________________ सार्थ 464 धम्मि- // 41 // मायाखानिर्मषासत्रं / वैरस्योत्पत्तिऋमिका // कुसंगरंगो दुर्बुधि-सीमा सीमंतिनीजनः / / // 42 // आऽियंते जमा एव / योषितः सुखवांउया // हुताशनाशया गुंजाः / शीतार्ता व वान: सः॥ 43 // महिलास्नेहममानां / मदिकाणामिवांगिनां // सत्पदाबलहीनानां / मृत्युः संनिहितो | ध्रुवं // 44 // प्रनो वैषयिकं मोहं / मम त्वत्संगमोऽधुना // नुनोद कतकदोद / श्व काबुष्यम जसः // 45 // तत्प्रसीद जवांभोधौ / निमऊतमिमं जनं / चारित्रचारुपोतेन / निर्माय व ता. थी. // 41 // वळी ते स्त्रीन कपटनी खाणसरखी, जूगश्नी दानशालासरखी, वैरनी जन्मभूमीतु. व्य, कुसंगना रंगवाळी तथा उर्बुधिनी हदसरखी जे. // 45 // जेम ठंडीथी पीडाता वांदरान अ. मिनी बाथी चणोठीन एकली करे , तेम मुर्ख माणसोज सुखनी श्वाथी स्त्रीनने ग्रहण करे // 3 // घृतमां पडेली माखोनीपेठे स्त्रीना स्नेहमां पासक्त थयेला तथा उत्तम पदाना बलथी रहित थयेला पुरुषोनुं मोत नजदीक आवे . // 44 / / हे नगवन् ! कतकफलनुं चूर्ण जेम जलनो मेल दूर करे , तेम थापना संगमे हाल मारा विषयसंबंधी मोहने दूर कयों ने // 4 // माटे जवसमुष्मां मुबता एवा या प्राणीपर आप कृपा करो? तथा निर्यामकनीपेठे चारित्ररूपी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust