________________ 450 धम्मित पुंगवाः // 75 ॥क तिग्मांशुः क खद्योतः / क मेरुः क च सर्षपः // क नाकौकः कं नानाकुः / / क साधुः क पुनर्ग्रही / / 76 // एवं मुनिपतेः श्रुत्वा / धर्मतत्वं दधन्मुदं // रथी तमेव पप्रल / पु. नरुद्गृतकौतुकः // 9 // नवंतो नगवंस्तुल्या-काराः षडपि साधवः // कुतो वैराग्यतो नेजुस्तारुण्येऽपि महातपः // 70 // निरस्तमन्मथो वाच-मथोवाच महामुनिः॥ उद्देलबोधिपाथोधिस्फारफेनानुकारिणी // // तस्किं यन्न नवे वत्स / नवे दैराग्यकारणं // समं हि नैकमप्यंग / कुसंस्थानमये मये // 70 // तत्र कस्यापि केनापि / हेतुना बोधिरेधते // एक एव हि नानेहा / क्यां सरसव ? क्यां देवविमान थने क्यां बिल? तेम क्यां साधु अने क्यां गृहस्थ ? // 16 // ए. वी रीते ते मुनीश्वरपासेथी धर्मर्नु तत्व सांगलीने हर्ष धरनारा अगलदत्ते आश्चर्य उत्पन्न थवाथी फरीने तेज मुनिने पूज्युं के, // 7 // हे नगवन! तुल्य याकारवाळा यापे गए मुनिए या युवावस्थामां पण शाथी वैराग्य पामीने दीदा लीधी ? // 70 // दूर करेवने कामदेव ने एवा ते महामुनिराज ज्ञानरूपी उबळेला समुदना विस्तीर्ण फीणसरखी वाणी बोल्या के, // 7 // | हे वत्स! या संसारमां एवी कश् वस्तु बे ? के जे वैराग्यना कारणरूप न थाय, केमके कुत्सित P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust