________________ धम्मि-। न्मौनं / न प्राज्येऽपि प्रयोजने // 35 // यूकामत्कुणदंशादि-जुद्रजंतुसमुद्भवां / सेहे देहेन नि ग्रंथो / निर्वाणार्थीव स व्यथां // 36 / / एवं उव्यव्रतस्थेन / षण्मासास्तेन निन्यिरे // तदंते च | दिवो दैवी / वाणी प्रादुरदिति // 37 // नव धम्मिल विश्वस्त-स्वं चोगान गोक्ष्यसे भृशं // 505/ विद्याधरनृपेच्यानां / प्राप्य झात्रिंशतं कनीः // 30 // व्योमजा वारिधारेव / सा वाक्तचित्तकानने / / तपस्याफलसंदेह-दहनं निखापयत् / / 37 // तपस्वीव कृताहारः / दयीवाप्तरसायनः // दवानमाटे पण जरा पण मौन गेडयुं नहि. // 35 // मोदार्थी साधुनीपेठे ते जु, मांकम तथा डांस आदिक कुद्र जंतुथी शरीरमा उत्पन्न थयेली व्यथाने सहन करवा लाग्यो. // 36 // एवी रीते द्रव्य व्रतमा रहीने तेणे छ मासो व्यतीत कर्या, त्यारे याकाशमांथी एवी दिव्य वाणी प्रगट थ६ के, // 37 // हे धम्मिल! तुं विश्वास राख? तुं विद्याधर राजा तथा शाहुकारोनी बत्रीस कन्या मेलवीने घणा लोगो जोगवीश. // 30 // एवी रीते आकाशमाथी उत्पन्न थयेली जलधारासरखी ते वाणीए तेना चित्तरूपी वनमा उत्पन्न थयेला तपस्याना फलना संदेहरूपी अभिने बुझावी ना. ख्यो. // 30 // पनी जोजन करेला तपस्वीनीपेठे, रसायण खाधेला दयरोगीनीपेठे तथा वरसा. PP.Ac. Sunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust