________________ सार्थ || धम्मि- काले शाखीव / प्युष्टः कुष्टदवामिना // 23 // अहं वैद्यप्रतीकारा-नस्याऽनटपानचीकरं / शशाम नाम नो तैस्तु / घृतैखि धनंजयः // 24 // स दृष्ट नृरिखमः / पृष्टानेकबहुश्रुतः // नक्तिकीतोऽभ्य | धात्तस्य / सत्यप्रत्ययमौषधं // 25 // अयं जात्यकिशोरस्य / यदि क्षिप्येत शोणिते // तत्त्वग्दोषे. 375 ण मुच्येत / मलेनेव कृताप्लवः // 26 // युदित्वा गते दूते / व्यमृशन्मंत्रिपुंगवः // लेने व्या. | धिप्रतीकार / एष ईषत्करो मया // 27 // पुत्रमित्रकलत्रेभ्यो-ऽप्यविश्वस्तेन लुजा // यः किशो. | वृक्ष तेम यौवनवयमां या मारो पुत्र कुष्टरूपी दावानलयी व्याप्त थयों ने. // 23 // में तेनामाटे | वैद्योमारफते घणा नपायो कर्या, परंतु घृतथी जेम अमि तेम तेथी थानो रोग शांत थयो नहि. // 24 // जोएल ने घणो पृथ्वीनाग जेणे तथा पूल अनेक बहुश्रुतोने जेणे एवा ते दते मंत्रीनी जक्तिथी खुश थश्ने तेने खरी खातरीनु औषध बताव्यु के, // 25 // जो या तारा पत्र. ने जातिवंत घोडाना वराना रुधिरमां ऊबोळ्वामां आवे तो स्नान करनारनो जेम मेल तेम था. नो या कुष्ट रोग नाश पामे. // 26 // एम कहीने ते दूत गयावाद मंत्रीए विचार्यु के, था तो | मने सहेलो रोगनो नपाय हाथ आव्यो . // 27 // पुत्र, मित्र बने स्त्रीनो पण विश्वास नहि / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust