________________ धम्मि- वह्विस्तृडपनोदाय / जीवनाय हलाहलं // यदि स्यात्तर्हि हिंसापि / पुण्याय परिकल्प्यतां // 71 / / | निर्मतून नंति ये जंतू-नंतकाः खलु ते नराः // नपालनंते दिक्पालं / दाक्षिणात्यं मुधा बुधाः // 72 // न मेदिनीमणिस्वर्ण-श्रेणिविश्राणनेऽपि तत् / / यत्पुण्यं जायते जंता-वेकस्मिन्नपि रदि. ते // 73 // सा च जीवदया सम्य-ग्मुनीः परिपाव्यते // उपासकैस्तदंहीणां / लेशेन गृहमेधि. निः // 14 // न जीवहिंसा नाऽसत्य-भाषा न स्तन्यमैथुने // न परिग्रहवैयग्यं / येषां ते मुनिजीवित मळे, तोज हिंसाथी पण पुण्य थव शके. // 31 // जे पुरुषो निरपराधी प्राणीनने मारे के तेज खरेखर यम बे, दक्षिण दिशाना दिक्पालने तो पंमितो फोकट नपालंन थापे . ॥७शा एक जंतुनुं रदण करवाथी पण जे पुण्य थाय , ते पुण्य पृथ्वी, मणि के स्वर्णनी श्रेणि या | प्याथी पण थतुं नथी. // 73 // ते जीवदया संपूर्ण रीते तो मुनीश्वरोज पाली शके , थने ते मनिनना चरणने सेवनारा गृहस्थीन तो लेशमात्र पाळी शके . // 14 // जेन जीवहिंसा करता नथी, असत्य नाषा बोलता नथी, चोरी करता नथी, मैथुन सेवता नथी, तथा परिग्रहमां लो| खुप थता नथी, तेज खरा मुनींदो . // 75 // क्यां सूर्य घने क्या पतंगीनं? क्या मेरु धने PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust