________________ सार्थ 316 धम्मि-| रो ममावासे / न्यासे मुक्तोऽस्ति सद्गुणः // 2 // रक्तधारास्ततः पुष्ट-शरीरादापगा च // यः | | स्योऽप्युद्धविष्यति / राज्यश्रीकेलिशैलतः // 25 // तासु स्नातो लघल्लाघो / जविता मे कुमारकः // पीनांगश्वं किशोरोऽपि / वृष्ययोंगाजियोगतः // 30 // मंत्रिणाय किशोरस्य / शिरावेधो व्यधीयत // प्रवहद्भिस्ततोऽसृग्निः / दणा कुंडमपूर्यत / / 31 / कोपं नालमिवोद्भिनं / मंत्रिणा धमा नीमुखं // यत्नतः संवृतमपि / न तस्थौ रुधिरं वमत् // 32 // दाणान्निथ्योतितालक्त-पक्ष्मवत्पांमुतां राखता एवा राजाए जे नत्तम लदाणवाळो वजेरो मारे घेर थापण राख्यो , // 2 // राजलक्ष्मी. ने क्रीमा करखाना पर्वतसरखा अने पुष्ट शरीखाळा ते वडेरामांयी नदीनीपेठे रुधिरनी घणीधारा निकलशे, // 27 // अने तेमां स्नान करवाथी मारो पुत्र तुरत निरोगी थशे, अने घा रुमा वनारी औषधी आदिकना प्रयोगथी ते वजेरो पण पागे पुष्ट शरीरवाळो थशे. // 30 // पजी ते | मंत्रिए ते वजेरानी नाडी फोमी, अने तेमाथी निकळनां लोहीथी दाणवारमा कुंडी जरा गइ.॥ .. // 31 // पछी खुली थयेली कुवानी सरवाणीनीपेठे मंत्रीए तेनी नाडीनुं मुख जो के यत्नपूर्वक | बंध कयु, तो पण तेमांथी निकलतुं रुधिर बंध थयु नहि. // 3 // दणवारमां नीचोवी लीधेला P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust