________________ धम्मि नां / मंक्षु लदीचकार मां // 16 // तत्प्रहाराकुलाऽनन्य-शरणा त्वां प्रपेदुषी // तद्दोष्मन्नवलां मा क्रोडी-कृत्य मां रद मारतः / / 99 // इत्युक्त्वागलदत्तस्य / पादयोर्निपपात सा // कथंचन समु. बाप्य / तेनेति प्रत्यबोध्यत // 7 // सुधावेणिसदृग्वाणि / यदनाणि त्वया मम // प्रबलप्रेमपा थोधेः / स वीचीनिचयः खलु // 7 // ध्यानाडूपातिगात्सुनु / निवृति योगिनो विदुः // यहं तां तव रूपस्थ-ध्यानादेवाप्नुवं ध्रुवं // 70 // परं गैरेयगौरांगि / स्थातुर्गुरुकुले मम // न हि नामां. ने फेंकता एवा तने जोइने जाणे स्पर्धावाने थयो होय नहि तेम कामदेव मने कंपित शरीरवाळीने पोताना बाणोथी मारवा लाग्यो . // 76 // तेना प्रहारोथी व्याकुल थयेली तथा नि राधार एवी हुं तारे शरणे यावेली , माटे हे वीर! मने अबलाने थालिंगन देश्ने कामदेव थी मारुं रक्षण कर ? / / 7 / / एम कहीने ते अगलदत्तने पगे पडी, त्यारे ते पण केटोक प्र. यासे तेणीने उगडीने प्रतिबोधवा लाग्यो के, // |हे अमृतनी नहेरसरखी वाणीवाळी ! जे मने कह्यं ते खरेखर अत्यंत प्रीतिरूपी समुन्ना मोजांना समुहसर जे. // // वलीले | सुन ! योगीन रूपातीत ध्यानथी निवृत्ति कहे , हुं तो तारां रूपस्थ ध्यानयीज खरेखर ते निवः। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust