________________ धम्मि: गनासंग-रंगः संगतिमंगति // 71 // वीरपुत्रोऽपि वीरोऽपि / बिनम्येष मुरोः पुरः // गुरुक्षेत्रं / मा | गतः सूरो-ऽप्युदास्तेऽखिलकर्मसु // 7 // हसित्वा स्माह सा स्वामिन् / कामित्वं तव कीदृशं // | यः स्त्रीजिः प्रार्थितो धत्ते / गुर्वादिभ्यो नयं हृदि / / 73 // जे तब्पं गुरोरेव / शशी किं न क. 366 | वारसी // व्यमृशन्न तु निःशंकः / कलंकमपि जाविनं // 4 // सोऽप्यूचे सत्यमेवैतत् / त्वरां मा. | स्म कृथाः पुनः // सहादास्येऽरविंदास्ये / त्वामवंती व्रजन्नदं / / 75 // एकचितां कथंचित्तां / प्रत्या| त्ति पाम्यो बु. // 70 // परंतु हे गौरांगि! हुं ज्यांसुधी अहीं गुरुकुलमा रह्यो ढुं त्यांसुधी स्त्रीना संगनो रंग मारेमाटे योग्य गणाय नहि. / / 71 // हुँ सुचटनो पुत्र अने सुगट वं. छतां पण गु रुथी डरुं बु. केमके गुरुना क्षेत्रमा गयेलो सूर्य पण. सर्व कार्योमां नदामीन थाय ने. // // सारे ते हसीने बोली के हे स्वामी! त्यारे तमाळं कामीपणुं ते केवु ? के जे स्त्रीए प्रार्थना कर्या बतां हृदयमां गुरुवादिकनो घय धारण करे . // 73 / / कलाना रसिक चं पण शं गुरुनीज शय्या नयी नोगवी? अने तेम करवामां तेणे निःशंक थश्ने थनारा कलंकनो पण विचार क. - | यो नथी. // // त्यारे अगलदत्ते पण कहां के हे कमलमुखी! ए वात सत्यज ने, परंतु तुं न PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust