नगरमां कुबेरना धनवानपणाना गर्वने दूर करनारा धनना समुहवाळो अने जगतमा प्रख्यात साः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaraunak Trust
SR No.036432
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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